कोरोना ने किया मोदी-ट्रंप की दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी सरकारों को बुरी तरह बेनकाब

अब कोविड 19 के मामले देश में प्रतिदिन एक लाख के लगभग उजागर हो रहे हैं और लगभग 1100 लोग रोजाना अपनी जान गवां रहे हैं, पर देश अनलॉक हो चुका है। बीजेपी नेता रैलियां आयोजित कर रहे हैं और कोविड 19 के जाने की सूचना दे रहे हैं...

Update: 2020-09-15 15:01 GMT

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सिर्फ भारत और अमेरिका ऐसे देश जो कोरोना की डरावनी तस्वीर के बीच खोलने जा रहे स्कूल, पढ़िये महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

कोविड 19 ने निरंकुश, दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी सरकारों को बेनकाब कर दिया है। अमेरिका, भारत, ब्राज़ील, रूस, ईजिप्ट, फिलीपींस, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, इजराइल, मेक्सिको जैसे देश इससे सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं और इन सभी देशों में घोषित तौर पर दक्षिणपंथी और कट्टर राष्ट्रवादी सरकारें हैं। इन सभी देशों ने जनता के दमन, दुनिया में दिखावा और आंकड़ों की बाजीगरी के दम पर इस महामारी से निपटने का दिखावा किया, जैसा कि ऐसी सरकारें दूसरी समस्याओं के लिए भी करती हैं।

इनमें से अधिकतर सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी से जनता को बरगलाती रहीं और जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़ करती रहीं। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग की डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट उमा कम्भाम्पति के अनुसार भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प और रूस के राष्ट्रपति पुतिन कोविड 19 के शुरुआती दौर में इस महामारी के प्रसार का ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़ते रहे और अब जब स्थिति नियंत्रण से बाहर है, तब इसके बारे में चुप्पी साध ली है।

कोविड 19 के विश्वव्यापी विस्तार के आरंभिक चरण में चीन और रूस जैसे देशों ने स्पष्ट तौर पर यह भी कहा था कि वामपंथी निरंकुश शासक इस महामारी का नियंत्रण बेहतर तरीके से करने में सक्षम हैं। हमारे देश में भी शुरुआत में जब कोविड 19 के कम मामले सामने आ रहे थे, तब बिना किसी विस्तृत योजना के ही सख्त लॉकडाउन लगा दिया गया, मोमबत्तियां जलीं और थालियाँ पीटी गईं।

जब जनता लॉकडाउन से बेहाल थी, उस बीच में दिल्ली दंगों की रिपोर्ट आयी। जैसा अनुमान था, इसमें बीजेपी के नेताओं को सरकार के इशारे पर छोड़ दिया गया, और जितने भी नागरिकता संशोधन क़ानून के कट्टर विरोधी थे, सबको नामित कर दिया गया। यही न्यू इंडिया का असली और सबसे भद्दा चेहरा था, जिसे लॉकडाउन की आड़ में सरकार ने प्रस्तुत किया। नागरिकता संशोधन क़ानून के विरुद्ध लगातार चलता आन्दोलन भी लॉकडाउन ने रोक दिया।

मजदूर वर्ग सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलता रहा और सरकार कोविड 19 की आड़ में विरोधी स्वर कुचलती रही। यही नहीं, कोविड 19 से सम्बंधित अफवाह भी प्रधानमंत्री से लेकर छुटभैये नेता तक फैलाते रहे। अब तो कोविड 19 के मामले देश में प्रतिदिन एक लाख के लगभग उजागर हो रहे हैं और लगभग 1100 लोग रोजाना अपनी जान गवां रहे हैं, पर देश अनलॉक हो चुका है। बीजेपी नेता रैलियां आयोजित कर रहे हैं और कोविड 19 के जाने की सूचना दे रहे हैं। अब प्रश्न यही है कि हमारे देश में क्या कोविड 19 से लॉकडाउन का कोई रिश्ता था भी या नहीं?

भारत और अमेरिका ऐसे दो ही देश हैं, जो कोविड 19 के लगातार बढ़ते मामलों के बीच भी बाजार से लेकर स्कूलों को खोलते जा रहे हैं। दूसरी तरफ इजराइल में हाल में ही जब इसके मामले दुबारा बढ़ने लगे तब दुबारा देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया है। न्यूज़ीलैण्ड समेत अनेक देशों में जिस शहर में कोरोना के मामले दुबारा बढ़ रहे हैं, इन शहरों में भी लॉकडाउन लगाया जा रहा है। हमारे देश में बढ़ाते मामलों के साथ लॉकडाउन तेजी से हटाया जा रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की पूर्व मुखिया और नॉर्वे की पूर्व प्रधानमंत्री ग्रो हार्लेम ब्रंटलैंड की संस्था ग्लोबल प्रीपेयर्डनेस मोनिटरिंग बोर्ड ने पिछले वर्ष ही एक रपोर्ट प्रकाशित कर चेताया था कि दुनिया किसी भी विश्वव्यापी महामारी के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है। इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि अगली महामारी सांस संबंधी पैथोजेन से पनपेगी, पर पूरी दुनिया ने इस चेतावनी को अनदेखा कर दिया।

