39 सालों से तिलका मांझी की जयंती मना रहा चुन्नू मांझी का परिवार, अब स्थापित हो पायी मूर्ति

Tilka Manjhi Chowk : यह वही जैनामोड़ है जहां झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत इस छोटी सी जगह से हुई थी, उसी छोटी सी जगह के निवासी चुन्नू मांझी ने 39 वर्षों पहले 11 फरवरी 1984 से जैनामोड़ चौक पर बाबा तिलका मांझी की तस्वीर रखकर उनकी जयंती मनाना शुरू किया और चौक का नामकरण बाबा तिलका मांझी चौक रखा...

Update: 2023-03-24 16:36 GMT

चौक पर तिलका मांझी की प्रतिमा अनावरण के बाद, करमचंद मांझी चौक प्रतिमा के साथ 

विशद कुमार की रिपोर्ट

बोकारो जिले का जैनामोड़ जिला मुख्यालय से 16 किमी दूर है। 4.5 दशक पहले जैनामोड़ एक मोड़ के रूप में जाना जाता था, जहां से देश के हर छोटे बड़े शहरों के लिए रास्ते निकलते हैं। यह वही जैनामोड़ है जहां कामरेड महेंद्र सिंह को वामपंथी समझ की क्रांतिकारी जमीन हासिल हुई। क्योंकि यहीं उनका ननिहाल था, जहां रहते हुए उन्हें तत्कालीन भाकपा माले (लिब्रेशन) के एक साथी कुमार मुक्ति मोहन से परिचय हुआ था।

यह वही जैनामोड़ है जहां झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत इस छोटी सी जगह से हुई थी, उसी छोटी सी जगह के निवासी चुन्नू मांझी ने (अब स्वर्गीय) 39 वर्षों पहले 11 फरवरी 1984 से जैनामोड़ चौक पर बाबा तिलका मांझी की तस्वीर रखकर उनकी जयंती मनाना शुरू किया और चौक का नामकरण बाबा तिलका मांझी चौक रखा। यह अलग बात है कि राजनीतिक व सामाजिक स्तर से इस चौक पर अन्य किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया, जिस वजह से यह चौक जैनामोड़ चौक के नाम से ही लोगों के बीच जाना जाता रहा। यहां तक कि अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर आन्दोलित रहे और सांसद रहे शिबू सोरेन ने भी इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया, जबकि चौक के बगल में ही उनके छोटे भाई रामू सोरेन का आवास और वहीं पार्टी कार्यालय भी था और गुरूजी यानी शिबू सोरेन का यहां बराबर आना जाना होता था।

चुन्नू मांझी के गुजरने के बाद उनका पुत्र करमचांद मांझी ने अपने पिता के विरासत को संभाला और प्रत्येक 11 फरवरी को चौक पर पूजा अर्चना के बाद तिलका मांझी की जयंती मनाते रहे। धीरे-धीरे करमचंद मांझी के साथ क्षेत्र के संथाल समुदाय के साथ साथ अन्य लोग भी जुड़ते लग गए, जिनमें वे लोग भी थे जिन्होंने शिबू सोरेन को सार्वजनिक जीवन में लाया था। इनमें मुख्य रूप से बालीडीह निवासी शिक्षक कार्तिक मांझी थे। जो अब इस दुनिया में नहीं रहे।

नवंबर 1957 को शिबू सोरेन के पिता सोबरन मांझी की हत्या के बाद शिबू सोरेन तथा उनके बड़े भाई राजाराम मांझी जो गोला स्थित एक आवासीय हाई स्कूल में क्रमशः 9वीं एवं 11वीं कक्षा में पढ़ रहे थे, उनकी पढ़ाई छूट गई। इतना ही नहीं पारिवारिक स्थिति काफी बिगड़ गई। शिबू सोरेन अपने बड़े भाई राजाराम के साथ खेती-बाड़ी सम्भालने लगे। शिबू सोरेन से छोटे तीन भाई थे। इसी बीच 24 अक्टूबर 1965 को तत्कालीन हजारीबाग जिले के बालीडीह ;वर्त्तमान बोकारो जिलाद्ध में संथाल नवयुवक संघ का गठन हुआ, जिसका संयोजक कार्तिक मांझी को बनाया गया और कार्यकारिणी में शिबू सोरेन सहित गोवर्धन मांझी, तुलसी मांझी, दुर्गा प्रसाद मांझी, जीतू मांझी, हरिनाथ मांझी सहित 45 आदिवासी संथाल सदस्य बनाए गए। 31 दिसंबर 65 को नवयुवक संघ द्वारा एक आमसभा जैनामोड़ ;बरगाछद्ध के सामने हुई। उक्त आमसभा में संथाल नवयुवक संघ को निरस्त करके श्संथाल सुधार समितिश् का गठन किया गया। जिसमें राजा कामाख्यानारायण की स्वतंत्र पार्टी के जरीडीह विधायक रामेश्वर मांझी को अध्यक्ष तथा शिवचरण लाल मांझी यानी शिबू सोरेन को महासचिव बनाया गया। कार्तिक मांझी कोषाध्यक्ष बनाए गए।

