दुनियाभर में हर समस्या होती जा रही अति विकराल, मगर जी20 के बीच मीडिया और सत्ता का गठजोड़ PM मोदी को महान नायक बताने में व्यस्त

G20 : जी20 के बैठकों के दौर चलते रहे, पर उक्रेन पर, अफ्रीका में सैन्य तख्तापलट पर, म्यांमार पर, दुनियाभर में प्रजातंत्र के हनन पर, या तापमान बृद्धि के कारण पूरी दुनिया में चरम प्राकृतिक आपदाओं पर कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा गया, इन समस्याओं को सुलझाने का कोई खाका नहीं प्रस्तुत किया गया....

Update: 2023-09-09 17:40 GMT

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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

G20 is a club of rich countries responsible for climate change and global warming at global level. जी20 के आयोजन में इस वर्ष हमारे देश ने जितना खर्च किया, उतना इससे पहले के किसी आयोजक ने नहीं किया। जी20 के प्रचार में जिस तरह से तमाम पोस्टरों पर हमारे प्रधानमंत्री की तस्वीर छापी गयी, वैसी इससे पहले के 16 आयोजनों में कभी नहीं देखा गया।

जी20 के आयोजन का भद्दी तरीके से राजनीतिक फायदा हमारे देश में जिस तरह से उठाने का प्रयास किया गया, वह भी कभी नहीं हुआ। इन सबके बीच एक तथ्य यह भी है कि जिस तरह से जी20 की तमाम बैठकें बिना किसी संयुक्त वक्तव्य के समाप्त होती रहीं, वैसा भी इससे पहले कभी नहीं हुआ था। दरअसल जी20 अमीर देशों का ग्रुप नहीं बल्कि एक क्लब है, जिसका उद्देश्य मनोरंजन ही रहता है। जी20 के बैठकों के दौर चलते रहे, पर उक्रेन पर, अफ्रीका में सैन्य तख्तापलट पर, म्यांमार पर, दुनियाभर में प्रजातंत्र के हनन पर, या तापमान बृद्धि के कारण पूरी दुनिया में चरम प्राकृतिक आपदाओं पर कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा गया, इन समस्याओं को सुलझाने का कोई खाका नहीं प्रस्तुत किया गया।

पूरी दुनिया की हरेक समस्या पहले से अधिक विकराल होती जा रही है, पर सत्ता और मीडिया इसके आयोजन को अभूतपूर्व तरीके से सफल बताती है और हमारे प्रधानमंत्री को दुनिया का सबसे महान नायक। पूरी दुनिया अस्थिर होती जा रही है, पर इसी दुनिया में अरबपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है – यही आर्थिक असमानता जी20 की दुनिया को एकमात्र देन है।

इस समय पूरी दुनिया तापमान बृद्धि के साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण तमाम प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में है, पर जी20 के पर्यावरण मंत्रियों की जुलाई के अंत में संपन्न बैठक में किसी भी गंभीर विषय पर कोई सहमति नहीं बनी। जी20 के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक के बाद भी इस विषय पर कोई गंभीर बात नहीं कही जायेगी, ऐसा पूर्वानुमान अनेक विशेषज्ञ लगा चुके हैं। दूसरी तरफ जी20 के देशों की सम्मिलित अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग 85 प्रतिशत है, और पूरी दुनिया से तापमान बृद्धि के लिए प्रभावी ग्रीनहाउस गैसों का जितना उत्सर्जन होता है, उसमें से 80 प्रतिशत से अधिक इन्हीं देशों से उत्सर्जित होता है। जाहिर है, पूरी दुनिया में तापमान बृद्धि और चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण जितना भी नुकसान हो रहा है वह जी20 देशों की देन है।

जी20 के देश ही जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने की हरेक अंतरराष्ट्रीय बैठकों में अग्रणी भूमिका निभाते हैं – कोई ग्लोबल नार्थ का नेतृत्व करता है तो कोई ग्लोबल साउथ का विश्वगुरु बन जाता है – और कोई भी गंभीर बहस होने नहीं देते। जाहिर है, ये सभी देश ही इन सारी समस्याओं के मूल में हैं, और इनसे किसी भी समस्या के हल की उम्मीद ही बेमानी है क्योंकि असली समस्या जी20 के देश स्वयं हैं।