इसी संस्था की पिछले सप्ताह प्रकाशित दूसरी रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया कोविड 19 से निपटने के नाम पर अबतक लगभग 11 खरब डॉलर खर्च कर चुकी है। दूसरी तरफ यदि दुनिया केवल महामारी से लोगों को बचाना चाहती तो इसके लिए महज 5 डॉलर प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष खर्च करने की अगले पांच वर्षों तक आवश्यकता होगी बशर्ते मुद्दा केवल महामारी से इमानदारी से लड़ना हो।

पर, समस्या यह है कि सरकारें अभी तक इस सन्दर्भ में गंभीर रवैया नहीं अपना रही हैं, यही कारण है कि कोविड 19 के जनवरी में आगमन के बाद भी दुनिया में एक दिन में सबसे अधिक मौतें, 307030, पिछले 13 सितम्बर को दर्ज की गईं हैं, इससे पहले का रिकॉर्ड 6 सितम्बर का था जब 306857 लोगों की मृत्यु हुई थी। इन आंकड़ों से ही पता चलता है कि पूरे 9 महीने के बाद भी दुनिया महामारी के लिए तैयार नहीं है।

अमेरिका कोविड 19 के मामलों में और इससे होने वाली मृत्यु के सन्दर्भ में पहले स्थान पर है और राष्ट्रपति ट्रम्प लगातार ऐसे वक्तव्य देते हैं, मानो उन्हें इस वायरस के बारे में और इसकी भयावहता के बारे में कोई जानकारी ही न हो।

हाल में ही प्रसिद्ध पत्रकार बॉब वुडवर्ड ने ट्रम्प से सम्बंधित एक पुस्तक प्रकाशित की है, रेज (rage)। इस पुस्तक का आधार ट्रम्प से नवम्बर 2019 से जुलाई 2020 के बीच लिए गए लगभग 19 इंटरव्यू हैं। पुस्तक के अनुसार फरवरी 2020 में दिए गए इंटरव्यू में ही ट्रम्प ने बताया था कि कोरोना वायरस बहुत खतरनाक और घातक है, और यह हवा से भी फैलता है इसलिए इसके प्रसार को रोकना लगभग असंभव है।

जाहिर है ट्रम्प भले ही इसे सामान्य फ्लू बताते रहे हो, पर इसके बारे में उन्हें अच्छी तरह से पता था, फिर भी इसकी रोकथाम के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया और दूसरी तरफ इसके विज्ञान के अनुसार इसकी रोकथाम के लिए कदम सुझाने वाले हरेक सलाहकार को उन्होंने बाहर का रास्ता दिखा दिया।

इस पुस्तक के प्रकाशित होने के बाद जब ट्रम्प से इस बारे में पूछा गया तब उनका जवाब था, मैं नहीं चाहता था कि देश में कोई डर का माहौल बने और अफरा तफरी मचे। आश्चर्य यह है कि ट्रम्प जब जनता में अफरातफरी नहीं फैलाना चाहते थे और डराना नहीं चाहते थे तब देश में 2 लाख से भी अधिक मौतें कोविड 19 से हो गईं। जो बिडेन अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में ट्रम्प को टक्कर दे रहे हैं, उन्होंने कोविड 19 को लेकर ट्रम्प प्रशासन द्वारा की गई लापरवाही को आपराधिक भूल बताया है।

आश्चर्य यह है कि इतने तथ्यों के बाद भी ट्रम्प की कोविड 19 की रोकथाम में कोई रूचि नहीं है और वे हरेक चुनावी दौरे पर कोविड 19 से सम्बंधित अपने ही सरकार के निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं और अपने समर्थकों को भी यही सन्देश दे रहे हैं।

ट्रम्प जैसा ही व्यवहार ब्राज़ील और मेक्सिको के राष्ट्रपतियों का भी है। ब्राज़ील के राष्ट्रपति कोविड 19 की आड़ में निरंकुश शासन चला रहे हैं, जबकि इससे मरने वालों की संख्या के सन्दर्भ में इसका स्थान अमेरिका के बाद दूसरा है, और अब वहां लाशों को दफ़न करने के लिए नयी जगहें तलाश करनी पड़ रही हैं। मेक्सिको के राष्ट्रपति भी ट्रम्प या ब्राज़ील के राष्ट्रपति की तरह मास्क नहीं लगाते है और दैनिक प्रेस ब्रीफिंग, जो कोविड 19 के नाम पर आयोजित की जाती है, में इसके बारे में बोलने के बदले विपक्षियों पर बरसते हैं।

जाहिर है, कुछ यूरोपीय देशों और न्यूज़ीलैण्ड को छोड़कर अधिकतर देशों में कोविड 19 की महामारी में सरकारों ने जनता को अपने हाल पर छोड़ दिया है और इस आपदा में भी निरंकुश शासक अपनी ताकत बढाने और जनता के दमन में मशगूल हैं।

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