हसदेव अरण्य : छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री के राज में उजड़ जायेंगे 10 हजार आदिवासी
हसदेव अरण्य क्षेत्र में पहले से ही कोयले की 23 खदानें मौजूद हैं। साल 2009 में केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इसे 'नो-गो जोन' की कैटगरी में डाल दिया था। इसके बावजूद कई माइनिंग प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है, क्योंकि नो-गो नीति कभी पूरी तरह लागू नहीं हो सकी। यहां रहने वाले आदिवासियों का कहना है कि कोल आवंटन का विस्तार अवैध है....;

विशद कुमार की रिपोर्ट
Hasdeo Aranya : छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के तुरंत बाद भाजपा की विष्णुदेव साय सरकार ने खदानों के विस्तार को मंजूरी दे दी है, जबकि इसके खिलाफ उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में मुक़दमा भी चल रहा है।
खदानों के विस्तार को मंजूरी के साथ ही सरगुजा जिले में जैव विविधता से संपन्न हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा पूर्व और केते बसन (पीईकेबी) चरण-2 कोयला खदानों की विस्तारीकरण को लेकर पेड़ों की कटाई भी पुलिस सुरक्षा घेरे के बीच शुरू हो गई है। इसके खिलाफ आन्दोलन कर रहे आंदोलनकारियों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने 21 दिसंबर को उन लोगों को हिरासत में लिया जो हसदेव क्षेत्र में कोयला खनन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। वहीं विधानसभा में कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर उद्योगपतियों का पक्ष लेने का आरोप लगाया।
उल्लेखनीय है कि 1252.447 हेक्टेयर में फैले छत्तीसगढ़ के परसा कोयला खदान के इलाके में 841.538 हेक्टेयर इलाका जंगल में आता है। परसा कोयला खदान राजस्थान के बिजली विभाग को आवंटित है। राजस्थान की सरकार ने अडानी ग्रुप से करार करते हुए खदान का काम उसके हवाले कर दिया है। राजस्थान का भी केते बासन का इलाका खनन के लिए आवंटित है। इसके खिलाफ उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में मामला भी चल रहा है।
पूर्व से ही काटे जा रहे जंगलों को बचाने के लिए कई सालों से अनिश्चितकालीन हड़ताल चल रही है। इसके लिए स्थानीय लोग जमीन से लेकर अदालत तक लड़ाइयां लड़ रहे हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के लिए यह चिंता का विषय बन गया है।
गौरतलब है कि सरगुजा के हसदेव अरण्य में खदान का जो विस्तार हो रहा है, इससे लगभग 6 से 8 गांव सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं, जबकि 18-20 गांव आंशिक तौर पर। इतना ही नहीं लगभग 10 हजार आदिवासियों को अपना बसेरा गंवा देने का डर समाया हुआ है। इसके खिलाफ दिसंबर 2021 में आदिवासियों ने पदयात्रा और विरोध प्रदर्शन भी किया था, लेकिन सरकार नहीं मानी और अप्रैल 2022 में आवंटन को मंजूरी दे दी। तब काग्रेस के डॉ.भूपेश बघेल मुख्यमंत्री थे।
बता दें साल कि वर्ष 2015 में मदनपुर गांव में राहुल गांधी आए थे। राहुल गांधी ने हसदेव अरण्य की सभी ग्रामसभाओं को संबोधित करते हुए कहा था कि वह लोगों के जल-जंगल-जमीन बचाने के संघर्ष में उनके साथ हैं। तब राज्य में भाजपा की सरकार थी, लेकिन जब राज्य में कांग्रेस की सरकार आई तब भी आदिवासियों की बात नहीं सुनी गई। कई बार प्रदर्शनों के बावजूद उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। उसके बाद से ही लोगों ने इसके खिलाफ आन्दोलन जारी रखने का आह्वान किया है।
हसदेव अरण्य क्षेत्र में पहले से ही कोयले की 23 खदानें मौजूद हैं। साल 2009 में केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इसे 'नो-गो जोन' की कैटगरी में डाल दिया था। इसके बावजूद कई माइनिंग प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है, क्योंकि नो-गो नीति कभी पूरी तरह लागू नहीं हो सकी। यहां रहने वाले आदिवासियों का कहना है कि कोल आवंटन का विस्तार अवैध है।