इस प्रकार सामाजिक संगठन के बहाने शिबू सोरेन का उदय संथाल समाज के बीच हुआ और सार्वजनिक जीवन.यात्रा में शिबू ने प्रवेश किया। चूंकि संथाल सुधार समिति से केवल संथाल समाज का बोध हो रहा था, अतः पूरे आदिवासी समुदाय को एक साथ लेकर चलने की कवायद के लिए 1966 के अप्रील में ‘संथाल सुधार समिति’ का नामकरण ‘आदिवासी सुधार समिति’ कर दिया गया। 1968 में शिबू सोरेन ने मुखिया का चुनाव लड़ा, मगर हार गए। 1969 में जरीडीह विधानसभा (जिसके अंतर्गत जैनामोड़ आता था) से भी किस्मत आजमाई, मगर पराभव ही हाथ लगा।

इस प्रकार कहा जाए कि सार्वजनिक जीवन यात्रा ने बाद में शिबू सोरेन को दिसोम गुरू बना दिया और वे गुरूजी भी इनके नाम में जुड़ गया। कालान्तर में जैनामोड़ में आवास और पार्टी कार्यालय बनाया और यहां इनकी उपस्थिति बनी रही। बावजूद कभी इनका ध्यान जैनामोड़ चौक पर नहीं गया कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला विद्रोही तिलका मांझी को लेकर यहां कोई हलचल हो रही है, जबकि इसी चौक से उन्होंने दर्जनों बार पार्टी के कार्यक्रमों को संबोधित भी करते रहे थे।

करमचंद मांझी बताते हैं कि उनके पिता चुन्नू मांझी द्वारा 1984 से लेकर 2000 तक प्रथम स्वतंत्रता सेनानी तिलका मांझी की जैनामोड़ के मुख्य चौक पर आदिवासी परम्परानुसार पूजा.अर्चना कर जयंती मनायी जाती रही। धीरे-धीरे क्षेत्र के अन्य संताल लोग इस कार्यक्रम से जुड़ते गए। उस वक्त क्षेत्र के चिरापाटी निवासी फुलेश्वर मांझी, चिलगड्डा निवासी रामा मांझी, पेटरवार निवासी मनोहर मुर्मू व राधा सोरेन, जैनामोड़ के खाड़े राम मुर्मू, महानंद मुर्मू, खुटरी निवासी तत्कालीन मुखिया मोहन मांझी, बालीडीह निवासी शिक्षक कार्तिक मांझी सहित यूपी बनारस के रहने वाले रवीन्द्र जायसवाल जो उस वक्त बालीडीह में रहते थे, की अनुवाई में स्वर्गीय चुन्नू मांझी ने आदिवासी विधि.विधान के साथ बाबा तिलका मांझी की जंयती मनाते रहे। साथ ही चौक का नामकरण तिलका मांझी चौक का किया गया।

करमचंद मांझी ने बताया पिता की दी जिम्मेदारी के तहत वे अभी तक प्रत्येक वर्ष 11 फरवरी को उनकी जयंती के अवसर पर पूजा अर्चना करते आ रहे हैं, जिसका परिणाम यह रहा कि क्षेत्र के राजनीतिक व सामाजिक लोगों द्वारा अब जाकर तिलका मांझी चौक जैनामोड़ में पर एक आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसका अनावरण विगत 11 फरवरी 2023 को किया गया।

