अपराधी होने के झूठे कलंक और सरकारी योजनाओं के दायरे में न आने से तबाह है घुमंतू समुदाय
घुमंतू या खानाबदोश समुदाय भारत का सबसे वंचित समुदाय हैं। अंग्रेजों के काल से इनका हर से उत्पीड़न होता आया है। उनके पारंपरिक रोजगार छिन गए और आवश्यक पहचान पत्र नहीं होने के कारण उन्हें सरकारी योजनाओं का भी लाभ नहीं मिलता। उस पर अपराधी होने का ठप्पा भी उनके सिर समाज ने चिपका रखा है। पढें यह विस्तृत आलेख...
अश्विनी जाधव का विश्लेषण
विमुक्त समुदाय ने 31 अगस्त को 68वां विमुक्त दिवस मनाया है। विमुक्त एवं घुमंतू समुदाय राष्टीय समन्वय समूह और विमुक्त समुदाय का स्वतंत्र आन्दोलन जैसे संगठनों और संस्थाओं ने विमुक्त समुदाय से जुड़े मुद्दों को लेकर इस वर्ष अनगिनत कार्यक्रम विमुक्त दिवस पर आयोजित किये हैं और लगातार करते आ रहे हैं। इसके बावजूद आज भी सामान्य समुदाय विमुक्त समुदाय से अनभिज्ञ है। इस अवसर पर विमुक्त समुदायों के सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों पर एक नजर डालना आवश्यक हो जाता है।
क्यों मनाते हैं विमुक्त दिवस ?
भारत मे जब ब्रिटिश प्रशासन ने व्यापार बढाया और रेवेन्यू वसूलना प्रारंभ किया तब ब्रिटिश उपनिवेशवाद को भारतीय वनों पर कानूनी तौर पर कब्जा करने पर 1865 के भारतीय वन कानून ने मुहर लगा दी। लेकिन फिर भी घुमंतू समुदाय की घुमंतू प्रवृत्ति के कारण ब्रिटिश उपनिवेशवाद उन पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा था। घुमंतू प्रवृत्ति होने के कारण यह समुदाय आजादी के आंदोलनों में भी संदेश और जरूरी सामग्री पहुंचाने का काम करता था। कुछ लोग आजादी के आंदोलन में भी सक्रिय थे। वन संपदा पर निर्भर समुदायों की वन संपदा लुटने के लिए ब्रिटिश ने उन पर नियंत्रण करना जरूरी समझा। इसलिए ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने 1871 मे आपराधिक जनजातीय कानून लाकर जिन घुमंतू समुदायों से अधिक खतरा था उनको आपराधिक जनजातीय समुदाय घोषित कर दिया।
विमुक्त समुदाय पर आपराधी जनजातियों का लेबल लगा दिया। खुले बंदीगृह में 81 वर्षो तक रखा गया। दिन में दो से तीन बार अंगूठे के निशान पहचान के लिए लिये जाते थे। उनसे बागानों में मुफ्त में जबरजस्ती काम करवाया जाता था। बच्चों को माता-पिता से अलग रखा गया। ना केवल बंदी बनाया गया बल्कि इन समुदायों पर अन्य वेशभूषा और संस्कृति अपनाने के लिए दबाव डाला गया जिससे घुमंतू जीवन शैली में बड़ा बदलाव आया। धीरे-धीरे पुरुष को बाहरी काम की जिम्मेदारी दी गई और महिलाओं को घर संभालने की जिम्मेदारी दी गई।
उनकी कहानियों और गीतों में ऐसे तत्वों को शामिल कराया गया, जिससे उनके अपराधी होने का बोध हो। भारत तो पांच साल पहले ही आजाद हो गया था लेकिन इस समुदाय को पांच साल और आपनी आजादी के लिए इंतजार करना पड़ा। 31 अगस्त 1952 को भारतीय संसद ने आपराधिक जनजातीय कानून 1871 को निरस्त कर दिया। जहां पर भी इन समुदायों को बंदी बनाया गया वहां से उनको मुक्त किया गया। यही कारण है विमुक्त समुदाय हर वर्ष 31 अगस्त को विमुक्त दिवस मनाता है। उनको आपराधिक जनजातीय की श्रेणी से हटाकर प्रशासनिक तौर पर विमुक्त श्रेणी की पहचान दी गई।
कौन है विमुक्त समुदाय?