गौरतलब है कि यह क्षेत्र पंचायत एक्सटेंशन ऑन शेड्यूल्ड एरिया (पेसा) कानून 1996 के अंतर्गत आता है। अतः बिना ग्राम सभा की मर्जी के आदिवासियों की जमीन पर खनन नहीं किया जा सकता। पेसा कानून के मुताबिक, खनन के लिए पंचायतों की मंजूरी ज़रूरी है। आदिवासियों का आरोप है कि इस प्रोजेक्ट के लिए जो मंजूरी दिखाई जा रही है वह फर्जी है। आदिवासियों का कहना है कि कम से कम 700 लोगों को उनके घरों से विस्थापित किया जाएगा और 840 हेक्टेयर घना जंगल नष्ट हो जाएगा।
जंगलों को काटे जाने से बचाने के लिए स्थानीय लोग, आदिवासी, पंचायत संगठन और पर्यावरण कार्यकर्ता एक साथ आ रहे हैं। स्थानीय स्तर पर विरोध प्रदर्शन से लेकर अदालतों में कानूनी लड़ाई भी लड़ी जा रही है कि किसी तरह इस प्रोजेक्ट को रोका जाए और जंगलों को कटने से बचाया जा सके। वैसे भी भाजपा सरकार के परम प्रिय अडानी समूह की बल्ले बल्ले उसी वक्त हो गई थी, जब दिसंबर 2023 में बीजेपी सरकार का सत्ता पर कब्जा हो गया। भाजपा के सत्ता में आते ही अडानी समूह ने फिर से कटाई अभियान चालू कर दिया गया है, जिसका ग्रामीण विरोध कर रहे हैं।
भाजपा के सत्ता में आते ही अडानी समूह ने फिर से कटाई अभियान चालू कर दिया गया है, जिसका ग्रामीण विरोध कर रहे हैं
पुलिस ने 21 दिसंबर को सुबह 6 बजे ही हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के रामलाल करियाम, जयनंदन पोतें और ठाकुर राम सहित 15 से अधिक आंदोलनकारियों को नजरबंद कर दिया। गांव में पुलिस फोर्स को तैनात कर पेड़ों की कटाई शुरू की गई है। सरगुजा के उदयपुर इलाके में अलग-अलग पुलिस की टीम 15 से अधिक लोगों को उनके घर से उठाकर ले गई। जब लोग घरों से निकले तो पता चला कि पेंड्रामार जंगल के आसपास 450 से अधिक जवान तैनात हैं।
जब ग्रामीणों ने जंगल के अंदर जाने का प्रयास किया तो उन्हें पुलिस ने घुसने नहीं दिया। इससे ग्रामीण बाहर ही प्रदर्शन करते रहे और इधर 450 जवानों की सुरक्षा में कोल कंपनियों के अधिकारियों ने प्रशासनिक अफसरों की मौजूदगी में सुबह 8 बजे से लेकर दोपहर 3 बजे तक 500 आरा मशीन की मदद से पहले दिन 52 हेक्टेयर में लगे पेड़ों को काटकर मैदान में तब्दील कर दिया। कोल माइंस के लिए यह जमीन अडाणी को दी गई है। इनमें से 52 हेक्टेयर में लगे पेड़ों को काटने के लिए वन विभाग ने अभी अनुमति दी है।
इसके लिए पेट्रोल से चलने वाली 500 से अधिक आरा मशीनों की मदद ली जा रही है। सुबह आठ बजे से लेकर देर शाम तक पेड़ों की कटाई चलती रही। जहां पेड़ों की कटाई चल रही है, वहां किसी को भी जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
स्थानीय प्रशासन का दावा है कि उसके पास पेड़ काटने के लिए सभी आवश्यक अनुमतियां हैं, जबकि पुलिस अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने कुछ स्थानीय लोगों के घरों का दौरा किया और उनसे कानून-व्यवस्था बनाए रखने की अपील की।
साल 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के केवल 1 फीसदी हाथी ही छत्तीसगढ़ में हैं, लेकिन हाथियों के खिलाफ अपराध की 15 फीसदी से ज्यादा घटनाएं यहीं दर्ज की गई हैं। अगर नई खदानों को मंजूरी मिलती है और जंगल कटते हैं, तो हाथियों के रहने की जगह खत्म हो जाएगी और इंसानों से उनका आमना-सामना और संघर्ष बढ़ जाएगा। यहां मौजूद वनस्पतियों और जीवों के अस्तित्व पर भी संकट मंडरा रहा है। यहां मौजूद वनस्पतियों और जीवों के अस्तित्व पर भी संकट मंडराने लगा है। जगंल के हाथी घनी बस्तियों में पहुंच रहे हैं। हाल ही में हाथियों के समूह ने 15 घरों को उजाड़ दिया।