कट्टरपंथी हिंदू संगठनों और पश्चिमी देशों के धार्मिक हिंसक संगठनों में वर्ष 2014 के बाद से बने करीबी रिश्ते, दोनों कर रहे मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाने का काम

एक तरफ धर्म के ठेकेदार सत्तालोभी नेता, उनके चाटुकार और समर्थक हैं, जो धर्म को अपनी जागीर मानते हैं, दूसरी तरफ वे लोग हैं जिनके मुंह से अपने धर्म के बारे में कोई शब्द निकलते ही वे धर्मं को नीचा दिखाने के और धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोपी करार दिए जाते हैं....

Update: 2023-05-12 07:30 GMT

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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

हमारे प्रधानमंत्री जी के अनुसार बजरंग दल के विरुद्ध जाना बजरंगबली का अपमान है, जाहिर है श्री राम सेना के विरुद्ध वक्तव्य उनके अनुसार राम का अपमान होगा। यह सबको मालूम है कि ये दोनों ही संगठन केवल हिंसा और नफरत फैलाने के लिए जाने जाते हैं। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से प्रधानमंत्री मोदी का विरोध देश का और हिन्दू धर्म का अपमान बताया जाने लगा है। हमारे देश में सत्ता द्वारा प्रचारित यह धारणा जनता तक पहुंचा दी गयी है कि भारत केवल हिंदुओं का देश है और हिंदुओं को इस्लाम और दूसरे धर्मों से खतरा है। हमारे देश में सत्ता में बैठे लोगों की खुशनसीबी है कि मीडिया जैसी कोई चीज इस देश में बची ही नहीं है। मीडिया के नाम पर जो आप न्यूज़चैनल देखते हैं या समाचारपत्र पढ़ते हैं वह तो महज सरकार का प्रचार तंत्र है जो बीजेपी के आईटी सेल के तरह झूठ और नफरत फैलाने का माध्यम है।

वर्ष 2014 के बाद से विदेशों में, विशेष तौर पर अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हिंदूवादी कट्टर और हिंसक समूहों का एक मजबूत जाल बिछाया गया है, इनपर करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं और इनका काम है मुस्लिमों के विरुद्ध या फिर भारत सरकार की आलोचना करने वालों के विरुद्ध माहौल तैयार करना। जिस समय देश में किसान आन्दोलन कर रहे थे, उस दौर में कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में अनेक सिखों पर हिंसक हमले किये गए थे। कनाडा में अनेक हिन्दू संगठनों को आरएसएस की तरफ से मुस्लिमों के विरुद्ध दुष्प्रचार और नफरत फैलाने के लिए आर्थिक मदद दी जाती है। अमेरिका में 11 सितम्बर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद अमेरिका, अनेक यूरोपीय देशों और ऑस्ट्रेलिया में अनेक मुस्लिम-विरोधी हिंसक संगठन पनपने लगे। इन संगठनों के अनेक प्रतिनिधि यूरोपियन यूनियन, अमेरिका और कनाडा के संसद में भी चुनाव जीत कर पहुँच चुके हैं। जम्मू और कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने के बाद यूरोपियन यूनियन के संसद सदस्यों का जो प्रतिनिधिमंडल वहां का दौरा करने भारत आया था, उसमें अधिकतर सदस्य ऐसे ही थे।

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हिन्दू कट्टरपंथी हिंसक संगठनों और पश्चिमी देशों के धार्मिक हिंसक संगठनों में वर्ष 2014 के बाद से करीबी रिश्ते बन गए हैं – दोनों तरीके के संगठन मुस्लिमों के विरुद्ध नफरत फैलाने का काम करते हैं। सत्ता के स्तर पर भी अनेक क़ानून यही काम करते हैं। अमेरिका का मुस्लिम बैन क़ानून, भारत का सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट और कनाडा में क्यूबैक बिल 21 कुछ ऐसे ही क़ानून हैं। हाल में ही रमजान के दौरान कनाडा के मरखाम में एक मस्जिद पर हमला किया गया था, वहां नमाज पढ़ रहे लोगों को गालियाँ दी गईं, पवित्र कुरआन को फाड़ डाला गया और मस्जिद में जा रहे लोगों को वाहन से कुचलने का प्रयास किया गया।

