मोदी राज में मानवतावादियों और स्वतंत्र विचार रखने वालों पर सर्वाधिक हमले : रिपोर्ट में खुलासा
अल्पसंख्यक अधिकार कार्यकर्ता, आदिवासी और धर्म के आडम्बर के विरुद्ध व्यक्तियों पर केवल सरकार प्रहार ही नहीं करती बल्कि उनकी हत्या करने वालों का समर्थन भी करती है, और उन्हें क़ानून के शिकंजे से बचाती भी है। इस सन्दर्भ में आज के भारत की स्थिति पाकिस्तान जैसी ही है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। ह्यूमनिस्ट्स इंटरनेशनल की तरफ से हाल में ही एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है, ह्यूमनिस्ट्स ऐट रिस्क – एक्शन रिपोर्ट 2020। इसके अनुसार दुनियाभर में नास्तिकों और मानवतावादी लोगों पर उनकी स्वतंत्र सोच और विचारों के कारण खतरा बढ़ता जा रहा है। यह खतरा बहुसंख्यकों की हिमायती सरकारों से भी है और सरकारों द्वारा प्रायोजित भीड़ तंत्र द्वारा हिंसा से भी है।
इस रिपोर्ट में 8 देशों – कोलंबिया, भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और श्रीलंका की स्थिति का विस्तार से वर्णन है। इसमें बताया गया है कि नास्तिकों और मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण इन लोगों का बहिष्कार किया जाता है, और तथाकथित लोकतांत्रिक सरकारें भी इसे बढ़ावा देती हैं।
केवल बहुसंख्यकों के धर्म की उपेक्षा, मानवाधिकार की आवाज बुलंद करने, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ बोलने के कारण नास्तिकों और मानवतावादियों को निशाना बनाया जाता है, उन पर हमले कराये जाते हैं और फिर तरह तरह के कानूनों की दुहाई देकर इन्हें सजा दी जाती है।
भारत के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है कि "भारत सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र है, यहाँ धर्म की विविधता है और हाल के वर्षों तक संविधान द्वारा प्रदत्त धर्मनिरपेक्षता पर सबको गर्व था। भारत में संविधान, क़ानून और राजनीतिक माहौल, विचारों की स्वतंत्रता, धर्म और विवेक का अधिकार देते हैं, और अभिव्यक्ति और समूह निर्माण की स्वतंत्रता भी। पर, कुछ क़ानून और वर्तमान का राजनीतिक माहौल इस आजादी पर अंकुश लगा रहे हैं। यहाँ धार्मिक समूहों के बीच आपसी झड़प और धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा सामान्य हो चला है। नागरिकता (संशोधन) क़ानून लागू होने के बाद से ऐसी हिंसक झड़पें सामान्य हो चलीं हैं और इसमें प्रताड़ित होने वाले या फिर सजा पाने वाले केवल अल्पसंख्यक ही होते हैं। इस क़ानून के तहत मुस्लिमों, नास्तिकों और मानवतावादी प्रवासियों को छोड़कर अन्य सभी शरणार्थी जो पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आये हैं उनको नागरिकता देने का प्रावधान है।"
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "इस क़ानून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की तरफ एक बड़े कदम के तौर पर देखा जा रहा है। भारत में तर्कवाद का इतिहास बहुत पुराना है। पर, आज के दौर में तर्कवाद मिट गया है और इसकी जगह आँख बंद कर सरकारी समर्थन हावी हो चला है। वर्ष 2012 के ग्लोबल इंडेक्स ऑफ़ रिलिजन एंड एथिस्म के अनुसार भारत में 81 प्रतिशत आबादी कट्टर धार्मिक है, 13 प्रतिशत नाममात्र के धार्मिक हैं, 3 प्रतिशत घोषित नास्तिक हैं और शेष 3 प्रतिशत आबादी धर्म के प्रति उदासीन है।'
