दुनियाभर के सभी बड़े मीडिया हाउस चलते हैं पूंजीपतियों के इशारे पर, 81 प्रतिशत पत्रकारों की हत्या की नहीं होती कोई तहकीकात
हमारे देश की मेनस्ट्रीम मीडिया भले ही मोदी जी की भक्ति में डूबी हो, उनकी आरती उतार रही हो – पर इतना तो स्पष्ट है कि दुनिया सबकुछ देख रही है और समझ भी रही है, देश को इस स्थिति तक लाने के लिए...
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
As per the latest report of Committee to Protect Journalists, in 2022 67 journalists were killed and 363 were imprisoned globally. वर्ष 2022 पत्रकारों के लिए बहुत खतरनाक और जानलेवा रहा और अब राजनीति, अपराध, भ्रष्टाचार और पर्यावरण विनाश से सम्बंधित पत्रकारिता दो देशों के बीच छिड़े युद्ध के मैदान से की जाने वाली रिपोर्टिंग से भी अधिक खतरनाक हो गया है। यह निष्कर्ष 24 जनवरी को प्रकाशित कमिटी तो प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की रिपोर्ट में प्रस्तुत किया गया है। इस रिपोर्ट को पिछले वर्ष 1 जनवरी से 1 दिसम्बर तक दुनिया भर में अपने काम के दौरान मारे गए या जेल भेजे गए पत्रकारों के आधार पर तैयार किया गया है।
इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष, यानि 2022 में, दुनिया के 24 देशों में 62 पत्रकार मारे गए, जिसमें 41 पत्रकारों के बारे में स्पष्ट है कि वे रिपोर्टिंग के दौरान मारे गए जबकि शेष की ह्त्या का वास्तविक कारण पता नहीं है। यूक्रेन में युद्ध की रिपोर्टिंग करते अबतक 15 पत्रकार मारे जा चुके हैं, पर लगभग इतने ही, 13 पत्रकार, मेक्सिको में राजनीति, अपराध, भ्रष्टाचार और पर्यावरण विनाश से सम्बंधित पत्रकारिता करते हुए मारे गए।
यही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण अमेरिका में ऐसे ही विषयों की रिपोर्टिंग करते पिछले वर्ष 30 पत्रकार मारे जा चुके हैं। हैती में राजनैतिक उथल-पुथल के बीच 7 पत्रकार मारे गए। इसके बाद क्रम से फिलीपींस में 4, बांग्लादेश में 2, ब्राज़ील में 2, चाड में 2, कोलंबिया में 2, होंडुरस में 2 और भारत में 2 पत्रकारों की ह्त्या की गयी। इस सन्दर्भ में देखें तो पिछले वर्ष मारे गए पत्रकारों की सूचि में हमारा देश पांचवें स्थान पर अन्य 6 देशों के साथ आसीन है।
पिछले वर्ष मारे गए पत्रकारों की संख्या वर्ष 2018 के बाद से सबसे अधिक रही है, वर्ष 2021 में कुल 45 पत्रकार मारे गए थे। पिछले दो दशकों के दौरान सबसे अधिक पत्रकार मध्य-पूर्व एशिया में मारे गए हैं, पर हाल के वर्षों में दक्षिण अमेरिका ने यह स्थान हथिया लिया है। पिछले वर्ष दक्षिण अमेरिका में 30 पत्रकार, पूर्वी यूरोप में 15, दक्षिण-पूर्व एशिया में 6, अफ्रीका में 6, दक्षिण एशिया में 6, पश्चिम एशिया में 4, मध्य एशिया में 1 और उत्तरी अमेरिका में 1 पत्रकार की ह्त्या की गयी।
कमेटी तो प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के अनुसार वर्ष 2022 में 1 दिसम्बर तक के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर के 35 देशों में 363 पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग के कारण जेल में डाला गया। यह संख्या वर्ष 2021 की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक है। इस सूचि में सबसे आगे ईरान है, जहां मेहसा अमिनी की पुलिस द्वारा ह्त्या के बाद उपजे आन्दोलन की रिपोर्टिंग करते 62 पत्रकारों को जेल में बंद किया गया है। दूसरे स्थान पर चीन है, जहां 43 पत्रकारों को जेल में बंद किया गया है। इनमें से अधिकतर पत्रकार कोविड 19 की रिपोर्टिंग या फिर मानवाधिकार विषयों पर रिपोर्टिंग के लिए जेल भेजे गए हैं।
