सिखों के गढ़ पंजाब में गरमाया धर्मांतरण का मुद्दा, धर्मांतरण कार्यकर्ताओं का दावा गरीब पिछड़े समाज को लालच देकर किया जा रहा है ये काम
Punjab Conversion: दावा यह भी किया जा रहा है कि जातिवाद और व्यवस्थागत उत्पीड़न से आजिज आये पंजाब के सीमावर्ती इलाके में रहने वाले मजहबी सिख और वाल्मीकि हिंदू समुदायों के कई दलितों ने ईसाई धर्म अपनाया है....
Punjab Conversion : पंजाब में कथित जबरन धर्मांतरण पर सिखों को चेतावनी देते हुए अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने 1 सितंबर को कहा कि समय आ गया है हमारा समुदाय राज्य में धर्मांतरण विरोधी कठोर कानून की मांग उठाने पर विचार करे।
उन्होंने कहा 'पिछले कुछ वर्षों से सिखों को गुमराह किया जा रहा है और ईसाई धर्म में परिवर्तित किया जा रहा है। अगर कोई धर्म पर राजनीति करता है, तो भारत के संविधान के अनुसार मामला दर्ज किया जाता है। कुछ निहंग सिखों को एक मंच पर नृत्य रोकने की कोशिश करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।' ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि जहां भी यह पाखंड किया जा रहा है, प्रशासन को हस्तक्षेप करना चाहिए।
मीडिया में आई जानकारी के मुताबिक कुछ दिन पहले अमृतसर के गांव में ईसाई मिशनरियों का एक कार्यक्रम चल रहा था, जहां कुछ निहंग सिख पहुंचे और कार्यक्रम का विरोध करने लगे। दो समुदायों के बीच हुई झड़प के बाद पुलिस ने 150 निहंगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इस घटना का अकाल तख्त के जत्थेदार नेकड़ा विरोध करते हुए कहा कि निहंग जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए वहां गए थे।
जत्थेदार की यह टिप्पणी कुछ निहंग सिखों के खिलाफ अमृतसर में ईसाई मिशनरियों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कथित रूप से बाधा डालने के आरोप के बाद आई है।
जत्थेदार ने दावा किया कि पंजाब के पिछड़े वर्ग के सिखों और हिंदुओं को 'ईसाई मिशनरियों' द्वारा गुमराह किया जा रहा है जो उन्हें जबरन धर्मांतरित कर रहे हैं। उन्होंने कह कि ऐसी प्रथाएं अपनाई जा रही हैं, जिसकी अनुमति ईसाई धर्म भी नहीं देता है। सरकार पर कथित धर्मांतरण के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का भी आरोप लगाया।
आधिकारिक तौर पर उपलब्ध जनगणना के आंकड़ों के अनुसार पंजाब में सिख लगभग 58 प्रतिशत, हिंदू 38 प्रतिशत, मुस्लिम दो प्रतिशत और ईसाई पंजाब की आबादी का एक प्रतिशत से थोड़ा अधिक है। हालाँकि यह जरूर है कि लगभग तीन करोड़ की आबादी वाले राज्य में चर्च हर हिस्से में नजर आते हैं।
इस साल अप्रैल में भाजपा नेता एमएस सिरसा ने एक पादरी का वीडियो साझा किया था जिसमें उन पर पंजाब में चमत्कारिक उपचार का मंचन करने का आरोप लगाया गया था। पिछले साल अक्टूबर में अमृतसर में सिख अस्थायी प्राधिकरण की सर्वोच्च सीट अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने राज्य के ईसाई मिशनरियों पर विशेष रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में धर्मांतरण का आरोप लगाया था। मिशनरियों ने इस आरोप से इनकार किया।
होशियारपुर में धर्मांतरण विरोधी कार्यकर्ता संजीव तलवार का दावा है कि वे अब तक 2,300 से अधिक लोगों को उनके मूल धर्म में वापस ला चुके हैं।
तलवार ने मीडिया के सामने यह भी दावा है कि 'पंजाब में बहुत बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हो रहे हैं। राज्य में एक भी गांव ऐसा नहीं है जहां एक या दो परिवारों ने धर्म परिवर्तन नहीं किया हो। कोई नहीं कह सकता कि ऐसा नहीं हो रहा है। यह बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है। मैने 2,326 लोगों की घर वापसी करायी है। 1200 परिवारों में से अधिकांश को धोखाधड़ी से ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया था।
