रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा वैश्विक मिलिट्री खर्च, 10 साल के मोदीराज में भारत के रक्षा खर्च में भी रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी

वर्ष 2023 में पहली बार दुनिया के सभी भौगोलिक क्षेत्रों में मिलिट्री खर्च में वृद्धि दर्ज की गयी है, इसका कारण देशों के बीच निरंकुश सत्ता का उफान, युद्ध, गृहयुद्ध, हिंसक गैंगों का नए सिरे से उदय और युद्ध के कारण अपने देशों को सुरक्षित रखने की मानसिकता है....

Update: 2024-05-02 10:46 GMT

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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

In this volatile and war-ridden world, global military expenditure has reached to a new peak. स्टॉकहोम इन्टरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट सीपरी के अनुसार वर्ष 2023 में वैश्विक मिलिट्री खर्च 2443 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच गया। वर्ष 2022 से 2023 के बीच मिलिट्री खर्च में 6.8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी, यह वृद्धि वर्ष 2009 के बाद से सर्वाधिक है। पिछले 9 वर्षों से साल-दर-साल वैश्विक स्तर पर मिलिट्री खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है पर वर्ष 2023 में पहली बार दुनिया के सभी भौगोलिक क्षेत्रों में मिलिट्री खर्च में वृद्धि दर्ज की गयी है, इसका कारण देशों के बीच निरंकुश सत्ता का उफान, युद्ध, गृहयुद्ध, हिंसक गैंगों का नए सिरे से उदय और युद्ध के कारण अपने देशों को सुरक्षित रखने की मानसिकता है।

देशों के सकल घरेलू उत्पाद, जीडीपी, के सन्दर्भ में मिलिट्री खर्च सबसे अधिक मध्य-पूर्व के देशों में औसतन 4.2 प्रतिशत है। इसके बाद यूरोप में 2.8 प्रतिशत, अफ्रीका में 1.9 प्रतिशत, एशिया और ओशिनिया में 1.7 प्रतिशत और अमेरिका (दक्षिणी और उत्तरी अमेरिका) में मिलिट्री खर्च कुल जीडीपी का 1.2 प्रतिशत है। मिलिट्री पर खर्च के सन्दर्भ में अमेरिका सबसे आगे है, यहाँ का मिलिट्री खर्च वैश्विक खर्च की तुलना में 37 प्रतिशत है। दूसरे स्थान पर 12 प्रतिशत योगदान के साथ चीन है, यानी वैश्विक मिलिट्री खर्च में से लगभग आधा खर्च केवल दो देशों – अमेरिका और चीन – की देन है।

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अमेरिका में 2.3 प्रतिशत और चीन के मिलिट्री खर्च में एक वर्ष के भीतर 6 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी है। तीसरे स्थान पर रूस है, इसके मिलिट्री खर्चे में एक वर्ष के दौरान 24 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी है। रूस में कुल सरकारी खर्चे का 16 प्रतिशत रक्षा पर खर्च किया जाता है। इस सूची में 83.6 अरब डॉलर खर्च के साथ भारत चौथे स्थान पर है। भारत में वर्ष 2022 से 2023 के बीच मिलिट्री खर्च में 4.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है, जबकि वर्ष 2014 से अब तक 44 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है।

यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि मिलिट्री खर्चे के सन्दर्भ में चौथे स्थान पर काबिज भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और यह देश मानवाधिकार और सामाजिक सरोकारों से सम्बंधित सभी वैश्विक इंडेक्स में फिसड्डी है। हमारे देश में मिलिट्री ग्रेड के ड्रोन से अपने ही किसानों पर आंसू गैस के गोले बरसाए जाते हैं और हथियारों से अपनी ही जनता को कुचला जाता है। इस सूची में रूस से युद्ध की मार झेल रहा यूक्रेन आठवें स्थान पर है, पर युद्ध के कारण मिल रहे अंतरराष्ट्रीय मदद को मिलाकर इसके मिलिट्री खर्च रूस के लगभग बराबर पहुँच जाता है। एक वर्ष के भीतर यूक्रेन के मिलिट्री खर्च में 51 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और वहां के कुल सरकारी खर्च का 58 प्रतिशत इस मद में जाता है।

अमेरिका समेत 31 नाटो सदस्यों का मिलिट्री खर्च 1341 अरब डॉलर है, जो कुल वैश्विक खर्चे का 55 प्रतिशत है। अमेरिका का रक्षा खर्च एक वर्ष के दौरान 23 प्रतिशत बढ़ चुका है और नाटो के कुल खर्च का 68 प्रतिशत है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से अधिकतर यूरोपीय देश भी अपना मिलिट्री खर्च लगातार बढ़ा रहे हैं। नाटो द्वारा वर्ष 2023 में किये गए मिलिट्री खर्च में 28 प्रतिशत हिस्सा यूरोपीय संघ के देशों का है। चीन का रक्षा खर्च 6 प्रतिशत बाधा है, जबकि इसके हमले से आशंकित ताइवान का रक्षा खर्च एक वर्ष के दौरान 11 प्रतिशत बढ़ गया है।

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मध्य-पूर्व यानी खाड़ी के देशों में मिलिट्री खर्च में 9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है, यह वृद्धि पिछले एक दशक में सबसे अधिक है। मध्य-पूर्व के देशों का मिलिट्री खर्च इजराइल-हमास युद्ध के बाद से तेजी से बढ़ा है। इजराइल का रक्षा खर्च एक वर्ष के भीतर 24 प्रतिशत तक बढ़ गया है। मध्य अमेरिका और कॅरीबीयन समूह के देशो में मिलिट्री खर्च वर्ष 2014 की तुलना में 54 प्रतिशत तक बढ़ गया है।

वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में मिलिट्री खर्च में सबसे अधिक बढ़ोत्तरी, 105 प्रतिशत कांगों में दर्ज की गयी है। साउथ सूडान में यह बृद्धि 78 प्रतिशत और पोलैंड में 75 प्रतिशत है। सामाजिक अस्थिरता को नियंत्रित करने और युद्ध रोकने के नाम पर दुनिया के अधिकतर देश मिलिट्री पर बेतहाशा खर्च करते हैं, पर दूसरी तरफ बढ़ते मिलिट्री खर्च के बीच दुनिया पहले से अस्थिर होती जा रही है, युद्ध बढ़ रहे हैं, अपराधी गिरोहों द्वारा हिंसा बढ़ रही है, गृह युद्ध भी पनप रहा है। संसाधनों की लूट और सामाजिक-आर्थिक असमानता ने दुनिया को अस्थिर किया है, जब तक दुनिया इसका समाधान नहीं खोजती, दुनिया कम से कम हथियारों से सुरक्षित नहीं होगी।

सन्दर्भ:

Sipri.org/media/press-release/2024/global-military-spending-surges-amid-war-rising-tensions-and-insecurity

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