रिपोर्ट के मुताबिक अब तक दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की धर्म-निरपेक्षता का सामान पूरी दुनिया करती थी, पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद से सरकार, कार्यपालिका और कुछ हद तक न्यायपालिका तक हिन्दू राष्ट्र की राजनीति करने लगे हैं। सरकारों द्वारा कथित हन्दू राष्ट्रवादी ताकतों को बढ़ावा देने के कारण अल्प्संख्यक खतरे में हैं और इसके साथ ही बगैर धर्म की विचारधारा और मानवतावादी दृष्टिकोण खतरे में है।"
रिपोर्ट के मुताबिक, "इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 295 की धारा जो ईशनिंदा से सम्बंधित है, का उपयोग व्यापक तरीके से किया जाने लगा है। वैसे तो यह क़ानून किसी भी धर्म के तिरस्कार से सम्बंधित है, पर अब इसे केवल एक धर्म से ही जोड़ा जाने लगा है। गाय सुरक्षा क़ानून भी एक तरह से ईशनिंदा से सम्बंधित है, क्योंकि गाय को पवित्र बताया जाता है। अब इस सुरक्षा क़ानून का मनमाना दुरुपयोग किया जाने लगा है।"
ह्यूमनिस्ट्स ऐट रिस्क – एक्शन रिपोर्ट 2020 रिपोर्ट बताती है कि, "वर्ष 2013 से 2015 के बीच तीन प्रमुख बुद्धिजीवियों की हत्या सरेआम इसलिए कर दी गई क्योंकि वे अंधविश्वास और हिन्दू राष्ट्र की अवधारण के खिलाफ थे। हरेक मामले में सम्बंधित सरकारों ने तुरंत न्याय दिलाने की बात की, पर हत्या में हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों की भागीदारी सामने आने पर, हरेक मामले में भरपूर लीपापोती की गई।"
इस रिपोर्ट में आगे लिखा है, "वर्ष 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा था, विद्यार्थियों को यह पढ़ाया जाए कि हरेक धर्म की मूलभूत बातें एक ही हैं और जो अंतर दिखता है वह केवल तरीकों में है। यदि कुछ क्षेत्रों में मतभेद हैं भी तब भी भाईचारा बनाए रखने की जरूरत है और किसी भी धर्म के प्रति दुर्भावना नहीं होनी चाहिए। पर, सरकारें इसका ठीक उल्टा कर रही हैं। अल्पसंख्यकों का दर्जा प्राप्त क्रिश्चियन और मुस्लिम स्कूलों के समक्ष हिन्दू स्कूल खड़ा कर रही हैं। पाठ्यपुस्तकों में धर्मनिरपेक्षता की पारंपरिक अवधारणा को बदलकर अब हिन्दू धर्म का प्रचार किया जाने लगा है। यही नहीं, अब तो अनेक संस्थानों, विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों में हिन्दू धार्मिक ग्रंथों को पढ़ाया जाने लगा है।"
रिपोर्ट बताती है, "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार संविधान देता है और पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बेतहाशा बृद्धि दर्ज की गई है। पर, अब निष्पक्ष पत्रकारों को नए खतरे झेलने पड़ रहे हैं। निष्पक्ष पत्रकारों के विरुद्ध सरकारें राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, अपराध और हेट स्पीच से सम्बंधित कानूनों का सहारा ले रही हैं, और यहाँ तक कि न्यायालयों की अवहेलना का भी अभियोग लगा रहीं हैं। सितम्बर 2017 में बेंगलुरु में हिन्दू आतंकवाद और राष्ट्रवाद पर मुखर पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई। स्पेशल इन्वेस्टिगेटिंग टीम ने 9235 पृष्ठों की रिपोर्ट तैयार तो की, जिसमें हिन्दू अतिवादी और सरकार के करीबी संगठनों से जुड़े अनेक बयान दर्ज हैं, जिन्होंने आगे के लिए अनेक बुद्धिजीवियों की हत्या तय की थी, पर सभी आज तक क़ानून के दायरे से बाहर हैं।"
