मध्यप्रदेश में भीगा 2.25 लाख टन गेहूं, देश में हर साल बर्बाद होता है 60 हजार करोड़ का खाद्यान

अनाज को सड़ने छोड़ देने के पीछे एक सोच होती है कि इसके बाद शराब कंपनियां बीयर व अन्य मादक पेय बनाने के लिए सड़े हुए अनाज खासकर गेहूँ को औने-पौने दाम पर खरीद सकें...

Update: 2020-07-26 08:30 GMT

राज कुमार सिन्हा का विश्लेषण

देश भर में इस साल 3 करोड 36 लाख हैक्टेयर में गेहूँ की बुआई हुईं थी। मध्यप्रदेश में इस साल 55 लाख हैक्टेयर से अधिक भूमि पर गेहूं बोया गया था। गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और पंजाब को भी पीछे छोड़ दिया है। 1 करोड़ 29 लाख 34 हजार 588 मिट्रिक टन गेहूं 4529 खरीदी केंद्रों के माध्यम से खरीदी किया गया है। सरकार का दावा है कि 15 लाख 93 हज़ार 793 किसानों के खाते में 24 हजार 899 करोड़ रुपये जमा भी कर दिया गया है। परंतु विगत 5 जुलाई को समाचार आया कि 450 करोड़ का 2.25 लाख टन गेहूं खरीदी केंद्रों और गोदामों के बाहर रखे-रखे भीग गया है।

गेहूं भीगने को लेकर खरीद करने वाली सहकारी समितियां और गोदाम संचालक आमने-सामने आ गए हैं। दोनों संस्थाएं इसकी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर थोप रही हैं। ये पूरी समस्या परिवहन में देरी के चलते उपजी है। सबा दो लाख टन से ज्यादा गेहूं गोदामों में भंडारण के लिए स्वीकार नहीं किया गया है। इसकी मुख्य वजह खराब गुणवत्ता और गेहूं में अनुपात से कई गुना नमी बताई गई है। खरीदा गया गेहूं गोदामों में स्वीकृत नहीं होने से अभी 400 करोड़ से अधिक की राशि किसानों के खाते में ट्रांसफर नहीं की गई है। जबतक गोदामों में गेहूं स्वीकृत नहीं होता तबतक किसानों का भुगतान होना मुश्किल है। अब इसके लिए जिम्मेदार कौन है? एक खबर इंदौर से है कि 85 लाख टन गेहूं उत्पादन की तुलना में भंडारण क्षमता लगभग 22 लाख टन ही है। इस कारण 25 करोड़ से ज्यादा कीमत का गेहूं जून की बरसात में भीगकर खराब हो गया है। इसके बाद भी ओपन कैंप में रखा 6 करोड़ रुपये से ज्यादा का लगभग 65 हजार टन गेहूं और खराब हुआ है। किसानों के लिए तो यह साल जैसे काल बन कर आया है। कोरोना ने उन्हें फसल को खेत से निकाल कर मंडी तक ले जाने में काफी परेशान किया है।

महा लेखा नियंत्रक (सीएजी) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि नियोजन नहीं होने के कारण 2011-12 से 2014-15 के बीच में 5060.63 मिट्रिक टन अनाज सड़ गया। इसमें 4557 मिट्रिक टन गेहूं था। एक समाचार पत्र के अनुसार, 21 मार्च 2017 को केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने संसद में दिये जबाब में बताया है कि मध्यप्रदेश के सरकारी गोदामों में 2013-14 और 2014-15 में करीब 157 लाख टन अनाज सड़ गया है जिसकी अनुमानित कीमत 3 हजार 800 करोड़ रुपए है। इसमें 103 लाख टन चावल और 54 लाख टन गेहूं शामिल है।

जबलपुर जिले में पिछले तीन साल के दौरान जिले में लगभग 15 हजार से ज्यादा धान और गेहूं केप स्टोर (तिरपाल से ढका) में सड़ गया है। इस साल केप स्टोर में धान बड़ी मात्रा में सड़ चुका है। दस साल पहले जबलपुर में 30-35 वेयर हाउस हुआ करते थे। इस बीच केंद्र व राज्य की योजनाओं का लाभ उठाते हुए लोगों और किसानों ने वेयर हाउस की संख्या 230 तक पहुंचा दी है। आज साढे सात लाख मिट्रिक टन खाद्यान्न रखने की क्षमता जिले में हो चुकी है। फिर भी केप स्टोर में रखकर अनाज को सड़ाने का औचित्य क्या है?

बताया जाता है कि मिली भगत के चलते अनाज को जान बुझकर सड़ने दिया जाता है ताकि शराब कंपनियां बीयर व अन्य मादक पेय बनाने के लिए सड़े हुए अनाज खासकर गेहूँ को औने-पौने दाम पर खरीद सकें। जबकि भंडारण के लिए वेयर हाउस को सरकार करोड़ों रुपये भुगतान करती है। निजी वेयर हाउस को बनाने के लिए सरकारी अनुदान भी मिलता है। परंतु इसका अधिकतर व्यापारी इस्तेमाल करते हैं जबकि किसानों को जरूरत होने पर वेयरहाउस वाले जगह खाली नहीं होने का हवाला देते हैं।

भारत में जनसंख्या के लिए प्रयाप्त खाद्यान्न उत्पादन होता है। इसके बावजूद लाखों लोगों को दो वक्त का भोजन नहीं मिल पाता है। भूख से मौत के समाचार भी सुनने को मिलता है। इसके विपरीत भारत में लगभग 60 हजार करोड़ रुपये का खाद्यान्न प्रतिवर्ष बर्बाद हो जाता है जो कुल खाद्यान्न उत्पादन का सात प्रतिशत है। इसका मुख्य कारण देश में अनाज, फल व सब्जियों के भंडारण की सुविधाओं का घोर अभाव है। जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ की भूख सबंधि सलाना रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में सबसे ज्यादा भुखमरी के शिकार भारतीय हैं।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन, एएफओ ने अपनी रिपोर्ट द स्टेट आफ फूड इनसिक्यूरीटी इन द वर्ल्ड 2015 में यह बात कही है। यह विचारणीय और चिंतनीय है कि खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होकर भी हमारे देश में भूख से जूझ रहे लोगों की संख्या चीन से भी ज्यादा है। वजह हर स्तर पर होने वाली अन्न की बर्बादी है। इसका बड़ा खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा। अगले 35 वर्षों में जब हमारी आबादी 200 करोड़ तक बढने वाली है। तब हम सबको अन्न कैसे उपलब्ध करा पाएंगे। कृषि मंत्रालय का कहना है कि पिछले दशक में जनसंख्या वृद्धि की तुलना में देश में अन्न की मांग कम बढी है। यह मांग उत्पादन से कम है। यानी भारत अब अन्न की कमी से उठ कर सरप्लस देश बन गया है। देश इस समय विश्व के कुल खाद्यान्न का करीब पंद्रह फीसद खपत करता है। लेकिन आज भी हमारे देश में अनाज का प्रति व्यक्ति वितरण बहुत कम है। यह विडंबना नहीं, उसकी पराकाष्ठा है कि सरकार किसानों से खरीदे गए अनाज को खुले में छोड़कर अपना कर्तव्य पूरा समझ लेती है।

(राज कुमार सिन्हा बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ से जुड़े हैं।)

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