उत्तराखंड स्कूलों में भूत भगाते तांत्रिक

Update: 2017-06-02 11:03 GMT

छात्राओं के चीखने-चिल्लाने और हाथ-पैर पटकने पर जब उनके अभिवावकों ने उन्हें संभालना चाहा तो वे छात्राएं बेकाबू होने लगीं। इस दौरान नौवी-दसवीं की छात्राओं ने नाचना भी शुरू कर दिया और ओझा -सोखा ने इलाज...

सलीम मलिक
 
उत्तराखण्ड के सरकारी स्कूलों में इन दिनों विद्यार्थियों  में अजीबोगरीब हरकतों की चर्चा जोरों पर है। यह विद्यार्थी स्कूल में अचानक अपने हाथ-पैर पटकते हुये चीखना-चिल्लाना आरम्भ कर रहे है। इस हरकत को ग्रामीण जादू-टोने से जोड़ते हुये प्रभावित विद्यार्थियों पर देवता आने की बात कर रहे हैं। प्रशासन भी इसके हटकर किसी उपचार में कोई मदद नहीं कर पा रहा है जिसके चलते ज्ञान के यह मन्दिर अंधविश्वास की पाठशाला बनने को अभिशप्त हो गये हैं।
 
समुद्र तल से 1373 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नैनीताल जिले के कोटाबाग ब्लॉक में अति दुर्गम क्षेत्र डोला में स्थित राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में छात्रायें बीते एक सप्ताह से विद्यालय परिसर में ही अचानक बेहोश हो जाने, चीखने-चिल्लाने, बदहवासी में हाथ-पैर पटकने जैसी हरकतें कर रही थी। इन हरकतों को छात्रों के अभिवावकों ने दैवीय प्रकोप मानकर इसका उपचार जागर में तलाशते हुये स्कूल में ही जागर का आयोजन किया।
 
विद्यालय के प्रधानाचार्य उमेश कुमार यादव ने जागर लगाने की बात सुनकर ग्रामीणों को विद्यालय में जागर न लगाने की सलाह दी थी। जिसके बाद सहमति बनी कि जागर लगाने वाले जागरिये की तैनाती तो की जायेगी, लेकिन जब तक कोई छात्रा हरकत नहीं करेगी, तब तक जागरिये कोई हस्तक्षेप नही करेंगे, लेकिन विद्यालय में छुट्टी होने के बाद स्कूल में जागर का आयोजन किया जायेगा।
 
छुट्टी के समय तक किसी छात्रा में इस प्रकार के कोई लक्षण नहीं पाये गये तो जागरिये ने विद्यालय में छुट्टी के तुरन्त बाद सभी विद्यार्थियों को स्कूल के बरामदे में बैठाकर मंत्रोच्चारण करते हुये उन पर मंत्र फूंके गये चावल फेंकने आरम्भ कर दिये। इसी के साथ डंगरिये ने गौमूत्र का छिड़काव करना आरम्भ कर दिया। देखते ही देखते अचानक छात्राओं ने चीखना-चिल्लाना आरम्भ कर दिया। इस दौरान पांच छात्राओं ने इस प्रकार की हरकतें कीं।

छात्राओं के चीखने-चिल्लाने और हाथ-पैर पटकने पर जब उनके अभिवावकों ने उन्हें संभालना चाहा तो वे छात्राएं बेकाबू होने लगीं। इस दौरान नौवी-दसवीं की छात्रायें खष्टी, नीरु, तुलसी, गंगाशाही, उमा, सोनम रावत आदि ने नाचना भी आरम्भ कर दिया। घटना के दौरान प्रधानाचार्य सहित विद्यालय का पूरा स्टाफ, अभिवावक जनप्रतिनिधि और चिकित्सक मौजूद थे। बाद में सभी प्रभावित छात्राओं को बामुश्किल एक-एक करके पकड़ते हुये स्कूल परिसर से बाहर लाया गया, जहां वे जमीन पर ही बेहोश होकर गिर पड़ी। 
 
देर तक प्रभावित छात्राओं को डंगरिये ने भभूति लगायी, जिसके बाद उनके परिजन उन्हें कंधों पर लादकर घर ले गये। इस मामले में प्रधानाचार्य का कहना है कि प्रभावित सभी छात्राओं में मानसिक रोगियों वाले लक्षण लगते हैं, इसलिये प्रभावितों के अभिवावकों को फिलहाल उनका उपचार घर पर ही कराने की सलाह दी गयी है, जिससे विद्यालय का पठन-पाठन प्रभावित न हो।
 
उपचार के बाद भी ऐसी छात्राओं को समूह में नहीं, एक-एक करके विद्यालय में बुलाया जायेगा। मौके पर मौजूद आयुर्वेदिक चिकित्सालय के चिकित्साधीकारी डॉ. विवेक कुमार ने बताया कि प्रभावित सभी छात्राएं मास हिस्टीरिया की शिकार हो रही हैं। मनोवैज्ञानिक उपचार पद्धति से उनका उपचार संभव है।
 
