'संसद में आपातकाल' लाने वाले ओम बिड़ला जब याद करते हैं इंदिरा की इमरजेंसी !

आप सबको याद होगा कि बिड़ला साहब ने एक ही दिन में विपक्ष के 67 सांसदों को निलंबित कर दिया था और दो दिन के भीतर यह संख्या 146 हो गयी थी। संसद के इतिहास में यह पहली बार था जब इतनी बड़ी संख्या में विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया था...

Update: 2024-06-26 11:45 GMT

ओम बिड़ला के लगातार दूसरी बार लोकसभा स्पीकर चुने जाने के बाद लोकसभा में इमरजेंसी पर भाषण देने के जवाब में जनज्वार संपादक अजय प्रकाश ने याद दिलाया 146 सांसदों का निलंबन कर उन्होंने कैसे किया था विपक्ष के मुंह पर जाभी लगाने का काम...

ओम बिड़ला दूसरे टर्म में लोकसभा स्पीकर तो बना दिए गए, लेकिन क्या वे भाजपा के प्यादे से अधिक की भूमिका से आगे बढ़कर यूपीए-1 वाली सरकार में स्पीकर रहे सोमनाथ चटर्जी जैसा उदाहरण पेश कर पाएंगे, रीढ़ दिखा पाएंगे, बड़ा सवाल यही है।

यह सवाल इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है कि मोदी की तीसरे टर्म की मौजूदा सरकार उस वकत और औकात में नहीं है, जैसा वह पिछले दो टर्म में रह चुकी है। अब मोदी जी वैशाखी प्रधानमंत्री हैं, उनका सीना सिकुड़कर 56 से 46 का हो गया है और नेतृत्व के इशारे पर संविधान बदलने का नारा लगाने वाले उनकी पार्टी के अगियाबैताल नेता जय अंबेडकर जय संविधान से अपनी बात शुरू करने की नाटकीयता करने को मजबूर हुए हैं।  

ओम बिड़ला ने संसद के भीतर इमरजेंसी पर सत्र के आज पहले दिन ही लिखा हुआ एक लेख पढ़ा। हालांकि बिड़ला ने जो बातें कहीं उसे इतनी बार कहा जा चुका है कि राजनीतिक रूप से थोड़े-बहुत समझदार हर व्यक्ति को उसका एक-एक हर्फ याद हो चुका है। उन्होंने पढ़कर जो सुनाया उसका लब्बोलुआब इतना भर था कि आज ही के दिन 26 जून को देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लादा गया और देश में लोकतंत्र तार-तार हो गया, सभी नागरिक अधिकार शून्य कर दिए गए।

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जब मैं यह बातें आपसे सरसरी तौर पर कह रहा हूं तो इसका कतई यह अर्थ नहीं है कि आपातकाल के दौरान के भारत में नागरिक अधिकारों पर जो इंदिरा गांधी की सत्ता और सत्ताधारी पार्टी द्वारा जो अत्याचार हुए, वह कमतर थे और वह तानाशाही नहीं थी। इससे कभी किसी ने इनकार नहीं किया, यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए राहुल गांधी ने इसके लिए माफी भी मांगी।

लेकिन यह बात जब लोकसभा के स्पीकर ओम बिड़ला के मुंह से कान में पड़ती है तो जुबान बरबस बोल पड़ती है कि भाई मोदी सरकार की तानाशाहियों, जनविरोधी नीतियों, सरकारी अतियों, संसाधनों की सौदागिरी और संस्कृति-परंपराओं को राजनीतिक लाभ का मैदान बना देने पर कब बोलोगे। इंदिरा गांधी को हमारे बाप-दादाओं ने झेला होगा, आपके मोदी जी को इस समय देश भुगत रहा है, देश के 140 करोड़ लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं कि दो वक्त निवाला मुश्किल होता जा रहा है, युवाओं का यह देश युवा आत्महत्याओं में किसानों से आंकड़ों में बहुत आगे निकल चुका है।

ओम बिड़ला जैसे लोग जो देश की सर्वोच्च सभा के सर्वोच्च ईकाई के रूप में बैठे हैं और जब वे अपने प्रधानमंत्री के प्यादे के रूप में देश के सामने पेश होते हैं तो बेइज्जती उनकी नहीं हम 140 करोड़ देशवासियों की होती है। सवाल उठता है कि दुनिया का यह सबसे बड़ा लोकतंत्र 75 साल में बाद भी इतना परिपक्व नहीं हो सका कि एक सक्षम और रीढ़ वाला लोकसभा अध्यक्ष चुनने का विवेक अपने नेताओं को दे सके, जो विपक्ष को जनहित से जुड़े सवालों को पूछने और पटल पर रखने की इजाजत और समय दे।

आप सबको याद होगा कि बिड़ला साहब ने एक ही दिन में विपक्ष के 67 सांसदों को निलंबित कर दिया था और दो दिन के भीतर यह संख्या 146 हो गयी थी। संसद के इतिहास में यह पहली बार था जब इतनी बड़ी संख्या में विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया था। और ऐसा सिर्फ इसलिए बिड़ला जी ने किया क्योंकि विपक्ष चाहता था कि संसद में जो युवा घुस गए थे, उस पर गृहमंत्री अमित शाह जवाब दें।

ऐसे पराक्रमी निर्णय लेने वाले ओम बिड़ला जब इंदिरा गांधी के इमरजेंसी पर संसद में लेख पढ़ते हैं, देश को बताते हैं कि कैसे 50 साल पहले देश में आपातकाल लगा था तो क्या उनको उदाहरण के तौर पर अपना यह ताजातरीन ऐतिहासिक कर्म देश के युवाओं और छात्रों को नहीं बताना चाहिए कि असल में आपातकाल ऐसा ही था, जैसे मैंने संसद से 146 सांसदों को निलंबित कर उनकी जुबान को बंद कर दिया था कि अमित शाह को जवाब न देना पड़ जाए!

इससे ज्यादा प्रासंगिक आपातकाल का उदाहरण क्या हो सकता था, जहां सवालिया भी वही है और जवाबदार भी वही है! 

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