भारत में फेसबुक द्वारा मानवाधिकार हनन | Human Rights Violations by Facebook in India
Human Rights Violations by Facebook in India | तमाम सोशल मीडिया प्लेटफोर्म, जिनमें फेसबुक सबसे अग्रणी है, हमारे देश में मानवाधिकार हनन, धर्मगत राजनीति, झूठी खबरों का प्रसार और महिलाओं पर हिंसा भड़काने में व्यस्त हैं, और जाहिर है इसे सरकार का पूरा समर्थन है|
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
Human Rights Violations by Facebook in India | तमाम सोशल मीडिया प्लेटफोर्म, जिनमें फेसबुक सबसे अग्रणी है, हमारे देश में मानवाधिकार हनन, धर्मगत राजनीति, झूठी खबरों का प्रसार और महिलाओं पर हिंसा भड़काने में व्यस्त हैं, और जाहिर है इसे सरकार का पूरा समर्थन है| कभी कभी सरकार गीदड़भभकी द्वारा जनता को यह दिखाती है कि उसे समाज की चिंता है, पर इसके ठीक बाद फेसबुक का पहले से अधिक क्रूर चेहरा सामने आ जाता है| फेसबुक हमारे समाज के लिए अफीम का काम कर रही है, जिसके नशे में पूरा देश है और सरकार चाहती भी यही है|
फेसबुक भले ही लगातार दावा करती है कि इस प्लेटफोर्म पर गलत और हिंसक पोस्ट नहीं डाले जा सकते और यदि सामने आ भी गए तो उन्हें तुरंत हटा दिया जाता है – पर इसका उपयोग करने वाले इस दावे की सच्चाई बहुत अच्छी तरह जानते हैं| अब फेसबुक के कुछ पुराने वरिष्ठ कर्मचारी ही अनेक मानवाधिकार संगठन के साथ मिलकर फेसबुक के विरुद्ध आवाज बुलंद कर रहे हैं| हाल में ही फेसबुक की पुरानी वरिष्ठ अधिकारी रहीं फ्रांसिस हानगेन (Frances Hangen) ने फेसबुक से मांग की है कि वह भारत में अपने प्रभावों से सम्बंधित रिपोर्ट शीघ्र जारी करें|
फेसबुक ने कानूनी कंपनी, फोले हाग (Law firm, Foley Hoag), के साथ वर्ष 2020 में एक करार किया था जिसके तहत भारत में फेसबुक के प्रभाव पर एक रिपोर्ट तैयार करनी थी| इसके बाद पिछले वर्ष ही नवम्बर में इसके दायरे को पहले से अधिक संकुचित कर दिया गया, जिससे मानवाधिकार से सम्बंधित बहुत सारी बातें रिपोर्ट में शामिल नहीं की जा सकें| इसके बाद भी आज तक इस रिपोर्ट को फेसबुक ने सार्वजनिक नहीं किया है| अब अनेक मानवाधिकार संगठन कह रहे हैं कि इस रिपोर्ट को जानबूझ कर दबाया जा रहा है|
फ्रांसिस हानगेन के साथ इस मांग में सोफी झांग (Sophie Zhang) और फेसबुक के पूर्व वाइस प्रेसिडेंट ब्रायन बोलंद (Brian Boland) भी शामिल हो गए हैं| इस सबने फेसबुक से इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है| हाल में ही फेसबुक के विरोध के लिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों द्वारा बनाए गए, रियल फेसबुक ओवरसाईट बोर्ड (Real Facebook Oversight Board), की प्रेस ब्रीफिंग में दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष ज़फरुल इस्लाम खान (Zafarul Islam Khan) ने कहा कि फेसबुक ने देश में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध माहौल बनाया है और उन्माद के साथ नफरत बढाने का काम किया है| फेसबुक ने देश में गलत खबरें फैलाने, भड़काऊ भाषणों के प्रसार और अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा फैलाने का कम किया है| इसने देश के चुनावों को और उसके परिणामों को भी प्रभावित किया है| देश में दंगों को फैलाने में और इसके लिए पीड़ितों को ही जिम्मेदार ठहराने में भी इसकी प्रमुख भूमिका रही है|
फ्रांसिस हानगेन ने अमेरिकी कांग्रेस के सामने बयान दिया था कि फेसबुक द्वारा अफवाहों और गलत समाचारों को रोकने के लिए जितना बजट है, उसमें से 85 प्रतिशत से अधिक अकेले अमेरिका में ही ख़त्म हो जाता है जबकि दुनिया भर में इसके यूजर्स में से महज 10 प्रतिशत यूजर्स ही वहां हैं, और शेष से पूरी दुनिया चलती है| जाहिर है, अमेरिका को छोड़कर कहीं और इस दिशा में ध्यान नहीं दिया जाता| दुनिया भर में सबसे अधिक 34 करोड़ यूजर्स भारत में हैं, और इनमें से अधिकतर सरकार समर्थित है – जाहिर है फेसबुक के लिए भारत में सरकार के हिंसक और भ्रामक विचारों को फैलाना फायदे का सौदा है|
