हिटलर ने अलग गैस चैंबर बनाये थे लेकिन मोदी राज में पूरा देश गैस चैम्बर बना हुआ है

यह सवाल पूछना राष्ट्रद्रोह है कि एक साल पहले आई कोरोना आपदा के समय जिन 160 ऑक्सीजन प्लांट्स बनाने की घोषणा की गयी थी, उनमे से सिर्फ 33 ही क्यों बने?

Update: 2021-04-28 09:42 GMT

बादल सरोज का विश्लेषण

देश में कोरोना की दूसरी लहर भयावह होती जा रही है। जांच कम होने के बावजूद पिछले तीन दिन से हर रोज तीन लाख से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं। देश भर में मरीजों को बेड नहीं मिल रहा है। ऑक्सीजन गायब है। दवाइयां नहीं हैं। लाशों को जलाने की जगह, यहां तक कि लकड़ियों के, लाले पड़े हैं। ... और ठीक इसी बीच जो सरकार चला रहा है, उस संगठन आरएसएस के सरकार्यवाह ने बयान जारी कर कहा है कि "इस बात की पूरी संभावना है कि विनाशकारी और भारत विरोधी ताकतें देश में नकारात्मकता और अविश्वास का माहौल बनाने के लिए इन परिस्थितियों का फायदा उठा सकती हैं।"

महामारी की इस लहर के बारे में देश और दुनिया की अनेक सख्त पूर्व चेतावनियों के बावजूद कोई भी कदम न उठाने, ऑक्सीजन और जीवन रक्षक दवाइयों की उपलब्धता तथा अस्पतालों में वेंटीलेटर और आईसीयू सहित सभी जरूरी बंदोबस्तों के मामले में सम्पूर्ण विफलता के आपराधिक रिकॉर्ड के लिए मोदी सरकार की आलोचना करने के बजाय संघ सरकार्यवाह इन विफलताओं के बारे में बोलने और इनके चलते हो रही टाली जा सकने योग्य लाखों मौतों के बारे में चिंता जताने को ही भारत विरोधी ताकतों का राष्ट्रविरोधी काम बता रहे हैं।

यह 18 वीं सदी के अंग्रेजी भाषा के कवि साहित्यकार सैमुएल जॉनसन के प्रसिद्ध कथन "राष्ट्रवाद दुष्टों की आख़िरी शरणस्थली है" का आजमाया जाना भर नहीं है। यह अपनी नालायकियों और नरसंहारी अक्षमताओं को छुपाने भर की कोशिश भी नहीं है। यह इससे आगे की बात है। यह महाआपदा की आड़ में संविधान और लोकतंत्र पर हमलों को और तीखा करने की, बर्बर तानाशाही की ओर बढ़ने की धूर्त हरकत है।

हिटलर ने अलग से गैस चैम्बर्स बनाये थे - मोदी राज में पूरा देश ही चैम्बर बना हुआ है। मरघटों में मुर्दे लाइन बनाकर लेटे हुए हैं। घुटती साँसों को बहाल करने के लिए अस्पतालों के पास दवाई तो दूर की बात, ऑक्सीजन सिलेण्डर्स तक नहीं है। जैसा कि मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है : यह आपदा अपने आप नहीं आई, इसे इलेक्शन कमीशन, जिसके लिए आज ज्यादा लोकप्रिय नाम 'कें चु आ' है, की महामारी के बावजूद चुनाव कराने की जिद से बुलाई गयी है।

मोदी और कुनबे के आँख मूँद कर किये जा रहे कोरोना से जीत लेने और 150 देशों को मदद करने के झूठे दावों से इसके आने की राह झाड़पोंछ और बुहार कर आसान की गयी है। सरकार ठीक जिन कामों को करने के लिए होती है, ठीक वही काम नहीं करने के लिए उसकी आलोचना को अब नकारात्मकता और अविश्वास का माहौल बनाना और राष्ट्रद्रोह बताकर बोलने को ही प्रतिबंधित किया जा रहा है। अपनों की मौत पर रोने तक को देश विरोधी साजिश और नकारात्मकता करार दिया जा रहा है।

इस महाआपदा में भी पंचायत चुनाव करवा रहे उत्तरप्रदेश के योगी ने बीमारी और बद  इंतजामियों के बारे में कुछ भी बोलने पर रासुका लगाने की धमकी दे दी है। वाराणसी के कलेक्टर ने जीवन रक्षक बताये जाने वाले इंजेक्शन को लिखने वाले डॉक्टर्स और अस्पतालों के लाइसेंस रद्द करने का एलान कर दिया है। दिखाऊ-छपाऊ मीडिया तो पहले ही से गोबरलोकवासी हो चुका था, अब ट्विटर और फेसबुक आदि सोशल मीडिया से सरकार की आलोचना और महामारी की भयावहता बताने वाली सारी पोस्ट्स - ट्वीट्स हटाने के लिए कहा जा रहा है और इनके धंधाखोर उन्हें हटा भी रहे हैं।

