Climate Change :ग्रीन एनर्जी का लक्ष्य हासिल करने के लिए उठाने होंगे प्रभावी कदम
Climate Change : जलवायु परिवर्तन की रोकथाम पर बस उतना ही काम हो रहा है जितने से अडानी-अम्बानी को मुनाफा होता है
क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वर्मिंग पर महेन्द्र पाण्डेय का विश्लेषण
Climate Change : हमारे देश में जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि ( Climate Change & Global Warming ) के नियंत्रण के लिए बस उतना ही काम होता है जिससे दिन-रात लगातार जनता और सरकारों को लूटकर मुनाफा कमाते अडानी और अम्बानी को मुनाफा होता है। हमारे प्रधानमंत्री जी भी जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के लक्ष्य भी केवल वही बताते हैं, जिसमें अडानी-अम्बानी की भागीदारी है। प्रधानमंत्री जी जलवायु परिवर्तन के हरेक अधिवेशन में केवल नवीनीकृत ऊर्जा ( renewable energy targets ) की बात करते हैं, इसे लेकर चमात्कारिक आंकड़े प्रस्तुत करते हैं। जाहिर है इस क्षेत्र में अडानी का वर्चस्व है और अम्बानी इस क्षेत्र में तेजी से कूदने वाले हैं।
अडानी ( Gautam Adani ) देश में सबसे अधिक कोयला-आधारित बिजली घरों ( Thermal power stations ) के मालिक हैं और कोयला उत्खनन ( Coal mining ) में देसी और अंतरराष्ट्रीय व्यवसायी हैं| दूसरी तरफ अम्बानी समूह की गुजरात के जामनगर में पेट्रोलियम रिफाइनरी ( Petroleum Refinery at Jamnagar ) है, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी का तमगा मिला है। जाहिर है, देश के सबसे अमीर अडानी और अम्बानी को वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की कोई परवाह नहीं है, फिर भी दोनों का ध्यान नवीनीकृत उर्जा के मुनाफे पर टिका है। उर्जा मंत्री आरके सिंह ( Power Minister, R K Singh ) ने हाल में ही बताया था कि इस वर्ष अगस्त के महीने तक देश में 100 गीगावाट क्षमता के नवीनीकृत उर्जा संयंत्र स्थापित किए जा चुके हैं।
इसके बाद सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी ( Central Electricity Authority ) की एक रिपोर्ट में बताया गया कि वर्ष 2030 तक देश में कुल 817 गीगावाट विद्युत् उत्पादन क्षमता के संयंत्र लग चुके होंगें, जिसमें से 525 गीगावाट के संयंत्र नवीनीकृत उर्जा स्त्रोतों पर आधारित होंगें। इसमें सौर उर्जा ( Solar Energy ) का हिस्सा 280 गीगावाट, पवन उर्जा ( Wind Energy ) का 140 गीगावाट और पनबिजली ( Hydro Power ) का 71 गीगावाट हिस्सा होगा।
विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ( Foreign Secretary, Harsh Vardhan Shringla ) ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ग्लासगो में आयोजित जलवायु परिवर्तन अधिवेशन ( COP 26 at Glasgow ) में दिए गए भाषण के बाद कहा कि नवीनीकृत उर्जा के क्षेत्र में देश तेजी से आगे बढ़ रहा है। पहले, वर्ष 2030 ले लिए 175 गीगावाट का लक्ष्य था, जिसे हम वर्ष 2022 तक ही पूरा कर लेंगें। इसके बाद 450 गीगावाट का लक्ष्य तय किया गया था, पर ग्लासगो के मंच से प्रधानमंत्री ने नए लक्ष्य, 500 गीगावाट, का ऐलान कर दिया। इस ऐलान के पीछे सबसे बड़ा कारण है अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड ( Adani Green Energy Limited ) की इस क्षेत्र में बढ़ती भागीदारी।
पिछले तीन वर्षों के भीतर ही अडानी समूह की इस कंपनी ने 20 गीगावाट से अधिक क्षमता का सौर, पवन या फिर हाइब्रिड स्त्रोतों से बिजली बनाने का संयंत्र स्थापित कर लिया है| इसका सीधा मतलब है कि देश में इन स्त्रोतों से जितनी बिजली बनाई जा रही है, उसका 20 प्रतिशत से अधिक अडानी के संयंत्रों से पैदा हो रही है| पिछले दो वर्षों के भीतर ही अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के शेयर्स में 13 गुना से अधिक बृद्धि हो चुकी है। अडानी का सपना वर्ष 2030 तक दुनिया का सबसे बड़ा नवीनीकृत उर्जा से बिजली उत्पादक बनने का है।
अम्बानी ने जामनगर रिफाइनरी में 30 अरब डॉलर का निवेश किया था, पर इसी वर्ष जून में 36 अरब डॉलर के निवेश से उन्होंने जामनगर में ही 4 उद्योगों के स्थापना की घोषणा की है| ये 4 उद्योग – सोलर पैनल्स, बैटरी, ग्रीन हाइड्रोजन और फ्यूल सेल्स के लिए हैं| अम्बानी का लक्ष्य वर्ष 2030 तक नवीनीकृत उर्जा स्त्रोतों से, विशेष तौर पर सौर उर्जा से, कम से कम 100 गीगावाट बिजली उत्पादन का है। अम्बानी इसके लिए तेजी से काम भी कर रहे हैं| अम्बानी ने हाल में ही नॉर्वे की सोलर पैनल बनाने वाली कंपनी, आरईसी सोलर होल्डिंग्स ( REC Solar Holdings ) को 77 करोड़ डॉलर में खरीदा है। इस कंपनी ने अबतक कुल 446 पेटेंट हासिल किए हैं और इनके उत्पादन में सामान्य पैनल की अपेक्षा 75 प्रतिशत कम उर्जा की खपत होती है। इसके बाद अम्बानी ने स्टर्लिंग एंड विल्सन सोलर लिमिटेड ( Sterling & Wilson Solar Limited ) के 40 प्रतिशत शेयर खरीद लिए हैं। इस कंपनी के पास 3000 से अधिक अभियांत्रिकी टीमें हैं जो दुनियाभर में सोलर पैनल्स स्थापित कर रही हैं।