भारत में 150 से भी अधिक विमुक्त जनजातियां हैं। घुमंतू जनजातियां जंगल आश्रित, पशुपालक और मनोरजंन करनेवाले समुदायों में शामिल हैं। इनको कई नामों जैसे पारधी, खासी, बंजारा, गाडीया लोहार या घिसाडी, बहरूपिया, नट, बदंरवाले, भालू वाले एवं कठपुतली वाले आदि से जाना जाता है।
क्रमिक विकास में खेती की खोज के साथ समाज दो प्रकार के समुदायों में बंट गया। एक जो स्थायी रूप से बस कर खेती करने लगा और दूसरा एक स्थान से दूसरे स्थान मार्ग बनाकर घूमने वाले अस्थायी या घुमंतू
विमुक्त समुदाय। घुमंतू समुदाय स्थायी रूप से बसे समुदायों के आसपास अस्थायी कबिले या डेरा डाल कर न केवल रहते हैं, बल्कि वे स्थायी समुदायों को उस दौरान आपनी सेवाएं जैसे लोहे के औजार बनाना, पत्थर के सामान बनाना, वहां के जंगलों से जड़ी बुटियां खोजना और बेचना, अपने पशुओं का मांस, दूध आदि बेच कर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं।
जब किसान खाली जमीन पर घुमंतू समुदाय के पशुओं को बारी-बारी अपने खेतों मे बैठने के लिए बुलाते हैं, ताकि पशुओं के गोबर से उनकी जमीने उपजाऊ बने। यातायात साधनों के अभाव के दौर में वे जानवरों के माध्यम से स्थायी समुदायों को बाजार से दैनिक जरूरत को पहुंचाने में भी मदद करते थे।
औद्योगिकीकरण के साथ रेल विकास, यांत्रिकीकरण और वस्तुओं का बड़े पैमाने पर व्यापार प्रांरभ हुआ, तब स्थायी समुदायों को चीजें आसानी से उपलब्ध होने लगी। वनसपंदाओं के व्यवसायीकरण के साथ वनसंपदा पर निर्भर इन समुदायों को जगंलों से बहार करने की रणनीति बनने लग गईं। ब्रिटिश प्रशासन ने भारतीय वन कानून 1865 बना कर इन समुदायों को जगंलों में जाने पर प्रतिबंध लगाया। इसके कारण कई समुदायों को अपने पारंपरिक व्यवसायों को छोड़ना पड़ा।
क्या वास्तव में समुदाय अपराध के कलंक से आजाद है?
अपराधिक कानून निरस्तीकरण के बाद से हाशिये की जनजातियों की राह और कठिन हो गई। भारत सरकार ने 1952 में ही अभ्यस्त अपराधिक कानून के तहत इन विमुक्त व घुमंतू समुदायों को आदतन आपराधी घोषित कर दिया। इसके कारण इन हाशिये की जनजातियों को आज भी अपराधी जनजातियों के नाम से ही जाना जाता है। इस आपराधिक कलंक के कारण ना केवल इस समुदाय को प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है बल्कि पुलिस प्रशासन इस समुदाय के लोगों को शंका के आधार पर ही पकड़ लेता है।
एक ओर इन समुदायों के पारंपरिक व्यवसाय समाप्त कर दिये गये और दूसरी ओर आपराधिक कलंक कारण कोई अन्य समुदाय इन्हें काम नहीं देता है। आज भी शिक्षा, आवास और स्वास्थ्य जैसी मुलभूत सुविधाओं के लिए यह समुदाय संर्घष कर रहा है। इन घुमंतू समुदायों के विकास के लिए किसी भी प्रकार की वैकल्पिक अवसर पैदा नहीं किये गये जैसे अन्य समुदाय, अनुसूचित जाति और जनजाति व पिछड़ा वर्ग के लिए। घुमंतू शैली होने के कारण इन समुदाय के पास कोई भी पहचान पत्र नहीं है, ना ही सरकार ने उनके पहचान पत्र बनाने पर जोर दिया है। यहां तक कि सरकार ने इनकी जनगणना भी अलग से कराना उचित नहीं समझा। यह समुदाय सरकार की सामान्य योजनाओं के लाभ से आज भी वंचित है।
यह समुदाय भारत के राज्यों में ही नहीं बल्कि जिलों में भी अलग-अलग श्रेणी से आते हैं। कुछ पिछड़े वर्ग में तो कुछ अनुसूजित जाति और जनजाति की श्रेणी में भी हैं। इन समुदायों को प्रताड़ना और आत्याचारों से संरक्षण प्रदान करने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया। आजादी के बाद इनके विकास के लिए जो अवसर उपलब्ध कराये जाने चाहिए थे, उसमें सरकारें विफल साबित हुईं। भारती की आजादी के 50 साल बाद सरकार ने इनके अस्तिव को माना और पहला आयोग बालकृष्ण रेन्के आयोग के नाम से गठित किया। कई सिफारिशें सरकार को इसने सौंपी लेकिन सरकार ने इन समुदाय के लिए कोई मजबूत कदम नहीं उठाया । इसलिए यह समुदाय अभी भी अतिवंचित है।
