बतौर राजनेता गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे का Congress को कितना होगा नुकसान?
गुलाम नबी आजाद ( Ghulam Nabi Azad ) के इस्तीफे से कांग्रेस को संख्या बल से ज्यादा Congress पार्टी की छवि को ज्यादा नुकसान होने का अंदेशा है।
कांग्रेस से गुलाम नबी के इस्तीफे पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट
Ghulam Nabi Azad resignation : देश की आजादी की पार्टी कांग्रेस (Congress) से पांच दशक से ज्यादा समय से जुड़े और गांधी परिवार (Gandhi Family) के चार पीढ़ियों के नेताओं के साथ कदम से कदम मिलाकर देश की धर्मनिरपेक्ष छवि (Secular Image) को मजबूत करने के पर्याय रहे गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) का पार्टी के सभी पदों सहित प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देना भारतीय राजनीति (Indian Politics) की बड़ी घटनाओं में शुमार किया जाएगा। जहां तक इसके संभावित दुष्परिणाम की बात है तो कांग्रेस को उनके जाने से संख्या बल से ज्यादा पार्टी की छवि को ज्यादा नुकसान होगा।
विरोधी भी करते हैं आजाद का सम्मान
गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) की न केवल पार्टी के अंदर बल्कि बाहर यानि धुर विरोधी भाजपा ( BJP ) और आरएसएस (RSS) के लोग भी सम्मान करते हैं। इसका लाभ सदन से लेकर सड़क तक कांग्रेस (Congress) पार्टी को मिलता रहा है। बात राज्यसभा की हो या लोकसभा या चुनावी दंगल की, हर मोर्चे पर गुलाम नबी आजाद कांग्रेस की राह को आसान करने वालों में शुमार किए जाते रहे हैं। पहले इंदिरा उसके बाद राजीव गांधी, सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के लिए वो विरोधियों के सियासी हमले के सामने ढाल साबित होते रहे हैं। करीब साल भर पहले की ही तो बात है जब राज्यसभा से गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल समाप्त हुआ तो देशहित में राजनीति करने वाले नेताओं को कितना असर होता है, उसका नजारा देखने को मिला था।
पीएम मोदी ( PM Narendra Modi ) ने गुलाम नबी आजाद ( Ghulam Nabi Azad ) की राज्यसभा से विदाई भाषण में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की चर्चा करते हुए उनकी भारतीय राजनीति में अहमियत की चर्चा की और लगभग सदन में बोलते-बोलते रोने लगे। इसके जवाब में जब गुलाम नबी आजाद ने भाषण दिया तो वो भी भावुक हो गए और फफककर रोने लगे।
हालांकि, पीएम मोदी के से स्पीच को कांग्रेस के खिलाफ एक सियासी चाल के रूप में भी देखा गया, लेकिन जनता के बीच इसका मैसेज ये गया कि गुलाम नबी आजाद ( Ghulam Nabi Azad ) वो सियासी शख्स हैं जिनके व्यक्तित्व का असर भाजपा नेताओं पर भी है। अब ऐसे नेता कांग्रेस शायद नहीं हैं। इस बात की कमी कांग्रेस को हमेशा खलेगी कि जब उसका भाजपा से तकरार होगा तो सियासी दूरी को पाटने को वो किसे आगे करेगी। पार्टी किसी को आगे कर भी दे तो क्या वो शख्स उतने प्रभावी साबित हांगा, जितने गुलाम नबी आजाद होते रहे हैं।
कांग्रेस के रग-रग से वाकिफ थे गुलाम
कांग्रेस देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी है। उसके साथ गुलाम नबी आजाद ( Ghulam Nabi Azad ) का पांच दशक से ज्यादा समय तक रिश्ता रहा। यही वजह है कि गुलाम नबी के रग-रग में कांग्रेसी संस्कृति झलक दिखाई देती है, जिसे सभी धर्मों व समुदायों के लोग पसंद भी करते हैं। उनकी भाषा शैली, बोलने का लहजा और बौद्धिक बहस को तार्किक अंजाम तक पहुंचाने की क्षमता सबसे ज्यादा कांग्रेस को खलेगी। कांगेस को इसलिए गुलाम उस पार्टी के नेता रहे और वर्तमान दौर में उसे ऐसे नेताओं की निहायत ही जरूरत है। वह कांग्रेस की अच्छाइयों को उतना ही बखूबी से जानते हैं जितना कि बुराइयों को। तभी तो उन्होंने अपने इस्तीफे में भी एक नेक सलाह सोनिया गांधी को दी है।
