UP Elections 2022 : पश्चिम यूपी में भाजपा के लिए 2017 को दोहराने की चुनौती, इस बार जिताऊ उम्मीदवार का टोटा
साल 2017 में भाजपा की चुनावी रणनीति ज्यादा प्रभावी थी। उस वक्त सपा और बसपा वाले सियासी समीकरणों के मामले में पीछड़ गए थे। इस बार अखिलेश यादव ने रालोद से गठबंधन कर भाजपा की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। फिर, भाजपा को इस बार सत्ता विरोधी लहर से भी पार पाना होगा।
वेस्ट यूपी सियासी समीकरण पर धीरेंद्र मिश्र का विश्लेषण
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 ( UP Assembly Election 2022 ) में भाजपा ( BJP ) के लिए 2017 को रिपीट करना आसान नहीं है। ऐसा इसलिए कि भाजपा सत्ताधारी पार्टी की वजह से विरोधियों के सवालों का जवाब देते हुए लोगों को अपने पक्ष में भी करना होगा। तो क्या बीजेपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश ( West UP Vidhansabha Seats ) में जाटों की नाराजगी के बावजूद आने वाले विधानसभा चुनाव में साल 2014, 2017 और 2019 जैसा प्रदर्शन कर पाएगी? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब तलाशना बीजेपी के लिए मुश्किल होता जा रहा है।
खासकर पश्चिम यूपी में पार्टी की जीत तय करना भाजपा के लिए बहुत मुश्किल हो गया है। करोना महामारी, किसान आंदोलन और कई अन्य फैक्टर हैं जिसकी वजह से लोगों के नाराजागी है। फिर पश्चिम यूपी ( West UP ) में इस बार भाजपा चुनावी समीकरण भी अभी तक नहीं सेट कर पाई है। हालांकि, भाजपा की जाट मतदाताओं को लेकर सावधानी बरत रही है और उसकी काट के लिए गुर्जर वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की पुरजोर कोशिश कर रही है। इसके बावजूद पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने कई अहम चुनौतियां मुंह बाए खड़ी है।
जिताऊ उम्मीदवार की तलाश
इन चुनौतियों में सबसे बड़ी समस्या सत्ता विरोधी रूझान है। कोरोना की दो साल की अवधि में सैकड़ों बच्चे अनाथ हुए बच्चे, लाखों लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ। छोटे कारोबारियों का व्यापार बुरी तरह से चरमराई हुई है। भाजपा के कुछ विधायक हैं जिनके कामकाज से जनता संतुष्ट नहीं है। भाजपा को अपने असंवेदनशील निष्क्रिय और निकम्मे विधायकोें को बदलने और उनकी जगह बेहतर एवं जिताऊ उम्मीदवारों का चयन करना है। भाजपा आलाकमान इन सबसे वाकिफ है। भाजपा कुछ एजेंसियों के जरिए उपयुक्त उम्मीदवारों के चयन की कसरत भी कर रही है। ऐसे में कई सीटिंग विधायकों का पत्ता भी कट सकता है। पश्चिम यूपी में भाजपा की जीत को सुनिश्चित करने के लिए पार्टी हाईकमान के नेतृत्व में सीएम योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री संजीव बाल्यान, संगीत सोम, सुरेश रैना, सत्यपाल सिंह, मोहित बेनिवाल, भूपेंद्र सिंह, कपिल देव अग्रवाल, पंकज सिंह, अश्विनी त्यागी आदि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर काम कर रहे हैं। नुकसान को लेकर एक भाजपा नेता का कहना है कि किसान आंदोलन फैक्टर की हवा मोदी जी ने चुपचाप सारी मांगों को बिना किसी जोरजबरदस्ती के मानकर हवा निकाल दी है। थोड़ी बहुत नाराज समय रहते दूर करने का प्रयास जारी है।
जयंत चौधरी सबसे बड़ी चिंता
उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली माना जाता है और बीजेपी साल 2013 के बाद से लगातार इस समुदाय को अपने साथ रखने की कोशिशें करती रही है। इन्हीं कोशिशों के दम पर बीजेपी ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 2012 की अपेक्षा बेहतरीन प्रदर्शन किया, लेकिन गन्ना किसानों की समस्याओं और किसान आंदोलन की वजह से अब यह समुदाय बीजेपी से दूरी बनाता हुआ दिख रहा है। इस मामले में राष्ट्रीय लोकदल ( RLD ) के जयंत चौधरी ( Jayant Chaudhary ) बीजेपी की चिंता का सबसे बड़ा सबब है। अजीत चौधरी के निधन के बाद से जयंत चुपचाप बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, मथुरा, आगरा, बिजनौर, मुरादाबाद व अन्य क्षेत्रों में अपनी स्थिति को मजबूत करने में लगे हैं।
