जबरन मजदूरी में आम जनता को धकेलने वाले संगठनों की वैश्विक स्तर पर अवैध आमदनी बढ़कर पहुंची 236 अरब डॉलर प्रतिवर्ष

यौन उत्पीड़न के शिकार हरेक श्रमिक से इस कार्य में धकेलने वाले संगठनों को प्रतिवर्ष औसतन 27252 डॉलर की अवैध आमदनी होती है, जबकि जबरन मजदूरी में धकेल गए लोगों से उनके नियोक्ताओं को हरेक वर्ष औसतन 10000 डॉलर की अवैध आमदनी होती है....

Update: 2024-03-28 08:34 GMT

लगातार कैसे कसता जा रहा है आधुनिक गुलामी का चक्रव्यूह बता रहे हैं महेंद्र पाण्डेय

The forced labour has become lucrative business for traffickers, criminals and unscrupulous employers – they earn an average of $10000 per year from each victim. इन्टरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन (आईएलओ) के अनुसार आधुनिक गुलामी का दायरा साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है और साथ ही इससे जुड़े संस्थानों या संगठनों का मुनाफ़ा भी बढ़ रहा है। 19 मार्च 2024 को प्रकाशित आईएलओ की रिपोर्ट 'प्रोफिट्स एंड पावर्टी: द इकोनॉमिक्स ऑफ़ फोर्स्ड लेबर' के अनुसार जबरन मजदूरी या बेगारी में आम जनता को धकेलने वाले संगठनों की वैश्विक स्तर पर अवैध आमदनी 236 अरब डॉलर प्रतिवर्ष तक पहुँच गयी है। इस अवैध आमदनी को श्रमिकों के पास पहुँचना चाहिए, पर यह उनके नियोक्ताओं की जेब में पहुँच जाती है। इस अवैध आमदनी में 73 प्रतिशत हिस्सा श्रमिकों के यौन उत्पीड़न से आता है, जबकि वैश्विक स्तर पर जबरन मजदूरी में फंसे कुल श्रमिकों में से 27 प्रतिशत ही संगठित यौन उत्पीड़न का शिकार हैं।

आईएलओ के अनुसार वर्ष 2021 में वैश्विक स्तर पर लगभग 5 करोड़ लोग आधुनिक गुलामी की चपेट में हैं, यानि दुनिया की हरेक 1000 आबादी में से औसतन 3.5 लोग इसकी चपेट में हैं। वर्ष 2016 से 2021 के बीच लगभग 27 लाख नए लोग आधुनिक गुलामी का शिकार हुए। आधुनिक गुलामी के शिकार लोगों में से लगभग 2.8 करोड़ जबरन मजदूरी में और 2.2 करोड़ जबरन शादी में धकेल दिए गए हैं।

जबरन मजदूरी में संलग्न आबादी में से 1.7 करोड़ निजी क्षेत्रों में, 63 लाख यौन उत्पीड़न के क्षेत्र में और 39 लाख सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत हैं। यौन उत्पीड़न में धकेले गए कुल 63 लाख लोगों में से 49 लाख महिलायें हैं, अन्य क्षेत्रों में कुल 60 लाख महिलायें हैं। जबरन मजदूरी में 12 प्रतिशत संख्या बच्चों की है, जिसमें से आधे से अधिक यौन उत्पीड़न का शिकार हैं। जबरन मजदूरी में फंसे श्रमिकों की सर्वाधिक संख्या 1.5 करोड़ एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हैं, जबकि इनका घनत्व सबसे अधिक अरब देशों में है। अरब देशों की प्रति एक हजार आबादी में औसतन 5.3 लोग जबरन मजदूरी में धकेले गए लोगों की है।

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इस रिपोर्ट के अनुसार यौन उत्पीड़न के शिकार हरेक श्रमिक से इस कार्य में धकेलने वाले संगठनों को प्रतिवर्ष औसतन 27252 डॉलर की अवैध आमदनी होती है, जबकि जबरन मजदूरी में धकेल गए लोगों से उनके नियोक्ताओं को हरेक वर्ष औसतन 10000 डॉलर की अवैध आमदनी होती है। वर्ष 2014 से वर्ष 2021 के बीच इस आमदनी में 37 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक संगठित कारोबार बन गया है और इसमें फंसने वाले श्रमिकों और उनके तथाकथित नियोक्ताओं की आमदनी साल-दर-साल बढ़ती जा रही है।

ऑस्ट्रेलिया स्थित वाक फ्री फाउंडेशन हरेक वर्ष ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स प्रकाशित करता है। वर्ष 2023 के इंडेक्स में कुल 160 देशों में भारत का स्थान 34वां था। इस इंडेक्स में पहले स्थान पर उस देश का नाम होता है, जहाँ जबरन मजदूरी सबसे अधिक है और अंतिम नाम उस देश का होता है जहां यह सबसे कम है। इससे इतना तो स्पष्ट है कि आधुनिक गुलामी के सन्दर्भ में दुनिया के केवल 33 देश हमसे भी अधिक पिछड़े हैं, जबकि 126 देशों में स्थिति हमसे बेहतर है। वाक फ्री फाउंडेशन के अनुसार भारत में 1.1 करोड़ लोग बंधुआ मजदूर हैं, यानी जबरन मजदूरी में संलग्न हैं, यह संख्या दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक है। यहाँ प्रति एक हजार आबादी में बंधुआ मजदूरों की औसत संख्या 8 है।

आधुनिक गुलामी पूंजीवाद का एक प्रमुख स्तम्भ है और पूंजीवाद के साथ ही इसका भी प्रसार होता जा रहा है। राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भले ही पूरे विश्व में, विशेष तौर पर यूरोप में गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की बात की जा रही हो, पर तथ्य यह है कि आधुनिक गुलामी से सबसे अधिक मुनाफ़ा यूरोप और मध्य एशियाई देशों को हो रहा है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि स्वघोषित विश्वगुरु भारत, बंधुआ मजदूरी के सन्दर्भ में वास्तविक विश्वगुरु है।

सन्दर्भ:

1. Profits and Poverty: The Economics of Forced Labour, International Labour Organisation (2024) – ilo.org

2. Walkfree.org/global-slavery-index/

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