चुनावी समय में पंजाब कांग्रेस के लिए कड़वाहट में तब्दील हो रही गन्ने की मिठास
पंजाब में चार साल से गन्ने के दाम नहीं बैठे हैं। सरकार इस बार भी दाम बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। विधानसभा चुनाव नजदीक देखते हुए किसान गन्ने के दाम बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। जिसकी अनदेखी करना कैप्टन सरकार के लिए मुश्किल है।
मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। पंजाब में चार साल से गन्ने के दाम में बढोतरी नहीं हुई। गन्ना उत्पादक किसानों की मांग है कि दाम बढ़ाया जाए। इस मांग को लेकर वह सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति बना रहे हैं। तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे, पंजाब के किसान गन्ने के दाम बढ़ाने के मुद्दे पर एकजुट होते भी नजर आ रहे हैं। किसानों में गुस्सा इस बात को लेकर है कि चार साल से दाम नहीं बढ़ाए गए हैं। उन्हें लगता है कि इस साल उनकी मांग मान ली जाएगी क्योंकि चुनाव को देखते हुए सरकार किसानों के सामने झुक सकती है।
लुधियाना जिले के गांव अलीपुर के किसान अरिजीत सिंह चीमा 54 ने बताया कि पड़ोसी राज्यों हरियाणा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश (यूपी) ने पंजाब की तुलना में गन्ने की ज्यादा कीमत किसानों को मिल रही है। उन्होंने बताया कि पंजाब में गन्ने की अगेती, मध्य और पछेती किस्मों के लिए गन्ने का भाव क्रमश: 310 रुपये, 300 रुपये और 295 रुपये प्रति क्विंटल है। इन तीन किस्मों की कटाई नवंबर-दिसंबर, जनवरी और फरवरी-मार्च में की जाती है। हरजीत ने बताया कि यह कीमत 2017-18 में तय की गई थी। चार साल से इसे बढ़ाया नहीं गया।
गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य दस प्रतिशत चीनी रिकवरी पर 285 रुपए प्रति क्विंटल तय है। दिक्कत यह है कि राज्य सरकार अपनी ओर से गन्ने उत्पादक किसानों को बढ़ा कर दाम देती है। इसे स्टेट एडवाइजरी प्राइस (एसएपी) कहते हैं। हरियाणा में गन्ने का दाम इस बार दस रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाते हुए 350 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया है। हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने दावा किया कि देश में यह सबसे ज्यादा दाम है। उत्तर प्रदेश में दाम अधितम 325 रुपए एसएपी है। इस साल यूपी में एस एपी में कोई बदलाव नहीं किया गया है। उत्तराखंड में पिछले साल 327 रुपए प्रति क्विंटल अधितम गन्ने के दाम तय किए थे।
पटियाला जिले के अलीपुर वजीर साहिब के गन्ना उत्पादक किसान दिलबाग सिंह ढिल्लो 54 व जसबीर सिंह भिंडर 34 ने बताया कि पंजाब में चार से गन्ने का दाम नहीं बढ़ाया गया। 2017-18 में प्रति एकड़ इनपुट लागत लगभग 30,000 रुपये प्रति 31,000 रुपये प्रति हेक्टेयर थी, जो अब बढ़ कर 40,000 रुपये प्रति 42,000 प्रति हेक्टेयर हो गई है। डीजल की ऊंची कीमतें। गन्ना उत्पादक किसान संगठन पगड़ी संभाल जट्टा लहर के संयोजक कमलजीत सिंह काकी ने कहा कि गन्ने की फसल को बुवाई, बाँधने और जुताई के समय श्रम की आवश्यकता होती है। इस पर भी प्रति एकड़ पांच से सात हजार रुपए खर्च आ जाता है।
