24 दिनों से भोपाल में धरने बैठीं एक शिक्षक की मौत तो दूसरी का हुआ गर्भपात, फिर भी ख़ामोश है कमलनाथ सरकार

Update: 2020-01-02 15:48 GMT

आंदोलनरत शिक्षक कहते हैं, आंदोलन के दौरान और कितनी मौतें होंगी, पता नहीं और कितनी मौतों के बाद यह सरकार जागेगी, यह भी नहीं पता, मगर हम सरकार को बता देना चाहते हैं कि चाहे हम यही धरना देते हुए मर जाएं मांगें पूरी हुए बिना नहीं लौटेंगे...

भोपाल से रोहित शिवहरे की रिपोर्ट

रसों से प्रदेशभर के सरकारी कॉलेजों में पढ़ा रहे अतिथि विद्वान पिछले 24 दिनों से भोपाल के शाहजहानी पार्क में सैकड़ों की संख्या में अपने नियमितीकरण की मांग को लेकर धरने और क्रमिक उपवास पर बैठे हुए हैं। अतिथि विद्वानों में बड़ी संख्या में महिलाएं और छोटे बच्चे भी शामिल हैं।

डॉ रीना शर्मा जो कि अपनी नियमितीकरण को मांग को लेकर सिंगरौली बैढ़न से आई हुई हैं,जनज्वार से हुई बातचीत कहती हैं कि हमारी साथी समी खरे मैम जो कि टीकमगढ़ से थीं, उनकी धरने के दौरान ही मौत हो गयी है। वे हमारे साथ छिंदवाड़ा की पदयात्रा में भी हमारे साथीं। उसके बाद शाहजहानी पार्क में थीं। नियमितीकरण के तनाव और ठंड भरे माहौल में खुले आसमान के नीचे धरना देने के कारण उनकी तबीयत बिगड़ी और पैसे की कमी की वजह से उन्हें अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं भी मुहैया नहीं हो पाई, जिसके कारण भोपाल में ही उनकी मौत हो गई।

पिछले 24 दिन से धरनारत थीं एडहॉक टीचर समी खरे, इसी दौरान हो गयी मौत

ह बताते बताते हुए डॉ. रीना शर्मा रोने लगती हैं। वे आगे कहती हैं, हमारी एक साथी का इसी दौरान गर्भपात भी हो गया है। एक छोटी बच्ची को किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया, जिससे उसकी भी तबीयत खराब हो गई है। आंदोलन के दौरान और कितनी मौतें होंगी, पता नहीं और कितनी मौतों के बाद यह सरकार जागेगी। हम सरकार को बता देना चाहते हैं कि चाहे हम यही धरना देते हुए मर जाएं, लेकिन बिना नियमितीकरण के पत्र लिए बिना हम यहां से नहीं जाएंगे।

रनास्थल पर सैकड़ों की संख्या में महिलाएं हैं, उनके साथ उनके छोटे-छोटे बच्चे हैं। डॉ चेतना चेतना शर्मा कहती हैं, मैं अपने छोटे बच्चे के साथ धरनास्थल पर रहने को मजबूर हूं। हमारे पास और कोई रास्ता ही नहीं है। यहां बहुत सी समस्याएं हैं। खुले में सोना पड़ता है। सरकार की तरफ से न पीने के पानी की व्यवस्था है और न ही शौचालय की व्यवस्था है। सड़क के उस पार सार्वजनिक शौचालय है, जिसकी स्थिति भी दयनीय है और रात बिरात अपने छोटे बच्चों को लेकर हम महिलाओं को असुरक्षित स्थिति में शौचालय जाना पड़ता है। बच्चों की महिलाओं की तबीयत खराब हो रही है और स्वास्थ्य संबंधित कोई भी सुविधाएं नहीं है। फिर भी सरकार की संवेदना नहीं जाग रही हैं। तो ठीक है हम डटे रहेंगे।

गेस्ट टीचर डॉ देवराज सिंह कहते हैं, हम 2 दिसंबर को छिंदवाड़ा में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने गए थे, लेकिन माननीय कमलनाथ जी की सरकार ने हमें वहां धरना करने की अनुमति नहीं दी। वहां से हमें जबरन पुलिस वाहनों में बिठाकर पिपरिया के जंगलों में छोड़ा गया, जिसके बाद हमने पैदल यात्रा की और 10 दिसंबर को भोपाल पहुंचे। तभी से हम धरने पर बैठे हुए हैं। हमारे सामने बहुत संकट की स्थिति पैदा हो गई है। हममें से ज्यादातर साथी अधेड़ उम्र के हो चुके हैं। हमारा रोजगार छिन चुका है और हमारे पास रोजगार का अब कोई साधन नहीं है। हम बरसों से सरकारी कॉलेजों में शिक्षण का काम करते रहे हैं। सरकार ने चुनाव से पहले अपने वचन पत्र में अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण की जो बात की थी, अब उन्हें यह बात पूरी करनी चाहिए उसके बिना हम यहां से नहीं जाएंगे।

