थर्ड फ्रंट: ओमप्रकाश चौटाला की सजा पूरी होने से गड़बड़ाया भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गणित

हुड्डा अभी देखो और इंतजार करो की स्थिति में हैं। क्योंकि उन्हें यह भी उम्मीद है कि देर सवेर कांग्रेस में उनका एक बार फिर से वर्चस्व बन जाएगा। यदि ऐसा होता है कि हुड्डा के लिए थर्ड फ्रंट के कोई मायने नहीं रहते....

Update: 2021-06-28 06:48 GMT

(हरियाणा की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि थर्ड फ्रंट के लिए पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला ज्यादा मुफीद साबित हो सकते हैं।)

जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। थर्ड फ्रंट को लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा काफी उम्मीद में थे। उनके पास दोनो विकल्प थे। कांग्रेस में दबाव बना कर अपनी बात मनवा लें। यदि बात न मानी जाए तो थर्ड फ्रंट का हिस्सा बन जाए। हुड्डा की इन कोशिशों को पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला की सजा पूरी होने के बाद  रिहाई से गहरा झटका लगा है। क्योंकि थर्ड फ्रंट के रणनीतिकार प्रशांत किशोर मान कर चल रहे हैं कि हुड्डा से चौटाला की केमिस्ट्री थर्ड फ्रंट में ज्यादा असरकारक है।

इसकी एक नहीं कई वजह है। चौधरी ओम प्रकाश चौटाला का थर्ड फ्रंट के नेताओं के साथ अच्छा तालमेल है। वह चाहे लालू प्रसाद यादव हो, या अन्य विपक्षी नेता। प्रशांत किशोर जानते हैं कि देवी लाल परिवार थर्ड फ्रंट का हिस्सा बनता है तो हरियाणा में अच्छा खासा प्रभाव पड़ सकता है।

दूसरी ओर ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के माध्यम से थर्ड फ्रंट में सेटिंग कर रहे दीपेंद्र हुड्डा के सामने कई चुनौतियां है। इसमें सबसे पहली तो यह है कि थर्ड फ्रंट का हिस्सा बनने के लिए उन्हें अपनी पार्टी बनानी होगी। यानी कांग्रेस को छोड़ना होगा।

हुड्डा अभी देखो और इंतजार करो की स्थिति में हैं। क्योंकि उन्हें यह भी उम्मीद है कि देर सवेर कांग्रेस में उनका एक बार फिर से वर्चस्व बन जाएगा। यदि ऐसा होता है कि हुड्डा के लिए थर्ड फ्रंट के कोई मायने नहीं रहते। इसके विपरीत यदि कांग्रेस में उन्हें मनमाफिक तवज्जो नहीं मिलती तब वह थर्ड फ्रंट का हिस्सा बनने की सोचे।

अब जब चौटाला जेल से बाहर आ गए हैं, इस वजह से हुड्डा के सामने तेजी से निर्णय लेने के अलावा अब चारा नहीं बचा है। बताया यह भी जा रहा है कि हुड्डा खेमे को तीन माह का समय दिया गया है। यदि वह इतने समय में पार्टी बना लेते हैं तो ठीक, अन्यथा फ्रंट चौटाला के साथ बातचीत कर सकता है।

हालांकि हुड्डा खेमे के कई विधायक और सीनियर नेता इस हक में है कि कांग्रेस को छोड़ने का वक्त आ गया है। कांग्रेस में हुड्डा को अब वह महत्व नहीं मिल रहा है,जो वह चाह रहे हैं। गुलाम नबी आजाद जिस तरह से कमजोर हो गए हैं,इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व में हुड्डा के पैरवीकार लगभग खत्म से हो गए हैं।  रही सही कसर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमार शैलजा ने पूरी कर दी है। हुड्डा भले ही कुमारी शैलजा का टिकट कटवा,  अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को राज्यसभा सांसद बनवाने में कामयाब रहे हो, उनकी यह बात भी पार्टी आलाकमान को अखर रही है।

अब हुड्डा ने पार्टी आलाकमान पर नया दबाव बनाना शुरू कर दिया, कि दीपेंद्र हुड्डा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाए। यह मांग उठा कर वह  पार्टी आलाकमान का रुख भांपने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें पता है, यह मांग पार्टी आलाकमान मानेगा नहीं। इसकी दो बड़ी वजह है। यदि ऐसा होता है तो प्रदेश के नानजाट वोट कांग्रेस से छिटक सकते हैं। इसका सीधा लाभ भाजपा को हो सकता है। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इस तथ्य का जानता है। इसलिए वह दीपेंद्र को प्रदेशाध्यक्ष बनाने का जोखिम शायद ही लें। यदि ऐसा होता है तो हुड्डा को उन्हें अपनी नाराजगी दिखाने का मौका मिल जाएगा। जो उनका कांग्रेस से बाहर आने का रास्ता आसान कर सकता है।

हुड्डा बहुत सोच विचार कर सियासी कदम आगे बढ़ा रहे थे, यदि चौटाला की सजा पूरी न होती तो वह सही दिशा में चल रहे थे। लेकिन अब सारा समीकरण उलटता नजर आ रहा है।

वह पार्टी आलाकमान पर अक्सर दबाव बनाने में कामयाब रहते हैं। पहल मौका नहीं है, वह अपनी पार्टी बनाने की सोच रहे हैं। विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने एक तरह से अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया था। तब भी हालात को भांपते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने हुड्डा की बात मान ली थी। पर अब हालात बदलते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व में सोनिया गांधी की बजाय राहुल गांधी की ज्यादा चल रही है। राहुल गांधी पहले दिन से हुड्डा को ज्यादा पसंद नहीं करते। इसके लिए वाड्रा लैंड डील मामला तो एक वजह है,इसके अलावा भी कई अन्य कारण है, जिससे राहुल हुड्डा से खुश नहीं है।

हरियाणा की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि थर्ड फ्रंट के लिए पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला ज्यादा मुफीद साबित हो सकते हैं। इस वक्त इनेलो के प्रति प्रदेश के मतदाता का सॉफ्ट कार्नर है। ओमप्रकाश चौटाला के जेल से बाहर आने का इनेलो को लाभ मिल सकता है। जो पार्टी इस बार के विधानसभा चुनाव के बाद जीरो हो गई थी,इसमें नई जान आ सकती है।

यूं भी थर्ड फ्रंट को कांग्रेस व भाजपा से मुक्त रखने की बात चल रही है। इनेलो भाजपा और कांग्रेस दोनो की धुर विरोधी है। यह भी एक कारण है कि वह हुड्डा से ज्यादा बेहतर तरीके से चौटाला काम कर सकते हैं।

बहरहाल जो भी, एक बात तो साफ है कि चौटाला की रिहाई ने इस वक्त पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के राजनीतिक समीकरण बिगाड़ दिए हैं। इन्हें संवारने के लिए उन्हें अब ज्यादा तेज से निर्णय लेने होंगे। वह जो भी निर्णय लेंगे, इससे उनकी आगे की राजनीति पूरी तरह से प्रभावित हो सकती है।

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