स्मार्ट सिटी में स्त्रियों के लिए 'सेक्स टॉय' लिखने पर देवी प्रसाद मिश्र की कविता पर मचा बवाल
देवी प्रसाद मिश्र हिंदी के एक ऐसे कवि हैं जो खुद कहीं नहीं दिखते, न कार्यक्रम में न आयोजन में, लेकिन उनकी कविताएं समाज की कुंठाओं पर हिलोरें लाती रहती हैं...
जनज्वार ब्यूरो। सोशल मीडिया पर कवि और लेखक देवी प्रसाद मिश्र चर्चा में हैं। हाल ही में लिखी गयी उनकी एक कविता 'स्मार्ट सिटी' चर्चा में है। चर्चा का कारण है उनकी कविता में लिखी गयी एक लाइन पर बवाल मचा हुआ है। 24 लाइन की इस कविता में उन्होंने तमाम उन मुद्दों को उठाया है, मगर उनके पक्ष और विपक्ष दोनों खेमों में बंटे आलोचकों की निगाह सिर्फ आखिरी पैरा की तीसरी लाइन में लिखे शब्द 'सेक्स टॉय' ही पड़ी है। सोशल मीडिया पर चर्चा का बाजार गर्म है कि उन्होंने कविता में स्त्रियों के लिए सेक्स टॉय का शब्द का इस्तेमाल किया है।
सबसे पहले इस कविता को शेयर करते हुए गणेश गनी ने सोशल मीडिया ने लिखा है, 'प्रसिद्ध कवि देवी प्रसाद मिश्र की कविता पढ़कर हैरान हुआ कि यह कैसा बन्दा है यार! कुंठित कहीं का। कविता कोश में कचरा।'
इसके बाद पत्रकार फिरोज खान ने गणेश गनी की टिप्पणी का बहिष्कार करते हुए लिखा है, 'देवी प्रसाद मिश्र की एक कविता है- 'स्मार्ट सिटी'। गणेश गनी ने इसे 'कचरा' कविता कहते हुए शेयर किया है। चलो ठीक है कि निजी पसंद कचरा हो सकती है, लेकिन कवि को इस आधार पर कुंठित कहना कि उसमें 'स्त्रियों के लिए सेक्स टॉय' की बात कही गयी है और एक ऐसे शहर का तसव्वुर किया गया है जहां 'मर्दाना कमजोरी के इलाज की कोई दुकान न हो', किस तरह गलत हो सकता है। रिसर्च कहते हैं कि 80-82 प्रतिशत मामलों में स्त्रियां पेनेट्रेशन से ऑर्गेज्म तक नहीं पहुंचतीं। इस विषय पर बात करने को अगर पढ़ा-लिखा तबका भी कुंठित कहता है और उसकी 'संस्कृति' को ठेस पहुंचती है और भावनाएं आहत होती हैं, तब क्या ही कहा जायेगा। फिर धर्म की आड़ में कितनी ही कुंठाएं जायज हों। इस्लाम सेक्स के मामले में कहता है कि स्त्रियां तुम्हारी खेती हैं, जहां से चाहो प्रवेश करो। ज्यादातर धर्मों में पुरुष की सेक्सुअलिटी को लेकर इसी तरह की बातें हैं। स्त्री की सेक्सुअलिटी पर बात करते ही संस्कृति और तमाम चीजें आ जाती हैं। बहरहाल गणेश गनी की पोस्ट पर लिखा था कि यह महत्वपूर्ण कविता है। इस बात पर 30 सेकंड में ही उन्होंने ब्लॉक कर दिया। मैंने इसके ठीक बाद अपनी एक महिला मित्र को फोन कर वह कविता सुनाई और पूछा कि इसमें आपको कुछ आपत्तिजनक लगता है क्या। उन्होंने कहा कि यह कमाल की कविता है।'
फिरोज खान की इस टिप्पणी पर राहुल देव लिखते हैं, 'कविता विचार और भाव दोनों स्तरों पर बहुत सशक्त है। कविता के पास संवेदनात्मक मानवीय दृष्टि के साथ पाठक जाए तो कविता बहुत कुछ कह जाती है। अगर उसके पास लाठी लेकर जायेंगें तो उसके आईने में समय और समाज के प्रतिबिम्ब की जगह अपनी ही भद्दी सोच नज़र आएगी।'
कवि अदनान कफील दरवेश लिखते हैं, 'इस कविता की अंतिम पँक्तियों तक आते आते देवी प्रसाद मिश्र ने सारे पुरुषार्थ की मट्टी पलीद कर दी है।'
लेखक धनंजय कुमार कहते हैं, 'ह्रदय से निकली सरल सहज मर्मस्पर्शी कविता. अच्छी कविता!'
धीरेंद्र नाथ की टिप्पणी है, '"महत्वपूर्ण कविता है। जेंडर को लेकर भी बड़ी बात कहती है और सम्प्रदायिकता को लेकर भी बात करती है। एक ख्वाब दिखाती है, जिसको नज़र न आये तो क्या कीजे..."