गुलाम नबी आजाद ( Ghulam Nabi Azad ) ने सोनिया गांधी ( Sonia Gandhi ) को भेजे गए इस्तीफे में लिखा है बड़े अफसोस और बेहद भावुक दिल के साथ मैंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ( Indian national Congress ) से अपना आधा सदी पुराना नाता तोड़ने का फैसला किया है। गुलाम नबी आजाद ने कहा कि भारत जोड़ों यात्रा की जगह कांग्रेस जोड़ो यात्रा निकालनी की जरूरत है। इतना ही नहींए वो भारतीय राजनीति की बदलती दशा-दिशा को देखते हुए कांग्रेस में बदलाव की पुरजोर वकालत की है। वह जानते थे कि बिना बदलाव के पार्टी को मजबूत करना संभव नहीं हैं। इस बात पर उन्होंने इतना जोर दिया कि वो कब जी-23 गुट के अगुवा बने और अब पार्टी से बाहर हो गए, उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला।
कांग्रेस के सामने अहम सवाल
ये बात सही है कि आजकल हर पार्टी में नई पीढ़ी के नेताओं को आगे बढ़ाने में जुटी है। इस प्रक्रिया में हर पार्टी में पुराने नेताओं को समय-समय पर अपमानित होना पड़ा है लेकिन बदलाव इस क्रम में जिस तरह से अपमानित होकर पुराने लोग कांग्रेस ( Congress ) छोड़ रहे हैं वो पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है। गुलाम नबी आजाद ( Ghulam Nabi Azad ) से पहले कपिल सिब्बल भी पार्टी छोड़ चुके हैं। आनंद शर्मा भी हिमाचल की जिम्मेदारी इस्तीफा दे चुके हैं। इससे पहले सुनील जाखड़ और अमरिंदर सिंह जैसे अनुभवी नेता भी पार्टी छोड़कर चुके हैं। इस मामले में कांग्रेस ये बताकर भी पीछा नहीं छुड़ा सकती है कि पुराने नेता हैं, बदलाव को हजम नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा इसलिए कि पार्टी के युवा नेता बजुर्ग नेताओं से ज्यादा संख्या में पार्टी छोड़ रहे हैं। इन नेताओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया, जयवीर शेरगिल, जितिन प्रसाद, कुलदीप विश्नोई आदि का नाम लिया जा सकता है। यानि एक ही समय में अनुभवी और युवा नेता पार्टी को छोड़ रहे हैं। इससे पार्टी की छवि तो खराब हो ही रही है, अब आजाद ( Gulam Nabi Azad ) के इस्तीफे से और ज्यादा नुकसान होगा।
Ghulam Nabi Azad : ऐसा रहा है आजाद का सियासी सफर
गुलाम नबी आजाद ( Ghulam Nabi Azad ) का जन्म 7 मार्च 1949 को जम्मू कश्मीर के डोडा में हुआ। उन्होंने कश्मीर यूनिवर्सिटी से एमएससी किया।वे 1970 के दशक से कांग्रेस से जुड़े। वे 1975 में जम्मू कश्मीर यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 1980 में वो यूथ कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। वह पहली बार 1980 में महाराष्ट्र के वाशिम से लोकसभा चुनाव जीते थे। इसके बाद उन्हें 1982 में केंद्रीय मंत्री बनाया गया थां 1984 में भी इसी सीट से जीते। आजाद 1990 से 1996 तक महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद रहे। वे नरसिम्हा राव की सरकार में भी केंद्रीय मंत्री रहे। वे 1996 से 2006 तक जम्मू कश्मीर से राज्यसभा पहुंचे। वे 2005 में जम्मू-कश्मीर के सीएम भी बने। 2008 में पीडीपी ने कांग्रेस से समर्थन वापस लेने की वजह से आजाद की सरकार गिर गई। आजाद मनमोहन सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी रहे। 2014 में आजाद को राज्यसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया था। 2015 में आजाद ( Ghulam Nabi Azad ) को जम्मू कश्मीर से राज्यसभा भेजा गया था।