2020 से 2022 के बीच रूस के खुफिया तंत्र ने 9 देशों के 11 चुनावों को किया पूरी तरह प्रभावित, रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
अमेरिकी गृह मंत्रालय साल-दर-साल भारत में धार्मिक और अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव और सरकारी हिंसा पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है, यहाँ के मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के सरकार द्वारा हनन पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है – पर आज तक अमेरिकी प्रशासन ने सार्वजनिक तौर पर इसे जाहिर नहीं किया है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
America blames Russia for deterioration of democratic norms globally, but USA is also doing the same. लगभग 100 देशों को भेजी गयी अमेरिकी खुफिया विभाग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस वैश्विक स्तर पर प्रजातंत्र को खोखला करने में जुटा है और प्रजातांत्रिक देशों में चुनावों को प्रभावित कर रहा है। यह काम रूस खुफिया संस्थानों की मदद से, सरकारी मीडिया द्वारा दुष्प्रचार के माध्यम से और सोशल मीडिया की मदद से कर रहा है।
इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 से 2022 के बीच रूस ने कम से कम 9 देशों के 11 चुनावों को पूरी तरह से और 17 देशों के चुनावों को आंशिक तौर पर प्रभावित किया है। रूस का खुफिया तंत्र प्रमुख देशों के चुनावों में शामिल कार्यकर्ताओं को प्रभावित कर भी यह काम कर रहा है। रूस का सरकारी मीडिया चुनावों के खिलाफ दुष्प्रचार कर चुनावों के खिलाफ देशों में जनमत तैयार कर रहा है। इससे सामाजिक अस्थिरता आ रहे है, और वैश्विक स्तर पर प्रजातंत्र खोखला हो रहा है।
रूस में प्रजातंत्र नहीं है, जाहिर है उसकी रुचि दूसरे देशों के प्रजातंत्र में भी नहीं होगी – पर अमेरिका और भारत जैसे देश तो प्रजातंत्र की खूब बातें करते हैं और इसी प्रजातंत्र को मिटाने पर तुले हैं। हाल में ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने इजराइल पर हमला करने वाले आतंकी संगठन हमास की तुलना रूस के राष्ट्रपति पुतिन से की है, पर अमेरिकी राष्ट्रपति का प्रजातंत्र का भौंडा दिखावा इजराइल की किसी आतंकी संगठन से भी बर्बर और नरसंहार वाले रवैय्ये को प्रबल समर्थन देकर जाहिर कर दिया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर दुनिया को पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका में फिलिस्तीनियों के समर्थन में उठ रही आवाजों को सेंसर किया जा रहा है, समर्थन में उतरे फिलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया जा रहा है, और समर्थन में आयोजित अधिवेशनों को अनुमति नहीं दी जा रही है।
दुनिया की नज़रों में आतंकी संगठन हमास ने 7 अक्टूबर को इजराइल पर हमला किया था, जिसमें 1400 नागरिक मारे गए और लभग 200 लोगों को बंधक बनाया गया। इसके बाद से इजराइल पूरे गाजा क्षेत्र पर लगातार हवाई हमले कर रहा है, जिसमें अबतक लगभग 4000 फिलिस्तीनी मारे गए हैं और 13000 से अधिक जख्मी हैं। गाजा क्षेत्र की पूरी घेराबंदी इजराइल के सैनिकों ने कर दी है, जिससे वहां की सभी आवश्यक सेवायें और रसद का मार्ग रुक गया है। अमेरिका में रह रहे 100 से अधिक यहूदी बुद्धिजीवियों और कलाकारों ने हाल में जो बाईडेन के नाम एक पात्र में स्पष्ट कहा है कि हमास के हमले की निंदा जरूर की जानी चाहिए, मगर इजराइल की बर्बर कार्यवाही की भी वैसी ही मुखर आलोचना की जानी चाहिये। लेकिन जो बाईडेन तो इजराइल को अधिक बर्बर हमले करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, हथियार दे रहे हैं और दूसरी सैन्य सहायता भी। हाल में ही अमेरिका में ब्यूरो ऑफ़ पोलिटिकल मिलिट्री अफेयर्स में पब्लिक अफेयर्स के निदेशक और गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी जोश पॉल ने बाईडेन के इजराइल प्रेम से खफा होकर अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है।
