एग्जाम वारियर के बाद मोदी जी अब लिखेंगे बेरोज़गार वारियर और महंगाई वारियर

मोदी जी कोरोना इस सुनामी से तो जैसे तैसे लड़ लिए, पर इससे देश में जो आर्थिक सुनामी आयी है उससे निपटना एक बहुत बड़ी चुनौती है। इससे पार हम तभी पा सकते हैं जब निःस्वार्थ सभी गैरज़रूरी मुद्दे छोड़ कर ज़रूरी मुद्दों जैसे अर्थव्यवस्था, शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं विकास पर ध्यान दिया जाये...

Update: 2021-06-11 14:40 GMT

अंजुलिका जोशी की टिप्पणी

जनज्वार। यार कुछ मज़ा नहीं आ रहा है आजकल समाचारों में। मीडिया की अंधभक्ति भी चल ही रही है, नौटंकी भी हो रही है। पर कुछ तो कमी है। कोई शोर नहीं, कोई धमाका नहीं, कोई योजनाओं का ऐलान नहीं, जो कुछ थोड़ी बहुत चुहलबाजी हो भी रही है तो वो भी कोर्ट में। न तो कोई सुन रहा है न ही कोई कुछ कर ही रहा है। सरकार को तो घंटा फर्क पड़ रहा है। वहां तो वैसे भी "अंधी पीसे कुत्ता खाए" चलता है।

मतलब कोई सनसनी नहीं। जिंदगी नीरस हो गयी है। क्या बात हो गयी है समझ में नहीं आ रहा है? ओ हो अब समझ में आया, अमित शाह के साथ साथ अर्णव गोस्वामी भी नज़र नहीं आ रहे। चिट्ठी न कोई सन्देश, जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए... अप्रैल से वो जो गायब हुए हैं आज तक कुछ पता ही नहीं चल पा रहा है, अरे भई इंडिया वांट्स टू नो कि अर्नब कहाँ हैं??

अर्नब जी आपके बिना देश का वो हाल हो गया है कि संभाले नहीं संभल रहा है। कुछ पता ही नहीं चल पा रहा है कि गलती किसकी है? आपके बिना भारत की जीडीपी गिरती ही जा रही है। आप होते तो कुछ पता चलता किसने घपलेबाजी करी है। हाँ हाँ पता है ये मोदी जी की नहीं पुरानी सरकारों की कारस्तानी है। लेकिन कोई बात नहीं आपके जैसे काफी हैं मोदी की गोदी में खेलने वाले। देखिये न "टाइम्स नाऊ" की नविका जी बचाव में आ गयी हैं। कह रही हैं कि मोदी जी को कुछ मत कहो और राहुल शिवशंकर जी तो हमीं से पूछ रहा है कि हमें आशावादी होना चाहिए या निराशावादी?

और इतना ही नहीं इसमें भी आशा की नयी किरण ढूंढने को कह रहे हैं क्योंकि ये अब और तो गिरेगी नहीं, बल्कि बढ़ेगी ही, तो हुआ न विकास। अब यहाँ तो वाह मोदी वाह कहना बनता ही है। गौर करिये कि 2016—17 में जो जीडीपी जो 8.3 प्रतिशत थी वो आज गिरकर कुछ -7.3 हो गयी है अब प्रतिशत तो तकरीबन वही है बस एक चिह्न का ही तो फर्क है? उस से क्या होता है शायद गलती से लग गया होगा। या अगर सही भी हो तो छाती कूटनेवालों ध्यान रहे आज कुर्सी पर एम शेर बैठा है और शेर हमला करने से पहले दो कदम पीछे खीचता है। कुछ दिन रुकिये फिर देखिये जीडीपी की छलांग।

वैसे भी विमुद्रीकरण और GST तो देश की अर्थव्यवथा को सुधारने के लिए ही तो लगाई गयी थी ये तो कोरोना ने सब चौपट कर दिया। चाहे वो गिरती हुई अर्थव्यवस्था हो या देश पर चढ़ा हुआ अरबों का क़र्ज़, बेरोज़गारी हो या भुखमरी, महंगाई हो या दवा और ऑक्सीज़न की कमी। अगर विश्वास न हो तो गोदी मीडिया से पूछ लीजिये सब विस्तार से बताएँगे।

