क्या था वो मामला, जिसके लिए यूपी पुलिस की टीम गयी थी हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को गिरफ्तार करने

विकास दुबे के बारे में कहा जाता है कि वह बचपन से ही अपराध की दुनिया की दुनिया का बेताज बादशाह बनना चाहता था, बहुत छोटी उम्र में ही उसने गैंग बनाया और लूट, डकैती, हत्याएं करने लगा...

Update: 2020-07-03 09:52 GMT
जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह बनने की थी विकास दुबे की चाहत

कानपुर। यूपी के कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करने वाला विकास दुबे खादी का चोला भी पहन चुका है। विकास दुबे बसपा में सक्रिय रहा और पूर्व प्रधान के साथ ही जिला पंचायत अध्यक्ष भी रहा था। राजनेताओं के सरंक्षण से उसने खादी का चोला पहना और राजनीति में प्रवेश किया।

विकास दुबे का काला कारोबार प्रदेश में कानपुर देहात से लेकर इलाहाबाद व गोरखपुर तक फैला है। वह कारोबारी तथा व्यापारी से जबरन वसूली के लिए कुख्यात है। प्रदेश में गुरुवार 2 जुलाई की देर रात सबसे बड़ी आपराधिक वारदात को अंजाम देने वाला विकास दुबे हिस्ट्रीशीटर है। उसके ऊपर 25 हजार रुपये का ईनाम भी घोषित है।

दरअसल राहुल तिवारी नाम के एक शख्स ने विकास दुबे पर हत्या का केस दर्ज कराया था, जिसके बाद कल रात पुलिस की टीम विकास दुबे के गांव उसे गिरफ्तार करने पहुंची थी।

राहुल तिवादी द्वारा हत्या और अपहरण का केस दर्ज होने के 24 घंटा बाद ही पुलिस की टीम ने विकास दुबे पर शिकंजा कसने की तैयारी कर ली थी। तीन थानों की फोर्स के साथ सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्र नेविकास दुबे के घर पर दबिश दी। कानपुर के सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्रा के नेतृत्व में बिठूर, चौबेपुर, शिवराजपुर थानों की संयुक्त पुलिस टीमें अपराधी विकास दुबे को पकड़ने के लिए उसके गांव बिकरू पहुंची और घेराबंदी करते हुए बदमाश की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछाया, मगर इस बीच पुलिस के गांव में आने की भनक अपराधियों को लग गई। उसने अपने गुंडों से पुलिस को गोलियों से भुनवा दिया।

ईनामी गुंडा विकास दुबे पूर्व प्रधान, जिला पंचायत सदस्य तथा अध्यक्ष भी रहा है। इसके खिलाफ 60 में से 50 से अधिक केस हत्या के प्रयास के चल रहे हैं। विकास अभी कुछ माह पहले देहात की माती जेल से जमानत पर छूटा था।

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का जघन्य आपराधिक इतिहास रहा है। बचपन से ही वह अपराध की दुनिया में शोहरत कमाना चाहता था। उसने गैंग बनाया और लूट, डकैती, हत्याएं करने लगा। कानपुर देहात के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव का निवासी विकास दुबे के बारे में बताया जाता है इसने कई युवाओं की फौज तैयार कर रखी है। विकास दुबे ने कम उम्र में ही क्राइम की दुनिया में कदम रख दिया था। कई युवा साथियों को साथ लेकर चलने वाला विकास देखते ही देखते कानपुर नगर और देहात का वांछित अपराधी बन गया। चुनावों में अपने आतंक व दहशत के जोर पर जीत दिलाना पेशा बन गया।

2005 तक अपराध की दुनिया में बहुत तेजी से बढ़ रहे विकास दुबे पर यूपी के कई जनपदों में 52 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हो चुके थे और उस समय पुलिस ने उसपर 25 हजार का इनाम घोषित कर दिया था। अपराध की वारदातों को अंजाम देने के दौरान विकास कई बार गिरफ्तार भी हुआ, जिसमें एक बार लखनऊ में एसटीएफ ने उसे दबोचा था।