यहां बताते चलें कि विद्यालय में छात्राओं का अचानक चीखते हुए बेहोश हो जाना, हाथ-पैर पटकना, बदहवास होकर झूमना, एक छात्रा की हालत को देखकर दूसरी छात्रा को भी इसी प्रकार से असामान्य हो जाना मास हिस्टीरिया के मामूली लक्षण हैं। उत्तराखण्ड के चप्पे-चप्पे पर देवताओं के तथाकथित वास और संस्कृति में आडंबरों की भरमार के चलते बच्चों के दिल और दिमाग पर बचपन से ही देवताओं का भूत अपना कब्जा कर लेता है। दुर्गम स्थानों पर पहाड़ सी जिन्दगी जी रहे यहां के वाशिन्दे आधुनिकता से इतने कटे हैं कि वह चाहकर भी इससे बाहर नहीं निकल पाते। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में वह अपने कष्टों का उपचार अध्यात्म की शरण में ही तलाशने को अभिशप्त होते हैं।
 
उत्तराखण्ड में जनजीवन तो कठिन है ही, लेकिन महिलाओं पर इसकी दोहरी मार पड़ती है। स्कूलों तक में लड़कियों के लिये शौचालय की कोई सुविधा नहीं है। उनके स्कूल तक पहुंचने के लिये सड़क मुहैया हो जाये, स्कूल के ऊपर ठीक-ठाक छत नसीब हो जाये, यही उनके लिये लक्जरी आइटम से कम नहीं है। इसके अलावा लड़की होने के कुछ अन्य दबाव होते हैं जिनके चलते इन लड़कियों की चेतना मे यह दबाव देवता को लाते हैं।
 
वैसे यह बात प्रशासन जानता है, लेकिन वह समस्या के छुटकारे के लिये भौतिक और चिकित्सकीय प्रयास नहीं करता। इसी कारण ज्ञान देने वाली पाठशाला अंधविश्वास की पाठशाला में बदल गयी। विशेषज्ञों का भी इस मामले में कहना है कि इस प्रकार की प्रभावित छात्राओं में सभी एक ही आयुवर्ग की हैं। किशोरवय से युवा अवस्था में कदम रखने वाली किशोरियां बेहद नाजुक और भावनाओं के दौर से गुजर रही होती हैं। इसी आयु में स्त्रीसुलभ कारणों के चलते उनमें हारमोन्स भी बदलते हैं। उनके व्यवहार में भी बदलाव आता है।
 
एक ही आयु वर्ग की होने के चलते आपस की साथियों के साथ भावनात्मक रिश्ता होने के कारण एक छात्रा के प्रभावित होने पर दूसरी छात्रा को भी अपनी भावनाओं पर काबू पाना असंभव हो जाता है, जिससे ऐसी छात्राओं के समूह में बढ़ोतरी हो जाती है। हालांकि इन सभी बातों से विद्यालय प्रशासन सहित चिकित्सक भी सहमत हैं, लेकिन ग्रामीणों में अपने संस्कार इस कदर भरे हैं कि इनसे स्वाभाविक तौर पर उपचार की बात करना खतरे को निमंत्रण देना सरीखा है।



इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि भी इस मामले में ग्रामीणों के सुर में सुर मिला रहे हैं। गौरतलब है कि ऐसी घटना घटने के दो दिन बाद विद्यालय आये चिकित्सकों के दल ने भी अपनी जांच में छात्राओं में मास हिस्टीरिया के लक्षण बताते हुये उनके मनोवैज्ञानिक उपचार की आवश्यकता बताई थी। लेकिन ग्रामीणों के इस समस्या को भूत-प्रेत बाधा से जोड़ देने के कारण विद्यालय प्रशासन प्रभावितों का उपचार कराने मे कतरा गया और अभिवावकों ने समस्या का उपचार जागर के रुप में न केवल देखा, बल्कि किया भी।

कोटाबाग ब्लाक में छात्राओं के अचानक बेहोश हो जाने, चीखें मारकर हाथ पांव पटकने, बदहवासी में झूमने की अनेक घटनायें पूर्व में राजकीय इंटर कालेज बजुनियां हल्दू और राजकीय इंटर कालेज पाटकोट मे घट चुकी हैं । वहां भी इस समस्या से दो-चार होने वालों में इसी उम्र की हाईस्कूल और इण्टर की छात्राएं ही शामिल थी। रामनगर के क्यारी स्कूल में भी एक लड़की इसके प्रभाव में आई। इन सभी घटनाओं में भी भभूत आदि का सहारा लेकर प्रभावितों को उपचार दिया गया था।
 
वैसे इन मामलों को कवर करने पर मुझे एक ग्रामीण ने यह जरूर कहा कि ‘भाई जी, छोड़ो इस भूत के बारे में लिखना, कभी हमारी इस सड़क के बारे में भी लिख दो तो आपकी मेहरबानी रहेगी।’ सीधे-साधे पहाड़ी आदमी की बेचारगी समझने के लिये शायद इससे ज्यादा की आवश्यकता न हो।

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