"सरकारों ने इंटरनेट की सुविधा बंद कर आन्दोलनों को दबाने का एक नया तरीका ईजाद कर लिया है। संविधान के विरूद्ध जाकर और धर्म-निरपेक्ष मूल्यों को ताक पर रखकर सरकार ने नागरिकता (सन्शोधन) क़ानून को लागू कर दिया। इसके बाद बड़े पैमाने पर विद्यार्थियों, बुद्धिजीवियों और अल्पसंख्यकों ने आंदोलन शुरू किया। इस आन्दोलन को कुचलने के लिए सरकार ने बार-बार इंटरनेट बंदी का सहारा लिया, जबकि इंटरनेट सुविधा को सर्वोच्च न्यायालय ने जनता का मौलिक अधिकार घोषित किया है।"
"वर्ष 2014 से सत्ता पर काबिज बीजेपी स्वतंत्र भारत के पूरे इतिहास में सर्वाधिक बुद्धिजीवी विरोधी सरकार है। यह हरेक उस व्यक्ति या संस्था को निशाना बना रही है, जो एक्टिविस्ट है, सिविल सोसाइटी से जुड़ा है, मानवाधिकार की बात करता है, स्वतंत्र और निष्पक्ष विचारधारा का है, या फिर हिन्दुओं के विरुद्ध बात करता है। अल्पसंख्यक अधिकार कार्यकर्ता, आदिवासी और धर्म के आडम्बर के विरुद्ध व्यक्तियों पर केवल सरकार प्रहार ही नहीं करती बल्कि उनकी हत्या करने वालों का समर्थन भी करती है, और उन्हें क़ानून के शिकंजे से बचाती भी है। इस सन्दर्भ में आज के भारत की स्थिति पाकिस्तान जैसी ही है। यदि आप स्वतंत्र विचारधारा के हैं, धर्मों के बंधन से नहीं बंधाते तब सरकारी कानूनों, पुलिसिया जुर्म के साथ साथ हिन्दू गुंडों से भी आपको जूझना पड़ेगा।"
इस रिपोर्ट में भारत के कुछ बुद्धिजीवियों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। ये हैं, नरेन्द्र दाभोलकर, गोविन्द पानसरे, एम एम कलबुर्गी और एच फारुख। इस रिपोर्ट में भारत के लिए कुछ सुझाव भी हैं –
• इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 295 समेत वे सभी क़ानून जो ईशनिंदा को अपराध करार देते हैं, को हटा देना चाहिए;
• नागरिकता (संशोधन) क़ानून 2019 में बदलाव कर गैर-धार्मिक, मानवतावादी और नास्तिकों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए;
• भारत सरकार को अभिव्यक्ति, धर्म, विश्वास और समूहों के गठन पर आजादी का सम्मान करना चाहिए;
• विद्यालयों में धर्म-निरपेक्षता पर विस्तृत पाठ शामिल किया जाना चाहिए;
• सरकार द्वारा सिविल सोसाइटीज और मानवाधिकार संगठनों के विरुद्ध फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन रेगुलेशन एक्ट 2010 का एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल बंद करना चाहिए;
•मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों की हत्या या उनसे मारपीट से सम्बंधित मामलों का शीघ्र निपटारा किया जाना चाहिए, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहए कि सभी दोषियों को सजा मिले, उन्हें भी जो हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों से जुड़े हैं; और,
• सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार या इसे जुड़े संगठनों या व्यक्तियों द्वारा लगातार दिए जाने वाले हेट स्पीच की कड़े शब्दों में भर्त्सना की जाए, और ऐसा करने वालों पर उचित कार्यवाही हो।
जाहिर है, धर्म-निरपेक्षता को हमारी सरकारें पूरी तरह भूल चुकी हैं। अब हम जिस न्यू इंडिया में रहते हैं वह पूरी तरह से बदल चुका है। यहाँ मानवाधिकार की बात करने पर आप देशद्रोही बन जाते हैं, अर्बन नक्सल करार दिए जाते हैं या फिर टुकड़े-टुकड़े गैंग के सदस्य बना दिए जाते हैं, और हत्या करने वाले या फिर इसकी धमकी देने वाले विधायक और सांसद बन जाते हैं।