किसानों ने बताया कि पंजाब में, गन्ना नियंत्रण बोर्ड, जिसमें सीनियर ब्यूरोक्रेट्स, चीनी मिलों के प्रतिनिधि और किसान इसके सदस्य हैं, पंजाब के कृषि मंत्री (पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के पास कृषि विभाग है) की अध्यक्षता में अपनी बैठक में कीमत तय करते हैं। कीमत तय करने के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना के विशेषज्ञों द्वारा की जाती है। गन्ने की उत्पादन लागत का आकलन करते हुए फसल के पूरे अर्थशास्त्र की गणना करने के बाद रेट तय किया जाता है। कमेटी यह रेट सरकार के पास सुझाव के तौर पर भेज देती है। अब सरकार की मर्जी है, कमेटी की ओर से सुझाए रेट को माने या इसे न माना जाए।
बताया जा रहा है कि कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में गन्ने के दाम 343 रुपये प्रति क्विंटल का सुझाव सरकार को दिया था। लेकिन सरकार ने इसे नहीं माना। किसानों ने बताया कि गन्ने की खेती तभी लाभदायक हो सकती है यदि इसके दाम कम से कम 350 रुपये प्रति क्विंटल मिले। यदि इससे कम दाम मिलते हैं तो गन्ने की खेती में नुकसान है।
इधर सरकार के सामने दिक्कत यह है कि यदि गन्ने के दाम बढ़ा दिए जाते हैं तो चीनी मिल आर्थिक दिक्कतों की बात कहते हुए गन्ना पिराई से इंकार कर देते हैं। चीनी मिल संचालकों का सरकार पर दबाव रहता है। पंजाब में 16 मिलें हैं जिनमें से नौ सहकारी मिलें और सात निजी मिलें हैं। अधिकांश सहकारी मिलों की स्थिति अच्छी नहीं है। इनकी क्षमता भी बहुत कम है।
पंजाब के कुल गन्ने का 70 प्रतिशत निजी क्षेत्र की चीनी मिल खरीदती है। निजी मिलों का पंजाब में एकाधिकार है। सरकार उन पर दबाव बनाने की स्थिति में नहीं है। दो साल पहले भी गन्ने के भाव ज्यादा बताते हुए मिलों ने कई निजी चीनी मिल संचालकों ने मिल चलाने से इनकार कर दिया थ। तब सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा था। मिल मालिक न्यूनतम समर्थन मूल्य देने पर अड़ गए थे। जो कि उस वक्त 275 रुपये प्रति क्विंटल था। एसएपी बाद में दिया जाएगा।
इसके लिए उन्होंने सरकार से मदद मांगी थी। मामला फंसता देख तय किया गया कि 35 रुपये का भुगतान राज्य और मिल मालिक द्वारा बाद में किसानों को किया जाएगा, जिसमें से 25 रुपये और 10 रुपये राज्य और मिलों द्वारा भुगतान किया जाएगा। जानकारों का कहना है कि चीनी के दाम पिछले कुछ सालों में ज्यादा नहीं बढ़े हैं, जिस वजह से मिल मालिकों ने एसएपी देने से मना कर दिया।
कोआपरेटिव चीनी मिल शाहाबाद जिला कुरुक्षेत्र के पूर्व गन्ना विकास अधिकारी स्वतंत्र कुकरेजा ने बताया कि गन्ना उत्पादक किसानों को कोई भी चीनी मिल तभी अच्छे दाम दे सकती है, जब चीनी मिल लाभ में हो। इसके लिए चीनी मिल संचालकों को दूसरे उत्पाद बनाने पर भी जोर देना चाहिए। उन्हें मिलों में अपने संयंत्र स्थापित करके, कोजेनरेशन प्लांट, इथेनॉल या इसी तरह के अन्य उत्पादों की ओर ध्यान देना चाहिए। पंजाब में हालांकि इस दिशा में काम हो रहा है, लेकिन इसकी रफ्तार कम है।
किसानों का कहना है कि उन्हें इस सब से कोई मतलब नहीं है, चीनी मिल यदि घाटे में हैं या उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है,इसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है। सरकार और चीनी मिल प्रबंधन इसके लिए नीति बनाए। हमें तो अपनी फसल का अच्छा दाम चाहिए। यह उनका हक है। इसे हम लेकर रहेंगे। चार साल से चुप है, लेकिन अब चुप बैठने वाले नहीं है। इसके लिए यदि सड़कों पर उतरना पड़ा तो पीछे नहीं हटेंगे।
किसानों की यही जिद कैप्टन सरकार के लिए परेशानी की वजह बन रही है। यदि किसान गन्ने के दाम को लेकर सड़क पर उतर गए तो सरकार के सामने स्थिति संभालना मुश्किल हो सकता है। अब इस स्थिति से कैसे निपटा जाए? सरकार के रणनीतिकार इस पर मंथन करने में जुटे हुए हैं।