Chhath Puja 2021: Chhath Puja के 6 बड़े महत्व जिससे देश ही नहीं, पूरी दुनिया में हो रही छठी मइया की पूजा, जानिए वैज्ञानिक महत्व

Chhath Puja 2021: छठ पूजा आज देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में विश्वव्यापी त्यौहार का रूप ले चुका है। ये लोक आस्था का पर्व होने के साथ प्रकृति की आराधना-उपासना का महापर्व है।

Update: 2021-11-08 13:54 GMT

Chhath Puja 2021: छठ पूजा आज देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में विश्वव्यापी त्यौहार का रूप ले चुका है। ये लोक आस्था का पर्व होने के साथ प्रकृति की आराधना-उपासना का महापर्व है। ऐसा पर्व जिसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और वैज्ञानिक महत्व भी है। यही वजह है कि भारत में मनाए जाने हर त्यौहार को भले ही विदेशों में ना मनाया जाता हो लेकिन छठ पर्व को मनाने वाले लोग दुनिया के किसी भी हिस्से में हों, वो इसे जरूर मनाते हैं। जब इस पर्व के महत्व के बारे में विदेशी भी जानते हैं तो वो खुद को इसका हिस्सा बनाने से रोक नहीं पाते हैं। इसलिए छठ पर्व पर जानते हैं वो 6 बातें जिनसे इस त्यौहार का कई मायनों में महत्व बढ़ जाता है।

1- ऐतिहासिक महत्व

देश में प्रकृति पूजा करने की सदियों पुरानी परंपरा है। खासतौर पर हिंदू धर्म में प्रकृति की पूजा सबसे पुरानी संस्कृति रही है। इसलिए आज भी गांवों में नदी, तालाब, कुआं, पेड़-पौधे, खेत-खलिहान की पूजा करने की परंपरा है। आज भी गांव में जिसके घर में गाय है उसके घर की पहली रोटी उसी गाय के नाम की होती है। लेकिन ये परंपराएं धीरे-धीरे कम या खत्म होती जा रही हैं। इसके पीछे हमारी आधुनिक संस्कृति और दिनचर्या में होने वाले परिवर्तन को बताया जा रहा है। साथ ही अनुशासन का बदलना भी बड़ी भूमिका है।

ऐसे में छठ पर्व हमें उन्हीं पुरानी परंपराओं और उनके ऐतिहासिक महत्व की भी याद दिलाता है। समाजशास्त्री कहते हैं कि ऋग्वेद में भी सूर्य, नदी और पृथ्वी को देवी-देवताओं की श्रेणी में रखा गया है। छठ पूजा में भी इन्हीं को महत्व दिया जाता है। इसके साथ ही इस त्यौहार में जल संरक्षण, रोग-निवारण और सबसे खास अनुशासन का खास महत्व है। जिस तरह से इसमें प्रकृति को बचाए रखने और सूर्य के महत्व को समझने के लिए शाम और सुबह के उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा की गई है वो किसी भी बड़े अनुशासन से कम नहीं है।

2- वैज्ञानिक महत्व

छठ पूजा के दौरान कमर तक पानी में खड़े होकर पूजा करने की प्रथा है। इस पूजा को करते हुए सूर्य का ध्यान किया जाता है। जल-चिकित्सा में इसे कटिस्नान कहा गया है। कटिस्नान करने से हमारे शरीर के कई रोगों का निवारण होता है। दरअसल, इस कटिस्नान का जिक्र नेचुरोपैथी में भी है। जिसमें ये कहा गया है कि कटिस्नान के लिए किसी भी व्यक्ति को अपने नाभि के बराबर तक पानी में रहना चाहिए। इसके लिए खाली पेट का होना भी जरूरी है। छठ पूजा में भी लोग व्रत रहते हैं और कमर तक यानी करीब नाभि तक वाले हिस्से को पानी में डुबोकर रखते हैं।

ऐसा करने से कई बीमारियां शरीर से दूर हो जातीं हैं। ये भी कहा जाता है कि भारत की अक्षांशीय स्थिति ऐसी है कि देश के हर भूभाग में सूर्य का भरपूर प्रकाश पहुंचता है। चूंकि सूर्य को रोगनाशक भी कहा जाता है, क्योंकि जहां सूर्य की किरणें सीधे पहुंचतीं हैं वहां कीड़े-मकौडे मर जाते हैं। यही वजह है कि छठ पूजा करने से कई बीमारियों को भी दूर करने में मदद मिलती है।

3- पर्यावरणीय महत्व

छठ पूजा को देखा जाए तो पर्यावरण के लिहाज से बहुत ही बड़ा महत्व है। क्योंकि इस पर्व के लिए देश में जहां-जहां पूजा होती है वहां की नदी, नहर, तालाब, जलाशय, झीलें या अन्य स्थानों की साफ-सफाई की जाती है। साफ पानी भी भरा जाता है। इससे जहां लोगों में जल संरक्षण को लेकर जागरूकता बढ़ती है वहीं सफाई अभियान भी होता है। इससे जल-संरक्षण अभियान को भी बढ़ावा मिलता है।