इस समुदाय की कुछ जातियों ने सरकारी जमीन पर स्थायी बसने की कोशिशें की लेकिन ना केवल स्थायी समुदाय बल्कि प्रशासन भी उनको बसने नहीं देता। कर्नाटक की एक तहसील होलेनारासीपुर मे सुधगाडु सीद्धा जाति के लोगों को अपराधी कलंक की वजह से बसने के लिए जमीन नहीं दी। जहां बसे हुए हैं वहां उनकी बस्तियों में और खेतों में आग भी लगा दी जाती है। यानी अपराधिक लेबल समुदाय के पीछे साये की तरह है।
इनके पास जो जमीन हैं वो बंजर हैं। जमीन और बारिश के अभाव के कारण कई जनजातियां काम की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर गईं हैं। शहरों में उनको हम मनिहारी बेचते हुए, पन्नी बिनते और रेड लाइट पर खड़े देख सकते हैं। वैश्विकरण ने इन समुदाय की पारंपरिक आजीविकाओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया। जिन जड़ी बूटियों बुटियों को वे जंगलों से इकट्ठा कर बेचते थे, वही आज उनको बाजार से खरीद कर बेचना पड़ रहा है। स्वास्थ और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं के बढते निजीकरण ने इनको इन सुविधाओं की पहुंच से ओर दूर कर दिया है।
तालाबंदी से बेजार
कोरोना महामारी के कारण सरकार द्वारा लगायी गई तालाबंदी से पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। उद्योग धंधे पूरी तरह ठप हो गये हैं। देश में तालाबंदी ने हाशिये के विमुक्त और घुमंतू समुदाय की परिस्थितियों को और बदतर कर दिया है। शहरों में जो समुदाय सिग्नल पर भीख मांगकर और सामान बेचकर पेट भरते थे तालाबंदी के कारण ना तो वे सिग्नल पर खड़े हो सकते हैं और ना ही लोग अभी बहार निकल रहे हैं। निर्माण कार्य पूरी तरह बंद है।
आर्थिक तौर पर देखें तो यह समुदाय तंग हाल है। राजस्थान के कई घुमंतू समुदाय जो मनोरंजन और रोड के किनारे खिलौने बेच कर जीवन चलाता था, पिछले पांच माह से सड़कों पर लोगों की भीड़ नहीं होने से उनका जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। ऐसे हालात में इस समुदाय की महिलाओं को मजबूरन कई जगह देह व्यापार में जाना पड़ रहा है। पहचान पत्र ना होने के कारण सरकार की मुफ्त योजना का लाभ भी इन्हें नहीं मिल पाया है। कई परिवार कर्ज लेकर घर चला रहे हैं। सरकार के अर्थिक पैकेज में भी इस समुदाय को जगह नही मिली।
सरकार द्वारा इन विमुक्त और अतिवंचित समुदायों के उत्थान के लिए विशेष कदम उठाने की आवश्यकता है। पहले तो तालाबंदी में इन समुदायों तक दैनिक जरूरतों की सामग्री तत्काल पहुंचायी जाए। आज तक इन समुदायों के लिए कुल 6 आयोग गठित किए गए। उनकी सिफारिशों पर तत्काल प्रभाव से विचार किया जाए। सरकार अभ्यस्त अपराधी कानून को निरस्त कर इस समुदाय के लोगों को भी एक आम नागरिक की तरह जीवन जीने का अधिकार दे।
इस समुदाय की सभी जनजातियों को एक श्रेणी में जैसे विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू के तहत विशेष आरक्षण राज्य और केंद्र दोनों ही स्तर पर उपलब्ध कराये। ताकि शिक्षा और रोजगार के विशेष अवसर इन्हें मिले। उनकी अलग से जनगणना की जाये। हर वर्ष राज्य और केंद्र स्तर के बजट मे विमुक्त और घुमंतू समुदायों के विकास के लिए विशेष योजनाएं और बजट रखा जाए।