कैरोल कैडवलाद्र ने द गार्डियन में फेसबुक के बारे में लिखा था, दुनिया की कोई ताकत फेसबुक को किसी भी चीज के लिए जिम्मेदार बनाने में असमर्थ है| अमेरिकी कांग्रेस कुछ नहीं कर सकी और ना ही यूरोपियन यूनियन इसपर लगाम लगा पाई| हालत यहाँ तक पहुँच गई है कि कैंब्रिज ऐनेलेटीका मामले में जब अमेरिका के फ़ेडरल ट्रेड कमीशन ने फेसबुक पर 5 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया तब फेसबुक के शेयरों के दाम आसमान छूने लगे| फेसबुक के माध्यम से अमेरिका के 2016 के चुनावों में सारी विदेशी शक्तियां संलिप्त हो गयीं और इस कारण चुनाव के परिणाम प्रभावित हुए| फेसबुक ने तो अनेक बार नरसंहार के मामलों का भी सीधा प्रसारण किया है| संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक के माध्यम से म्यांमार में रोहिंग्या के लिए घृणा इस पैमाने पर फैलाई गई कि इसने हिंसा का स्वरुप ले लिया, सामूहिक नरसंहार किये गए और आज भी किये जा रहे हैं| इसके चलते हजारों रोहिंग्या मारे गए और लाखों को अपने घरबार छोड़ना पड़ा|
पिछले वर्ष फिलीपींस की जिस पत्रकार, मारिया रेसा (Maria Ressa), को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था, उन्होंने भी समय-समय पर फेसबुक के संदिग्ध भूमिका के बारे में आगाह किया था| मानवाधिकार कार्यकर्ता मारिया रेसा की सजा को फेसबुक के प्रतिकार के तौर पर ही देखते हैं| ब्रिटेन के पूर्व उप-प्रधानमंत्री फेसबुक को समाज का आइना बताते हैं, पर अनेक बुद्धिजीवी फेसबुक को आइना नहीं बल्कि हथियार बताते हैं, वह भी बिना लाइसेंस वाला हथियार, जिससे आप किसी की हत्या कर दें तब भी पकडे नहीं जायेंगे|
कुल 2.6 अरब लोग फेसबुक से जुड़े हैं, इस मामले में यह संख्या चीन की आबादी से भी अधिक है| मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि इसकी तुलना चीन से नहीं की जा सकती, बल्कि इसे उत्तर कोरिया कहना ज्यादा उपयुक्त है, पर मार्क जुकरबर्ग तानाशाह किम जोंग से भी अधिक शक्तिशाली हैं| कुछ लोगों के अनुसार फेसबुक की यदि किसी हथियार से तुलना करनी हो तो वह हथियार बन्दूक, राइफल, तोप या टैंक नहीं होगा बल्कि सीधा परमाणु बम ही होगा| यह केवल एक तानाशाह, मार्क जुकरबर्ग के अधिकार वाला वैश्विक साम्राज्य है| जुकरबर्ग का एक ही सिद्धांत है, भले ही पूरी दुनिया में हिंसा फ़ैल जाए, नफरत फ़ैल जाए, कितने भी आरोप लगें – पर किसी आरोप का खंडन नहीं करना, किसी पर ध्यान नहीं देना – बस अपने साम्राज्य का विस्तार करते जाना, और अधिक से अधिक धन कमाना| यही कारण है कि फेसबुक का रवैया कभी नहीं बदलता| फेसबुक तो प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर मुख्य मीडिया को और अनेक सरकारों को भी संचालित करता है|
फेसबुक के फेक न्यूज़ या हिंसा को भड़काने वाले पोस्ट केवल एक रंग, नस्ल या देश को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि इसका असर सार्वभौमिक है, और दुनिया भर के लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है| इसे केवल एक संयोग कहकर नहीं टाला जा सकता कि कोविड 19 से सबसे अधिक प्रभावित देशों में अमेरिका, ब्राज़ील, भारत और इंग्लैंड सम्मिलित हैं| अगर गौर करें तो फेसबुक और इन्स्टाग्राम के पोस्ट इन देशों में इस महामारी के खिलाफ झूठे और भ्रामक प्रचार में संलग्न थे| ये चारों ही देशों की सरकारें ऐसी हैं, जो ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर प्रचार के बलबूते ही सत्ता पर काबिज हैं| फेसबुक का हाल तो ऐसा है, जो केवल चीन से ही बड़ा नहीं है बल्कि पूरे पूंजीवाद से बड़ा है| आज के पूंजीवाद और निरंकुश शासकों को टिके रहने के लिए फेसबुक सबसे बड़ा सहारा है|