बिहार में कुछ न होते हुए भी नीतीश कुमार पर भारी क्यों हैं प्रशांत किशोर

Bihar Politics : नीतीश कुमार गिरगिट की तरह सियासी रंग बदलने में माहिर हैं। पिछले 17 साल से ज्यादा समय से बिहार में वो यही कर रहे हैं। यही वजह है कि अब वो किसी के भरोसे के काबिल नहीं हैं।

Update: 2022-10-09 12:52 GMT

बिहार में कुछ न होते हुए भी नीतीश कुमार पर भारी क्यों हैं प्रशांत किशोर

 

पीके के सामने बौने क्यों साबित हो रहे हैं नीतीश, धीरेंद्र मिश्र का विश्लेषण

Bihar Politics : बिहार में जब से भाजपा को छोड़ नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) ने महागठबंधन की सरकार बनाई, तभी से वहां की राजनीति में गडमड की स्थिति है। पिछले कुछ समय से वहां राजनीति में अजीब बेचैनी है। कब क्या हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। न तो आरजेडी ( RJD ) को जेडीयू ( JDU ) पर भरोसा है, और न ही जेडीयू को आरजेडी पर। भाजपा ( BJP ) पहले ही कह चुकी है कि नीतीश गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं, इसलिए वो अब किसी के भरोसे के काबिल नहीं हैं। उनपर जो भरोसा करेगा, उसी को वो धोखा देंगे। वो जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करने के आदी हो गए हैं।

यही वजह है कि सियासी दल राजनीतिक अस्थिरता के लिए नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) को ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार मान रहे हैं। इस तर्क में दम भी है। करीब 18 साल से बिहार में किसी भी एक पार्टी को बहुमत न मिलने का लाभ जेडीयू प्रमुख सियासी बंदर की उठाते आये हैं। आरजेडी और भाजपा की मजबूरी है कि वो नीतीश के नेतृत्व को स्वीकार करे।

दरअसल, नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) हर हाल में सीएम बने रहना चाहते हैं, लेकिन बिहार की राजनीति ( Bihar politics ) में तीसरे दर्जे की पार्टी होने के बाद उनकी इस सोच को एनडीए सरकार के दौर से ही सवाल उठने लगे थे। 2015 में भी बड़ी पार्टी होने के बावजूद लालू यादव ने उन्हें सीएम बनने का मौका दिया। सभी तरह पावर अपने हाथ में रखने की सोच से निर्देशित नीतीश कुमार का मतभेद हुआ और उन्होंने 2017 में लालू यादव को झटका देते हुए एनडीए सरकार में शामिल हो गए। उस समय तो भाजपा को नीतीश अच्छे लगे थे अब वही नीतीश 2020 चुनाव के बाद से भाजपा नेतृतव को चुभने लगे हैं। बिहार भाजपा के नेता समय-समय पर जेडीयू प्रमुख के नेतृत्व को चुनौती देते रहे और परिणाम यह निकला नीतीश कुमार ने 2017 की तरह 2022 में भाजपा को भी आरजेडी की तरह गच्चा दे दिया और दो माह पहले महागठबंधन की सरकार बनाने में कामयाब हो गए।

बावजूद इसके वो सियासी ब्लैकमेल की राजनीति को बिहार में बहुत लंबा नहीं खींच सकते। आरजेडी ने मन मारकर समझौता जरूर कर लिया है लेकिन इस बार लालू यादव और उनका कुनबा पूरी तरह से अलर्ट है। माना जा रहा है किे जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव या बिहार विधानसभा चुनाव तक सुशासन बाबू सीएम पद पर रह पाएंगे। इस बीच मनमुटाव बढ़ा तो वो कभी भी सत्ता से बाहर हो सकते हैं।

वर्तमान में नीतीश जो चाह रहे हैं वो मिल नहीं रहा है, जो मिल रहा है उससे वो संतुष्ट नहीं हैं। यही हालात आरजेडी खेमे के नेताओं में भी है। दूसरी तरफ भाजपा सत्ता से दूर होने की जलन में नये सियासी समीकरण को मजबूत होते नहीं देखना चाहती है।

यही वजह है कि चुनावी रणनीतिकार और भावी राजनेता प्रशांत किशोर ( Prashant Kishor ) वहां की राजनीति के केंद्र में आ गए हैं। पिछले कुछ समय से बिहार की धरती पर वो सियासी रूप से सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। साथ ही पीके एक मात्र व्यक्ति हैं जो नीतीश कुमार, लालू यादव, तेजस्वी यादव, सुशील मोदी अन्य नेताओं की अच्छाईयों और परदे के पीछे के राज को जानते हैं। नीतीश कुमार से उनका बहुत करीबी का नाता रहा है। एक दौर में उन्हें जेडीयू में नीतीश का उत्तराधिकारी तक माना जाने लगा था, लेकिन समीकरण कुछ ऐसे बिगड़े कि आज दोनों एक-दूसरे के खिलाफ न केवल बयान दे रहे हैं बल्कि सियासी मर्यादाओं को भी ताड-ताड़ कर रहे हैं।

