प्रशांत भूषण ने याचिका दायर कर रखी मांग, आपराधिक अवमानना केस में अपील को देखे बड़ी बेंच

15 सितंबर तक 1 रुपये का जुर्माना नहीं दिए जाने की स्थिति में प्रशांत भूषण को तीन महीने की जेल हो सकती है और 3 साल के लिए उन्हें वकालत से निलंबित भी किया जा सकता है...

Update: 2020-09-12 19:02 GMT

प्रशांत भूषण ने अवमानना केस में 12 सितंबर को की है रिट दायर और किया है बड़ी बेंच द्वारा केस देखे जाने का अनुरोध

दिल्ली। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में शनिवार 12 सितंबर को एक याचिका दायर करते हुए मांग की कि आपराधिक अवमानना मामलों में सजा के खिलाफ उन्हें अपील का अधिकार मिले और मामले की सुनवाई एक बड़ी व अलग पीठ करे।

यह याचिका उनकी वकील कामिनी जायसवाल के माध्यम से याचिका दायर की गई है। भूषण ने शीर्ष अदालत से निर्देश जारी करने का आग्रह किया है कि याचिकाकर्ता सहित आपराधिक अवमानना के लिए दोषी पाए गए व्यक्ति को एक बड़ी और अलग पीठ द्वारा सुनवाई के लिए अंतर-अदालत में अपील का अधिकार होना चाहिए।

याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत को मूल आपराधिक अवमानना मामलों में सजा के खिलाफ अंतर-अदालत में अपील के लिए नियम और दिशा-निर्देश जारी करना चाहिए।

इस याचिका में कहा गया है कि अपील का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत इसकी गारंटी भी है।

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शीर्ष अदालत ने 31 अगस्त को भूषण को न्यायपालिका के खिलाफ दो ट्वीट करने के लिए दोषी ठहराया था और उन पर एक रुपये का जुर्माना लगाया था।

फैसले के अनुसार, 15 सितंबर तक 1 रुपये का जुर्माना नहीं दिए जाने की स्थिति में भूषण को तीन महीने की जेल हो सकती है और 3 साल के लिए उन्हें वकालत से निलंबित भी किया जा सकता है।

भूषण ने यह कहते हुए पीछे हटने या माफी मांगने से इनकार कर दिया था कि यह उनकी अंतरात्मा और न्यायालय की अवमानना होगी।

गौरतलब है कि 3 अगस्त को प्रशांत भूषण के सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना मामले पर फैसला सुनाते हुए एक रुपये का जुर्माना लगाया था। फैसले के अनुसार 15 सितंबर तक जुर्माना नहीं दिए जाने की स्थिति में उन्हें 3 महीने की जेल हो सकती है और तीन साल के लिए उन्हें वकालत से निलंबित भी किया जा सकता है.

63 वर्षीय प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) ने यह कहते हुए इस मामले से पीछे हटने या माफी मांगने से इनकार कर दिया कि यह उनकी अंतरात्मा और न्यायालय की अवमानना होगी। उनके वकील ने तर्क दिया है कि अदालत को प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) की अत्यधिक आलोचना झेलनी चाहिए, क्योंकि अदालत के "कंधे इस बोझ को उठाने के लिए काफी हैं।"

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