भारत उड़ा रहा है 44 साल पुराने मिग-21, इतनी पुरानी तो कोई कार भी नहीं चलाता

Update: 2019-08-22 07:55 GMT

2012 से 18 जुलाई 2018 के बीच 31 लड़ाकू विमान दुर्घटनाओं की भेंट चढ़ गए। वर्ष 2015 के बाद से इन दुर्घटनाओं में 45 पायलट और सह-पायलट की मौत हो गयी है, इसका सीधा सा मतलब है कि हरेक दो महीनों में एक विमान नष्ट हो जाता है और लगभग हरेक महीने एक पायलट से अधिक की मौत...

किस तरह है भारतीय वायु सेना को उड़ते ताबूत का सहारा बता रहे हैं वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय

20 अगस्त को नई दिल्ली के एयरफोर्स ऑडिटोरियम में आयोजित एक कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारतीय वायुसेना तकनीकी रूप से अत्याधुनिक और बेहद सक्षम है। इसके बाद एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने जो कुछ भी कहा वह चौंकाने वाला था।

न्होंने कहा कि, 'हम स्वदेशी तकनीक द्वारा पुराने हो चुके लड़ाकू उपकरणों को बदलने का और इंतज़ार नहीं कर सकते। हम 44 वर्ष पुराने लड़ाकू विमानों को उड़ा रहे हैं, इतनी पुरानी तो कार भी कोई नहीं चलाता।' धनोआ का बयान वायुसेना के खस्ताहाल को बताने के लिए काफी है। आश्चर्य इसलिए होता है क्योंकि यह बयान ऐसे अधिकारी ने दिया जो सरकार के विरुद्ध कभी कुछ नहीं कहता और गलत-सही किसी भी सरकारी वक्तव्य को सही ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ता। प्रधानमंत्री के बादल और राडार वाले बयान पर जब जगहंसाई हो रही थी, तब भी उस बयान का समर्थन वायु सेना से अकेले धनोआ ने किया था।

भारतीय वायु सेना की हालत का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसे 18 फाइटर विमानों वाले 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है, जबकि इस समय इसके बेड़े में महज 31 स्क्वाड्रन ही हैं। वर्ष 2014 में भारतीय वायु सेना के पास 34 स्क्वाड्रन थे।

भी हाल में ही यह खबर भी आई थी और जिसे पाकिस्तानी मीडिया ने खूब उछाला था कि 27 फरवरी को बालाकोट हमले के समय विंग कमांडर अभिनन्दन वर्धमान के मिग 21 बाइसन विमान के कम्यूनिकेशन सिस्टम को पाकिस्तान ने जैम कर दिया था, तभी उन्हें वापस लौटने का सन्देश नहीं मिला और वे पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गए।

र्ष 2005 से भारतीय वायु सेना उन्नत कम्यूनिकेशन सिस्टम के लिए सरकार से अनुरोध कर रही है, पर अब तक डीआरडीओ और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड इसका परीक्षण नहीं कर पाए हैं। विंग कमांडर अभिनन्दन को तो वीर चक्र से सम्मानित कर दिया गया, और उस समय इनको वापस लौटने का निर्देश देने का प्रयास करने वाली स्क्वाड्रन लीडर मिन्टी अग्रवाल को युद्ध सेवा मेडल दिया गया, पर एंटी-जैमिंग इंस्ट्रूमेंट के लिए कोई कदम नहीं उठाये गए।

ह उस बालाकोट की बात है, जिस पर प्रधानमंत्री जी का लगभग आधा चुनाव अभियान टिका था और जहां हमने एंटी-जैमिंग उपकरण के अभाव में एक लड़ाकू पायलट की जान को खतरे में डाल दिया और एक फाइटर प्लेन गवां दिया।

पिछले वर्ष बंग्लुरु में वायुसेना के प्रशिक्षण विमान की दुर्घटना में विमान के साथ साथ दो ट्रेनी पायलट की मौत हो गयी थी। उस समय दिल्ली के एक अधिवक्ता ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि वायुसेना के विमानों की बढ़ती दुर्घटना की जांच सर्वोच्च न्यायालय के एक कमेटी द्वारा की जानी चाहिए।

