अमर सिंह : वीर बहादुर सिंह के शिष्य का मुलायम-मनमोहन से लेकर मोदी-योगी युग तक का सफर

अमर सिंह का राजनीतिक जीवन विरोधाभाषों से भरा रहा है। लंबे समय तक समाजवादी धारा की राजनीति करने के बावजूद उन्हें समाजवादियों ने ही हमेशा संदेह की नजरों से देखा। फिर भी उन्होंने अपने दौर में अपने गृहप्रदेश व देश की राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित किया...

Update: 2020-08-01 15:06 GMT

अमर सिंह की राजनीतिक यात्रा पर राहुल सिंह की टिप्पणी

हाल के दशकों में अमर सिंह संभवतः देश के ऐसे एकमात्र राजनेता थे जो न किसी आंदोलन से उपजे थे, जिन्होंने न कभी कोई बहुत बड़ा राजनीतिक ओहदा हासिल किया, न किसी राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे और केंद्र में हैवीवेट मंत्रालय भी नहीं संभाला, फिर भी भारतीय राजनीति को गहरे प्रभावित कर गये। अपनी इसी राजनीतिक प्रासंगिकता की वजह से वे दिग्विजय सिंह के राजनीतिक कटाक्षों को व्यंग से हवा में यूं उड़ाते : वे तो बहुत बड़े नेता हैं, दस साल तक मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं, मेरी उनके सामने क्या औकात।

यूपीए-1 को प्राणवायु देने वाला शख्स

2004 से 2009 के बीच के कार्यकाल वाली यूपीए - 1 सरकार जब संकट में पड़ गई तो सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह से लेकर कांग्रेस के कई हैवीवेट प्रबंधकों तक को यह लगा कि अमर ही एकमात्र ऐसे शख्स हैं जो इस सरकार को बचा सकते हैं। लिहाजा लोकसभा में बहुमत साबित करने से पूर्व सत्तापक्ष की एकजुटता के लिए जो अहम रात्रिभोज हुआ था उसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ठीक बगल वाली कुर्सी अमर सिंह के लिए आरक्षित की गई थी। अमर न होते तो यूपीए - 1 न बचती। सरकार बने तो मात्र तीन ही साल हुए थे और अगर तब मध्यावधि चुनाव होता तो हो सकता है कि कांग्रेस को पुनर्वापसी करने में मुश्किल हो सकती थी, क्योंकि प्रकाश करात अपने पखवाड़ों से चले आ रहे अपने प्रेस कान्फ्रेंस व बयानों के जरिए यह मैसेज देने में कामयाब रहे थे कि मनमोहन-सोनिया की सरकार अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु संधि कर देश के हितों से समझौता करने जा रही है। तब भाजपा भी उस लाइन को फाॅलो करती दिखती जो करात अपनाते थे। यह वह दौर था जब ऐतिहासिक रूप से 54 वाम सांसदों के गठबंधन के नेता के रूप में प्रकाश करात सोनिया गांधी के बाद देश में राजनीतिक रूप से सबसे प्रभावी शख्स बने हुए थे। सरकारें की सांसें वाम की समर्थन पर चल रही थी।

लेकिन, ऐसे राजनीतिक संकट की घड़ी में 39 सांसदों वाली समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह संकट मोचक बन कर आए और तमाम जोड़-तोड़ कर यूपीए-1 की सरकार को सदन में बहुमत साबित करवा दिया।

प्रधानमंत्री बनने के लिए बेकरार लालकृष्ण आडवाणी का अरुण जेटली की अगुवाई में किया गया सारा राजनीतिक प्रबंधन अमर चाल के सामने विफल रहा था।


लालकृष्ण आडवाणी ने कांग्रेस के करात से अमर के शरण तक पहुंचने पर जब यह टिप्पणी की कि पहले वह लाल सलाम करती थी और अब दलाल सलाम करती है, तो अमर सिंह बेबाकी से मीडिया के सामने उन्हीं की आत्मकथा को लेकर आ गए थे। अमर सिंह ने लालकृष्ण आडवाणी द्वारा भेंट की गई उनकी आत्मकथा मेरा जीवन, मेरा देश की काॅपी मीडिया को दिखाते हुए कहा था: देखिए आडवाणी जी मुझे अब दलाल कर रहे हैं जबकि उन्होंने मुझे जो अपनी आत्मकथा भेंट की है, उसमें उन्होंने लिखा है प्रिय भाई अमर सिंह को सप्रेम भेंट। हालांकि आडवाणी ने अपनी राजनीतिक टिप्पणी में अमर का नाम नहीं लिया था, लेकिन उनका इशारा उनकी ओर ही था।

