सीजेआई चंद्रचूड़ ने दिखाई हिम्मत, कहा - हमारे पास महिला और पिछड़े समुदायों के जज क्यों नहीं

CJI Chandrachud : भारतीय न्यायपालिका की फीडिंग पूल सामंती और पितृसत्तात्मक और महिलाओं को समायोजित नहीं करने वाला है।

Update: 2022-11-12 08:12 GMT

सीजेआई चंद्रचूड़ ने दिखाई हिम्मत, कहा - हमारे पास महिला और पिछड़े समुदायों के जज क्यों नहीं

CJI Chandrachud : देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने हर मामले में मुखर होकर काम करते हैं। इस बात की झलक उनके फैसलों में भी दिखाई देती है। एक बार फिर उन्होंने भारतीय न्यायपालिका की उन कमजोरियों की स्वीकार करने की हिम्मत दिखाई, जिसे स्वीकार करने से अभी तक न्यायिक पदों पर बैठे लोग बचते रहे हैं। दरअसल, उन्होंने न्यायपालिका में महिला और समाज के पिछड़े समुदायों से ताल्लुक रखने वाले वर्ग से जजों की कमी पर चिंता जताई है।

हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट 2022 के चौथे दिन उन्होंने कहा कि फीडिंग पूल जो यह निर्धारित करता है कि कौन न्यायपालिका में प्रवेश करेगा, काफी हद तक कानूनी पेशे की संरचना पर निर्भर करता है। वह सामंती और पितृसत्तात्मक है। वर्तमान न्यायिक व्यवस्था में महिलाओं को समायोजित नहीं करता है। यह भारतीय न्यायपालिका की सबसे बड़ी चुनौती है।

इसके अलावा हमारे सामने पहली चुनौती उम्मीद की चुनौती है। लगभग हर सामाजिक, कानूनी, और मैं कहने की हिम्मत करता हूं कि बड़ी संख्या में राजनीतिक मुद्दे सर्वोच्च के न्यायिक क्षेत्राधिकार में आते हैं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कोरोना महामारी के दौरान जब हमने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अदालतों में सुनवाई शुरू की तो कई महिला वकील सामने आईं। लाइव स्ट्रीमिंग ने महिला वकीलों को काम का बेहतर अवसर पैदा किया। अब हमें कानूनी पेशे में महिलाओं के लिए पहुंच को सुगम बनाने की जरूरत है। पूरे भारत में कानूनी पेशे की संरचना सामंती है। इसे महिलाओं के लिए एक लोकतांत्रिक और योग्यता आधारित व्यवस्था में तब्दील करना होगा।

करुणा और सहानुभूति की भावना और अनसुनी, अनदेखी आवाज सुनने की क्षमता न्यायिक प्रणाली को जीवंत बनाए रखती है लेकिन यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि कानून दमन का साधन न बन जाय। ऐसा उन सभी को देखना चाहिए जो कानून को संभालते हैं, न कि सिर्फ न्यायाधीशों को।

इस विधा से तो जज भी पूरी तरह से वाकिफ नहीं

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अक्सर यह भेद करना बहुत आसान नहीं होता है कि नीति के दायरे में क्या है और वैधता के दायरे में क्या है। उन्होंने कहा कि जज भी इस नई विधा से पूरी तरह से वाकिफ नहीं हैं।

करीब 5 करोड़ पेंडिंग मामले अनिर्णय के संस्कृति की देन

CJI चंद्रचूड़ ने कहा, "70 वर्षों में हमने अनिर्णय की संस्कृति को पाला है। यह सरकार की ओर से बड़े मुकदमे की व्याख्या करता है। अविश्वास की संस्कृति है जो हमारे अधिकारियों को निर्णय नहीं लेने के लिए मजबूर करती है, इसलिए न्यायालय के पास मामलों का बैकलॉग है।"

हमारे सामने एक नहीं कई चुनौतियां

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारे सामने पहली चुनौती उम्मीद की चुनौती है। हर सामाजिक, कानूनी, और ये कहा जाए कि बड़ी संख्या में राजनीतिक मुद्दे सर्वोच्च के न्यायिक क्षेत्राधिकार में आते हैं।

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