सौर उर्जा के अतिरिक्त ग्रीन हाइड्रोजन (Green Hydrogen) के क्षेत्र में भी अडानी-अम्बानी तेजी से काम कर रहे हैं। अम्बानी के जामनगर रिफाइनरी में ग्रे हाइड्रोजन ( Grey Hydrogen ) उत्पन्न होता है। ग्रे हाइड्रोजन में हाइड्रोजन से साथ बहुत सारी अशुद्धियाँ रहती हैं, पर यह दहन के काम आता है और इसका उपयोग रिफाइनरी और अम्बानी समूह के दूसरे उद्योगों में किया जा रहा है| पर, इसे पूरी तरह शुद्ध कर ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन खर्चीला है। ग्रे हाइड्रोजन की तुलना में ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत 2 से 7 गुना अधिक होती है। अम्बानी समूह ग्रे हाइड्रोजन को परिष्कृत कर ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की योजना बना रहा है। अडानी समूह भी ग्रीन हाइड्रोजन परियोजना पर आगे बढ़ रहा है – इसके लिए या तो इसका उत्पादन देश में ही किया जाएगा या फिर इसका आयात किया जाएगा। अडानी समूह की आयात के लिए इटली की एक कंपनी से बात चल रही है। आयात के लिए अडानी को सबसे अधिक लाभ अपने स्वामित्व वाले बंदरगाहों का मिलेगा। इसी वर्ष अगस्त में सरकार ने नेशनल हाइड्रोजन मिशन (National Hydrogen Mission) की घोषणा भी की है।
अब सवाल यह उठता है कि अम्बानी-अडानी जैसे शुद्ध व्यवसायी क्या जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए नवीनीकृत उर्जा स्त्रोतों को विकसित कर रहे हैं या फिर यह उनके लिए बेहद मुनाफे का सौदा है, या फिर आगे बन सकता है| इसका एक जवाब तो यही है कि हमारे प्रधानमंत्री जी सौर ऊर्जा के सम्बन्ध में बेहद उत्साहित रहते हैं, इससे ही समझ लेना चाहिए कि यह देश के फायदे में हो या ना हो, पर अडानी-अम्बानी के फायदे का सौदा है| ऐसे संयंत्र स्थापित करने के लिए भूमि अधिग्रहण आसान है, अनेक सरकारी स्वीकृतियों से मुक्ति मिल जाती है, और सरकार अनेक रियायतें देती है। भारत इन्टरनेशनल सोलर अलायन्स ( International Solar Alliance ) का संस्थापक सदस्य है और इसके तहत भी सौर उर्जा उत्पादन के लिए तमाम आर्थिक मदद दी जाती है।
भारत जैसे विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण के नाम पर अमीर देशों की तरफ से आर्थिक सहायता मिलती है और इसका बाद हिस्सा सौर उर्जा विकसित करने में खर्च किया जाता है। जाहिर है ये सारे लाभ अडानी-अम्बानी को मिल रहे हैं। भारत द्वारा वर्ष 2070 तक कार्बन-न्यूट्रल के ऐलान के बाद इस क्षेत्र में आर्थिक सहायता कई गुना बढ़ जायेगी।
यहां एक प्रश्न यह भी है कि हमारे देश में सौर उर्जा की दर बहुत सस्ती है, जिसके कारण अनेक देसी-विदेशी कंपनियों ने परियोजनाओं की स्वीकृति के बाद भी अपने संयंत्र स्थापित नहीं किया, तो फिर अडानी-अम्बानी इस क्षेत्र में कैसे आगे बढ़ रहे हैं। दरअसल, पूंजीवाद का यह सामान्य सा नियम है कि बाजार पर जिसका अधिपत्य होता है कीमतें वही तय करता है। इस मामले में भी यही होने वाला है। अगले 2-3 वर्षों बाद जब देश के कुल सौर उर्जा में से 50 प्रतिशत से अधिक का उत्पादन अडानी-अम्बानी करने लगेंगें, उसके बाद कीमतें सरकार नहीं बल्कि अडानी-अम्बानी ही तय करेंगें।
प्रधानमंत्री जी ने ग्लासगो के जलवायु परिवर्तन अधिवेशन में वन सन, वन अर्थ, वन ग्रिड ( One Sun, One Earth, One Grid ) का नारा दिया है| इस नारे से जलवायु परिवर्तन पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसके लिए कई वर्षों का इंतज़ार करना पड़ेगा। यदि ऐसा होता है तो जाहिर है फायदा केवल अडानी-अम्बानी को ही पहुंचेगा। अधिकतर यूरोपीय देशों में साल के अधिकतर समय तेज धूप नहीं रहती, दूसरी तरफ ये देश कोयले के उपयोग को बंद करने की घोषणा भी कर चुके हैं। ऐसे में अडानी-अम्बानी की सौर बिजली का यूरोप एक बड़ा बाजार बन सकता है।
जाहिर है, देश में जलवायु परिवर्तन के नाम पर केवल उतना ही काम हो रहा है जिनसे अडानी-अम्बानी की जेब भर सके। प्रधानमंत्री जी के अन्तराष्ट्रीय मंचों से किये गए दावे भी बस अडानी-अम्बानी की क्षमता पर ही टिके होते हैं।