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हर समय निराशावादी सोच अरे ये भी तो देखिये कि एक साल के अंदर भारत के दो उद्योगपति एशिया के सबसे ज़्यादा अमीर व्यक्ति हो गए हैं, कैसे दूसरे देशों की मदद के लिए भारत आगे आया और वैक्सीन बाहर भेजी गयी, कैसे कोरोना की दूसरी लहर का मोदी जी ने अकेले दम पर डटकर मुकाबला किया और बड़ी ख़ूबसूरती से संभाला। बड़े बड़े विज्ञापन छपेंगे और क्यों न छपें? लोगों को कैसे पता चलेगा?

अब ये सारे काम मिस्टर इंडिया बनकर किये जाते हैं तो साधारण लोगों को कैसे दिखेगा? ये सिर्फ बीजेपी और गोदी मीडिया को ही दिखता है। अरे, हाँ अंधभक्तों को भी, क्योंकि उनकी आँख में मोदी चश्मा जो है। आम जनता को तो आँख में हाथ डालकर दिखाना ही पड़ेगा और वो मुमकिन है विज्ञापन स्वरूपी लड्डुओं से। अब जहाँ तक पेट्रोल, तेल, अनाज और थोक मूल्य सूचकांक के विकास की दर जो पिछले 74 सालों में सबसे अधिक है, की बात है, वो तो सभी को पता ही है इसीलिए वह इश्तिहारों से नदारद है बल्कि वाणिज्य मंत्री तो कह ही रहे हैं कि देश की गणित पर ध्यान मत दो। मतलब हलके रहो पेट से भी जेब से भी। तभी तो पाचन क्रिया सही रहेगी।

ये बात अलग है कि रविश कुमार, पुण्य प्रसून बाजपेयी, अजित अंजुम, अभिसार शर्मा जैसे कम जानकारी मीडियाकर्मियों ने अलग हो हल्ला मचा रखा है। वो तो वैसे भी कुछ ज़्यादा ही विकसित मोदीस्तान नहीं नहीं हिन्दुस्तान के पीछे पड़े रहते हैं।

अब प्रिंट मीडिया और दूरदर्शन तो सही चल रहा है लेकिन फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर जैसे डिजिटल मीडिया का क्या करें? सरकार ने भी कच्ची गोलियाँ थोड़े ही खेली है, कर दिया सीधा नए आईटी नियम बना कर। लेकिन तुम डाल-डाल हम पात-पात की तर्ज़ पर व्हाट्सअप ने मुक़दमा ही ठोंक दिया और ट्विटर का तो क्या कहें?

कहा गया था कि कार्टूनिस्ट मंजुल के खिलाफ कार्यवाही करो तो वो तो किया नहीं उसने उल्टे उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और मोहन भगवत जैसे दिग्गजों के अकाउंट को ही ब्लू टिक हटा दिया ऊपर से तुर्रा ये कि वो अपना ट्विटर अकाउंट प्रयोग नहीं कर रहे थे। अरे अब कोरोना था, कैसे इस्तेमाल करते? कहा गया था न कि घर पर रहिये तो वही तो कर रहे थे। और दूसरी तरफ मंजुल जी कुछ भी कह देंगे? कुछ भी बनाते रहेंगे? अरे मोदी जी बड़े हैं, देश के प्रधानमंत्री है बचपन से ही हमें शिक्षा दी जाती है कि छोटे लोगों को हमेशा चुप ही रहना चाहिए बड़े चाहे कुछ भी करें।

दूसरी ओर ये विपक्ष जब देखो तब मोदी जी पर चढ़ जाता है कि वो अकेले अकेले मन की बात करते हैं जनता से बात नहीं करते हैं। ऐसा मै तो नहीं मानती। हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या। देखिये न अभी कुछ दिन पहले ही उन्होंने छात्रों की ज़ूम मीटिंग में अचानक पहुँच कर बात की न उन्होंने, इतना बड़ा कार्य किया कि बाकी सारे काम उसके आगे फीके। और तो और परीक्षाओं को ख़त्म करके तो उन्होंने सब का मन ही जीत लिया। हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा। बच्चे भी खुश और प्रशासन भी। वैसे भी परीक्षाओं में क्या होता है? सवाल ही तो पूछा जाता है न। अब जब मोदी जी को ही सवाल पूछना नहीं पसंद है तो वो दूसरों को क्यों दुविधा में डालें। लेकिन ये नहीं समझ आ रहा कि इसमें मोदी जी को क्यों बधाई दी जा रही है? क्या शिक्षा मंत्री छुट्टी पर है?

