वैज्ञानिक जर्नल के प्रकाशक एल्सेविर पर 40 वैज्ञानिकों ने मुनाफाखोरी का आरोप लगा दिया इस्तीफा

एल्सेविएर जैसे बड़े वैज्ञानिक विषयों के प्रकाशकों की आमदनी गूगल, एप्पल या अमेज़न जैसी कंपनियों की वार्षिक आय से भी अधिक है। पिछले वर्ष एल्सेविएर के कारोबार में 10 प्रतिशत की बृद्धि और मुनाफ़ा में 40 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गयी है...

Update: 2023-05-08 03:18 GMT

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महेंद्र पांडेय की टिप्पणी

Scientific journals are neglecting science for more profits. दुनिया के तमाम बड़े और प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों का आरोप है कि प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल और लोकप्रिय विज्ञान से सम्बन्धित पाठ्यपुस्तकों के प्रकाशक डिजिटल संकरण या इलेक्ट्रॉनिक संस्करण के नाम पर बेतहाशा मुनाफ़ा कमा रहे हैं, जिससे वैज्ञानिक जगत को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है और इस क्षेत्र में डिजिटल-असमानता बढ़ रही है। हाल में ही वैज्ञानिक जर्नल और पाठ्यपुस्तकों के वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े प्रकाशक, एल्सेविएर, द्वारा प्रकाशित न्यूरोइमेज, नामक जर्नल के पूरे सम्पादक मंडल और शोधपत्रों का रिव्यु करने वाले अकेडमिक बोर्ड ने प्रकाशक पर केवल मुनाफे के लिए काम करने का आरोप लगाते हुए सामूहिक त्यागपत्र दिया है। त्यागपत्र देने वाले इस पूरे समूह में 40 से अधिक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हैं, जो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी, किंग्स कॉलेज और कार्डिफ यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़े हैं।

मूलतः डच कंपनी, एल्सेविएर, का वैज्ञानिक प्रकाशन में सबसे प्रतिष्ठित और बड़ा नाम है, दुनिया में प्रकाशित सभी शोधपत्रों में से एक चौथाई से अधिक का प्रकाशन इन्हीं के जर्नलों में किया जाता है। पहले न्यूरोइमेज नामक जर्नल का प्रिंट संस्करण प्रकाशित किया जाता था, पर अब यह ऑनलाइन ओपन-एसेस जर्नल है। प्रिंट संस्करण का मूल्य था, पर अब यह निःशुल्क है। दूसरी तरफ, अब इसका खर्च वहन करने के लिए शोधपत्र प्रकाशित कराने वाले अनुसंधानकर्ताओं और वैज्ञानिकों से प्रकाशन शुल्क वसूला जाता है। एक शोधपत्र प्रकाशित कराने का शुल्क लगभग 3400 डॉलर है। पिछले कुछ समय से एडिटोरियल बोर्ड और रिव्यु करने वाले अकादमिक बोर्ड के सदस्य इस शुल्क का विरोध कर रहे थे, प्रकाशक से अनेक बैठकों के बाद भी जब कोई नतीजा नहीं निकला तब इस जर्नल से जुड़े सभी वैज्ञानिकों ने सामूहिक इस्तीफ़ा दे दिया और अब यह समूह एक ऐसा ही जर्नल प्रकाशित करने की तैयारी कर रहा है जिसमें कोई प्रकाशन शुल्क नहीं लिया जाएगा।

वैज्ञानिकों का यह समूह इसे प्रकाशक की पूंजीवादी सोच बता रहा है क्योंकि जिस प्रकाशन शुल्क को वह वसूल रहा है, उसका वास्तविक खर्चे से कोई भी सम्बन्ध नहीं है। यह पूंजीवादी सोच निश्चित तौर पर विज्ञान और वैज्ञानिक जगत की अवहेलना है। एल्सेविएर जैसे वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नलों में दुनियाभर के वैज्ञानिक अपने शोधपत्र प्रकाशित कराना चाहते हैं, जिससे उनके अनुसंधान को अधिक लोग जान सकें और ऐसे प्रकाशन के बाद उनके तरक्की के रास्ते आसान हो जाते हैं। इन शोधपत्रों का रिव्यु करने वाले वैज्ञानिक रिव्यु करने के कोई पैसे नहीं लेते और एडिटोरियल बोर्ड से जुड़े वैज्ञानिक भी या तो कोई फीस नहीं लेते या फिर एक नगण्य सी रकम स्वीकार करते हैं। दरअसल बड़े जर्नलों से जुड़ना वैज्ञानिकों के लिए आमदनी से अधिक प्रतिष्ठा का विषय रहता है। अनेक वैज्ञानिक मानते हैं कि एल्सेविएर जैसे बड़े वैज्ञानिक विषयों के प्रकाशकों की आमदनी गूगल, एप्पल या अमेज़न जैसी कंपनियों की वार्षिक आय से भी अधिक है। पिछले वर्ष एल्सेविएर के कारोबार में 10 प्रतिशत की बृद्धि और मुनाफ़ा में 40 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गयी है।

विज्ञान से सम्बंधित ज्यादा पढी जाने वाली पाठ्यपुस्तकों के डिजिटल संस्करण की कीमतें भी प्रिंट संस्करण की तुलना में कई गुना अधिक रखी जाती हैं। वनस्पति विज्ञान से सम्बन्धित एक लोकप्रिय पुस्तक के प्रिंट संस्करण का मूल्य 95 डॉलर है जबकि तीन यूजर वाले ई-संस्करण की कीमत 1225 डॉलर है। इसी तरह गणित शिक्षा से सम्बंधित एक पुस्तक का प्रिंट संस्करण 45 डॉलर में और इसका एक यूजर वाला ई-संस्करण 700 डॉलर में उपलब्ध है। जाहिर है, अब बड़े पुस्तकालय भी पुस्तकों के ई-संस्करण का बोझ नहीं उठा पा रहे हैं।

वैज्ञानिक समाज समय-समय पर प्रकाशकों के पूंजीवादी रवैय्ये के विरुद्ध आवाज उठा चुका है, विरोध कर चुका है – पर पहली बार ऐसा हुआ है जब एक प्रतिष्ठित जर्नल से जुड़े सभी वैज्ञानिकों और संपादकों ने सामूहिक इस्तीफ़ा दिया है। इसके बाद अनेक दूसरे जर्नलों में भी ऐसी सुगबुगाहट चल रही है। यदि ऐसा हुआ तब, निश्चित तौर पर विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधान को ही लाभ होगा।

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