स समय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने इस याचिका को खारिज कर दिया था, पर टिप्पणी की थी की यह सामान्य सी बात है कि वायुसेना के अधिकतर विमान बहुत पुराने हैं और अच्छी हालत में नहीं हैं। यहां अभी तक दूसरे और तीसरे जनरेशन के वायुयान इस्तेमाल किये जा रहे हैं, जबकि अन्य देश अब पांचवे और छठे जनरेशन के वायुयान का उपयोग करने लगे हैं।

र्ष 2005 में विंग कमांडर संजीत सिंह कएला का मिग 21 विमान उड़ान भरने के एक मिनट के भीतर ही गिर गया। वे बच गए पर रीढ़ की हड्डियों में ऐसी चोटें आयीं कि फिर से विमान उड़ाने लायक नहीं बचे। उन्होंने विमान के उत्पादन में खराबी के आधार पर मुवावजे की मांग करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में मुक़दमा दायर कर दिया।

भारतीय वायु सेना के इतिहास में ऐसा पहला मामला था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 5 मई 2017 को दिए गए फैसले में हिन्दुस्तान एरोनोतिक्स लिमिटेड और भारत सरकार को 55 लाख रुपये मुवाबजा के तौर पर देने का निर्देश दिया। न्यायालय के अनुसार, 'एक सैनिक और एक ऑफिसर का सम्मान और गौरव जीवन के अधिकार की तरह है। उन्हें सुरक्षित कार्यस्थल से वंचित करना और स्टैण्डर्ड उपकरण से वंचित रखना उनके जीवन और प्रतिष्ठा के अधिकार का हनन है।'

भारतीय वायु सेना के विमान, दुर्घटनाओं के कारण लगातार समाचार में बने रहते हैं। कुछ महीने पहले लोकसभा में प्रस्तुत जानकारी के अनुसार 2012 से 18 जुलाई 2018 के बीच 31 लड़ाकू विमान दुर्घटनाओं की भेंट चढ़ गए। वर्ष 2015 के बाद से इन दुर्घटनाओं में 45 पायलट और सह-पायलट की मौत हो गयी है। इसका सीधा सा मतलब है कि हरेक दो महीनों में एक विमान नष्ट हो जाता है और लगभग हरेक महीने एक पायलट से अधिक की मौत होती है।

दुनिया के किसी भी देश में न तो वायु सेना के इतने विमान क्षतिग्रस्त होते हैं और न ही इतने अधिकारियों की मौत होती है। अपने देश में जब कोई विमान लापता होता है या फिर क्षतिग्रस्त होता है, तभी पता चलता है कि उसमें सुरक्षा उपकरण पर्याप्त नहीं थे। इसके बावजूद हमारी सरकार और वायु सेना लगातार हरेक परिस्थिति से निपटने की बातें करते हैं।

र्ष 1966 से 2012 के बीच भारतीय वायु सेना के 872 मिग विमान में से 482 विमान नष्ट हो गए, 171 फाइटर पायलट की और 39 आम नागरिकों की मौत हो गयी। वर्ष 2009 से 2017 के बीच 7 सुखोई विमान भी गिर चुके हैं। राज्य सभा में दी गयी जानकारी के अनुसार पिछले 40 वर्षों में कुल 872 विमानों में से आधे से अधिक दुर्घटना में गिर चुके हैं। वर्ष 2015 से 2018 के बीच कुल 24 विमान गिरे जिसमें 39 वायुसेना अधिकारियों की मौत हो गई।

पिछली सरकार के समय से वायु सेना से जुड़ा एक ही मुद्दा है, जिस पर पक्ष और विपक्ष ने खूब चर्चा की है, वह है राफेल विमान का सौदा। पर हमारी वायु सेना या सेना के सभी अंगों के आधुनिकीकरण पर कोई बात ही नहीं करता।

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