कई अन्य राज्यों के विपरीत पंजाब में धर्मांतरण विरोधी कानून नहीं है। 'घर वापसी' अभियान में शामिल कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ईसाई मिशनरियों ने शुरू में समाज के निचले तबकों को निशाना बनाया।
पंजाब में 32 प्रतिशत आबादी दलित है जो किसी भी राज्य में अनुसूचित जाति समुदायों का उच्चतम अनुपात है, लेकिन धर्मांतरण विरोधी कार्यकर्ता संजीव तलवार के अनुसार धर्मांतरण आर्थिक और सामाजिक स्तरों पर हो रहा है। यह एक दिमाग का खेल है, जो लोग मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर होते हैंए उनमें धर्मांतरण की संभावना सबसे अधिक होती है।
बकौल तलवार, 'कहीं लालच भी शामिल है। वे यहां हमारे लोगों का धर्म परिवर्तन करने आए थे। उनका एक छिपा हुआ एजेंडा था। एक दलित समाज है, जो लोग गरीब और मानसिक रूप से कमजोर हैं, वे अपनी मूल आस्था छोड़ देते हैं।'
वहीं पंजाब के अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व ईसाई सदस्य अल्बर्ट दुआ ने राज्य में धर्मांतरण के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उनके अनुसार लोग शांति के लिए चर्च में शामिल होते हैं।
अल्बर्ट दुआ का तर्क है, सामाजिक रूप से यह उस सांत्वना के बारे में है जो कमजोर वर्ग यहां पाते हैं। आजकल लोग काफी शिक्षित हैं। वे सांप्रदायिक नहीं होना चाहते। वे सांप्रदायिकता से दूर रहना चाहते हैं, जिसका यहां ;चर्च में प्रचार नहीं किया जाता है। उनका तर्क है।
अल्बर्ट कहते हैं, अन्य धार्मिक संस्थानों में पुजारी संकट में गरीब लोगों से अनुष्ठान करने के लिए पैसे की मांग करते हैं, जबकि चर्च में उनके लिए बिना किसी शुल्क के केवल प्रार्थना की जाती है। धर्म परिवर्तन जैसी कोई बात नहीं है। यह हृदय परिवर्तन है।'
मीडिया में आ रही रिपोर्टस के मुताििबक पंजाब में सबसे ज्यादा धर्म परिवर्तन के मामले ग्रामीण और सीमावर्ती इलाकों जैसे बटाला, गुरदासपुर, जालंधर, लुधियाना, फतेहगढ़ चुरियन, डेरा बाबा नानक, मजीठा, अजनाला और अमृतसर में सामने आये हैं। धर्म परिवर्तन का विरोध करने वाले दावा करते हैं, पंजाब धर्म परिवर्तन करवाने का सॉफ्ट टारगेट इसलिए है क्योंकि यहां के युवा विदेश जाना चाहते हैं। उन्हें अमेरिका और कनाडा के वीजा का लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है।
धर्म परिवर्तन विरोधी लोगों का दावा है कि इस समय पंजाब के हालात वैसे ही हो रहे हैं जैसे अस्सी-नब्बे के दशक में तमिलनाडु या आंध्र प्रदेश में थे। गुरदासपुर के बारे में तो मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि यहां कई गांवों की छतों पर छोटे छोटे चर्च बना दिये गये हैं।
वहीं दावा यह भी किया जा रहा है कि जातिवाद और व्यवस्थागत उत्पीड़न से आजिज आये पंजाब के सीमावर्ती इलाके में रहने वाले मजहबी सिख और वाल्मीकि हिंदू समुदायों के कई दलितों ने ईसाई धर्म अपनाया है।
यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट के मुताबिक अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में 600-700 चर्चों का निर्माण हुआ है और इनमें से 70 फीसदी पिछले पांच वर्षों में ही बने हैं। पाकिस्तान बॉर्डर से लगभग 2 किलोमीटर पहले दुजोवाल गांव के बारे में कहा जा रहा है कि यहां लगभग 30 फीसदी लोग ईसाई हैं। इस गांव में दो गुरुद्वारे हैं तो दो चर्च भी हैं।