Gujrat Election : केजरीवाल से परेशान क्यों हैं मोदी-शाह, किस बात की सता रही है चिंता?
Gujrat Election : आप ( AAP ) की आंशिक सफलता भी मोदी-शाह सहित भाजपा ( BJP ) की राष्ट्रीय छवि को डेंट लगाने का काम करेगी। इससे अन्य क्षेत्रीय दलों का हौसला भी बुलंद होगा। केजरीवाल की डेंट लगाने की इसी राजनीति से मोदी-शाह ( Modi-Shah ) की नींद उड़ी हुई है....
गुजरात में मोदी बनाम केजरीवाल की राजनीति पर धीरेंद्र मिश्र का विश्लेषण
Gujrat Election : दिसंबर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। जम्मू-कश्मीर का चुनाव भी हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं। इन चुनावों खासकर गुजरात चुनाव को लेकर अगर सबसे ज्यादा कोई चिंतित है तो वो हैं देश के सबसे ज्यादा ताकतवर व्यक्ति व पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा के सियासी चाणक्य के नाम से लोकप्रिय गृह मंत्री अमित है। खास बात यह है कि उन्हें सियासी नफा-नुकसान का डर कांग्रेस, जेडीयू, सपा, बसपा, एनसीपी, आरजेडी, शिवसेना जैसे दलों से नहीं बल्कि आप से है। ऐसा इसलिए कि अरविंद केजरीवाल की खासियत यह है कि वह किसी भी चुनौती को स्वीकार करने में हिचकिचाते नहीं। वो बेहिचक चुनौती स्वीकार करने और चुनौती देने में विश्वास करते हैं। कोई चुनौती न भी ले तो उसे देना जानते हैं। साथ ही जमीनी सच्चाई से परे जाकर भी बड़ी लड़ाई लड़ने में विश्वास रखते हैं।
अरविंद कजरीवाल एंड टीम की इसी लड़कपन से मोदी-शाह सबसे ज्यादा चिंतित हैं। उन्हें डर इस बात की नहीं है कि गुजरात में या हिमाचल में हार जाएंगे। इस बात से दोनों आश्वस्त हैं कि पहले से बेहतर स्थिति में वो भाजपा की सरकार इस बार भी बनाएंगे। यहां पर आप पूछेंगे कि फिर दोनों को डर किस बात की है? मेरा जवाब ये है कि डर इस बात की है कि कुछ सीटों पर जीत हासिल कर भी आम आदमी पार्टी गुजरात में कांग्रेस का विकल्प बन गई तो उनके 2027 तक सत्ता में बने रहने और सियासी डींग मारने की बादशाहत को खतरा पैदा हो जाएगा। ऐसा इसलिए कि गुजरात में कांग्रेस का विकल्प बनने के बाद केजरीवाल बेकाबू हो जाएंगे। फिर गुजरात पीएम मोदी और अमित शाह का गृह राज्य है। उनकी राजनीति यहीं से शुरू होती और गुजरात मॉडल का ढिंढोरा पीटकर ही वो देश पर राज कर रहे हैं। कहीं न कहीं दोनों को लगने लगा है कि देश की राजनीति के कुछ पहलू ऐसे हैं, जिसके आधार पर केजरीवाल भाजपा की पहुंच से दूर हो जाएंगे।
पापुलर पॉलिटिक्स
दिल्ली हो या पंजाब या फिर उत्तराखंड हो या गोवा झूठे वादों और झूठे दावों के मामले में देश की राजनीति में अरविंद केजरीवाल से कोई हाथ नहीं मिला सकता। केजरीवाल की सब्सिडी राजनीति का ही परिणाम है कि फ्री कल्चर व रेवड़ी कल्चर का मुद्दा पीएम मोदी ने उठाया, अब इस मसले पर चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी है, लेकिन इस मसले को लेकर केजरीवाल राजनीतिक मोर्चे पर दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। पीएम मोदी का मजाक उड़ाते हुए वो कहते हैं अगर नौ लाख करोड़ रुपए उद्योगपतियों का माफ करना गलत नहीं है तो गरीबों को मुफ्त में पानी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा देना रेवड़ी बांटना कैसे हो गया? कमजोर आय वर्ग के लोगों को ये सुविधा तो सरकार को देनी ही चाहिए। इस रणनीति का तकाजा है कि दिल्ली के बाद पंजाब में आप को न तो भाजपा, अकाली दल, कांग्रेस व अन्य पार्टियां मात दे पाई।
अब उसी दिल्ली मॉडल का प्रयोग केजरीवाल गुजरात में कर रहे हैं। चौंकाने वाली बात तो तब हो गई दो वर्चुअल शिक्षा पिछले दो साल से देश में जारी होने के बावजूद उन्होंने 31 अगस्त को पूरे तामझाम के साथ मीडिया को बुलाकर दावा किया भारत का पहला वर्चुअल स्कूल.या दिल्ली मॉडल वर्चुअल स्कूल वो देश में शुरू करने जा रहे हैं। जबकि दो साल से उत्तराख्ांड में वर्चुअल मोड में पढ़ाई जारी है। केजरीवाल ने कहा कि हम आज से कक्षा 9 के लिए प्रवेश आवेदन आमंत्रित कर रहे हैं। देश भर के छात्र प्रवेश के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालांकि, भाजपा ने बहुत हद तक उनके इस दावे को पंचर जरूर कर दिया।
प्रोपैगैंडा वार और सियासी षडयंत्र