अमर की यह बेबाकी उन्हें बाकियों से अलग करती थी और मीडिया के केंद्र में रखती थी। अमर की राजनीति के वे सुनहरे दिन थे जब वे दिन में तीन बार भी प्रेस कान्फ्रेंस करते तो मीडिया की टीम पहुंच जाती। यह उत्सुकता रहती थी कि यह पाॅलिटिकल न्यूज मेकर पता नहीं कौन-सी नई खबर गढ दे, दे जाए।

अब मनमोहन-आडवाणी युग से मोदी-योगी की बात

एक अंतराल लेते हुए बात आगे बढाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 में भाजपा की 282 सांसदों वाली मजबूत सरकारी बनी, जिसके पास सहयोगियों सहित सवा तीन सौ के करीब सांसद थे। यह मान लिया गया कि राजनीति में अब जोड़-तोड़ करने वालों व समझौते-संधि करवाने वालों की बहुत जरूरत नहीं रह गई है।

ऐसे में अमर सिंह या उनके जैसे दूसरे राजनीतिक प्रबंधकों के लिए बहुत जगह नहीं बच जाती है। पर, 2017 में योगी आदित्यनाथ के उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद फिर अमर सिंह प्रासंगिक होते दिखने लगे।

योगी ने जब उत्तरप्रदेश में बड़ा निवेश सम्मेलन आयोजित करवाया था और उसमें बतौर मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंच थे तो मेहमानों के बीच अमर सिंह भी बैठे हुए थे। पीएम मोदी मंच पर अपने संबोधन में अमर सिंह का उल्लेख करना भी नहीं भूले। राजनीति व उद्योग जगत के रिश्तों व दुश्वारियों पर बात करते हुए पीएम मोदी ने तब कहा था: अमर सिंह जी यहां बैठे हुए हैं, उनके पास न जाने कितनों का चिट्ठा होगा। अमर सिंह यह सुन मुस्कुराए थे। पर, पीएम का यह बयान अमर सिंह की प्रासंगिकता का संकेत ही था।

2019 का आम चुनाव से पहले यह धारणा बनी रही थी कि भाजपा को देश के सबसे बड़े सूबे में में नुकसान हो सकता है। तब अमर सिंह प्रासंगिक हो गए थे, प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर भाजपा का सदस्य नहीं होने के बाद वे भी 'चौकीदार' बन गए थे और अपने ट्विटर प्रोफाइल में भी खुद को 'चौकीदार' अमर सिंह लिख लिया। अस्वस्थता के बीच वे उन दिनों खुद को योगी-मोदी के लिए समर्पित बताने लगे थे।

2015 में एक ऐसा भी वक्त आया था जब अमर सिंह की राज्यसभा सदस्यता खत्म होने की वजह से लुटियंस दिल्ली का 27 लोधी एस्टेट वाला बंगला खाली करने केे हालात बने, जिससे वे बेहद प्यार करते थे। अमर सिंह को अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता खत्म होने से डर लगता था, लेकिन वे संबंधों को साधने में माहिर थे और इसी वजह साल भर बाद ही 2016 के मध्य में वे एक बार फिर उत्तरप्रदेश से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा के लिए चुन लिए गए। अमर सिंह की आज जब मौत की खबर भी आई तो वे एक सांसद थे। लोगों ने लिखा भी कि राज्यसभा सदस्य अमर सिंह का निधन।



कांग्रेस कल्चर वाले थे अमर सिंह

अमर सिंह की आरंभिक राजनीतिक परवरिश कांग्रेस में हुई थी। उत्तरप्रदेश के बड़े नेता व मुख्यमंत्री रहे वीर बहादुर सिंह के सानिध्य में उन्हें आरंभिक दिनों में आगे बढने का मौका मिला। एक तरह से वे उनके राजनीति गुरु थे। कांग्रेस में आरंभिक राजनीतिक प्रशिक्षण हासिल करने के बाद वे समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। कहते हैं कि समाजवादी धारा की राजनीति का एक धड़ा उनकी तड़क-भड़क वाली व मैनेज करने वाली शैली को पसंद नहीं करता था और यह मानता था कि वे कांग्रेसी कल्चर यहां ला रहे हैं। खास कर छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र का नाम इस रूप में लिया जाता है।