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अब विपक्ष मोदी जी की नीतियों के साथ साथ शिक्षा पर भी सवाल उठा रहा है कि उनकी Entire Political Science की डिग्री फ़र्ज़ी है वो कंप्यूटर से निकाली हुई है जबकि 1983 में तो डिग्री हाथ से लिखी जाती थी। कमाल की बात करते हैं ये देशद्रोही। वो तो कितने ही ऐसे काम हैं जो मोदी जी पहले ही कर लेते हैं और दुनिया को बाद में पता चलता है। डिजिटल कैमरा, ईमेल और भी न जाने क्या क्या। बिना कंप्यूटर चलाये कोई ईमेल लिख सकता है क्या।

ऐसे ही थोड़े न हमारे सीधे सच्चे प्रधानमंत्री जी ने छात्रों के लिए किताब लिख डाली है- एग्जाम वारियर। अरे चाँद पर गए नहीं तो क्या हुआ देखा तो है। उन्हें सब पता है कैसे पढ़ें, कौन से प्रश्न पहले करें। अभी क्या है ज़रा रुकिए वो और भी किताबें लिखेंगे बेरोज़गार वारियर, महंगाई वारियर, डिग्री वारियर। घर बैठे, बिना पढ़े, बिना काम करे भक्ति कैसे करें? मोदी वारियर पढ़िए और काम पर चलिए।

भारत तो भारत अब तो विदेशी एजेंसियां भी मोदी जी की सत्ता के पीछे पड़ गयी हैं। CNN न्यूज़ 18 के उद्घोषक आनंद नरसिम्हन के बार बार बताने पर भी की ये सब विपक्ष की चाल है, स्वीडन के एक शोध संस्थान ने अपने शोध के बाद यह प्रकाशित कर दिया कि भारत अब एक लोकतांत्रिक देश न होकर तानाशाह देश होता जा रहा है। यहाँ तक भी ठीक था आगे उसने हमारे देश की तुलना पाकिस्तान से कर दी (ऐसी हिम्मत) और तो और उसके अनुसार बांग्ला देश भी हमसे ज़्यादा लोकतांत्रिक है।

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अब इस बांग्लादेश ने तो नाक में दम कर रखा है। हम तो हम बांग्लादेश के घुसपैठियों को ही बाहर निकालने में व्यस्त हो गए और वहां उसने अपनी कट्टरपंथी सोच कम करके, निर्यात बढ़ा कर, सामाजिक प्रगति के रास्ते खोल कर और राजस्व पर ध्यान देकर अपनी जीडीपी हमसे ज़्यादा कर ली। अब ये तो गलत बात है ज़्यादा होशियारी दिखाने की ज़रूरत नहीं है, हम विश्वगुरु हैं और रहेंगे।

अब मोदी जी कोरोना इस सुनामी से तो जैसे तैसे लड़ लिए, पर इससे देश में जो आर्थिक सुनामी आयी है उससे निपटना एक बहुत बड़ी चुनौती है। इससे पार हम तभी पा सकते हैं जब निःस्वार्थ सभी गैरज़रूरी मुद्दे छोड़ कर ज़रूरी मुद्दों जैसे अर्थव्यवस्था, शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं विकास पर ध्यान दिया जाये। किसी एक वर्ग विशेष का नहीं सभी वर्गों के हित में सोचा जाये, अन्यथा हम विश्वगुरु तो नहीं भिक्षा गुरु अवश्य बन जायेंगे।

(डॉ. अंजुलिका जोशी मूलत: बायोकैमिस्ट हैं और उन्होंने NCERT के 11वीं-12वीं के बायोटैक्नोलॉजी विषय पाठ्यक्रम को सुनिश्चित करने में अपना योगदान दिया है।)

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