UP में अगले साल चुनाव, उम्मीद कीजिये जल्द ही हो जायेगा योगी के स्वर्णिम प्रोजेक्ट गोरखपुर AIIMS का पूर्ण निर्माण
सुखद बात यह है कि फरवरी 2022 में UP में एक बार फिर विधानसभा चुनाव होने जा रहा है, ऐसे में अब तक के चुनावी कैलेंडर के अनुसार निर्माण के बढ़ते क्रम को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पूर्ण रूप से एम्स बनकर अगले चंद माह में पूर्वांचल के लोगों को मिल जाएगा....
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का शहर है गोरखपुर। इस शहर समेत पूर्वांचल की जनता को इंतजार है अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान अर्थात एम्स के पूर्ण रूपेण तैयार होने का। अदालतों की तारीखों की तरह ही इसकी भी हर बार नई तारीखें तय होती हैं। बस फर्क इतना है कि यहां की अदालत(एम्स) भी योगी आदित्यनाथ हैं, जिन्हें अपने स्वर्णिम प्रोजेक्ट को पूर्ण करने के लिए खुद ही नए नए तारीखों का सामना करना पड़ रहा है। फ़िलहाल इससे सर्वाधिक निराश होना पड़ रहा है पूर्वांचल वासियों को।
इसके निर्माण की तिथियों को लेकर चर्चा का एक दूसरा पहलू भी है। यह कहा जा रहा है कि चुनावी तिथियां ही इनके बार-बार निर्माण की प्रगति भी तय करती हैं। इसके लिए जानना जरूरी है गोरखपुर एम्स के निर्माण की घोषणा की तिथि से लेकर अब तक के विकास के क्रम को।
वर्ष 2014 के अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल के शुरू करने के पूर्व चुनावी सभा में नरेंद्र मोदी ने गोरखपुर में एम्स खोलने का वादा किया था। वर्ष 2017 में यूपी के विधानसभा चुनाव के पूर्व प्रधानमंत्री ने एम्स निर्माण कार्य का शिलान्यास किया, जिसे पूर्ण करने का लक्ष्य अप्रैल 2020 रखा गया। इसके पहले वर्ष 2019 में ही प्रधानमंत्री ने अपने दूसरे कार्यकाल की प्रत्याशा में अधूरे निर्माण के बीच इसका लोकार्पण कर दिया। लिहाजा एक बार फिर प्रधानमंत्री की अपनी कुर्सी तो बरकरार रही, लेकिन निर्माण अधूरा ही रह गया।
150 ऑपरेशन थिएटर और 750 बेड वाले एम्स के निर्माण का अभी भी लोगों को इंतजार है। अब सुखद बात यह है कि फरवरी 2022 में एक बार फिर विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। ऐसे में अब तक के चुनावी कैलेंडर के अनुसार निर्माण के बढ़ते क्रम को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पूर्ण रूप से एम्स बनकर अगले चंद माह में पूर्वांचल के लोगों को मिल जाएगा।
गोरखपुर एम्स का निर्माण 24 हजार वर्ग मीटर परिक्षेत्र में किया जा रहा है, जिसका शुरुआती लागत 1011 करोड़ रुपए तय किया गया था, जिसे अप्रैल 2020 तक पूरा करना था। लेकिन निर्माण की प्रगति का हाल यह रहा कि शिलान्यास के बाद 1 वर्ष के अंदर मात्र 10 प्रतिशत धनराशि ही केंद्र ने जारी की थी।
केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने 7 अगस्त, 2018 को राज्यसभा में सांसद अहमद पटेल के एक सवाल के जवाब में जानकारी दी थी कि गोरखपुर एम्स की घोषणा साल 2014 में की गई थी। इसे 1,011 करोड़ रुपये की लागत से मार्च 2020 तक पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए 98 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं, जिसके चलते निर्माण की गति शुरू से ही धीमी रही।
एक्सपर्ट्स की मानें तो कभी धन की कमी आड़े आई तो कभी श्रमिकों की कमी। इसके बाद कोरोना काल में तो निर्माण कार्य थम सा गया। फ़िलहाल गोरखपुर एम्स में एक दर्जन विभाग संचालित हैं। दिसंबर 2020 तक निर्माण पूर्ण करने का एक बार फिर लक्ष्य तय किया गया था, लेकिन अभी भी निर्माण पूर्ण होने का इंतजार किया जा रहा है।
मोदी सरकार में घोषणाएं अधिक, निर्माण कम
मोदी सरकार ने 2014 में चार नए एम्स, 2015 में 7 एम्स और 2017 में दो एम्स निर्माण का ऐलान किया, लेकिन 2018 में अपनी चौथी सालगिरह से ऐन पहले मोदी कैबिनेट ने देश में 20 नये एम्स बनाने का ऐलान किया, पर यह सारे एम्स जुमले साबित हुए हैं।
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2011 में 6 एम्स बने थे, जिसमें रायपुर, पटना, जोधपुर, भोपाल, ऋषिकेश और भुवनेश्वर एम्स शामिल हैं। मोदीकाल में घोषित एम्स में से अधिकांश के बनने की तारीख अप्रैल 2021 बताई गई थी, पर हाल यह है कि कोई काम पूरा नही हुआ है। कुछ के जमीन का पता नहीं है तो कहीं बजट का आवंटन ही नही किया गया।
बिहार के दरभंगा में तथा हरियाणा के मनेठी में बनने वाले एम्स की जमीन तक फाइनल नही है, झारखंड के देवघर में बनने वाले एम्स का अभी एक-चौथाई काम ही पूरा हुआ है। गुवाहाटी में बनने वाले एम्स का अभी तक महज एक तिहाई काम ही पूरा हो पाया है, पश्चिम बंगाल के कल्याणी में बनने वाले एम्स का कार्य अधूरा है।
आंध्र प्रदेश के मंगलागिरी में बनने वाले एम्स के लिए रेत ही उपलब्ध नहीं है। जम्मू के सांबा में बनने वाले एम्स का भी महज सात फीसदी काम पूरा हुआ है। गुजरात के राजकोट में बनने वाले एम्स, मदुरई में बनने वाले एम्स और जम्मू कश्मीर के अवंतीपुर में बनने वाले एम्स अभी कागजो पर ही है। यही हाल उत्तर प्रदेश के रायबरेली एम्स का भी है।
मनमोहन सरकार ने 2006 में 6 'एम्स' की घोषणा की, जिसका निर्माण 2009 में शुरू हुआ था। हालांकि इनका 60 प्रतिशत निर्माण पूरा होने का दावा किया जाता है, परंतु इनके लिए तो अभी तक सामान की खरीद भी पूरी नहीं हुई और निर्माण में देर होने से लागत में भी पहले की तुलना में भारी वृद्धि हो गई है। अधिकांश संस्थानों में कार्डियोलॉजी, नैफरोलॉजी, एंडोक्रीनोलॉजी, न्यूरोसर्जरी, जलने और प्लास्टिक सर्जरी जैसे सुपर स्पैशलिटी विभाग खाली हैं और इनकी बात तो दूर आईसीयू तक नहीं हैं।