अमर सिंह की समाजवादी पार्टी में मौजूदगी डाॅ रामगोपाल यादव व आजम खान जैसे नेताओं को असहज करती थी। अमर सिंह खुले तौर पर यह शेखी बधारते कि यह उनका नसीब है कि क्लिंटन भी उनके दोस्त हैं और अंबानी व बच्चन भी। डोनाल्ड ट्रंप ने अमर सिंह की ओर इशारा करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन पर एक भारतीय राजनेता से आर्थिक सहयोग लेने का आरोप लगाया था। श्रीदेवी की जब दुबई में मौत हुई तो वे सीधे वहां के प्रिंस से बात करने का दावा टीवी चैनलों पर करते ताकि उनका पार्थिव शरीर जल्द स्वदेश लाया जा सके।

संयुक्त मोर्चा के समय सरकार संचालन में अहम रोल निभाने वाले हरकिशन सिंह सुरजीत से भी उनके गहरे रिश्ते थे। अमर सिंह ने विरोधाभाषों व सहयोगियों की नाराजगी की बीच भी मुलायम सिंह यादव को चुनावी जीत दिलायी। यह भी कहा जाता रहा है कि कि कलाम साहब को राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित करवाने में उनकी भी भूमिका थी। कांग्रेस, भाजपा, वाम, समाजवादी धड़े सभी जगह उनके मित्र थे और इसकी पुष्टि आज रक्षामंत्री मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने ट्वीट में किया।

अमर सिंह ने अमिताभ बच्चन, अनिल अंबानी, जया प्रदा, संजय दत्त के रूप में राजनीति-बिजनेस व ग्लैमर का एक 'काॅकटेल' तैयार किया। वे तीनों के बीच के आदमी थे। बड़े कारोबारियों, बड़े कलाकारों से लेकर बड़े नेता सब उनके मित्र थे, लेकिन उन्हें असली ग्लैमर राजनीति में दिखता था। इसी कारण जब वे राजनीति रूप से अलग थलग हुए तो यूपी में अपनी पार्टी बना कर विधानसभा चुनाव भी लड़ा। उन पर राजनीति में धनबल को बढावा देने का भी ताउम्र आरोप लगता रहा।


अमर सिंह लालू प्रसाद यादव के बाद मौजूदा दौर में भारतीय राजनीति में सबसे वाकपटु व हाजिर जवाब व्यक्ति थे। वे शब्दजाल व भिन्न प्रसंगों को एक-दूसरे से जोड़ने में माहिर थे। उनके बयानों में शेरो-शायरी व कविता खूब होती। अमर सिंह की शैली की तीखी आलोचना होती है, लेकिन यह कहा जाता है कि उन्होंने राजनेताओं से लेकर हर क्षेत्र के लोगों की बुरे समय में पैसे से लेकर पैरवी तक से मदद की है।

मुलायम सिंह यादव के बाद अमर सिंह के जिस व्यक्ति से रिश्तों की सबसे अधिक चर्चा होती है, वे हैं अमिताभ बच्चन। अमिताभ बच्चन ने अपने साक्षात्कारों में यह बताया था कि बुरे दौर में अमर सिंह ने उनकी मदद की थी। दोनों के रिश्तों की लंबी दास्तां हैं। लेकिन, अमर सिंह ने इसी साल फरवरी में अमिताभ बच्चन के एक संदेश को याद करते हुए अपने पिता की पुण्यतिथि पर कहा था कि जीवन के इस पड़ाव पर जब मैं जीवन और मृत्यु की लड़ाई लड़ रहा हूं, तो मुझे अमित जी और उनके परिवार पर अपनी टिप्पणी के लिए खेद है। शायद अमर सिंह ने अपने जीवन के आखिरी महीने पुराने चमकदार दिनों के बारे में चिंतन करते हुए गुजारे थे और उन्हें अपने तीखे बयानों पर ग्लानि हुई हो और यह अहसास भी हुआ हो कि वह चमक-दमक, पैसा-पाॅवर-पहुंच जो उन्होंने तमाम दावं चलते हुए हासिल किए, वे सब माया हैं। 

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