मुफ्त अनाज भी निश्चित तौर पर पीएम रिलीफ फण्ड जैसा बड़ा घोटाला, जिसकी विस्तृत जानकारी कभी नहीं देगी सरकार !
यह एक गूढ़ रहस्य है कि हमारे प्रधानमंत्री जी गरीबों को मध्यम आय वर्ग तक पहुंचाने का दावा करते हैं, पर मध्यम आय वर्ग में पहुँचने वालों को “गरीब” ही बताते हैं। अगले पांच वर्षों तक इन मध्यम वर्गीय परिवारों को जिस योजना के तहत मुफ्त अनाज मिलेगा, उसके नाम में भी “गरीब” शामिल है – प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
In a country of 7 crore “poor” people, the government is distributing free ration to 81.35 crore “poor” people : देश में गरीबी कम करने के बदले अब प्रधानमंत्री मोदी जी, उनके बडबोले मंत्रियों की फ़ौज और नीति आयोग जैसी संस्थाओं के साथ ही मेनस्ट्रीम मीडिया भी गरीबों और गरीबी का मजाक उड़ाने लगा है, और उनके आंकड़ों में अपनी मर्जी के अनुसार फेर-बदल करने लगा है।
केंद्र सरकार वर्ष 2020 से देश के 81.35 करोड़ लोगों को गरीब बताकर उन्हें मुफ्त अनाज दे रही है। यह एक आश्चर्य और शोध का का विषय है कि हरेक मामले में आंकड़े सुविधानुसार बढाने वाले प्रधानमंत्री जी और मेनस्ट्रीम मीडिया लगातार इस संख्या को 80 करोड़ प्रचारित क्यों करती रही है, यहाँ तक कि डीएवीपी द्वारा प्रचारित हरेक पोस्टर में भी केवल 80 करोड़ ही बताया गया है। जाहिर है, सरकार के लिए शेष 1.35 करोड़ आबादी नगण्य है।
वर्ष 2020 से प्रधानमंत्री जी हरेक मंच से, संसद से और यहाँ तक कि फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन के समारोह से भी लगातार 80 करोड़ “गरीबों” को मुफ्त अनाज देने की चर्चा करते रहे हैं। नीति आयोग ने जुलाई 2023 में एक रिपोर्ट प्रकाशित कर बताया कि वर्ष 2015-2016 से 2019-2021 के बीच के 5 वर्षों में 13.5 करोड़ लोग गरीबी की रेखा पार कर चुके हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री जी के भाषणों में और रोड के किनारे लगे पोस्टरों में गरीबी से बाहर आ चुके लोगों की सख्या बताई गयी, मोदी जी को धन्यवाद दिया गया, पर फिर भी देश में मुफ्त अनाज के 80 करोड़ लाभार्थियों को “गरीब” ही कहा गया। 29 नवम्बर 2023 को वर्ष 2028 तक मुफ्त अनाज के ऐलान के बाद भी प्रधानमंत्री और उनके मंत्री 80 करोड़ लोगों को “गरीब” बताते रहे।
इसके बाद 7 फरवरी को राज्यसभा में प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले 9 वर्षों में 25 करोड़ गरीब, गरीब नहीं रहे, बल्कि मध्यम आय वर्ग में शामिल हो गए हैं, फिर भी 80 करोड़ “गरीबों” को मुफ्त अनाज अगले 5 वर्षों तक मिलता रहेगा। दरअसल, प्रधानमंत्री जी जिस स्त्रोत के अनुसार 25 करोड़ का दावा कर रहे हैं, उसमें वास्तविक सख्या 24.82 करोड़ बताई गयी है। अब तो पिछले 9 वर्षों में 25 करोड़ आबादी के गरीबी-मुक्त होने के बड़े-बड़े पोस्टर भी चारों तरफ लगे हुए हैं, और इस पर सरकारी विज्ञापन भी प्रकाशित किये जा रहे हैं।
यह एक गूढ़ रहस्य है कि हमारे प्रधानमंत्री जी गरीबों को मध्यम आय वर्ग तक पहुंचाने का दावा करते हैं, पर मध्यम आय वर्ग में पहुँचने वालों को “गरीब” ही बताते हैं। अगले पांच वर्षों तक इन मध्यम वर्गीय परिवारों को जिस योजना के तहत मुफ्त अनाज मिलेगा, उसके नाम में भी “गरीब” शामिल है – प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना।
गरीबों और मध्यम वर्ग की हंसी उड़ाने वाले केवल प्रधानमंत्री जी ही नहीं हैं, देश का नीति आयोग भी ऐसा ही है। नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने 17 जुलाई 2023 को बताया कि वर्ष 2019-2021 तक देश की 14.96 प्रतिशत आबादी गरीब थी और वर्ष 2015-2016 के बाद के 5 वर्षों में 13.5 करोड़ आबादी गरीबी से बाहर आ गयी। हालांकि देश में कोविड-19 के दौरान गरीबों और श्रमिकों की स्थिति देखकर इन आंकड़ों पर भरोसा करना कठिन है।
इसके बाद अगले 6 महीने के भीतर ही, यानी जनवरी 2024 के शुरू में, नीति आयोग ने एक डिस्कशन पेपर प्रकाशित कर दावा किया कि वर्ष 2022-2023 तक देश में गरीबों की सख्या 11.28 प्रतिशत ही रह गयी और पिछले 9 वर्षों में 24.82 करोड़ आबादी गरीबी मुक्त हो गयी है। जाहिर है, नीति आयोग के दावों के अनुसार वर्ष 2019-2021 से वर्ष 2022-2023 के बीच के एक वर्ष के भीतर ही देश में 5.142 करोड़ आबादी गरीबी से मुक्त हो गयी।
नीति आयोग के आंकड़ों की बाजीगरी यहीं थमी नहीं, बल्कि जनवरी 2024 ने देश की 11.28 प्रतिशत आबादी को गरीब बताने वाले सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने अगले ही महीने यानि फरवरी 2024 में यह ऐलान कर दिया कि देश में केवल 5 प्रतिशत ही आबादी गरीब है। नीति आयोग के सीईओ की मानें तो एक महीने के भीतर ही देश में गरीबों की संख्या लगभग 8 करोड़ कम हो गयी।
इस नए दावे के बाद संभव है लोकसभा चुनावों के ऐलान से पहले ही देश को यह बताया जाए कि अब देश में कोई गरीब ही नहीं है, फिर भी देश अगले 5 वर्षों तक केंद्र सरकार 81.35 करोड़ “गरीब” लोगों को मुफ्त अनाज देती रहेगी। मुफ्त अनाज भी निश्चित तौर पर पीएम रिलीफ फण्ड जैसा एक बड़ा घोटाला है, जिसकी विस्तृत जानकारी कभी सरकार नहीं बतायेगी। यह देश के गरीबों का सरकारी स्तर पर भद्दा उपहास भी है, क्योंकि 7 फरवरी को प्रधानमंत्री राज्यसभा में 25 करोड़ का आंकड़ा बताते हैं और 25 फरवरी को नीति आयोग इस आंकड़े को लगभग 33 करोड़ तक पहुंचा देता है। देश की सत्ता बौद्धिक तौर पर अत्यधिक गरीब है।