यह सवाल पूछना राष्ट्रद्रोह है कि एक साल पहले आई कोरोना आपदा के समय जिन 160 ऑक्सीजन प्लांट्स बनाने की घोषणा की गयी थी, उनमे से सिर्फ 33 ही क्यों बने? कि जब दुनिया के सारे वैंज्ञानिक तथा डब्लूएचओ चेता रहे थे कि भारत में दूसरी भयानक लहर आ रही है, तब उससे जीत लेने की गप्प और उसके लिए मोदी को महामानव साबित करने की बेहूदगियाँ क्यों हुयी? कि जब पूरा देश कोरोना की जबरदस्त चपेट में था, तब प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बंगाल चुनाव में लाखों के बीच संक्रमण की होम डिलीवरी क्यों कर रहे थे? कि हरिद्वार के कुम्भ के मेले में लाखों की भीड़ जुटाकर पूरे देश में कोरोना को क्यों पहुंचा रहे थे?

कि जिन दवाओं की कमी से हजारों लोग मर रहे थे, वे करोड़ों रुपयों की दवाइयां भाजपा के छोटे-बड़े नेताओं के पास कैसे पाई जा रही थीं? कि इस महाआपदा में वैक्सीन की कीमतें चार से छह गुना तक बढ़ाकर छप्परफाड़ मुनाफे कमाने की छूट की अनुमति क्यों दी जा रही थी? कि जब कन्नूर का श्रवणबाधित बीड़ी मजदूर जनार्धनन अपने पास सिर्फ 850 रूपये रखकर बाकी जीवन भर की सारी बचत कोरोना से बचाव के लिए केरल के मुख्यमंत्री आपदा कोष में जमा कर रहा था, तब अडानी और अम्बानी 90 से 112 करोड़ रूपये प्रति घंटे की कमाई कैसे कर रहे थे?

आरएसएस का कहना है कि सभ्य समाज में ऐसे सवाल उठाना नकारात्मकता और अविश्वास का माहौल बनाने का देश विरोधी काम है। "सेंस ऑफ़ एंडिंग" ( अंत की अनुभूति) सहित अनेक उपन्यासों के ब्रिटिश मूल के लेखक जूलियन बार्न्स के शब्दों में "सबसे बड़ी देशभक्ति अपने देश को यह बताना है कि कब सरकार आपके साथ नीचतापूर्ण, मूखर्तापूर्ण और दोषपूर्ण व्यवहार कर रही है।" मगर संघी राष्ट्रवाद की कसौटी बिना चूंचपड़ किये चुपचाप मर जाना, लाइन में लगकर नंबर आने पर शान्ति से जल जाना और ऐसा करते हुए कारपोरेटों की काली और हत्यारी कमाई का जरिया बन जाना है।

आरएसएस नियंत्रित और संचालित मोदी की भाजपा सरकार के पास इस महामारी से देश को और उसमे अकाल मौत की आशंका से करोड़ों की जान बचाने की कोई योजना नहीं है। इससे उलट ठीक इसी बीच देश की जनता को विभाजित करने, देशवासियों को एक दूसरे की गरदन काटने के लिए उन्मादी बनाने की उसकी मुहिम जारी है। किसान आंदोलन पर कहर बरपाने की साजिश रची जा रही है। भूख और पीड़ा के सबसे मुश्किल समय में लोगों से राशन और नौकरी छीनी जा रही है।

यह सब बिना किसी विरोध के चलता रहे, इसके लिए बचे-खुचे लोकतंत्र और प्राकृतिक न्याय को भी खत्म कर देने के एजेंडे पर वह तेजी से बढ़ रही है। यही है कार्पोरेटी हिन्दुत्व का असली चेहरा। धन्नासेठों की कमाई कराने और उसे राष्ट्र की उपलब्धि बताने के मामले में पूरी तरह निर्लज्ज और अपने ही देशवासियों को सरकार की नाकाबलियत की वेदी पर बलि चढाने के मामले में बेतहाशा निर्मम। उन्हें कैसा भारत चाहिए, इसे जिन शायर से इस टिप्पणी का शीर्षक उधार लिया गया है, उन अमीर मीनाई साब की उसी ग़ज़ल के मक़्ते (आख़िरी शेर) में कहें तो ;

"वो बेदर्दी से सर काटें अमीर और मैं कहूँ उनसे

हुजूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता!!"

कोरोना से बचना भी होगा, लड़ना भी होगा। इससे और इसकी पैदा की गयी मुश्किलों से पीड़ित अपने हमवतनों और बाकी मानवता की जितनी संभव है, उतनी मदद भी करनी होगी। मगर इसी के साथ फासिस्टी नक़ाब उतारते निज़ाम के खिलाफ भी लड़ना होगा ; लड़ना होगा पूरे हौंसले के साथ - इस तेवर के साथ कि आने वाला वक़्त हमारे काल के बारे में कहे कि यह वह समय था, जब मौत मर गयी थी जीवन के डर के मारे।

(बादल सरोज अखिल भारतीय किसान महासभा के उपाध्यक्ष हैं।)

Tags:    

Similar News