बिहार चुनाव से पहले शरद यादव फिर जदयू में लौट सकते हैं, नीतीश ने फोन पर जाना है हाल

नीतीश कुमार व शरद यादव दोनों के एक साथ आने का लाभ एक-दूसरे को होगा। भले शरद यादव मास लीडर नहीं हैं, लेकिन बिहार में उनका अपना एक समर्थक वर्ग है और उनके चेहरे का लाभ नीतीश को चुनाव में होगा, जबकि शरद को संसदीय राजनीति में सक्रिय रहने का लाभ मिलेगा...

Update: 2020-09-02 03:50 GMT

जनज्वार। पुराने समाजवादी नेता शरद यादव बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर अपनी पुरानी पार्टी जनता दल यूनाइटेड में वापस लौट सकते हैं। जनता दल यूनाइटेड के कुछ नेताओं ने हाल के दिनों में शरद यादव से मुलाकात की है और जदयू अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी उनसे फोन पर बात की है। हालांकि ये मुलाकातें और बातचीत शरद यादव के स्वास्थ्य को लेकर हुई हैं, लेकिन समझा जाता है कि इसने जदयू एवं शरद यादव के बीच जमी बर्फ को पिघलाया है।

शरद यादव 2017 में नीतीश कुमार के एक बार भारतीय जनता पार्टी के साथ मिल कर सरकार बनाने के खिलाफ थे और इस मुद्दे पर वे जदयू छोड़ गए थे। इसके बाद मार्च 2018 में लोकतांत्रिक जनता दल नाम से अपनी पार्टी का गठन किया और फिर 2019 में मधेपुरा से लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के टिकट पर मधेपुरा से चुनाव लड़ा लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा।

शरद यादव अस्वस्थ थे और एक महीने से गुरुग्राम के एक अस्पताल में भर्ती थे, जहां से वे रविवार को डिस्चार्ज हुए। जब शरद यादव अस्पताल में भर्ती थे जो जदयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने उनसे अस्पताल जाकर मुलाकात की थी। इस दौरान शरद यादव की पत्नी की उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से फोन पर बात भी करायी थी। इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी शरद यादव से बात की थी और उनका कुशलक्षेम जाना था। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार की ओर से बिहार सरकार के कैबिनेट मंत्री वीजेंद्र प्रसाद यादव पूरे मामले में बातचीत को आगे बढाने की प्रक्रिया में हैं।

हालांकि औपचारिक रूप से जदयू न तो शरद यादव के पार्टी में शामिल होने की संभावना को खारिज कर रहा है और न ही इससे इनकार कर रहा है। केसी त्यागी ने कहा है कि शरद यादव अस्वस्थ थे इसलिए उनसे मुलाकात की और मुख्यमंत्री उनका कुशलक्षेम जानना चाहते थे।

वहीं, जदयू नेता राजीव रंजन ने कहा है कि अगर शरद यादव पार्टी में वापस आते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा है कि महागठबंधन में वे असहज महसूस कर रहे हैं।

शरद यादव के जननेता नहीं होने पर भी पुराना समाजवादी नेता होने की वजह से उनका एक समर्थक वर्ग है। शरद यादव के चेहरे का लाभ भी नीतीश कुमार को बिहार चुनाव में हो सकता है।

वहीं, शरद यादव को राज्यसभा सदस्यता मामले में राहत मिल सकती है। जदयू से विवाद होने व बाहर होेने के बाद दिसंबर 2017 में उनकी राज्यसभा सदस्यता को अयोग्य करार दिया गया था। ऐसा फैसला उपसभापति ने जदयू के आवेदन पर लिया था। इसके बाद इसे शरद यादव ने दिल्ली हाइकोर्ट में चुनौती दी और यह केस अभी वहां लंबित है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने शरद यादव को जब तक इस केस में अंतिम फैसला नहीं आ जाता है तबतक अपने सरकारी आवास में रहने की अनुमति दी है। उनकी राज्यसभा सदस्यता जुलाई 2022 तक है। अगर जदयू से उनकी सुलह हो जाती है तो यह सारा विवाद ही खत्म हो जाएगा।

हाल के दिनों में राजद खेमे की ओर से शरद यादव को कोई अहमियत भी नहीं दी गई है। जब वे अस्पताल में इलाजरत थे तब भी राजद को कोई नेता उनसे मिलने नहीं गया जबकि जदयू से कई नेताओं ने उनसे मुलाकात की और उनकी कुशलता पूछी। महागठबंधन ने राजनैतिक फैसलों में उन्हें कोई महत्व नहीं दिया। लोकसभा चुनाव में भी महागठबंधन में उनकी पार्टी को पर्याप्त टिकट नहीं मिला था।

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