BJP संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान क्यों किए गए बाहर, क्या भाजपा में नहीं चल रहा सबकुछ ठीक!
BJP संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद से इस बात की चर्चा हो रही है कि भाजपा शीर्ष इकाई ने ऐसा क्यों किया।
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में संभावित चुनाव और अन्य रणनीतियों को लेकर बुधवार को भारतीय जनता पार्टी ( BJP ) के शीर्ष नेताओं की बैठक हुई। इस बैठक में बीजेपी ने नये संसदीय बोर्ड का एलान किया। संसदीय बोर्ड से पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ( Nitin Gadkari ) और मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ( Shivraj Singh Chauhan ) को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। इसके साथ ही नई चुनाव समिति ( CEC ) का भी एलान किया गया है। चुनाव समिति में भी गडकरी और चौहान को जगह नहीं दी गई है। यानि पार्टी ने देनों वरिष्ठ नेताओं को साइडलाइन कर दिया है। इससे ये भी संकेत मिलता है कि भाजपा ( BJP ) के अंदर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।
भाजपा के ताजा फार्मेट में फिट नहीं बैठते दोनों नेता
पार्टी शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिए गए इस फैसले के बाद अंदरखाते इस बात की भी चर्चा है कि आखिर क्या हो गया कि दोनों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। नितिन गडकरी पार्टी और पार्टी से इतर भी सबसे बेहतर और प्रभावी मंत्रियों में शुमार किए जाते हैं। विपक्षी पार्टी के नेता तक उनका भरपूर सम्मान करते हैं। वहीं एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान भी पार्टी को लगातार जीत दिला रहे हैं। साथ ही शीर्ष नेतृतव के साथ उन्होंने तालमेल भी बैठा लिया है। हालांकि, शिवराज आडवाणी खेमे के आदमी हैं, लेकिन 2018 चुनाव के बाद उन्होंने मोदी-शाह ( PM Narendra Modi-Amit Shah ) के अनुरूप खुद को ढाल लिया था। इससे ये भी जाहिर होता है कि पार्टी शीर्ष नेतृत्व के फॉर्मेट में दोनों नेता पूरी तरह से फिट नहीं बैठते हैं और समय-समय पर इनकी उपस्थिति की वहज से मोदी-शाह सियासी फैसले लेने में असहज महसूस करते हैं।
सियासी पहलुओं पर मुखर रहे हैं गडकरी
सच तो यही है कि मोदी सरकार में नितिन गडकरी ( Nitin Gadkari ) सबसे भरोसेमंद और काम करने वाले मंत्रियों में शुमार किए जाते हैं लेकिन वह समय-समय पर अपनी सरकार को आईना दिखाने से भी नहीं चूकते हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था कि देश की राजनीति इस कदर खराब हो गई है कि कभी-कभी उनका मन करता है कि वह राजनीति से संन्यास ले लें। गडकरी ने कहा था कि मौजूदा हालातों की राजनीति में और महात्मा गांधी के समय की राजनीति में बहुत अंतर आ गया है। इतना ही नहीं, नितिन गडकरी ने ये भी कहा था कि जिस समय देश आजाद हुआ था उस समय की राजनीति में देश, विकास और समाज के लिए बातें होती थी। यदि हम आज की राजनीति के स्तर को देखें तो चिंता होती है कि हम कहां पहुंच गए हैं। आज की राजनीति पूरी तरह से सत्ता में बने रहने के लिए ही हो रही है।
कहीं गडकरी को इस बात की सजा तो नहीं मिली
इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी नितिन गडकरी ने कथित तौर पर कहा था कि नेतृत्व को हार की जिम्मेदारी भी स्वीकार करनी चाहिए। तब उनके बयान का यही अर्थ निकाला गया था कि उन्होंने 2018 में कुछ राज्यों में भाजपा की हार के लिए इशारों-इशारों में पीएम मोदी और भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह को कटघरे में खड़ा कर दिया था, लेकिन इस पर बवाल बढ़ने के बाद गडकरी ने सफाई दी थी कि उनकी कही बातों का बिलकुल गलत अर्थ निकाला गया है। उस समय नितिन गडकरी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी नेहरू की भी तारीफ की थी। अगस्त, 2018 में गडकरी ने यह कह कर राजनीतिक भूचाल ला दिया था कि नौकरियों के मौके कम हो रहे हैं।
इसी तरह विगत मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान ( Shivraj Singh chauhan ) दो से तीन विधायकों की वजह से अपनी सरकार नहीं बना पाये थे। उस समय इस बात की मीडिया में काफी चर्चा हुई थी कि शिवराज हारे नहीं हैं, उन्हें हराया गया है। हराने के पीछे पर्दे के पीछे यही कहा गया था कि अगर शीर्ष नेतृत्व का सहयोग मिलता चौहान अपने दम पर सरकार बना लेते। हालांकि, शिवराज ने इन सबके बावजूद मोदी-शाह से तालमेल बिठ लिया। इतना ही, कांग्रेस में सेंधमारी कराकर एमपी में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई और सीएम भी बने। सीएम बनने के बाद से उपचुनावों व स्थनीय निकाय चुनावों में पार्टी की जीत से वह पुराने फॉर्म में आ गए हैं लेकिन उनका भी पत्ता साफ होने के बाद से कई तरह के मायने निकाले जा रहे हैं।
तय है कि नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड से बाहर करने का फैसले की आने वाले दिनों में जमकर सियासी गलियारों में चर्चा तो होगी ही। साथ ही ये भी पूछा जाएगा कि संघ के भरोसेमंद और बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले मंत्रियों में अव्वल आने वाले गडकरी और बेहतर सीएम शिवराज को आखिर संसदीय बोर्ड में जगह क्यों नहीं दी गई।
बीजेपी संसदीय बोर्ड के 11 सदस्य
भाजपा संसदीय बोर्ड ( BJP Parliamentary Board ) में कुल 11 सदस्य हैं। इनमें पीएम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, कर्नाटक के पूर्व सीएम मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, असम के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल, भाजपा सांसद के. लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया और बीएल संतोष का नाम है।हैरानी की बात यह है कि नितिन गडकरी को पार्टी ने संसदीय बोर्ड में जगह क्यों नहीं दी है।
सीईसी के सदस्य
केंद्रीय चुनाव समिति ( CEC ) में पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा, असम के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल, केण् लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया, भूपेंद्र यादव, देवेंद्र फडणवीस, ओम माथुर, बीएल संतोष और वनथी श्रीनिवास को जगह दी गई है।