गोरखपुर में सबसे बड़ा प्रदर्शन, 10 हजार से अधिक शिक्षामित्र उतरे सड़क पर, पुलिस ने बरसाईं लाठियां और दौड़ाकर पीटा, फरियाद लेकर पहुंचे थे मुख्यमंत्री के मंदिर गोरखनाथ पर, प्रदेशभर में सैकड़ों घायल शिक्षामित्र अस्पतालों में भर्ती
उत्तर प्रदेश। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 जुलाई को शिक्षा मित्रों का समायोजन रद्द कर नए सिरे से टीईटी की परीक्षा पास करने के फैसले से शिक्षामित्र खासे नाराज हैं। कल लाखों शिक्षा मित्रों ने प्रदेशभर में प्रदर्शन किए और बदायूं में एक हताश शिक्षामित्र ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली।
गोरखपुर समेत अलग—अलग जगहों पर हुए प्रदर्शन में पुलिस ने आंदोलित शिक्षामित्रों पर लाठीचार्ज किया। इस कार्रवाई में कई लोग घायल हो गए। हिंसक शिक्षामित्रों ने एक दरोगा पर हमला कर दिया, जिसके लिए 30 लोगों को हिरासत में ले लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में 1.78 लाख शिक्षामित्रों की सहायक अध्यापक के रूप में नियमित किये जाने को गैरकानूनी ठहराया है। पर नौकरी से नहीं निकाले जाने की भी सिफारिश की है।
26 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने शिक्षामित्रों के नियमितीकरण की सुनवाई पर हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और फैसला दिया कि उनको तत्काल नहीं हटाया जाए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2015 में शिक्षामित्रों की नियुक्तियों को अवैध ठहरा दिया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2015 में इस आदेश पर स्टे दे दिया था। उसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ के न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की संयुक्त रूप से यह फैसला दिया है।
खंडपीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को तो बरकरार रखा है, पर शिक्षामित्रों को राहत देते हुए कहा कि उन्हें भर्ती की औपचारिक परीक्षा में बैठना होगा और लगातार दो प्रयासों में यह परीक्षा पास करनी होगी। जो शिक्षक यह परीक्षा पास करेंगे वही नियमित होंगे जो नहीं पास कर पाएंगे वह नियमित नहीं हो पाएंगे।
अदालत ने यह फैसला शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखनी की दृष्टि से दिया है।
पर शिक्षामित्रों का कहना है उन्हें पढ़ाने का लंबा अनुभव है और परीक्षा की प्रक्रिया बेसिकली उन्हें बेरोजगार और बेकार करने का एक प्रयास है। इसी रोष को जताने के लिए शिक्षामित्रों ने राज्यभर में प्रदर्शन किए और सरकार के सामने मांग रखी कि उनका नियमितीकरण बरकरार रखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट का क्या है कहना
शिक्षामित्र मामले में गठित पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि हमारे सामने जहां 1.78 लाख लोगों के दावे हैं, जिन्हें कानून का उल्लंघन करते हुए नियमित किया गया है, वहीं हमें कानून के शासन को भी ऊपर रखने के साथ ही छह से 14 साल के बच्चों को शिक्षित शिक्षकों से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के अधिकार को देखना है। यदि हम अस्थाई रूप से अयोग्य शिक्षकों से अध्यापन को जारी भी रखते हैं तो भी योग्य शिक्षक नियुक्त करने ही होंगे।
नियुक्ति प्रावधान की अवहेलना
राज्य को आरटीई एक्ट की धारा 23(2) के तहत शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यताओं को घटाने का कोई अधिकार नहीं है। आरटीई की बाध्यता के कारण राज्य सरकार ने योग्यताओं में रियायत देकर शिक्षामित्रों को नियुक्ति दी थी। कोर्ट ने शिक्षा मित्रों को यह कहकर खारिज कर दिया कि कानून के अनुसार ये कभी शिक्षक थे ही नहीं, क्योंकि ये योग्य नहीं थे।
कोर्ट के आदेशानुसार राज्य सरकार यह परीक्षाएं लगातार दो बार आयोजित करेगी और जो शिक्षामित्र विज्ञापन के अनुसार योग्य होंगे, वे दो भर्ती परीक्षाओं में बैठ सकते हैं। उनके इस अवसर का लाभ उठाने तक सरकार उन्हें शिक्षामित्र के रूप में जारी रख सकती है, लेकिन इसके लिए शर्तें नियमितीकरण से पूर्व की होंगी।
गौरतलब है कि 26 मई 1999 को हर विद्यालय में दो शिक्षा मित्र रखने का आदेश जारी किया गया था, जिन्हें रखने का अधिकार संबंधित ग्राम प्रधान को दिया गया था। तब स्कूलों में पढ़ाई का स्टैंडर्ड बेहतर करने के लिए ये नियुक्तियां की गई थीं, मगर अब यही पात्रता अपात्रता में परिवर्तित हो गयी है। यानी कोर्ट ने उन्हें टीईटी पास न होने पर अप्रशिक्षित घोषित कर दिया है।