पंजाब कांग्रेस: प्रदेशाध्यक्ष बदलने पर भी अतंर कलह कायम, कैप्टन खेमा हार मानने को तैयार नहीं

2017 में नवजोत सिंह कांग्रेस में आए। अब उन्हे कांग्रेस की कमान थमा दी। यानी की कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व अब कैप्टन अमरिंदर सिंह से ज्यादा तवज्जो नवजोत सिंह सिद्धू को दे रहा है। अमरिंदर सिंह गुट एक बार फिर से खुद को पार्टी में स्थापित करने की कोशिश में जुट गया है....

Update: 2021-07-21 11:56 GMT

जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। पंजाब कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू अभी तक सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह से मिल नहीं पाए। दोनों के बीच कड़वाहट अपने चरम पर पहुंच गई है। हालांकि कैप्टन खेमे के कुछ विधायक अब सिद्धू के साथ नजर आ रहे हैं। इसके बाद भी कैप्टन खेमा हार मानने को तैयार नहीं है। प्रदेशाध्यक्ष और सीएम खेमा अब अलग अलग बैठक आयोजित कर रहे हैं।

अभी तक सीएम और सिद्धू की मुलाकात भी नहीं हुई है। सीएम खेमा इस पर बात अड़ा हुआ है कि जब तक सिद्धू सीएम के खिलाफ किए गए अपने ट्वीट को लेकर माफी नहीं मांगते, तब तक उनसे मुलाकात नहीं की जाएगी। सीएम के मीडिया एडवाइजर रवीन ठुकराल ने भी ट्वीट कर इस बात को दोहराया कि माफी मांगने के बाद ही मुलाकात संभव होगी। दूसरी ओर सिद्धू के नजदीकी विधायक परगट सिंह ने कहा कि माफी तो सीएम को मांगनी चाहिए। वह जनता के साथ किए गए वादे पूरे नहीं कर पाए है।

पंजाब के सीनियर पत्रकार सुखबीर सिंह बिंद्रा का कहना है कि सिद्धू तेजी से काम कर रहे हैं। उन्होंने कैप्टन के गृह शहर पटियाला में विधायकों से मुलाकात की। इसके साथ ही वह अलग अलग जगह बैठक कर विधायकों का समर्थन जुटा रहे हैं। उन्हें समर्थन मिल भी रहा है। आज पंजाब में कहना गलत नहीं होगा कि सीएम से ज्यादा चर्चित नवजोत सिंह सिद्धू है। वह कांग्रेस में कैप्टन पर भारी पड़ गए हैं। यह अहसास विधायकों को भी है। अगले साल पंजाब में चुनाव है। जिन विधायकों को संशय है कि उनका टिकट कट सकता है, वह सिद्धू के समर्थन में खुल कर आ रहे हैं।

पत्रकार बिंद्रा का कहना है कि कैप्टन को अपने काम करने के तरीके की वजह से यह दिन देखना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि उनसे मिलने के लिए विधायकों को भी लंबा इंतजार करना पड़ता हैै। यहां तक कि निर्वतमान प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ जब भी सीएम से मिलने जाते थे तो सुरक्षा अधिकारी उनके मोबाइल तक निकलवा लेते थे। इस वजह से पार्टी के विधायक खासे नाराज थे।

पार्टी आलाकमान में भी कैप्टन की पकड़ कमजोर हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी कैप्टन को साइड लाइन करने की कोशिश हुई थी। तब वह दबाव की राजनीति की वजह से कामयाब हो गए थे। इस बार हालात उनके विपरीत है।

कैप्टन के सियासी करियर के तीन दशकों में  पहली बार हाईकमान की ओर से गठित तीन सदस्य कमेटी के सामने बार बार स्पष्टीकरण देना पड़ा। सिद्धू धड़े ने दो माह पहले ही ऐलान कर दिया था कि अब प्रधान पद उनके पास आएगा। कैप्टन बदले हालात को भांप नहीं पाए।

कैप्टन खेमा यह मान कर चल रहा था कि सिद्धू इसलिए प्रदेशाध्यक्ष नहीं बन पाएंगे, क्योंकि पंजाब में  सीएम सिख चेहरा है तो प्रदेशाध्यक्ष गैर सिख चेहरा होगा। कांग्रेस नेतृत्व ने इस आशंका को गलत साबित कर दिया।

समाजशास्त्री प्रोफेसर देवेंद्र सिंह विर्क का मानना है कि कांग्रेस ने पंजाब में खुद ही अपनी फजीहत कराई है। उन्होंने बताया कि अभी कुछ समय पहले जो नेता उनकी पार्टी में आया, उसे प्रदेशाध्यक्ष बनाना कार्यकर्ताओं के लिए दिक्कत की बात है। कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग इस निर्णय से नाराज हो सकता है। कांग्रेस में इस वक्त कई सीनियर नेता है, लेकिन वह खुद को उपेक्षित महसूस कर सकते हैं। इसका नुकसान निश्चित ही कांग्रेस को होगा।

प्रदेशाध्यक्ष और सीएम के बीच टकराव का असर सरकार के कामकाज पर भी पड़ सकता है। चुनाव नजदीक देख कर जो योजनाएं पाइप लाइन में हैं, उन्हें पूरा करने की कोशिश होती है। कम से कम पर उन पर काम किया जाता है। पंजाब में कम से कम अगले कुछ माह तक ऐसा शायद ही हो पाए। इसका भी पार्टी को सीधा नुकसान होगा। प्रोफेसर विर्क का कहना है कि सीएम और प्रदेश अध्यक्ष के बीच अब अहम का टकराव होगा। जो अगले कुछ समय तक जारी रह सकता है। 

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