स्वीडन में महिला पादरी 50.1 फीसदी, मगर पुरुषों के मुकाबले वेतन में भारी अंतर
चर्च ऑफ़ स्वीडन की सेक्रेटरी क्रिस्टीना ग्रेन्होम के अनुसार यह मौका ऐतिहासिक है, जब दुनिया में कहीं भी महिला पादरियों की संख्या पुरुषों से अधिक है और यह सब पिछले अनुमानों की तुलना में बहुत जल्दी हो गया....
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
यूरोप के अनेक देशों में चर्च में महिला पादरी की नियुक्ति भी की जाती है और इस मामले में स्वीडन सबसे आगे है। चर्च ऑफ़ स्वीडन पूरे देश के चर्चों की निगरानी करता है और इसके द्वारा प्रकाशित नवीनतम आंकड़ों के अनुसार महिला पादरियों की संख्या अब पुरुष पादरियों की संख्या पार कर गई है। स्वीडन में पिछले 60 वर्षों से महिला पादरियों की नियुक्ति की जा रही है, और नए आंकड़ों के अनुसार महिला पादरियों के संख्या कुल पादरियों की संख्या का 50।1 प्रतिशत पहुँच गई है।
वहां के अधिकतर चर्च में रविवार को दो प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं, एक का संचालन पुरुष पादरी और दूसरे का संचालन महिला पादरी करतीं हैं। चर्च ऑफ़ स्वीडन के मुख्यालय की प्रधान भी महिला, आर्चबिशप अंत्जे जैकलिन हैं।
चर्च ऑफ़ स्वीडन की सेक्रेटरी क्रिस्टीना ग्रेन्होम के अनुसार यह मौका ऐतिहासिक है, जब दुनिया में कहीं भी महिला पादरियों की संख्या पुरुषों से अधिक है और यह सब पिछले अनुमानों की तुलना में बहुत जल्दी हो गया। वर्ष 1990 की रिपोर्ट के अनुसार पादरियों की संख्या के सन्दर्भ में महिलाओं को पुरुषों की बराबरी करने के लिए कम से कम वर्ष 2090 तक इंतज़ार करना पड़ेगा।
संख्या में भले ही महिलायें आगे पंहुंच गई हों पर चर्च ओद स्वीडन के समाचारपत्र के अनुसार वेतन के सन्दर्भ में महिला पादरी पुरुषों से पीछे हैं। महिला पादरी को औसतन हर महीने वेतन के तौर पर पुरुषों की तुलना में 2200 स्वीडिश क्रोनर कम मिलते हैं। क्रिस्टीना ग्रेन्होम के अनुसार इसका कारण पुरुष पादरियों का वरिष्ठ पदों पर बने रहना है।
चर्च ऑफ़ स्वीडन ने 1958 में क़ानून बदलकर महिला पादरियों की नियुक्ति का रास्ता खोला, और इसकी शुरुआत वर्ष 1960 में तीन महिला पादरियों की नियुक्ति से की गई। वर्ष 1982 ने सदिश सरकार ने उस क़ानून को समाप्त कर दिया जिसके तहत पुरुष पादरी महिला पादरियों की उपेक्षा कर सकते थे, या उनसे असहयोग कर सकते थे।
चर्च ऑफ़ स्वीडन के अनुसार, हम मानते हैं कि गॉड ने हरेक इंसान, स्त्री और पुरुष, दोनों को बनाया है और जब वह इनमें अंतर नहीं करता तो फिर हम यह अंतर क्यों करें। वर्ष 2017 से चर्च ऑफ़ स्वीडन की 251 सदस्यों ने सर्वसम्मति से लिंग-भेद दर्शाने वाले शब्दों का उपयोग भी बंद करने का फैसला लिया है। अब वहां गॉड के लिए "लार्ड" या फिर "ही" का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि केवल गॉड ही कहा जाता है। मानना है कि गॉड या ईश्वर लिंगभेद से परे हैं।
इंग्लैंड के चर्चों में भी अब महिला पादरियों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी है। चर्च ऑफ़ इंग्लैंड ने महिला पादरियों की नियुक्ति वर्ष 1992 से आरम्भ की है और वर्तमान में कुल पादरियों में से लगभग 35 प्रतिशत महिलाएं हैं। पिछले वर्ष कुल पादरियों की नियुक्ति में 51 प्रतिशत महिलायें हैं।
आश्चर्य यह है कि यह मानते हुए भी कि "गॉड ने हरेक इंसान, स्त्री और पुरुष, दोनों को बनाया है और जब वह इनमें अंतर नहीं करता तो फिर हम यह अंतर क्यों करें", महिला पादरियों का वेतन पुरुष पादरियों से कम है। सवाल यह उठता है कि क्या गॉड ने महिला और पुरुषों के वेतन में अंतर रखने को कहा है?