सीएम अरविंद केजरीवाल हर चुनाव में हर जगह अपने चुनावी सर्वेक्षणों के हवाले से जीत का दावा करते रहे हैं। अब उन्होंने सूरत की 12 में से 7 सीटों का सर्वेक्षण आम आदमी पार्टी के पक्ष में बता कर वैसा ही झूठ बोला है। जैसे पहले बोलते रहे हैं। अपनी प्रेस कांफ्रेंसों में वह इस बात की कतई परवाह नहीं करते कि वह कोरा झूठ बोल रहे हैं। पंजाब विधानसभा चुनावों के बाद वह भगवंत मान को अपने साथ गुजरात ले गए। जहां उन्होंने एलान किया कि भगवंत मान ने दस दिन के अंदर पंजाब में भ्रष्टाचार खत्म कर दिया। जबकि उसके बाद वहां के हेल्थ मिनिस्टर विजय सिंगला को रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ने के बाद बर्खास्त किया गया। दिल्ली के हेल्थ मिनिस्टर सत्येंद्र जैन भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई कर रही है। उनके कई विधायक जेल की हवा खा चुके हैं। केंद्रीय एजेंसियां सीबीआई, ईडी और इंकम टैक्स की छापेमारी जारी है। इसके बावजूद वो डटकर मैदान में खड़ें हैं।
बात आज की, लड़ाई कल की
साल 2014 में दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद वह दिल्ली में इतने लोकप्रिय थे कि वह चाहते तो दिल्ली की किसी लोकसभा सीट से चुनाव जीत सकते थे लेकिन उन्होंने वाराणसी में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा। अब फिर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ रहे हैं। एक मोर्चे पर लड़ाई नरेंद्र मोदी ने शुरू की है और दूसरा मोर्चा उन्होंने खुद खोला है। नरेंद्र मोदी सरकार ने दिल्ली सरकार पर भ्रष्टाचार के मामलों में सीबीआई और ईडी को उनके पीछे लगा कर उन्हें घेरने की कोशिश की है। जिस का मुकाबला करते हुए उन्होंने माहौल बना दिया कि मोदी उन की सरकार को गिराना चाहते हैं। दूसरी दिल्ली मॉडल को गुजरात मॉडल से बेहतर साबित कर वो भाजपा का गुजरात में विकल्प करने की कोशिश की जुटे हैं। केजरीवाल को पता है, गुजरात में आप का का कोई नुकसान नहीं होगा। आप का तो जो होगा भला ही होगा, फिर जंग के मैदान में ताल ठोककर उतरने में बुराई क्या है? आज भले ही लक्ष्य हासिल न हो, पर कल का रास्ता तो खुल ही जाएगा। जैसा पंजाब में हो चुका है।
इसलिए डरते हैं मोदी और शाह
आप कहेंगे कि देश की राजनीति के बेताज बादशाह और लोकप्रिय नेता के बारे में इस तरह की कपोल कल्पना गलत है, पर ऐसा नहीं है। इस बात में कुछ हद तक दम भी है। पूछिए क्यों, इसका जवाब ये है कि जिस ईडी, सीबीआई, इंकम टैक्स, सियासी षडंयत्र से मामतत बनर्जी, लालू यादव, शरद पवार, शिवसेना, अखिलेश यादव, मायावती, कमलनाथ व अन्य नहीं बच पाये, उन सभी सियासी दांव-पेचों को मोदी-शाह की जोड़ी ने केजरीवाल की सरकार के खिलाफ भी दिल्ली में खेला और आप सरकार को गिराने की कोशिश की। केजरीवाल आठ साल से इन सियासी झंझावातों को झेल रहे हैं लेकिन रिजल्ट क्या हुआ, केजरीवाल और उनकी टीम पंजाब विधानसभा चुनाव ले उड़ी। और अब गुजरात की बारी है।
मोदी और शाह की चिंता ये है कि भले ही बेहतर परिणाम के साथ गुजरात में सरकार बना लें, लेकिन आप कुछ सीटें भी गुजरात में जीत गई तो उसका असर राष्ट्रीय स्तर पर होगा। केजरीवाल कुछ सीटों पर जीत के दम पर देशभर में यह प्रचारित करने से नहीं चुकेंगे कि देख लिया मोदी और शाह के घर में सेंध लगाने में सफल हुआ। भाजपा वाले बड़े तीस मार खान बन रहे थे। अब इन्हें केंद्र की सत्ता से बेदखल करेंगे। यानि गुजरात चुनाव में आप की आंशिक सफलता भी मोदी-शाह सहित भाजपा की राष्ट्रीय छवि को डेंट लगाने का काम करेगी। इससे अन्य क्षेत्रीय दलों का हौसला भी बुलंद होगा। आपको बता दें कि केजरीवाल के इसी डेंट लगाने की राजनीति से मोदी-शाह की नींद उड़ी हुई है।
जहां तक बात गुजरात विधानसभा चुनाव परिणाम 2017 की है तो पांच साल पहले भाजपा को 182 सदस्यीय विधानसभा सीटों में 99 पर जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस को 77 सीटों पर, अन्य को तीन, बीटीपी के खाते में दो और एनसीपी की खाते में एक सीट गई थी। भाजपा अकेले दम पर 49.5 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन हासिल करने में सफल हुई थी। कांग्रेस को 41.44 प्रतिशत मत मिले थे। अन्य को 4.40 फीसदी तो शेष मतदाताओं का समर्थन बीटीपी व एनसीपी के खाते में गई थी। भाजपा की पकड़ अब भी मजबूत है, लेकिन कांग्रेस अंदरूनी कलक की वजह से कमजोर हुई है। कांग्रेस ने पांच साल पहले भाजपा को कांटे की टक्क्र दी थी। यही वजह है कि आप के उभार को गुजरात में रोकना भाजपा के लिए मुश्किल है। यही वो स्थिति है जिससे मोदी-शाह दोनों बचना चाहते हैं।