इसका ये भी एक बड़ा महत्व है कि दीपावली पर लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और कई बार गंदगी आसपास या नदी नाले के आसपास छोड़ जाते हैं। इसके अलावा जून-जुलाई में बारिश होने से तालाब, नदी या दूसरे जलाशयों में भी गंदगी बढ़ने के साथ कीड़े-मकौड़े भी आ जाते हैं। ऐसे में यहां सफाई किए जाने से पर्यावरण के साथ हमलोगों को भी कई बीमारियों से निजात मिलती है। इसके अलावा जिस दीये को लेकर श्रद्धालु घर से नदी या तालाब तक जाते हैं उसकी रोशनी से भी सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होता है।

छठ पर्व 4 दिन का होता है। कार्तिक की चतुर्थी, पंचमी और षष्ठी, सप्तमी के दिन शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने से नेत्र ज्योति अच्छी होती है और चर्म रोग दूर होते हैं। ये कहा जाता है कि सूर्य का संबंध गायत्री माता से है इसलिए सूर्य को अर्घ्य देने से बौद्धिक क्षमता का विकास होता है।

4- पौराणिक महत्व

छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यानी दीपावली के छठे दिन मनाया जाने वाला हिंदू पर्व है। सूर्य उपासना का यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से ऋग्वेद में वर्णित सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार मनाया जाता है। छठ पूजा में सूर्य, उषा, प्रकृति, जलवायु, और छठी मैया की पूजा होती है।

एक कथा के अनुसार, पहले देवासुर संग्राम में असुरों ने देवताओं को हरा दिया, तब देवमाता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवों के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब छठी मैया ने प्रसन्न होकर सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र को जन्म देने का आशीर्वाद दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र के रूप में त्रिदेव आदित्य भगवान ने जन्म लिया। जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाई।

5- विश्वव्यापी महत्व

छठ पर्व अब सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है। बल्कि मौजूदा समय में पूरी दुनिया के कई देशों में मनाया जा रहा है। खासतौर पर उत्तर भारत के बिहार राज्य के लोग दुनिया के जिस हिस्से में रह रहे हैं वहां इस ऐतिहासिक पर्व को जरूर मनाते हैं। सिंगापुर में तो चंगी बीच (Changi Beach) के किनारे पूजा से कई महीने पहले ही बंगले बुक कर दिए जाते हैं। जहां पर लोग रुककर पूरे हर्षोल्लास के साथ छठ पर्व मनाते हैं। बताया जाता है कि यहां पर हर साल 20 या इससे भी ज्यादा परिवार के लोग आकर पूजा करते हैं। चूंकि इस पर्व में सूर्य की उपासना की जाती है इसलिए स्थानीय लोग भी कई बार इसके महत्व को देखते हुए शामिल होते हैं।

वहीं, अमेरिका के कैलिफोर्निया में तो क्वारी झील में हर साल काफी संख्या में श्रद्धालु छठ पर्व मनाने आते हैं। यहां पर दीपावली के बाद ही छठ गीत बजने लगते हैं। जिसे पूरा इलाका ही छठमय हो जाता है। इस त्यौहार के अनुशासन और लोगों की भक्ति को देखने के लिए विदेशी सैलानी भी जुट जाते हैं। इसके अलावा मॉरिशस और बहरीन में तो व्यापक स्तर पर छठ पर्व होता है। इन देशों के अलावा भी दुनिया के कई देशों में इस त्यौहार को लोग बहुत ही श्रद्धा के साथ मनाते हैं।

6- रामायण से लेकर महाभारत में छठ का महत्व

रामायण में भी जिक्र : लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया था। इसके साथ ही सूर्य देव की आराधना की थी और सप्तमी को सूर्य देव के सूर्योदय के समय अनुष्ठान कर सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया था।

पुराणों में : राजा प्रियवद संतानहीन थे। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्र यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इस प्रभाव से उन्हें मृतक पुत्र पैदा हुआ। राजा पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे, उसी वक्त ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से पैदा होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजा आप मेरी पूजा करें और व्रत करें। व्रत करने से राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पूजा कार्तिक शुक्ल की षष्टी को हुई थी।

महाभारत में : एक मान्यता यह भी है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरु की। वह प्रतिदिन कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्ध्य देते थे। सूर्य देव के आशीर्वाद से वह महान योद्धा बने। कुछ कथाओं में द्रोपदी द्वारा भी सूर्य पूजा करने का उल्लेख मिलता है।

मोना सिंह की रिपोर्ट

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