खात्मे की ओर बढ़ते लोकतंत्र के बीच कितने आजाद हैं हम !

चुनाव आयोग ही वोट की चोरी करने लगे तो कैसे लोकतंत्र बचेगा? चुनाव आयोग और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच मिलकर वोट चोरी की साजिश की जा रही है....

Update: 2025-08-16 10:19 GMT

पूर्व सांसद उदित राज की टिप्पणी

ब्रिटिश शासन की मुक्ति से भारत को आत्मनिर्णय का अधिकार मिला। देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हुई, जिसमें नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों का चयन करने का अधिकार है। आज़ादी के बाद देश ने आर्थिक और सामाजिक विकास की दिशा में कदम बढ़ाए। भारत की आज़ादी की लड़ाई में कई महान नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों ने योगदान दिया, जिनमें महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह जैसे लोग शामिल हैं। उनकी कुर्बानियों और संघर्षों के कारण आज हम आज़ाद भारत में रह रहे हैं।

जिन ताकतों ने आज़ादी की लड़ाई में भाग नहीं लिया और अंग्रेज़ों का साथ दिया, सत्ता की बागडोर उनके हाथ में आ गई। स्वाभाविक है कि आज़ादी का मतलब उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। जनता ने अपना संविधान बनाया, ताकि ख़ुद शासन और प्रशासन चला सके। इसके लिए सबसे ज़्यादा जरूरी है वोट का अधिकार सभी नागरिकों को बराबर मिले और बहुमत से जो जीते वो उनका प्रतिनिधित्व करे। जब यही खतरे में पड़ जाए तो कहाँ तक हम आज़ाद हैं, आज ये सवाल खड़े हो गए हैं।

शुरू में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाती थी। इस प्रक्रिया में सरकार की भूमिका प्रमुख और उसके बाद नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव आया। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि चुनाव आयोग में नियुक्तियों के लिए एक स्वतंत्र और पारदर्शी प्रक्रिया होनी चाहिए। कोर्ट ने सुझाव दिया कि मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री की एक समिति को इन नियुक्तियों की सिफारिश करनी चाहिए। वर्तमान सरकार में लोगों को लगा कि जनता आगे उनको चुनाव नहीं जिताएगी इसलिए बदलाव कर दिया।

संसद से एक कानून पारित करवाया जिसके तहत मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर की जाने लगी। इस समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं। मुख्य न्यायाधीश को चयन समिति से बाहर कर दिया और पीएम और उनके मंत्री का बहुमत होना स्वाभाविक है और अपनी मर्जी के आयुक्त की नियुक्ति कर देते हैं। संविधान ने एक निष्पक्ष चुनाव आयोग संस्था का प्रावधान किया था जो वोटर लिस्ट तैयार करे। 18 वर्ष के हर नागरिक को वोटर लिस्ट में शामिल किया जाए। चुनाव के मध्य पूरा प्रशासन उसके अधीन किया गया ताकि कोई बाधा और हस्तक्षेप न हो।

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चुनाव आयोग ही वोट की चोरी करने लगे तो कैसे लोकतंत्र बचेगा? चुनाव आयोग और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच मिलकर वोट चोरी की साजिश की जा रही है। राहुल गांधी ने सिद्ध किया है कि वोट चोरी के पांच तरीके हैं, जिनमें डुप्लीकेट वोटर, गलत पते, एक ही घर में बहुत सारे मतदाता होना, मतदाता सूची में गलत या फर्जी नाम होना और फॉर्म 6 का गलत इस्तेमाल शामिल है।

उन्होंने 100 से अधिक सीटों पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया है जिससे BJP को फायदा पहुंचा। राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर देशद्रोह का आरोप लगाया है और कहा है कि वोट चोरी सिर्फ चुनावी धोखाधड़ी नहीं है, बल्कि यह संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ एक बड़ा धोखा है। चुनाव आयोग अपने लगे आरोपों पर सफाई देता उसके पहले बीजेपी कूद पड़ी। यहाँ उल्टा चोर कोतवाल को डांटे का मामला है। उल्टा चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से शपथ पत्र के जरिए सबूत पेश करने को कहा है। वोटर लिस्ट और सारे कागजात चुनाव आयोग को देना चाहिए, लेकिन यहाँ सब सीनाजोरी चल रही है।