बाईडेन का प्रजातंत्र प्रेम उनके भारत के प्रति रवैय्ये से स्पष्ट होता है। अमेरिकी गृह मंत्रालय साल-दर-साल भारत में धार्मिक और अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव और सरकारी हिंसा पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है, यहाँ के मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के सरकार द्वारा हनन पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है – पर आज तक अमेरिकी प्रशासन ने सार्वजनिक तौर पर इसे जाहिर नहीं किया है। इसके विपरीत, जो बाईडेन ने किसी भी मंच से यह मुद्दा नहीं उठाया है और हरेक मंच से उन्होंने भारत की नहीं बल्कि प्रधानमंत्री की शान में कसीदे गढ़े हैं।
तमाम वैश्विक विरोधों के बाद भी हमारे देश की सरकार रूस-युक्रेन युद्ध में रूस के साथ खड़ी नजर आती है, चीन से भी व्यापारिक मामलों में कोई विरोध नहीं है और म्यांमार में प्रजातंत्र को ध्वस्त कर सैन्य-शासन लागू करने वालों का साथ दे रहे हैं। जाहिर है, प्रजातंत्र के हनन के सन्दर्भ में जो बाईडेन अपने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से भी आगे हैं। अफगानिस्तान के भी प्रजातंत्र को जो बाईडेन ने पूरी तरह से नष्ट कर दिया है।
इजराइल की बर्बरता के बाद भी अमेरिकी, भारतीय और तमाम देशों का समर्थन क्यों है, इसका जवाब भी सीधा सा है। आजकल निरंकुश शासन का समय है और भारत समेत हरेक सत्ता अपने विरोधियों को किसी भी तरीके से साधना चाहती है। इस सन्दर्भ में जनता की जासूसी उपकरणों और एप्स का महत्त्व बढ़ चला है, और तमाम सरकारें ऐसे साधनों का इस्तेमाल कर रही हैं जिनसे जनता के हरेक गतिविधि की जानकारी जुटाई जा सके, भले ही वह स्मार्टफ़ोन और लैपटॉप को हैक करने वाला एप हो, या फिर हरेक जगह तस्वीरें उतारने वाला कैमरा।
ऐसे उपकरण और एप बनाने में इजराइल सबसे आगे है, और इजराइल की कम्पनियां अपने ग्राहकों की सूची भी कभी सार्वजनिक नहीं करतीं। याद कीजिये, स्मार्टफ़ोन की जासूसी वाले एप, पेगासस का मामला। इसका इस्तेमाल भारत समेत हरेक तथाकथित प्रजातांत्रिक देशों की सत्ता ने अपने विरोधियों की जानकारी जुटाने के लिए किया – तमाम सबूतों के बाद भी किसी भी देश की सत्ता ने इसे खरीदने की बात स्वीकार नहीं की और इजराइल ने भी इसे किसी देश को बेचने की बात को स्वीकार नहीं किया।
सामान्य समय में भी इजराइल फिलिस्तीनियों पर खुलेआम प्रहार करता रहता है। पिछले वर्ष, 2022 में, इजराइल की सेना ने अकेले वेस्ट बैंक में 146 फिलिस्तीनियों को मारा था, यह संख्या वर्ष 2005 के बाद से सर्वाधिक है। इसमें 15 वर्ष से कम उम्र के 34 बच्चे भी शामिल हैं। इससे पहले वर्ष 2021 में 75 और वर्ष 2020 में कोविड-19 के दौर में जब पूरी दुनिया बंद थी, तबभी 25 फिलिस्तीनी मारे गए थे। इस वर्ष यदि स्थितियां सामान्य रहतीं तबभी वर्ष 2022 का रिकॉर्ड टूटना तय था – संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 28 अगस्त तक इस वर्ष 172 फिलिस्तीनी इजराइली सेना द्वारा मारे जा चुके थे और 705 घायल किये जा चुके थे। दूसरी तरफ, इसी अवधि के दौरान केवल 29 इजराइली लोग मारे गए।
इजराइल ने गाजा क्षेत्र में वर्ष 2020 से 2022 के बीच 20 पत्रकारों की हत्या की है, अनेक मीडिया के कार्यालयों पर हमला किया है। 7 अक्टूबर को हमास के आक्रमण के बाद से 17 अक्टूबर तक गाजा क्षेत्र में 17 पत्रकार मारे जा चुके हैं, 8 घायल और 3 लापता हैं।
जो बाईडेन की सरकार भले ही प्रजातंत्र और मानवाधिकार के हनन के लिए चीन और रूस पर आरोप लगाती हो, पर सच तो यही है कि प्रजातंत्र और मानवाधिकार हनन हरेक तथाकथित प्रजातांत्रिक देश में व्यापक तरीके से किया जा रहा है और इस काम में हरेक देश की सत्ता दूसरे देशों की सत्ता की मदद कर रही है।