100 सीटों पर जाटों का असर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का प्रभाव लगभग 100 विधानसभा सीटों पर दिखाई पड़ता है। गुर्जर समुदाय का असर 15 से 20 सीटों पर है। ऐसे में बीजेपी का ये सोचना गलत भी हो सकता है कि वह कुछ जातियों को एक साथ लाकर अपने नुक़सान की भरपाई कर सकती है। इस कमी को दूर करने के लिए बीजेपी इस बार जाटव समुदाय में भी सेंध मारने की कोशिश में जुटी है। एक कोशिश ये है कि गुर्जरों के साथ ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर के साथ-साथ कश्यप, सैनी, गड़रिया आदि जातियों को साथ लाकर जाटों की नाराजगी की भरपाई की जाए।
SP-RLD ने लीड ली है, पर मतदाताओं का रुख तय होना बाकी
पश्चिम उत्तर प्रदेश में अखिलेश की समाजवादी पार्टी ने जयंत चौधरी से गठबंधन कर लीड ( SP-RLD Alliance ) ले ली है। खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभावी जात-बिरादरी पर प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन और जयंत चौधरी के साथ मंच साझा कर भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी है। किसानों के बीच सक्रिय भूमिका निभाने वाले शामली क्षेत्र के प्रोफेसर सुधीर कुमार कहते है कि अबकी सपा मुखिया अखिलेश उम्मीदवारों के चयन में बेहद सतर्कता दिखा रहे हैं। उनकी कोशिश है कि चुनाव मैदान में ऐसे उम्मीदवार उतारे जाएं जिनसे भाजपा को ध्रुवीकरण का लाभ न मिल पाए। विपक्षी दल किसान आंदोलन, कोरोना महामारी से निपटने में नाकामी, बेरोजगारी, रेप, हिंसा, हत्या, कानून व्यवस्था, सांप्रदायिक तनाव, सत्ता विरोधी लहर को को मुद्दा बनाने में जुटी है।
रिपीट 2017 करना आसान नहीं
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के अधिकांश प्रत्याशी विपक्षी दलों की कमजोर रणनीति के कारण जीते। शायद इसे भांपकर ही नरेंद्र मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ विकास पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। साल 2013 से पहले तक इस क्षेत्र में राष्ट्रीय लोकदल सशक्त स्थिति में था लेकिन 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद इस क्षेत्र के राजनीतिक समीकरणों में भारी बदलाव देखा गया। साल 2012 के चुनाव में बीजेपी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुल 38 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था। इसके बाद साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 88 सीटों पर जीत हासिल की है। 2019 में भी इस क्षेत्र में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया। इस बार पिछले प्रदर्शन को रिपीट करने की चुनौती है।
विपक्षी के खिलाफ भाजपा का एजेंडा
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भाजपा हिंदुत्व, विकास के साथ जातीय समीकरणों पर भी ध्यान दे रही है। 