हाल में ही यूरोपियन यूनियन के कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने बताया है कि इस वर्ष की गर्मी का मौसम (जून, जुलाई, अगस्त) उत्तरी गोलार्ध में मानव इतिहास का सबसे गर्म गर्मी का समय रहा है और वर्ष 2023 बड़ी तेजी से सबसे गर्म वर्ष बनने की ओर बढ़ रहा है। इस वर्ष चरम तापमान, सूखा, बाढ़ और जंगलों में आग के तमाम रिकॉर्ड एशिया, अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में ध्वस्त हुए। इससे मानव स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकीतंत्र बुरी तरह से प्रभावित हुआ।

जून, जुलाई और अगस्त के महीने में वैश्विक स्तर पर पृथ्वी का औसत सतही तापमान 16.77 डिग्री सेल्सियस रहा, जो पिछले 120000 वर्षों की तुलना में सर्वाधिक है। इससे पहले यह रिकॉर्ड वर्ष 2016 में दर्ज किया गया था, जब औसत सतही तापमान 16.48 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। इस वर्ष की तरह ही वर्ष 2016 भी एल नीनो से प्रभावित था, पर वर्ष 2016 में यह चरम पर था, जबकि इस वर्ष अभी तक यह अपने शुरुआती दौर में ही और इसके व्यापक प्रभाव इस वर्ष के अंत से लेकर अगले वर्ष तक स्पष्ट होंगे।

एल नीनो एक प्राकृतिक अवस्था है जिसके कारण प्रशांत महासागर का तापमान बढ़ता है और इस कारण दुनिया के अधिकतर हिस्सों में तापमान बढ़ता है। सयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुतेर्रेस ने कहा है कि वैश्विक जलवायु पूरी तरह से बदल रहा है और इसके गंभीर परिणाम पूरी दुनिया में स्पष्ट हो रहे हैं, पर अमीर देश इस समस्या को नजरअंदाज कर जीवाश्म इंधनों को बढ़ावा दे रहे हैं।

वर्ष 2023 के शुरू में प्रकाशित एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जक और जी20 समूह के सदस्य देश पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित कर रहे हैं। इस अध्ययन को अमेरिका की रिसर्च यूनिवर्सिटी डार्टमौथ कॉलेज के वैज्ञानिक क्रिस काल्लाहन के नेतृत्व में किया गया है और इसे क्लाइमेट चेंज नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

दरअसल ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है और वे वायुमंडल में मिलकर पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन करती हैं। इसलिए यदि इनका उत्सर्जन भारत या किसी भी देश में हो, प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ता है। सबसे अधिक प्रभाव गरीब देशों पर पड़ता है। इस अध्ययन को वर्ष 1990 से 2014 तक सीमित रखा गया है। इस अवधि में अमेरिका में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से दुनिया को 1.91 ख़रब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा, जो जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में होने वाले कुल नुकसान का 16.5 प्रतिशत है।

इस सूची में दूसरे स्थान पर चीन है, जहां के उत्सर्जन से दुनिया को 1.83 ख़रब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा है, यह राशि दुनिया में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले कुल नुकसान का 15.8 प्रतिशत है। तीसरे स्थान पर 986 अरब डॉलर के वैश्विक आर्थिक नुकसान के साथ रूस है। चौथे स्थान पर भारत है। भारत में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण दुनिया को 809 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा और यह राशि वैशिक आर्थिक नुकसान का 7 प्रतिशत है। इस तरह जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया में होने वाले आर्थिक नुकसान के योगदान में हमारे देश का स्थान दुनिया में चौथा है। पर, हमारे प्रधानमंत्री लगातार बताते रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन केवल अमेरिका और यूरोपीय देशों की देन है।

इस सूची में पांचवें स्थान पर ब्राज़ील, छठवें पर इंडोनेशिया, सातवें पर जापान, आठवें पर वेनेज़ुएला, नौवें स्थान पर जर्मनी और दसवें स्थान पर कनाडा है। अकेले अमेरिका, चीन, रूस, भारत और ब्राज़ील द्वारा सम्मिलित तौर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण पूरी दुनिया को 6 खरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है, यह राशि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 11 प्रतिशत है। इस पूरी सूची में वेनेज़ुएला को छोड़कर शेष सभी देश जी20 समूह के सदस्य हैं।

जाहिर है, जी20 या ऐसा कोई भी समूह महज अमीर देशों का आपसी सम्बन्ध मजबूत करने का एक साधन है। ऐसे समूहों द्वारा पूरे विश्व या धरती के विकास की बात करना एक छलावा है और कुछ भी नहीं। ऐसे सभी समूह पूरी दुनिया में केवल असमानता बढाते हैं वरना इतने समूहों के बाद भी दुनिया में हरेक स्तर पर असमानता का बसेरा नहीं रहता।

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