कानपुर में एक रिटायर्ड प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडेय हत्याकांड में इसको उम्रकैद हुई थी। वह जमानत पर बाहर आ गया था। पंचायत और निकाय चुनावों में इसने कई नेताओं के लिए काम किया और उसके संबंध प्रदेश की सभी प्रमुख पार्टियों से हो गए। राजनेताओं के सरंक्षण से राजनीति में एंट्री की और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीत गया था।

उसके ऊपर कानपुर के शिवली थाना क्षेत्र में ही 2000 में रामबाबू यादव की हत्याकांड में जेल के भीतर रह कर साजिश रचने का आरोप है। इसके अलावा 2004 में हुई केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या में भी हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे आरोपी है। विकास दुबे ने 2018 में अपने चचेरे भाई अनुराग पर भी जानलेवा हमला बोला था। उसने जेल में रहकर उसकी हत्या की पूरी साजिश रची थी। जेल में रहते हुए ही उसने अपने चचेरे भाई अनुराग की हत्या करा दी थी। इसके बाद अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कराई थी।

स्थानीय ग्रामीण विकास दुबे के बारे में बताते हैं, साल 2002 में जब राज्य में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी, उस वक़्त उसकी तूती बोलती थी। चौबेपुर थाने में दर्ज तमाम मामले अवैध तरीक़े से ज़मीन की ख़रीद-फ़रोख़्त से भी जुड़े हैं। इन्हीं की बदौलत विकास दुबे ने कथित तौर पर ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से करोड़ों रुपए की संपत्ति बनाई है। बिठूर में ही उनके कुछ स्कूल और कॉलेज भी चलते हैं।

बिकरू गांव के लोग कहते हैं, न सिर्फ़ अपने गांव में बल्कि आसपास के गांवों में भी विकास का सिक्का चलता था। ज़िला पंचायत और कई गांवों के ग्राम प्रधान के चुनाव में विकास दुबे की पसंद और नापसंद काफ़ी मायने रखती आयी है।

2002 में बसपा सरकार के दौरान इसका बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में खौफ चलता था। इस दौरान विकास दुबे ने जमीनों पर कई अवैध कब्जे किए। इसके अलावा जेल में रहते हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने शिवराजपुर से नगर पंचयात भी लड़ा था और जीता भी था। इतना ही नहीं बिकरू समेत आसपास के दस से ज्यादा गांवों में विकास की दहशत कायम है, जिसके चलते आलम यह रहा कि विकास जिसे समर्थन देता गांव वाले उसे ही वोट देते थे। इसी वजह से इन गांवों में वोट पाने के लिए चुनाव के समय सपा, बसपा और भाजपा के भी कुछ नेता उससे संपर्क में रहते थे।

अपनी दहशत के चलते विकास ने 15 वर्ष जिला पंचायत सदस्य पद पर कब्जा कर रखा है। पहले विकास खुद जिला पंचायत सदस्य रहे, फिर चचेरे भाई अनुराग दुबे को बनवाया और मौजूदा समय में विकास की पत्नी ऋचा दुबे घिमऊ से जिला पंचायत सदस्य हैं। कांशीराम नवादा, डिब्बा नेवादा नेवादा, कंजती, देवकली भीठी समेत दस गांवों में विकास के ही इशारे पर प्रधान चुने जाते थे। इन गांवों में कई बार प्रधान निर्विरोध निर्वाचित हुए, वहीं बिकरू में 15 वर्ष निर्विरोध ग्राम प्रधान चुना जाता रहा है।

फिलहाल कल 2 जुलाई की देर रात हुई पुलिस मुठभेड़ में कई जिलों की फ़ोर्स ने पूरे गांव को कब्जे में किया हुआ है। विकास दुबे का मामा प्रेम प्रकाश पांडेय और अतुल दुबे पुलिस की गोली का शिकार बने हैं। इसके अलावा पुलिस ने लूटे गए हथियार भी बरामद किए हैं।

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