'गुजरात सरकार को नहीं था बलात्कारियों की रिहाई का अधिकार', बिल्किस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई का फ़ैसला किया निरस्त

गुजरात सरकार ने वर्ष 2022 में बिल्किस गैंगरेप और उनके परिजनों की हत्या के 11 दोषियों की सज़ा में छूट देते हुए उन्हें रिहा कर दिया था, जिनका फूल-मालाओं से स्वागत किये जाने के तमाम ​वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे, दोषियों को रिहा किये जाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी....

Update: 2024-01-08 06:11 GMT

Bilkis Bano Rape Case: बिल्किस बानो मामले में जानीमानी महिला कार्यकताओं ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

Bilkis Bano case Update Live : सुप्रीम कोर्ट ने आज 8 जनवरी को बिल्किस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और उनके परिवाजनों की हत्या मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुनवाई में कोर्ट ने ​बिल्किस बानो के बलात्कारियों और उनके परिजनों की हत्या करने वाले 11 दोषियों की सज़ा में छूट देकर रिहाई करने के गुजरात सरकार के फ़ैसले को रद्द कर दिया है। इतना ही नहीं इस मामले में कड़े शब्दों में कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार कोई अधिकार नहीं था कि वह बलात्कारियों और हत्यारों की सजा माफ कर उन्हें रिहा करे।

गौरतलब है कि गुजरात सरकार ने वर्ष 2022 में बिल्किस गैंगरेप और उनके परिजनों की हत्या के 11 दोषियों की सज़ा में छूट देते हुए उन्हें रिहा कर दिया था, जिनका फूल-मालाओं से स्वागत किये जाने के तमाम ​वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे। गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को रिहा किये जाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिस पर सुनवाई के दौरान यह फैसला कोर्ट ने सुनाया।

आज बिल्किस केस में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिहाई पर फ़ैसले का अधिकार गुजरात सरकार के पास नहीं बल्कि महाराष्ट्र सरकार के पास था।

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गौरतलब है कि बिलकिस बानो के बलात्कारियों को छोड़े जाने के खिलाफ 30 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं लगाई गयी थीं। पहली याचिका में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देते हुए उन्हें तुरंत वापस जेल भेजने की मांग की थी, तो वहीं दूसरी याचिका में कोर्ट के मई में दिए आदेश पर फिर से विचार करने की मांग की थी। गौरतलब है कि कोर्ट ने कहा था कि दोषियों की रिहाई पर फैसला गुजरात सरकार करेगी और इसका ट्रायल महाराष्ट्र में चला था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब केस का ट्रायल महाराष्ट्र में चल रहा हो तो फिर गुजरात सरकार इस मामले में फैसला कैसे ले सकती है?

सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा, सुहासिनी अली, TMC सांसद महुआ मोइत्रा और रेवती लाल की ओर से यह याचिका प्रसिद्ध एडवोकेट कपिल सिब्बल और अर्पणा भट्ट द्वारा दायर की गई थी। याचिका दायर करने के बाद एक याचिकाकर्ता रूपरेखा वर्मा ने तब जनज्वार से बात करते हुए कहा था कि गुजरात सरकार का बिल्किस बानो गैंगरेप के जेल में सजा भुगत रहे दोषियों को रिहा करने का निर्णय मानवता को शर्मसार करने वाला था। इंसानियत को शर्मसार करने वाले इस मामले को लेकर वह उच्चतम न्यायालय का दरवाजा बिल्किस को इंसाफ दिलाने के लिए खटखटा रहे हैं। हमारी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है। रूपरेखा वर्मा ने कहा कि हत्यारे व गैंगरेप के दोषियों की रिहाई के बाद जिस प्रकार समाज द्वारा उन्हें महिमामंडित किया गया, वह देश को शर्मसार कर रहा है। पूरी दुनिया हमारी इस हरकत को देखकर अफसोस कर रही है, लेकिन इसके बाद भी रेपिस्टों का महिमामंडन जारी है।

बिलकिस बानो केस में जस्टिस नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि प्लेटो ने कहा था कि सजा प्रतिशोध के लिए नहीं, बल्कि सुधार के लिए है। क्यूरेटिव थ्योरी के में सजा की तुलना दवा से की जाती है, अगर किसी अपराधी का इलाज संभव है, तो उसे मुक्त कर दिया जाना चाहिए। यह सुधारात्मक सिद्धांत का आधार है, लेकिन पीड़ित के अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं। नारी सम्मान की पात्र है, क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों में छूट दी जा सकती है? ये वो मुद्दे हैं जो उठते हैं।

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जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा, हम योग्यता और स्थिरता दोनों के आधार पर रिट याचिकाओं पर विचार करने के लिए आगे बढ़ते हैं। इस मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद ये बातें सामने आती हैं कि क्या पीड़िता द्वारा धारा 32 के तहत दायर याचिका सुनवाई योग्य है? क्या छूट के आदेश पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिकाएं मानने योग्य हैं।? क्या गुजरात सरकार छूट आदेश पारित करने में सक्षम थी? क्या दोषियों को छूट का आदेश कानून के अनुसार दिया गया?

जस्टिस नागरत्ना ने जॉर्ज बर्नार्ड शॉ को कोट करते हुए कहा, लोग ठोकर खाने से नहीं सुधरते। अपराध की घटना का स्थान और कारावास का स्थान प्रासंगिक विचार नहीं हैं। जहां अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है वह सही सरकार है। अपराध किए जाने के स्थान की बजाय मुकदमे की सुनवाई के स्थान पर जोर दिया जाता है। न्यायमूर्ति नागरथाना ने कहा जिस राज्य में अपराधी को सजा सुनाई गई है, वह छूट देने के लिए उपयुक्त सरकार है, न कि उस राज्य की सरकार जहां अपराध हुआ।

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