2 दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सहारनपुर में मां शाकुभरी राजकीय यूनिवर्सिटी के शिलान्यास समारोह में योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में कहा था कि भाजपा उत्तर प्रदेश में परिवर्तन लाने में सफल रही है। इसके अलावा पीएम मोदी महेंद्र प्रताप यूनिवर्सिटी, राजा मिहिरभोज की प्रतिमा का अनावरण, जेवर एयरपोर्ट, गंगा एक्सप्रेसवे की आधारशिला रखकर इस बात का संकेत दिया है कि हम बदलाव लाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। विपक्ष पर वार के लिए भाजपा पिछली सरकारों के दौरान छेड़छाड़, हिंदुओं का पलायन, कानून-व्यवस्था, पशु चोरी, धर्मांतरण, दंगा, हिंदुओं से किए गए दोयम दर्जे के व्यवहार को मुख्य हथियार बनाएगी। सहारनपुर में शाह ने लोगों से हाथ उठवाकर इस बार भी यूपी में भाजपा के 300 पार जाने का वचन लिया। सहारनपुर में आक्रामक अंदाज में अस्मिता के सवाल पर की बात वो पहले ही कर चुके है। वह पहले और योगी सरकार में फर्क भी बता चुके हैं। शाह ने पश्चिमी यूपी के युवाओं को 'जिगर का टुकड़ा' बताया। इसके अलावा जो शेष काम है उसे सीएम योगी आदित्यनाथ हिंदू बनाम जिन्ना, चचाजान, अब्बाजान कहकर पूरा कर रहे हैं। कुल मिलाकर भाजपा प्रतीकों और भावना प्रधान जैसी दुखती रग पर हाथ रख चुकी है।
सहारनपुर की देवबंद से इतर पहचान बनाने की कोशिश
UP Assembly Election 2022 : हारनपुर में इस्लामिक शिक्षा का बड़ा केंद्र दारुल उलूम देवबंद भी है। इसको लेकर खूब राजनीति भी होती रही है। गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी ने उसी इलाके में शाकंभरी देवी के नाम पर विवि बनाने का फैसला कर भविष्य में इस इलाके की पहचान सिर्फ देवबंद से ही नहीं बल्कि शाकंभरी देवी विवि से कराने के अपने संकल्प का संदेश दिया है। यहां से मिलने वाली डिग्री पर शाकंभरी देवी का चित्र होने की जानकारी देकर उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि वह इस इलाके की पहचान सनातन संस्कृति के केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए कृत संकल्प हैं।
गठबंधन से भाजपा की सेहत पर नहीं पड़ेगा फर्क
भाजपा के क्षेत्रीय मीडिया प्रभारी आलोक सिसोदिया का कहना है कि भाजपा अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विकास, कार्य के बल पर आम जनता के मन में अपना घर बना चुकी हैं। चाहे कोरोना काल हो, चाहे प्रवासी मजदूरों का अन्य कोई विषय रहा है। इन वजहों से माहौल बदले जरूर हैं, लेकिन हार-जीत का फासला आंशिक ही रहेगा। फिर मेरठ दिल्ली एक्सप्रेस, दिल्ली मेरठ मेट्रो, मेरठ पौड़ी वायर बिजनौर मार्ग विस्तारीकरण, दिल्ली से देहरादून, मेरठ से करनाल वाया शामली, मेरठ से हापुड, बुलंदरशहर एक्सप्रेसवे, जेवर अंतरराष्ट्रीय दबाव कम होगा, गंगा एक्सप्रेसवे, महेंद्र प्रताप यूनिवर्सिटी, मिहिर भाोज प्रतिमा अनावरण, आईटी पार्क, स्पोटर्स यूनिवर्सिटी, मोदीपुर शुगर मिल, रमाला शुगर मिल सहित कई अन्य शुगर मिलों की क्षमता में विस्तारीकरण जनहितों को पूरा किया गया है। खांडसारी उद्योगों से जुड़े लोगों को भी लाभ पहुंचाने का प्रयास किया गया है। इन वजहों से लोग वोट पक्ष में ही करेंगे।
वोट मोबिलाइजेशन सपा-रालोद को फायदे की गारंटी नहीं
West UP Vidhansabha Seats : राजनीतिक विश्लेषक राजेश भारती का कहना है कि वेस्ट यूपी में मुखर समुदाय जाट है। जाट ही यहां की सियासी आवाज है। चुनावी माहौल में एंटी बीजेपी की गूंज है, लेकिन यह कहना कि बीजेपी को ये गूंज हरा देगी, सहमत नहीं हुआ जा सकता। समाजवादी पार्टी ने रालोद से गठबंधन किया है, लेकिन वेस्ट यूपी में सपा में की जो छवि है वो इस राह में बड़ी बाधा भी है। अर्बन माइंडसेट के लोग सपा को वोट नहीं देंगे। वेस्ट यूपी में अर्बन मतदाता काफी संख्या में हैं। रालोेद से गठबंधन कर सपा जाट व अन्य मतदाताओं को अपने जोड़ने का प्रयास तो कर रही है, ऐसा दिखता भी है, लेकिन उसका वोट में पूरी तरह से तब्दील होना मुश्किल है। अगर सपा-रालोद गठबंधन जाट-वोट मोबिलाइज ( Jat vote mobilisation ) करेंगे तो वेस्ट यूपी के दूसरे समुदायों में इसका नकारात्मक मैसेज जाएगा। इस तरह का मोबिलाइजेशन सपा-रालोद के खिलाफ भी जा सकता है।