भगौड़े विजय माल्या को लंदन भागे हो गए 2 साल, मगर वित्त मंत्रालय नहीं जानता कितना लोन लिया है उसने

Update: 2018-09-13 06:33 GMT

माल्या आज यह कहता है कि मैंने लंदन जाने से पहले जेटली को यह बताया था कि 'मैं लंदन जा रहूं हूँ' तो इस बात का क्या मतलब है...

पढ़िए गिरीश मालवीय का विश्लेषण कि वित्तमंत्री अरुण जेटली को तत्काल इस्तीफा क्यों देना चाहिए...

कल विजय माल्या ने जो लंदन आने से पहले अरुण जेटली से हुई मुलाकात के बारे में कहा है वह अब एक ओपन ट्रूथ है। बहुत से लोगों को लगता है कि माल्या के मुद्दे पर राहुल गांधी जो जेटली के इस्तीफे की मांग कर रहे है वह सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाने के लिए ऐसा कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई तो यह है कि माल्या ने कल वही बात बोली है जो कांग्रेस प्रवक्ताओं ने 2016 में माल्या के लंदन भागने के ठीक बाद में बोली थी।

उस वक्त कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने मोदी सरकार पर गंभीर प्रश्न उठाते हुए कहा था कि 2 मार्च 2016 को माल्या के लंदन जाने से ठीक एक दिन पहले 1 मार्च 2016 को माल्या ने वित्त मंत्री अरुण जेटली और वित्त मंत्रालय के कुछ अफसरों से मुलाकात की थी, उसके बाद वे विदेश भाग गए। क्या जेटली ने इस मुलाकात के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को बताया? मुलाकात में क्या बातें हुईं? क्या जेटली मुलाकात का ब्यौरा संसद को देंगे?

अब सबसे महत्वपूर्ण बात समझिए जिसे इस देश का गोदी मीडिया आज दबाकर बैठा हुआ है और यह हिम्मत नहीं कर पा रहे कि मोदी सरकार से पूछ लें कि आखिर माल्या के खिलाफ जो मूल लुकआउट नोटिस जारी किए गए थे, उसे वापस क्यों लिया गया?

लुकआउट नोटिस के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए आप खुद सोचिए कि माल्या आज यह कहता है कि मैंने लंदन जाने से पहले जेटली को यह बताया था कि 'मैं लंदन जा रहूं हूँ' तो इस बात का क्या मतलब है?

दरअसल, विजय माल्या के खिलाफ सीबीआई ने जुलाई 2015 में खुद ही आईडीबीआई बैंक लोन मामले में भ्रष्टाचार और आपराधिक षडयंत्र की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था।

2 मार्च 2016 की तारीख में सीबीआई को पता था कि विजय माल्या लंदन जा रहे हैं यहाँ तक कि एयरपोर्ट से इमिग्रेशन ने सीबीआई को बताया भी था कि माल्या जा रहे हैं लेकिन सीबीआई ने माल्या के जाने पर कोई आपत्ति नहीं ली तो आप अंदाजा लगाइये कि ऐसा किसके आदेश पर कहा गया होगा?

सच्चाई यह है कि सीबीआई ने अक्टूबर, 2015 में माल्या के नाम लुकआउट नोटिस यानी देश से जाते समय पकड़ लेने का नोटिस जारी किया था लेकिन एक महीने बाद नंवंबर में वो नोटिस वापस ले लिया था ओर लुक आउट नोटिस में बदलाव कर कहा गया कि अगर विजय माल्या देश से बाहर जाने की कोशिश करें तो सीबीआई को जानकारी दी जाए और ये भी बताया जाए कि वो कहां गए हैं।इसी आधार पर सीबीआई को 2 मार्च को ये पता चला था लेकिन सीबीआई ने कहा, 'जाने दो'

लुकआउट नोटिस में ऐसा चेंज किसके इशारे पर किया गया, समझना मुश्किल नहीं है।

इस बात के भी बहुत से सुबूत मिल जाएंगे कि माल्या के संबंध जेटली से बड़े घनिष्ठ थे। जब माल्या लंदन में थे तो उन्होंने एक पत्र मोदी और जेटली को लिखा था और वह पत्र ट्विटर पर साझा भी किया था। माल्या लिखते हैं 'मैंने 15 अप्रैल 2016 को पीएम मोदी और वित्त मंत्री जेटली को पत्र लिखा था। इस चिट्ठी को सार्वजनिक कर रहा हूं ताकि चीजें सही परिपेक्ष्य में आ सकें।' माल्या ने ट्वीट पर बताया कि मोदी और जेटली दोनों में से किसी का भी इस पत्र का जवाब नहीं आया।

ये तो हुई अरुण जेटली के साफ साफ दिख रही इन्वॉल्वमेंट की बात, अब आप यह समझिए कि माल्या के केस में मोदी सरकार कितनी गंभीर है और कितनी तत्परता से कार्यवाही कर रही है।

भगोड़े माल्या को लंदन में रहते ढाई साल होने वाले हैं, लेकिन वित्त मंत्रालय को अब तक इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि किंगफिशर के मालिक विजय माल्‍या ने कितना लोन लिया है?

सेंट्रल इंफॉरेमेंशन कमिशन यानी सीआईसी को दिए एक जवाब में मंत्रालय ने कहा है कि उसके पास माल्‍या का कोई लोन रिकॉर्ड नहीं है। वित्त मंत्रालय की यह दलील मोदी सरकार के पारदर्शिता के दावों पर बड़ा सवाल खड़ा कर रही है।

यह भी जानना भी आपके लिए आल्हादकारी अनुभव साबित होगा कि वास्तविक रूप में माल्या की संपत्ति की नीलामी से कितनी रकम सरकार को प्राप्त हुई है। 21 मार्च को केंद्रीय वित्‍त राज्‍य मंत्री संतोष गंगवार ने संसद को बताया था कि सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक की जानकारी के मुताबिक माल्‍या की संपत्ति की ऑनलाइन नीलामी से अभी तक सिर्फ 155 करोड़ रुपये ही हासिल हो पाए है।

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मोदी सरकार बेनामी संपत्तियों के मामलों के निपटान के लिए नया कानून बनाने के डेढ़ साल बाद अभी इन मामलों की सुनवाई के लिए जरूरी जुडिशल अथॉरिटी का गठन ही नहीं कर पाई। जबकि संबित पात्रा सरीखे जोकरनुमा प्रवक्ता टीवी पर ताल ठोकते हुए पाए जाते हैं कि नए कानून के तहत माल्या सरीखे डिफाल्टर की बेनामी संपत्ति मोदी सरकार तेजी से जब्त कर रही है।

हकीकत यह है कि इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के लागू होने के बाद कुर्क हुईं 860 संपत्तियों में 780 के मामले अभी तक लंबित हैं।

सच तो यह है कि मोदी जी ओर जेटली के खाने के दांत कुछ और हैं और दिखाने के कुछ और, इसलिए जब माल्या के बयान से सच्चाई सामने आ गयी है तो कम से कम जेटली को तो तुरंत वित्तमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।

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