इसके बाद म्यांमार में 42, तुर्की में 40, बेलारूस में 26, ईजिप्ट में 21, वियतनाम में 21, रूस में 19, इरीट्रिया में 16, सऊदी अरब में 11 और भारत में 7 पत्रकारों को कैद किया गया है। इस तरह इस सूचि में हमारा देश 11वें स्थान पर है। इस वर्ष गणतंत्र दिवस के विदेशी अतिथि ईजिप्ट के राष्ट्रपति है, जिनके देश में 21 पत्रकारों को जेल में बंद रखा गया है।
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स वर्ष 2008 से लगातार हरेक वर्ष ग्लोबल इम्पुनिटी इंडेक्स प्रकाशित करती है। इसमें पत्रकारों की हत्या या फिर हिंसा से जुड़े मामलों पर कार्यवाही के अनुसार देशों को क्रमवार रखती है। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में मारे गए 81 प्रतिशत पत्रकारों की पूरी तहकीकात कभी नहीं की जाती, जाहिर है किसी को सजा भी नहीं होती। इस इंडेक्स में जो देश ऊपर के स्थान पर रहता है, वह अपने यहाँ पत्रकारों की ह्त्या के बाद हत्यारों पर कोई कार्यवाही नहीं करता।
ग्लोबल इम्पुनिटी इंडेक्स 2022 में भारत का स्थान 11वां था, 2021 में 12वां, 2020 में 12वां, जबकि 2019 में 13वां और 2018 में 14वां। इसका सीधा सा मतलब है कि हमारे देश में पत्रकारों की हत्या या उनपर हिंसा के बाद हत्यारों पर सरकार या पुलिस की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की जाती। इन आंकड़ों से यह समझना आसान है कि देश में सरकार और पुलिस की मिलीभगत से पत्रकारों की ह्त्या की जाती है। दुनिया के केवल 7 देश ऐसे हैं जो वर्ष 2008 से लगातार इस इंडेक्स में शामिल किये जा रहे हैं और हमारा देश इसमें एक है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया में निरंकुश सत्ता हावी होती जा रही है, और इसी के साथ ही पत्रकारों पर खतरे भी साल-दर-साल बढ़ते जा रहे हैं। पिछली शताब्दी के अंत से दुनियाभर में हत्यारी पूंजीवादी व्यवस्था का उदय होना शुरू हुआ, इस पूंजीवाद ने सबकुछ हड़प लिया, लोकतंत्र और तानाशाही में अंतर मिटा दिया, सभी संसाधनों पर वर्चस्व कायम कर लिया, सरकारों का आना और जाना तय करने लगे और मीडिया हाउस तो बहुत खड़े कर दिए पर स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को विलुप्तीकरण के कगार पर पहुंचा दिया।
अब हालत यहाँ तक पहुँच गई है कि दुनिया के सभी बड़े मीडिया हाउस केवल पूंजीपतियों के इशारे पर चल रहे हैं। जाहिर है, स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया हाउस इतिहास के पन्नों में सिमटते जा रहे हैं। इतने के बाद भी बचे खुचे स्वतंत्र पत्रकार दुनियाभर में मारे जा रहे हैं या फिर जेलों में ठूंसे जा रहे हैं। हमारे देश में सत्ता के हिंसक समर्थक निष्पक्ष पत्रकारों पर हिंसक हमलों के लिए आजाद हैं। हमारे देश की मेनस्ट्रीम मीडिया भले ही मोदी जी की भक्ति में डूबी हो, उनकी आरती उतार रही हो – पर इतना तो स्पष्ट है कि दुनिया सबकुछ देख रही है और समझ भी रही है। देश को इस स्थिति तक लाने के लिए – धन्यवाद मोदी जी।