वे कहते हैं वर्षों बाद पिताजी चुन्नू मांझी का सपना पूरा हो रहा है, जिसको लेकर हमारा पूरा परिवार उत्साहित है। बताते चलें कि चुन्नू मांझी और उनके पुत्र करमचंद मांझी की तिलका मांझी के प्रति आस्था ने रंग लाया और गत 11 फरवरी 2023 को चौक पर तिलका मांझी की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई, जिसका अनावरण झारखंड की महिला, बाल विकास और सामाजिक सुरक्षा मंत्री जोबा मांझी ने की। वैसे उक्त अनावरण कार्यक्रम शिबू सोरेन के हाथों द्वारा किया जाना तय था,उ लेकिन अचानक उनकी तबीयत बिगड़ जाने से उन्हें मेदांता में भर्ती करना पड़ा और उनकी जगह जोबा मांझी द्वारा अनावरण किया गया।

करमचंद मांझी के बारे में बता दें कि उनका गोत्र हेम्ब्रम है, लेकिन करमचंद अपना गोत्र नहीं लगाते। वे अपने नाम के साथ मांझी ही लगाते हैं। उनका कहना है बाबा तिलका मांझी के साथ इतनी गहरी आस्था और प्रबल मानसिक लगाव है कि उनके पिता चुन्नू मांझी ने भी अपना गोत्र नहीं लगाया और हम भी पिता की विरासत को बचाने के प्रयास में हैं।

करमचंद मांझी के 6 बच्चे हैं, जिनमें 3 बेटे और 3 बेटियां हैं। बड़ा बेटा बोकारो स्टील प्लांट में ठेकेदार के पास दैनिक मजदूर है। मंझला बेटा इन्टर की पढ़ाई कर रहा है, जबकि छोटी बेटी मैट्रिक में है। दो बेटी और एक बेटे की शादी हो चुकी है।

करमचंद ने बताया कि मैं पढ़ लिख नहीं पाया, इसका मुझे काफी मलाल है। नहीं पढ़ने लिखने को लेकर मुझे कई बार परेशानी का सामना करना पड़ा है। ऐसे में मुझे लगता था कि आने वाली पीढ़ी अनपढ़ न रहे। इसको लेकर हमने कुछ पढ़े लिखे समाज के लड़कों और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से एक स्कूल जैनामोड़ से लगभग एक किमी दूर खुटरी पॉलिटेक्निक के बगल में स्थित गितिंगटांड़ में एक सामुदायिक केंद्र में खोला था, जो लगभग तीन चार साल तक चला। इसमें यूपी निवासी रवींद्र जायसवाल और गितिंगटांड़ के मोतीलाल सोरेन का बड़ा योगदान रहा।

सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि रवींद्र जायसवाल एक तो यूपी के रहने वाले थे और दूसरा यह कि वे गैरसंताली थे, बावजूद संताली भाषा का उन्हें अच्छा ज्ञान ही नहीं था बल्कि संताली लिपि ओलचिकी पर भी पूरी पकड़ थी। अतः वे उक्त स्कूल में बच्चों को ओलचिकी पढ़ाया करते थे। कुछ दिनों बाद आर्थिक रूप से काफी परेशानी झेलने के कारण वे शायद अपने पुश्तैनी घर यूपी बनारस लौट गए या अन्यत्र चले इसकी जानकारी अभी तक नहीं हो सकी है।

करमचंद कहते हैं रवींद्र जायसवाल अभी भी मेरे भीतर गहरे बैठे हैं। उन्हें मैं आजीवन नहीं भूल सकता, क्योंकि आज जो भी मुझे अक्षर का ज्ञान हुआ है वह उन्हीं की वजह से है। उन्होंने मुझे भी किसी बच्चे की तरह पढ़ाया है।

करमचंद मांझी के बारे बताना जरूरी हो जाता है कि शिक्षा के प्रति उनका लगाव इतना गहरा था कि वे महुआ का शराब घर में बनाते थे और उसे बेचकर उस पैसे से स्कूल के बच्चों के लिए कापी किताब की भी व्यवस्था करते थे। स्कूल बंद होने के पीछे जहां रवींद्र जायसवाल का गायब हो जाना था, वहीं मोतीलाल सोरेन की अंचल कार्यालय में नौकरी लग जाने से वे भी नौकरी पर लग गए। जबकि दूसरे लड़के जो स्कूल में पढ़ाते थे, उनको भी कहीं कहीं रोजगार को लेकर पलायन करना पड़ गया और स्कूल बंद हो गया।

करमचंद बताते हैं कि स्कूल बंद होने का उनको आज भी काफी गम है, लेकिन हमारे प्रयास और हमारी लगन से जो सम्मान बाबा तिलका को मिला है उसकी खुशी ने उस गम को कम किया है।

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