सबसे अधिक मायूसी जनता की निष्क्रियता और तटस्थता को देखकर हैरानी होती है। वह जानती है कि लोकतंत्र की हत्या हो रही है, उसकी बात नहीं सुनी जा रही। बेरोजगारी आसमान छू रही है और महंगाई से परेशान हैं, लेकिन जनता खड़ी नहीं हो रही है। अमीर देश छोड़कर भाग रहे हैं और शिक्षा का सत्यानाश हो गया है। नौजवान को नौकरी नहीं मिल रही है और अच्छी शिक्षा निजी क्षेत्र में चली जा रही है और जो बहुत महंगी है। हाल में जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल, सत्यपाल मलिक का निधन हुआ जो बीमार थे इसलिए गिरफ़्तार नहीं हुए। उनकी गलती यही थी कि रिश्वत लेने से मना किया था और वे शिकायतकर्ता भी थे। राहुल गांधी ने वोट की चोरी का खुलासा किया, लेकिन उल्टा मीडिया, सरकार और बीजेपी उन्हीं से सवाल कर रही है।

इन बातों को देखते हुए लगता है कि भारत की जनता अभी लोकतांत्रिक मानसिकता की नहीं हो पाई है। अभी भी बहुत हद तक यह सत्य है “कोउ नृप होई हमै का हानि, चेरी छांड़ि कि होइब रानी” ग़ुलाम मानसिकता वाला देश है जो जातियों में बँटा है, भाग्यवादी और पाखंडी है। यही कारण है कि जो बाहरी हमलावर आया वह जीता, लूटा और चाहा तो हुकूमत किया।

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ब्रिटिश हुकूमत अन्य देशों में थी, लेकिन वहाँ के लोग बग़ावत कर जाते थे इसलिए उन पर भरोसा न था। अगर ऐसा न होता तो ब्रिटिश सरकार प्रथम विश्वयुद्ध में भारत से लगभग 8 लाख सैनिक ब्रिटेन की ओर से जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ लड़ने के लिए न भेजी होती। द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत से लगभग 25 लाख सैनिक ब्रिटिश कमान के तहत युद्ध के विभिन्न क्षेत्रों में लड़ने के लिए भेजे गए थे। इन सैनिकों ने यूरोप, अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया सहित सभी प्रमुख मोर्चों पर लड़ाई लड़ी। उन्होंने इटली को आज़ाद कराने और युद्ध प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। हिटलर ने क़रीब तीन लाख भारतीय सैनिकों को बंदी बनाया था और भारत से लंबे दिनों तक दूर थे इसलिए यूरोप की हवा-पानी का असर पड़ा और सुभाष चंद्र बोस ने तैयार किया और वहीं आज़ाद हिन्द फौज का निर्माण हुआ।

जाति व्यवस्था ने एक मानव को दूसरे से दूर ही नहीं किया, बल्कि घृणा करना सिखाया। इसके कारण भाई-चारा और मानवता का नाश हुआ और एक होने का बोध तो खत्म होना ही था। पूरा भारतीय समाज सामूहिक न होकर व्यक्ति परक हो गया और कोई भी विपत्ति या प्रतिकूल परिस्थिति इन्हें एक न कर पाई। सोच ऐसी है कि पड़ोसी का भला होगा तो मेरा होगा और किस्मत में जो होगा उसको कौन रोक सकता है। लोकतंत्र खात्मे की ओर है, लेकिन समाज से जो विरोध होना चाहिए वह नहीं दिख रहा है। यह हमें सोचने के लिए मजबूर कर देता है क्या लोकतंत्र के मूल्य को महसूस करते भी हैं? क्या आज जनता को उठ खड़ा नहीं होना चाहिए? स्वतंत्रता जनता को चाहिए तो उसे सजग भी रहना होगा, न कि मूकदर्शक बनी रहे।

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