अनेक प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यह कनाडा में कार्यरत हिंदी हिंसक संगठन का काम था। हमारे देश में हिन्दू संगठनों द्वारा मुस्लिमों की ह्त्या, भीड़ द्वारा हिंसा और उनके घरों को जलाने जैसे मामलों पर पुलिस, प्रशासन और सत्ता केवल आँखें ही नहीं बंद करतीं हैं, बल्कि ऐसे मामलों को भड़काती भी हैं। बुलडोज़र तो पिछले कुछ वर्षों से मुस्लिमों के विरुद्ध सत्ता का नया हथियार बन गया है। वर्ष 2019 में न्यूज़ीलैण्ड के क्राइस्टचर्च में मस्जिद पर हमला और गोलीबारी, वर्ष 2017 में कनाडा के क्यूबैक में मस्जिद पर गोलीबारी और हाल में ही लन्दन में एक मुस्लिम परिवार के सभी सदस्यों की ह्त्या जैसी घटनाएं यह साबित करती हैं कि मुस्लिमों के विरुद्ध नफरत और हिंसा फैलाते संगठन हरेक देश में हैं और इन संगठनों में आपसी तालमेल भी है। इन संगठनों द्वारा यह प्रचारित किया जाता है कि पूरी दुनिया में आतंकवाद केवल मुस्लिमों द्वारा किया जाता है – पर तथ्य यह है कि मुस्लिमों का विरोध करते संगठनों द्वारा मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की तुलना में कई गुना अधिक हिंसा की जाती है।

भारत के हिन्दू संगठनों का पश्चिमी देशों के हिंसक संगठनों के बहुत गहरा रिश्ता है। यह रिश्ता, सोशल मीडिया प्लेटफ़ोर्म विशेष तौर पर ट्विटर पर स्पष्ट उजागर होता है। इनका आपसी सामंजस्य इतना बेहतर है कि दोनों तरीके के संगठन एक जैसे पिक्चर, एक जैसे कार्टून और एक जैसे ही मीम का भी इस्तेमाल करते हैं। वर्ष 2013 के बाद से हमारे देश में अचानक से लव जिहाद की चर्चा की जाने लगी, इसपर क़ानून बनाने लगे, हिन्दू संगठनों को इससे सम्बंधित हिंसा या ह्त्या की खुली छूट दे दी गयी और अब तो ऐसे काल्पनिक विषय पर बनाई गयी फिल्म केरला स्टोरी का प्रचार हमारे प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल का हरेक सदस्य खुलेआम कर रहा है। इस लवजेहाद से पश्चिमी देशों के हिंसक संगठन भी खूब प्रभावित हैं, इसका प्रचार करते हैं और यहाँ की काल्पनिक घटनाओं को अपने समाज के ढाँचे में परिवर्तित कर उसका प्रचार करते हैं। कनाडा के ब्लॉगर रोबर्ट स्पेंसर तो जिहाद वाच के नाम से एक वेबसाइट चलाते हैं और इसकी पोस्टों को पसंद करने वालों में अनेक हिन्दू कट्टरवादी शामिल हैं। रोबर्ट स्पेंसर अपने पोस्ट में लव जिहाद को इस्लामिक स्टेट से जोड़ते हैं।

हमारे देश में सत्ता समर्थित धार्मिक उन्माद का यह आलम है कि टीपू सुल्तान जैसे महान योद्धा और सर्व-धर्म समभाव को सही मायने में आगे बढाने वाले को तथ्य-विहीन तरीके से हिन्दू-विरोधी करार दिया जाता है, मुगलों का इतिहास पुस्तकों से बाहर कर दिया जाता है, सभी खानों की फिल्मों के बहिष्कार का आह्वान किया जाता है। रोज सत्ता और मीडिया ऐसी नफरत वाली कहानियां गढ़ते हैं और जनता के सामने प्रस्तुत करते हैं। जिस संविधान के सामने मोदी जी अनेकों बार शीश झुकाने की नौटंकी वाला प्रदर्शन कर चुके हैं, वही संविधान हमें धर्मनिरपेक्ष बनाता है। पर, 2014 के बाद से बीजेपी सरकार का पूरा अस्तित्व ही धर्मान्धता और जय श्री राम के जयकारों पर टिका है। अब तो संसद में, चुनावों में और दूसरे भाषणों में भी प्रधानमंत्री समेत सभी सत्ता लोभी नेता इसी जयकारे को दुहराते हैं और इसे ही देश के विकास का पैमाना बताते हैं।

