एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 4 अरब आबादी पानी की कमी से जूझ रही है, इसमें से 1 अरब आबादी भारत में है। वर्ष 2050 तक पानी की कमी से 5 अरब आबादी का सामना होगा...
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
जब कोई भी समस्या विकराल रूप लेती है तभी मीडिया इसे समझ पाता है और जब मीडिया में चर्चा होने लगती है तब सांसदों की नींद खुलती है। दो—तीन दिन पहले राज्यसभा में पानी की समस्या को लेकर छोटी चर्चा की गयी। मानसून के बादल देर से ही सही, पर देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुँचने लगे हैं, जाहिर है कम या ज्यादा बारिश तो होगी ही। इससे पानी की समस्या से कुछ छुटकारा मिलेगा और यह समस्या मीडिया से और संसद से गायब हो जायेगी। फिर अगली गर्मियों में यही सिलसिला चलेगा।
नीति आयोग ने कम से कम देश में पानी की समस्या पर एक बेहतरीन रिपोर्ट दो वर्ष पहले तैयार की थी, पर संसद में कभी इस पर चर्चा नहीं की गयी। एक कहावत है, आग लगने पर कुआँ खोदना, जो इन नेताओं और मीडिया पर पूरी तरह सही बैठती है। यब लोग पानी की कमी से मरने लगते हैं और जब फसलें झुलस जाती हैं तभी यह समस्या नजर आती है।
जब पानी की कमी पर चर्चा की जाती है, तब सांसदों को और प्रधानमंत्री को भी नदियों को जोड़ने के सिवाय कुछ नहीं समझ में आता। पता नहीं वे कौन से लोग हैं जो नदियों में बहते पानी को बर्बाद होना समझते हैं। हमेशा यही कहा जाता है कि एक नदी में ज्यादा पानी बहकर बर्बाद हो रहा है तो उसे दूसरी कम पानी वाली नदी से जोड़ देंगे तो पानी बर्बाद नहीं होगा और लोगों को पानी मिल जाएगा।
नदियों को सरकार प्राकृतिक सम्पदा नहीं, बल्कि अपनी सम्पदा समझती है, तभी नदियों को जोड़ने का विचार आता है। नदियाँ पहले भी थीं और आबादी भी, पर नदियों को धरोहर समझने की भूल किसी ने नहीं की। हरेक नदी के अपने प्राकृतिक गुण होते हैं और अपनी विशेष जैविक सम्पदा होती है, जिसे दूसरी नदी से मिलकर हम हमेशा के लिए नष्ट कर देंगे।
नेताओं की चर्चा में रेनवाटर हार्वेस्टिंग भी रहता है। पहले कोई ऐसा सिस्टम नहीं था, पर भूजल प्रचुर मात्रा में था। अब रेनवाटर हार्वेस्टिंग है पर भूजल समाप्त हो रहा है। दरअसल भूजल का रीचार्ज एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, पर अब न तो खाली जमीन है और न की दलदली भूमि। जहां भी रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम है, वह एक मजाक से कम नहीं है। किसी को नहीं पता होता कि इससे कितना पानी जमीन के अन्दर पहुंचा।
दिल्ली का उदाहरण सबके सामने है, जहांगीरपुरी से भलस्वा तक दलदली भूमि थी जिससे वर्षा का जल आसानी से भूजल तक मिलता था, पर इसे पाट दिया गया और बड़े प्रोजेक्ट आ गए। दिल्ली में जितने तालाब थे सभी नष्ट हो गए। जितने वर्षा जल को यमुना तक पहुंचाने वाले नाले थे, सभी से मलजल बहने लगा।
वजीराबाद के बाद यमुना में पानी नहीं है, जिससे भूजल का रीचार्ज किया जा सके। दिल्ली मेट्रो ने तमाम टनल बना डाले, जिससे बचा खुचा भूजल भी बाधित हो गया। दिल्ली मेट्रो ने रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाए, पर इसमें पानी सीधा सड़क पर गिरता है और नालियों में बह जाता है।
वाटरऐड नामक संस्था की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 4 अरब आबादी पानी की कमी से जूझ रही है, इसमें से 1 अरब आबादी भारत में है। वर्ष 2050 तक पानी की कमी से 5 अरब आबादी का सामना होगा। वर्ष 2040 तक दुनिया के 33 देश पानी की भयानक कमी का सामना करेंगे। इन देशों में भारत, चीन, साउथ अफ्रीका, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सम्मिलित हैं।
दुनिया में भूजल में 22 प्रतिशत की कमी आया रही है, जबकि हमारे देश में यह कमी 23 प्रतिशत है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स पर हस्ताक्षर किये है, जिसके अनुसार वर्ष 2030 तक पूरी आबादी को साफ़ पानी उपलब्ध कराना है।
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश के 54 प्रतिशत हिस्सों में भूजल कम हो रहा है, नदियों का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा प्रदूषित है, तालाब और झीलें दम तोड़ रही हैं। वाटर क्वालिटी इंडेक्स में कुल 122 देशों की सूची में हमारा देश 120वें स्थान पर है। पानी की कमी से हम वर्तमान में ही जूझ रहे हैं और वर्ष 2030 तक पानी की मांग दुगुनी हो जायेगी।
हरेक वर्ष देश में 2 लाख व्यक्तियों की मौत गंदे पानी या फिर बिना पानी के चलते होती है। यही नहीं, पानी की कमी से देश के सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत की कमी हो जाती है। इन सबके बाद भी पानी को लेकर सरकार कहीं से गंभीर नहीं दिखती।