बढ़ते जा रहे हैं ओडिशा में पत्रकारों पर हमले | Attacks on Journalists in Odisha

Attacks on Journalists in Odisha | ओडिशा में इन दिनों पंचायत चुनाव (Panchayat elections) कराये जा रहे हैं, और इन चुनावों की रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों पर हमलों की लगातार खबरें आ रही हैं|

Update: 2022-02-24 03:35 GMT

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

Attacks on Journalists in Odisha | ओडिशा में इन दिनों पंचायत चुनाव (Panchayat elections) कराये जा रहे हैं, और इन चुनावों की रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों पर हमलों की लगातार खबरें आ रही हैं| जानकारों के अनुसार इन चुनावों में सत्ता में बैठी बीजू जनता दल (Biju Janata Dal) के प्रत्याशी बड़े पैमाने पर धांधली और चुनाव के दिशानिर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं – और इन धांधलियों को उजागर करते पत्रकारों को धमका रहे हैं या फिर हिंसक हमले कर रहे हैं| कुछ चर्चित मामलों में पुलिस दिखावे के लिए कुछ जांच या गिरफ्तारी करती हैं, पर अन्य मामलों में अपराधियों को छोड़ देती है| ओडिशा के वरिष्ठ पत्रकारों और राजनैतिक जानकारों के अनुसार पत्रकारों और विरोधियों पर हमले बीजू जनता दल के चुनावी रणनीति का शुरू से ही अभिन्न अंग रही है| वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के समय भी ओडिशा में बीजेडी के विरोध में लिखने वाले अनेक पत्रकारों को कोविड 19 की आड़ में पुलिस और प्रशासन द्वारा प्रताड़ित किया गया था|

पंचायत चुनावों के तीसरे चरण के दौरान जाजपुर जिले के बचोल (Bachol in Jajpur) में स्थानीय टीवी समाचार चैनल के तीन पत्रकारों – देबाशीष साहू, गुलशन अली और बिजय साहू (Debashish Sahoo, Gulshan Ali & Bijay Sahoo) – पर हमले किये गए| इनकी गाडी को नुक्सान पहुंचाया गया, इन्हें बंधक बनाया गया, इनसे मारपीट की गयी| बाद में पुलिस ने इन्हें घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती करवाया| इस हमले के बाद पुलिस ने 11 महिलाओं समेत कुल 25 लोगों को पूछताछ के लिए रोका और बाद में 6 महिलाओं समेत कुल 11 व्यक्तियों को हवालात में बंद कर दिया| इस क्षेत्र में मतदान में धांधली की खबर मिलाने पर ये सभी पत्रकार वहां रिपोर्टिंग करने गए थे|

तीसरे चरण के चुनावों के दौरान ही बालासोर जिले के संतरागड़िया गाँव (Santragadiya in Balasore) में रिपोर्टिंग करने गए पत्रकार लेलिन कुमार डे (Lelin Kumar Dey) को बीजेडी के पदाधिकारी अजय महलिक (Ajay Mahalik) ने भीड़ के साथ मिलकर पीटा और जान से मारने की धमकी दी| दरअसल बीजेडी उम्मीदवार चुनाव के एक दिन पहले रात को लगभग 7 बजे, गाँव में चुनावी सभा कर रहे थे, जो आचार संहिता का सरासर उल्लंघन है| इस सभा की तस्वीरें लेलिन डे उतार रहे थे| घायल लेलिन डे ने जब पुलिस में शिकायत दर्ज कराई तब पुलिस गाँव में अजय महलिक को पकड़कर पूछताछ के लिए थाने लाने गाँव गयी| उस समय गाँव में बीजेडी की प्रेस कांफ्रेंस यह बताने के लिए चल रही थी कि किसी पत्रकार से कोई बदसलूकी नहीं की गयी है और सारे आरोप बेबुनियाद हैं, और अजय महलिक ही प्रेस को संबोधित कर रहे थे| पुलिस ने उन्हें प्रेस कांफ्रेंस के बीच से गिरफ्तार किया और अपनी गाडी में बैठाया| इसके बाद गाँव के 50 से अधिक लोगों ने पुलिस की गाडी को घेर लिया और अजय महलिक को गाडी से उतारकर अपने साथ ले गए| पुलिस को खाली हाथ वापस आना पड़ा| अजय महलिक आज भी आजाद घूम रहे हैं और घायल पत्रकार लेलिन डे अपना इलाज करा रहे हैं|

पंचायत चुनावों के दौरान पूरे ओडिशा में ही पत्रकारों पर हमले एक सामान्य घटना हो चली है| ऐसा पुरीं के कनास में, ढनकनाल में, नयागढ़ में, जाजपुर में, केंद्रापारा में और भद्रक में (Puri, Dhankanal,Nayagarh, Jajpur, Kendrapada & Bhadrak) हो चुका है| अनेक ऐसे मामलों की जानकारी बाहर नहीं आई है| भद्रक से एक ऐसी विडियो सामने आई है जिसमें बीजेडी की जिला परिषद् सदस्य रितांजलि पात्रा पत्रकारों को धमका रही हैं|