आजाद भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब धर्म व्यक्तिगत आस्था के विषय से बाहर निकलकर सत्ता के गलियारों में भटक रहा है। इसी धर्म के सरकारी संस्करण के कारण देश दो हिस्सों में बंट गया है। एक तरफ धर्म के ठेकेदार सत्तालोभी नेता, उनके चाटुकार और समर्थक हैं, जो धर्म को अपनी जागीर मानते हैं। दूसरी तरफ वे लोग हैं जिनके मुंह से अपने धर्म के बारे में कोई शब्द निकलते ही वे धर्मं को नीचा दिखाने के और धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोपी करार दिए जाते हैं।

हालात तो यहाँ तक पहुँच गए हैं कि अब तो हिंसा के बाद भी और यहाँ तक की ह्त्या के बाद भी हिन्दू हिंसक कट्टरवादी गिरोह पुलिस और मीडिया के सामने जय श्री राम का जयकारा सुनाते हैं। यह जयकारा एक ऐसा उद्घोष बन गया है, जिसके लगाते ही किसी के द्वारा किये गए बलात्कार, किसी के द्वारा की गयी हिंसा या फिर हत्या एक राष्ट्रभक्ति में तब्दील हो जाती है। पुलिस, न्यायालय और प्रशासन नारे लगाने वालों को, जयकारा लगाने वालों को सुरक्षित करती हैं और हिंसा के शिकार लोगों, गवाहों और उनके परिवारों को साजिश रचने, देशद्रोह जैसे मुकदमें में फंसा देती है। धर्मान्धता ने तो सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश को राज्य सभा तक पहुंचा दिया है।

दिक्कत यह है कि हम किसी लोकतंत्र में या सभ्य समाज में हैं, ऐसा महसूस ही नहीं होता। इन दिनों देश की हालत एक कबीले से भी बदतर है। कबीले के भी कुछ क़ानून होते हैं, पर यहाँ का क़ानून वही है जो प्रधानमंत्री और उसके समर्थक कहते हैं या करते हैं। जब सरकारें धर्म की ठेकेदार बनती हैं तब या तो हमारे देश की तरह बड़ी संख्या में लोग कट्टर धार्मिकता अपनाने लगते हैं या फिर अमेरिका की तरह धर्म से दूर होने लगते हैं। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के समय भी सरकार ने धार्मिकता को खूब बढ़ावा दिया था, पर इसका उल्टा असर हो रहा है। बड़ी संख्या में अमेरिकी युवाओं को ट्रम्प के समय समझ में आया कि धर्म भी राजनीति का हिस्सा है, इस कारण बड़ी संख्या में वहां युवा आबादी धर्म से दूर हो गई और चर्च में जाना भी छोड़ दिया।

हमारे देश में धर्म को बीजेपी एक हथियार के तौर पर, विशेष तौर पर चुनावों के समय, इस्तेमाल करती है। एक धर्म निरपेक्ष देश की सरकार अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि भव्य राम मंदिर को बताती है। इस हथियार का बीजेपी ने इतना व्यापक इस्तेमाल किया है कि अब तो दूसरे दलों के नेता भी कभी हनुमान चालीसा पढ़ते हैं, कभी दुर्गा सप्तशती का पाठ होता है तो कभी मंदिरों में मत्था टेकने का कार्यक्रम होता है। अब तो चुनावों के समय नेता जनता के बीच कम और मंदिरों में अधिक जाने लगे हैं।

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