Agricultural Laborers : दुनियाभर में कृषि मजदूरों का किया जा रहा शोषण, खेती पर पूंजीपतियों का बढ़ रहा वर्चस्व

Agricultural Laborers : दुनियाभर में कृषि का विस्तार हो रहा है पर खेती पर पूंजीपतियों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। पूंजीवाद हमेशा से श्रमिकों का शोषण कर ही पनपता रहा है और यही दुनियाभर में कृषि में हो रहा है....

Update: 2021-12-28 09:47 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

Agricultural Laborers : अमेरिका के फ़ेडरल कोर्ट (Federal Court of USA) में 24 ऐसे लेबर कांट्रेक्टर पर मुकदमा चल रहा है, जो वैध या फिर अवैध तरीके से कृषि मजदूरों का कारोबार करते हैं और इनका भयानक शोषण कर अपनी आमदनी बढाते हैं। अनेक कांट्रेक्टर अवैध तरीके से मेक्सिको, हैती, होंडुरस या ग्वाटेमाला जैसे दक्षिण अमेरिकी देशों के बेरोजगार युवकों को अपने जाल में फंसाते हैं और अवैध तरीके से अमेरिका तक पहुंचाते हैं और फिर खेतों में बहुत कम वेतन पर या फिर बिना वेतन के काम करवाते हैं, उन्हें आने-जाने और रहने की कोई सुविधा नहीं मिलती, और ये श्रमि पकड़े जाने के डर से चुप रहते हैं।

अधिकतर श्रमिक जितना पैसा कांट्रेक्टर को अमेरिका (USA) पहुंचाने के लिए देते हैं, उतना भी कमा नहीं पाते। इनसे 12 घंटे से अधिक लगातार काम करवाया जाता है, कोई छुट्टी नहीं मिलती और काम के 12 घंटों के दौरान महज 15 मिनट का समय भोजन के लिए दिया जाता है। मेक्सिको से अवैध तरीके से पहुंचे मजदूरों के अनुसार उन्होंने कांट्रेक्टर को फीस के तौर पर 950 डॉलर दिए थे, पर केवल 225 से 250 डॉलर तक ही कमा पाए।

फ़ेडरल कोर्ट के न्यायाधीश ने पूरे मामले को ही आधुनिक युग की गुलामी (Modern Day Slavery) करार दिया है। इन कांट्रेक्टर पर साजिश का आरोप (Conspiracy Charges) लगाया गया है। अमेरिका के कृषि उद्योग में ऐसी शिकायतें पिछले अनेक वर्षों से आ रही थीं। इसकी तहकीकात के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था जिसने इस मामले की तह तक जाने के लिए, ऑपरेशन ब्लूमिन्ग ओनियंस (Operation Blooming Onions), चलाया।

इसका नाम इसलिए ओनियंस यानि प्याज के नाम पर रखा गया क्योंकि पहली शिकायतों में से एक प्रमुख शिकायत खेतों से प्याज निकालने से सम्बंधित थी। इस शिकायत में बताया गया था कि कृषि श्रमिकों को प्याज को जमीन से निकालने के लिए प्रति घंटा 12 डॉलर का प्रलोभन दिया जाता है, पर अंत में महज 20 सेंट प्रति बाल्टी भुगतान किया जाता है।

इस रिपोर्ट के अनुसार 24 श्रमिक कांट्रेक्टर ने श्रमिकों के पैसे काटकर लगभग 20 करोड़ डॉलर एकत्रित कर लिया है। समस्या यह है कि अमेरिका में आप्रवासी श्रमिकों (Migrant workers) के हितों का संरक्षण करने के लिए कोई क़ानून नहीं है। श्रमिकों से सम्बंधित कानूनों, नेशनल लेबर रिलेशंस एक्ट (National Labor Relations Act) और फेयर लेबर स्टैंडर्ड्स एक्ट (Fair Labor Standards Act) में इनके हितों के लिए कोई प्रावधान नहीं है।

इन श्रमिकों के शोषण के तरीकं में महिला श्रमिकों का यौन शोषण, कम वेतन और सुरक्षा का अभाव है। पिछले कुछ वर्षों से अत्यधिक गर्मी भी श्रमिकों क प्रभावित कर रही है। इस वर्ष भी अनेक श्रमिकों की मृत्यु अत्यधिक गर्मी में खेतों में काम करने के कारण हो गयी थी।

वैध तरीके से कृषि श्रमिक एच2-ए वीसा (H2-A) लेकर आते हैं, जिसके अंतर्गत इन्हें नौकरी देने वालों को इनके आने-जाने, भोजन, रहने, स्वास्थ्य इत्यादि का मुफ्त में प्रबंध करना होता है। पर, वास्तविकता यह है कि इन श्रमिकों को ही सारा खर्चा करना पड़ता है, और वेतन भी ऐग्रीमेंट से कम मिलता है। इन श्रमिकों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए इनके पहचान से सम्बंधित सभी दस्तावेज नियोक्ता अपने अधिकार में रखते हैं।

अन्तराष्ट्रीय श्रमिक संगठन (International Labour Organisation) की एक रिपोर्ट के अनुसार पुरी दुनिया में कृषि श्रमिक समाज का सबसे बदहाल तबका है, इसके बाद भी बेरोजगारी के कारण इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। इनकी बढ़ती संख्या के साथ ही इनका शोषण भी बढ़ रहा है। हमारे देश में भी कृषि श्रमिक हमेशा से बदहाल रहे हैं। 4 फरवरी 2020 को लोकसभा में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक लिखित जवाब में बताया था कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 26.31 करोड़ किसान और कृषि श्रमिक थे – 11.88 करोड़ किसान, और 14.43 करोड़ कृषि श्रमिक।

वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार यह संख्या क्रमशः 12.73 करोड़ और 10.68 करोड़ थी। इसका सीधा सा मतलब है कि वर्ष 2001 से 2011 के बीच भूमिहार किसानों की संख्या कम होने के बाद भी कृषि श्रमिकों की संख्या बड़ी है। वर्ष 2001 में देश के कुल कामगारों में से 58.2 प्रतिशत कृषि से जुड़े थे, जबकि वर्ष 2011 में इनकी संख्या 54.6 प्रतिशत ही रह गयी।

कृषि श्रमिकों की स्थिति का अंदाजा उनके आत्महत्या की दर से लगाया जा सकता है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2020 में कृषि श्रमिकों के आत्महत्या की दर पिछले वर्ष की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक रही, जबकि भूमिहार किसानों की आत्महत्या में कमी आंकी गयी।

दुनियाभर में कृषि का विस्तार हो रहा है पर खेती पर पूंजीपतियों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। पूंजीवाद हमेशा से श्रमिकों का शोषण कर ही पनपता रहा है – और यही दुनियाभर में कृषि में हो रहा है।

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