PK मूर्ख है, अंड-बंड बोलता है

कभी नीतीश कुमार कहते हैं कि प्रशांत किशोर ( Prashant Kishor ) मूर्ख हैं, उनके पास है क्या, मैंने उन्हें लायक बनाया था। इसके जवाब में पीके ( PK ) नीतीश ( Nitish Kumar ) को सियासी भिखारी तक की संज्ञा दे चुके हैं। नीतीश कुमार ने मीडिया की ओर से यह पूछे जाने पर कि प्रशांत किशोर का कहना है कि आपने उन्हें सरकार में पोस्ट ऑफर की थी। इसके जवाब उन्होंने कहा कि ये सब गलत है। उन्हें बोलने दीजिए, जो बोल रहे हैं। मुख्यमंत्री को लगता है कि PK अंड-बंड बोलता है। वही प्रशांत किशोर हैं, जो कुछ समय पहले हमारी पार्टी के कांग्रेस में विलय की सलाह दे रहे थे। साथ ही नीतीश ने यह भी कहा कि प्रशांत किशोर अब भाजपा के साथ हैं। इसलिए वहां के हिसाब से बयानबाजी कर रहे हैं।

नीतीश कुमार पर उम्र का असर 

इस पर करारा पलटवार करते हुए कहा कि उम्र का असर नीतीश जी पर दिख रहा है, वो कुछ कहना चाहते हैं लेकिन कुछ और बोलते हैं। अगर मैं बीजेपी के एजेंडे पर काम कर रहा होता तो मैं कांग्रेस को मजबूत करने की बात क्यों करता? सच्चाई यह है कि माननीय मुख्यमंत्री जी को इतिहास इनको सत्रह साल में आठ बार मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने के लिए याद किया जाएगा। दूसरी उपलब्धि बिहार के शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए याद किया जाएगा।

पीके के सुराज से लगता है सुशासन बाबू को डर

पीके और नीतीश के बीच जारी आंख मिचौली को लेकर पीके के पटना की एक बैठक में शामिल समस्तीपुर के रूपेश कुमार का कहना है कि बिहार में पीके एक ऐसा आदमी है जो सबका राज जानता है। नीतीश कुमार के सियासी खेल को सबसे बेहतर तरीके से वही जानते हैं। इसलिए नीतीश को लगता है कि वो प्रशांत उन्हें बेपर्दा कर सकते हैं। यह पूछे जाने पर कि ऐसा क्या है कि पीके उन्हें परेशान कर सकते हैं, उन्होंने कहा कि राजनीति में ढेर सारी जानकारी ऐसी होती हैं, जिसके बारे में बताया नहीं जाता है, लेकिन सियासी बदला लेने पर कोई आमदा हो जाए तो विरोधी सामने वाले को बड़ा नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हमेशा होता है। विरोधी तो मौके की तलाश में होता है। फिर, नीतीश को लगता है कि पीके भाजपा को फायदा पहुंचा रहे हैं, लेकिन वो किसको लाभ पहुंचाएंगे या किसे नुकसान इसका दावा अभी कोई नहीं कर सकता। इसके बावजूद नीतीश कुमार पीके को अपने खेमें में करने के इसलिए परेशान हैं कि वो बिहार के सभी 534 ब्लाकों का दौरा कर चुके हैं। उनकी सुराज यात्रा जारी है। इन गतिविधियों के तहत वो सीधे लोगों से जुड़कर संवाद कर रहे हैं। तय है कि बिहार की जन समस्याओं का मुद्दा इस तरह की बैठकों में उठेंगी ही। इसका मतलब यही है न कि पीके के निशाने पर सीएम होने के नाते नीतीश ही होते होंगे।

यही वजह है कि पीके नीतीश की सियासी कमजोरी कड़ी बन गए हैं। नीतीश जैसे-तैसे उन्हें थामना चाहते हैं। दूसरी तरफ गिरगिट की तरह जेडीयू प्रमुख के रंग बदलने की आदत से पीके उनके खेमे में जाने से बच रहे हैं। यानि आने वाले दिनों में सियासी तौर पर सबसे कम भरोसे के आदमी नीतीश कुमार ही होंगे। मतलब साफ है, नीतीश का वेट अपने विरोधियों के सामने बहुत कम हो गया है।

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