उमाशंकर राव उरेंदु की राय में, 'बहुत अच्छी कविता है जिसमें स्त्री-पुरूष की नैसर्गिक मानसिकता को उच्चतम भावपूर्ण चित्रण है।आजकल एक ग्रुप कवियों का बन गया है जिनका काम है स्थापित कवियों को गाली देकर खुद को चर्चा में रखना।इस ग्रुप मे एकाध समीक्षक भी हैं ।खैर ऐसे स्वनामधन्य की चिन्ता को ज्यादा तुक देने की जरूरत नहीं है।साहित्य के लिए खतरा राजनीति जैसा बढ सकता है।'
रूपम मिश्रा ने लिखा है, 'कविता की आखिरी पंक्तियों में पितृसत्ता को गहरी चोट पहुँची है, वहाँ उनकी सदियों की स्थापित सत्ता को धराशायी कर दिया है।'
कवि लेखक कर्मेंदु शिशिर की टिप्पणी है, 'आखिरी हिस्से का कवितांश हटा देना चाहिए। इसका कोई तुक समझ में नहीं आया। कुछ तो विशिष्ट है अरुण कमल और राजेश जोशी की पीढ़ी में। बाद के ये सब हाथ उचकाते रहे लेकिन उनके करीब पहुँच नहीं पाये। अब चौंकाने और जमाने का समय नहीं रहा। सचमुच का क्रियेशन चाहिए, फैब्रिकेशन नहीं।अगर तर्क से ही कविता महान् होने लगे तो क़ोई बात नहीं।'
वेदप्रकाश सिंह की राय में 'जीवन के लिए जरूरी माहौल का विकल्प इस कविता में व्यक्त किया गया है। कविता में व्यक्त सभी आकांक्षाएँ प्रगतिशील विचारों को लेकर चल रही है। अंतिम हिस्सा विवादास्पद हो सकता है। इसकी गुंजाइश है। लेकिन उस स्तर की मानवीयता और प्रगतिशीलता सभी पुरुषों में हो यह कठिन कमाई है। विरोध का विकल्प हमेशा रहे। प्रेम के स्थानों पर हिंसक राजनीति का कब्जा न हो पाए कभी। अमीरी को अनिवार्य बुराई ही माना जाए। पुरुषों को पशुबल से रहित होना चाहिए। स्त्रियों को भी वह दुर्लभ काम-सुख मिले जो पुरुष कभी भी ले सकते हैं।
कविता कवि के वांछित समाज की बड़ी मोहक रंगीन तस्वीर है। कोई चाहे तो इस कविता की अच्छी पेंटिंग बना सकता है। मुझे गरीबी को हमेशा अच्छा और अमीरी को हमेशा बुरा ठहराने वाली प्रगतिशील वैचारिक रूढ़ि की कमी इस कविता में दिखती है बस।'
आलोक मिश्रा की मानें तो सारा मामला भाजपा प्रेम का है अंततः।
उमाशंकर सिंह परमार ने 'स्मार्ट सिटी' के कवि को बेकार कवि ठहराते हुए लिखा है, 'देवी प्रसाद मिश्र कोई बडे कवि नही हैं नाम और इनाम के कवि हैं। नाम और इनाम के लायक लिखना उनकी अपनी चालाकी भरी प्रतिबद्धता है। क्योंकि इस भावभूमि में वाम और अवा जैसे कारपोरेट दोनों को साधा जा सकता है। देवी प्रसाद वही शुरुआत से ही कर रहे हैं।'
मुकेश नौटियाल ने लिखा है, 'देवी प्रसाद मिश्र को मुद्दत से पढ़ता रहा हूँ। उनका यही स्टाइल है। चर्चा में आने के लिए वह अपनी बेहतरीन कविताओं के बीच कुछ ऐसा जोड़ देते हैं कि गणेश गनी गुस्सीया जाते हैं। मिश्र जी का पर्पज सॉल्व हो गया।'
आइये पढ़ते हैं देवी प्रसाद मिश्र की कविता 'स्मार्ट सिटी', जिस पर मचा है बवाल
एक ऐसा शहर तो चाहिए ही कि जहाँ एक छोटा ही सही अस्पताल हो जिसमें
पिता की तानाशाही का इलाज मुफ्त हो और बहन के
डिप्रेशन का।
एक ऐसा शहर चाहिए कि जिसमें एक सड़क पर कम्युनिस्ट पार्टी का दफ़्तर हो
दूसरा भी खुलने वाला हो उन लोगों का
जो पहलीपार्टी से असहमत थे
और तीसरा भी जो इस मत के हों कि जो
असन्तुष्ट हैं वे बहुत कम असन्तुष्ट हैं।
एक ऐसा शहर तो चाहिए ही कि आँख तरेरने वाली लापरवाह
छात्राओं का विद्यालय मुख्य सड़क पर हो।
कि जिसमें बहुत सारी साइकिलें हों और बहुत सारी साइकिलों को टिकाने के लिए बहुत सारे पेड़
और बहुत सारे पेड़ों के बहुत सारे पत्ते
जो बहुत सारे विरोध के झण्डों की तरह बहुत सारा फड़-फड़ करें और
सड़क पर अगर ह्यून्दाई दिखे तो पान की दुकान पर
चर्चा शुरू हो जाए कि इस तिकड़मी के पास इतने पैसे कहाँ से
आ गए। किसको लूटा इसने।
कि एक धूल भरी सड़क पर जिस पर कम आवाजाही हो
वहाँ कोने में काफी छोटा तिकोना पार्क हो जहाँ प्यार किया जा सके और
जिसे राष्ट्रीय या क्षेत्रीय या जिला या मोहल्ले स्तर तक का भी
भाजपा अध्यक्ष अपनी किसी सभा के लिए बुक न करवा सके।
एक ऐसा शहर तो चाहिए ही कि जहाँ मर्दाना कमज़ोरी के इलाज की एक भी दुकान न हो
कि जिसकी किसी भी सड़क पर खिलौने मिलें ही
स्त्रियों के सेक्स टॉय की कम से कम एक दुकान तो
होनी ही चाहिए स्मार्ट सिटी में।