फेसबुक के पूर्व कर्मचारी ने कहा, समाज में घृणा और हिंसा फैला बढ़ रहा इसका कारोबार, ट्रंप कर रहे FB पर दंगों का आह्वान

अमेरिका ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में फेसबुक पिछले कुछ वर्षों से अराजकता फैलाने के लिए प्रयासरत है, अब यह ऐसा माध्यम बन गया है, जिसकी मदद से तमाम देशों में चरमपंथी दक्षिणपंथी सत्ता पर काबिज हो गए हैं......

Update: 2020-10-06 14:10 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

फेसबुक के माध्यम से अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के बाद समाज में हिंसा फैलाने का आह्वान करते लोगों को ट्रम्प ने अप्रत्यक्ष तौर पर अपना मीडिया कंसलटेंट बहाल किया हुआ है। ऐसी हिंसाओं को भड़काने का दुनियाभर में सबसे आसान माध्यम फेसबुक ही है, अभी अमेरिका में हो रहे ब्लैक लाइव्स मैटर आन्दोलन के दौरान भी फेसबुक के माध्यम से लगातार हिंसा को भड़काया जा रहा है।

हमारे देश में भी दिल्ली दंगों के दौरान इसके माध्यम से कट्टरपंथियों को भड़काया गया था। अमेरिका में एएफएफ मीडिया नामक कंपनी के फेसबुक पर उपलब्ध पेज सरेआम सामाजिक हिंसा को और झूठी खबरों का प्रसार करते हैं। इस कंपनी के मालिक पिता-पुत्र की जोड़ी है – डीनो पोर्रज्जो सीनियर और डीनो पोर्रज्जो जूनियर – और यह कंपनी वर्ष 2013 से कट्टर दक्षिणपंथी विचारधारा के प्रसार का काम कर रही है।

हाल में ही जब ट्रम्प ने स्वयं बयान दिया था कि यदि वे हार भी जाएँ तब भी आसानी से वाइट हाउस नहीं खाली करेंगे, उसके बाद से इसकी पोस्ट में नवम्बर में सामाजिक हिंसा के लिए कट्टरपंथियों को तैयार रहने का लगातार आह्वान किया जा रहा है। फेसबुक पर एएफएफ मीडिया के हेडर पर थ्री परसेंटाइल नामक दक्षिणपंथी और चरमपंथी संगठन का लोगो, हथियारों के साथ लोग, और अमेरिकी राष्ट्रपति के मुहर का थोडा परिवर्तित चित्र है।

कुछ दिनों पहले तक फेसबुक पर इसके 7,94,876 फोलोवर्स थे और इसके पोस्ट को प्रति सप्ताह औसतन 9600 बार शेयर किया जाता था। ट्रम्प के समर्थन के अलावा फेसबुक के इस पेज से विपक्षी डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन समेत अन्य डेमोक्रेटिक सदस्यों का चरित्र हनन, वामपंथी संगठनों और मानवाधिकार के लिए संघर्ष करने बाले संगठनों के खिलाफ जहर उगला जाता है।

इसके माध्यम से तरह-तरह की अफवाहें भी फैलाई जातीं हैं और विज्ञान, कोविड 19 और जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध भ्रामक खबरें फैलाई जातीं हैं, जो ट्रम्प की मानसिकता के ही अनुरूप हैं। हाल में ही कराये गए नए लोकप्रियता के सर्वेक्षण में ट्रम्प डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन की तुलना में 14 अंक पीछे थे, जाहिर है उनके समर्थन में फेसबुक पर पहले से अधिक उग्र पोस्ट लगातार बढ़ते रहेंगे।

अमेरिका ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में फेसबुक पिछले कुछ वर्षों से अराजकता फैलाने के लिए प्रयासरत है। अब यह ऐसा माध्यम बन गया है, जिसकी मदद से तमाम देशों में चरमपंथी दक्षिणपंथी सत्ता पर काबिज हो गए हैं। इसीलिए, तमाम सरकारी खोखले विरोधों के बाद भी इसे किसी देश ने प्रतिबंधित अब तक नहीं किया है।