जाजपुर जिले के बचोल की घटना की व्यापक निंदा की गयी है| ओडिशा के वरिष्ठ पत्रकारों के एक दल ने ओडिशा राज्य चुनाव आयोग से शिकायत की है और पत्रकारों पर लगातार हो रहे हमलों के बारे में सूचित किया है| केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान (Union Minister Dharmendra Pradhan) ने भी ओडिया भाषा में किये गए अनेक ट्वीट के माध्यम से इस घटना की निंदा की है| उन्होंने लिखा है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है और इसपर हमला लोकतंत्र पर हमला है| लोकतंत्र में विरोध तो किया जा सकता है पर हिंसा मान्य नहीं है|

बीजेडी के स्टेट जनरल सेक्रेटरी प्रणब प्रकाश दास और ओडिशा सरकार के मीडिया सलाहकार मानस मंगराज ने भी इस घटना की आलोचना की है और कहा है कि दोषियों को जल्द ही सजा मिलेगी| बीजेपी के स्टेट जनरल सेक्रेटरी गोलक महापात्रा ने इसे राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित हमला करार दिया है| कांग्रेस प्रवक्ता निशिकांत मिश्रा ने भी पत्रकारों पर हमले की निंदा की है| बीजेपी के सांसद सुभाष सिंह ने भी इन हमलों की निंदा की है| ओडिशा कांग्रेस अध्यक्ष निरंजन पटनायक ने एक प्रतिनिधि मंडल के साथ राज्य चुनाव आयोग के कार्यालय जाकर विरोध प्रकट किया और जाजपुर के पुलिस अधीक्षक के तुरंत स्थानान्तरण की मांग रखी|

हमारे देश में पत्रकारों की ह्त्या या फिर हमले के मामले कभी गंभीरता से नहीं लिए जाते| अधिकतर मामलों में मुकदमे तक दायर नहीं किये जाते, और जिन मामलों में मुकदमे दायर किये जाते हैं, उसमें पुलिस कोई जांच नहीं करती और किसी को सजा नहीं होती| रिपोर्टिंग के दौरान 5 फरवरी को ओडिशा के कालाहांडी जिले (Kalahandi District) में आईईडी विस्फोट (IED Blast) से स्थानीय उड़िया समाचारपत्र के पत्रकार रोहित बिस्वाल (Rohit Biswal) की मृत्यु हो गयी| कालाहांडी में प्रतिबंधित माओवादी (CPI Maoist) के सदस्य लोगों को पंचायत चुनावों से दूर रहने का आह्वान कर रहे थे| इससे सम्बंधित कुछ पोस्टर कालाहांडी जिले के दमबा कर्लाखूंटा (Damba Karlakhunta) क्षेत्र में लगाए गए थे| रोहित बिस्वाल को जब यह खबर मिली तब वे उसकी रिपोर्टिंग करने पोस्टर तक चले गए, और पोस्टर के ठीक नीचे विस्फोटक सामग्री रखी थी, जिसपर पैर पड़ते ही जोरदार धमाका हुआ और बिस्वाल की मृत्यु हो गयी| स्थानीय पुलिस के अनुसार विस्फोटक सामग्री रखने का काम माओवादियों ने किया है, जबकि माओवादी संगठनों के अनुसार यह सब प्रशासन-प्रायोजित (State-sponsored) रहता है|

निष्पक्ष प्रेस या खोजी पत्रकारिता पर खतरे केवल भीड़ से ही नहीं हैं| हमारे देश का सूचना और प्रसारण मंत्रालय हरेक उस आवाज को दबाने के लिए प्रतिबद्ध है जो निष्पक्ष है, या फिर सरकार से प्रश्न करने की हिमाकत करता है| 22 फरवरी को इस मंत्रालय ने पंजाब पॉलिटिक्स टीवी नामक एक विदेशी चैनल के एप्, वेबसाइट और सोशल मीडिया अकाउंट को प्रतिबंधित कर दिया| मंत्रालय के अनुसार इसके सम्बन्ध प्रतिबंधित संगठन सिख्स फॉर जस्टिस से हैं और यह वेबसाइट समाज के लिए खतरा थी| सरकार ने आजतक ऐसे किसी भी फैसले के लिए ब्कोई सबूत पेश नहीं किये हैं, और इसबार भी ऐसा ही किया गया है| प्रतिबंधित करने का यह आदेश विवादास्पद आईटी रूल्स के अंतर्गत इमरजेंसी पावर्स के तहत दिए गए हैं| इमरजेंसी पावर्स के तहत मंत्रालय के सेक्रेटरी को यह अधिकार है कि बिना किसी सबूत और बिना किसी सुनवाई के ही किसी भी चैनल, वेबसाइट, या सोशल मीडिया अकाउंट को प्रतिबंधित किया जा सकता है, और इसके लिए कोई कारण बताने की आवश्यकता भी नहीं है| इससे पहले इमरजेंसी पावर्स के तहत पिछले वर्ष दिसम्बर में 20 यूंट्यूब चैनल और 2 वेबसाइट को प्रतिबंधित किया गया था|  

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