समी खरे की मौत के बाद कैंडल मार्च निकालते साथी शिक्षक

वे आगे बताते हैं कि भोपाल की यात्रा के दौरान होशंगाबाद नर्मदा के तट पर 50 अतिथि विद्वानों ने अपने केश त्याग दिये थे उसके बाद भोपाल में 100 अतिथि विद्वानों ने विरोध स्वरूप अपना मुंडन कराया। साथ ही हमारी पांच महिला साथी भी अपना मुंडन कराने के लिए तैयार थीं, पर उनके समाज के लोगों ने जैसे करणी सेना, ब्राह्मण समाज ने आकर अनुरोध किया कि महिलाएं अपना केस त्याग ना करें।

मरिया जिला से आए अतिथि विद्वान आशीष पांडे कहते हैं, यह संघर्ष 25 सालों से लगातार जारी है। अतिथि विद्वान सरकारी कॉलेजों में रीड की हड्डी की तरह थे। सरकार ने उन्हें सड़क पर आने पर मजबूर कर दिया है। कांग्रेस ने अपने चुनावी वचन पत्र के बिंदु क्रमांक 17.22 में वादा किया था कि 'अतिथि विद्वानों को रोस्टर के अनुसार नियमित करने की नीति बनाएंगे। हम सरकार को यही बात याद दिलाने आए हैं। प्रदेशभर के 2700 अतिथि विद्वान अपने रोजगार के संकट से और अपने हक से जूझ रहे हैं।'

Full View कहते हैं कि 12 अक्टूबर को प्रदेश उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी जीतू पटवारी हमारे पंडाल पर आए हुए थे और उन्होंने भरोसा दिलाया था कि मैं किसी भी अतिथि विद्वान को बाहर नहीं होने दूंगा, पर अभी तक हमारे पास नियुक्ति पत्र नहीं है और हम 2700 शिक्षकों को अफसरशाही फरमान के तहत निकाल दिया गया है। पिछले गुरुवार यानी 26 दिसंबर को उच्च शिक्षा मंत्री पटवारी हमारे पंडाल में दाखिल हुए थे। हमसे उन्होंने पूछा कि आपको गद्दे रजा या किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे बताइएगा, हमने उनसे साफ कर दिया है कि हम यहां खैरात मांगने नहीं आए हैं। हमें अपना हक चाहिए हमें नियमितीकरण चाहिए अगर वह दे सकते हैं तो दीजिए वरना हम अपने मरने तक शाहजहानी पार्क छोड़कर नहीं जाएंगे।

धरनारत अतिथि शिक्षक

शीष पांडे कहते हैं कि सरकार चाहे तो आसानी से हमारे नियमितीकरण का व्यवस्था कर सकती है। रोस्टर के तहत हमारी नियुक्ति की जा सकती है। इसके पहले भी कांग्रेस सरकार ने 1987 और 1990 में सहायक प्राध्यापकों की आप आज नियुक्ति की थी। इसी प्रकार हरियाणा उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के सरकारों ने अध्यापकों का नियमितीकरण किया है।

हीं धरनारत डॉ प्रियंका राय कहती हैं, मैं हरदा कॉलेज में हिंदी पढ़ाते रही हूं। मैं तलाकशुदा हूं और पहले से ही मां बाप को कष्ट दे रही हूं। अपने 7 साल के बेटे के साथ मां—बाप के घर में रहती हूं। उम्मीद थी कि नियमितीकरण हो जाएगा, पर अगर नियमितीकरण नहीं हुआ तो कौन सा मुंह लेकर मैं अपने मां-बाप के पास जाऊंगी।

ज 2 जनवरी की शाम को कांग्रेस भोपाल जिला अध्यक्ष कैलाश मिश्रा आंदोलनकारियों के बीच उपस्थित हुए और उन्होंने आश्वासन दिया है कि मैं आप लोगों की समस्याएं कमलनाथ जी और दिग्विजय सिंह तक पहुंच जाऊंगा और कोशिश करूंगा कि आपकी समस्याओं का जल्द से जल्द निदान हो।

धरनारत अतिथि शिक्षकों के साथ हैं उनके छोटे—छोटे बच्चे भी

पनी दिवंगत साथी समी खरे की स्मृति में आज 2 जनवरी को अतिथि विद्वानों ने 2 मिनट का मौन रखा। इस मौके पर अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा में प्रांतीय प्रवक्ता डॉ मंसूर अली ने कहा सारा अतिथि विद्वान समुदाय आपने परिवार के एक ज़िम्मेदार सदस्य के असामयिक निधन से अत्यधिक सदमे एवं निराशा की स्थिति में है। सभी अतिथि विद्वान सरकार की इस बेरुखी व वादाखिलाफी से बेहद आक्रोशित हैं।

इस बीच शाहजहानी पार्क भोपाल में अतिथि विद्वानों ने कैंडल जलाकर अपने साथी डॉ समी खरे की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। डॉ मंसूर अली ने आगे कहा कि हमारे साथियों की ये क़ुरबानी हम बेकार नही जाने देंगे। सरकार से हम नियमितीकरण लेकर रहेंगे, चाहे इसके लिए एक एक अतिथि विद्वान की कुर्बानी क्यों न देनी पड़े। सरकार हमें वचनपत्र का लॉलीपॉप नही दे सकती।

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