जब ट्रम्प के पोस्ट फेसबुक से हटा दिए जाते हैं, या फिर भारत में प्रधानमंत्री जी का ज्यादा मुखर विरोध वाली पोस्ट आने लगती हैं, तब सरकारें इसे नियंत्रित करने की बात करती तो हैं, पर अंत में सरकार के विरुद्ध आवाजें दब जाती हैं और चरमपंथी दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी विचारधारा के समर्थक पहले से भी अधिक हिंसक और उग्र पोस्ट आराम से करने लगते हैं।

सामाजिक विषमता से सम्बंधित जितने भी सर्वेक्षण दुनिया में कही भी कराये जाते हैं, उनमें फेसबुक की अहम् भूमिका स्पष्ट नजर आती है। हाल में ही दुनिया के 22 देशों में, जिनमें भारत शामिल नहीं था, किये गए विस्तृत अध्ययन के अनुसार सोशल मीडिया का उपयोग करने वाली 58 प्रतिशत महिलाओं के अनुसार सोशल मीडिया पर अश्लील टिप्पणी, मार-पीट या फिर यौन हिंसा की धमकी मिलती रहती है।

इस तरह की सबसे अधिक शिकायत फेसबुक से सम्बंधित है, फिर इन्स्टाग्राम है और फिर व्हाट्सऐप है। अधिकतर महिलाओं का यह भी कहना है कि फेसबुक से शिकायत के बाद भी ऐसे पोस्ट न तो हटाये जाते हैं और ना ही आने बंद होते हैं।

भारत में तो सोशल मीडिया प्लेटफोर्म, विशेष तौर पर फेसबुक, की हालत और भी खराब है, यहाँ अधिकतर दक्षिणपंथी और तथाकथित राष्ट्रवादी विचारधारा वाली जनता का तो मुख्य पेशा ही अपने पोस्ट द्वारा महिलाओं का चरित्र हनन है और यह सब सरकार के चहेते लोग हैं। सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या का मामला हो या फिर आये दिन होने वाले बलात्कारों का मामला हो, महिलाओं का चरित्र हनन लगातार किया जाता है। वैसे भी जिस देश का मेनस्ट्रीम न्यूज़ मीडिया चैनेल खुलेआम महिलाओं का चरित्र हनन कर रहा हो और सरकार इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता रही हो, ऐसे में फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर चरित्र हनन से लेकर बलात्कार की धमकी तक सबकुछ सामान्य है।

फेसबुक का दावा है कि इससे सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा मिलता है, पर वास्तविकता यह है कि इससे समाज में वैमनस्व लगातार बढ़ रहा है, लोगों के जीवन से जुड़ी भ्रामक खबरें फ़ैल रही हैं और दुनिया की सबसे अवैज्ञानिक संस्था यही है। कुछ दिनों पहले मार्क जुकरबर्ग ने एक इंटरव्यू में कहा था कि फेसबुक विज्ञान, स्वास्थ्य और कोविड 19 से जुडी अफवाहों वाले पोस्ट को नहीं हटाएगा। अब तो फेसबुक के कर्मचारी भी इसकी नीतियों पर सवाल उठाने लगे हैं।

पिछले महीने भारतीय मूल के सॉफ्टवेयर इंजिनियर अशोक चाँदवाणी ने फेसबुक से इस्तीफा दिया था, जिसपर दुनियाभर में बहुत चर्चा की गई। एक खुले पत्र के माध्यम से अशोक ने कहा था कि फेसबुक समाज में घृणा और हिंसा फैलाकर अपनी कमाई बढ़ा रहा है, और यह इतिहास के उस ओर जा रहा है जिसकी चर्चा आगे कोई नहीं करना चाहेगा।

अशोक चाँदवाणी के अनुसार फेसबुक के अन्दर से जब विरोध के तेज स्वर उठेंगे तब बाहरी दबाव से शायद फेसबुक में कुछ बदलाव आएगा। कुछ मीडिया विशेषज्ञों के अनुसार एक समय आएगा जब फेसबुक के कर्मचारियों को समाज का दुश्मन समझा जाने लगेगा, फिर ये कर्मचारी फेसबुक छोड़ने के बाद कहीं काम करने लायक नहीं रहेंगे।

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