अगर आप सोचते हैं मोदी-शाह की BJP की विचारधारा दक्षिणपंथी तो आप गलत, क्योंकि वो हिंदू वामपंथी हैं?
मोदी-शाह की भाजपा सरकार सिर्फ धर्म और राष्ट्रवाद मुद्दे पर सही है। अन्य मुद्दों पर कांग्रेस या किसी अन्य की तरह ही हिंदू वामपंथी हैं...
नई दिल्ली। अमूमन हमें यही सुनने को मिलता है कि वर्तमान केंद्र सरकार दक्षिणपंथी है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। ऐसा इसलिए कि जब देश के जाने माने पत्रकार शेखर गुप्ता ने प्रशांत किशोर जो कि एक रणनीतिकार के बजाय राजनीतिक सहयोगी कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं, के साथ अपने चर्चित और गंभीर टॉक शो 'ऑफ द कफ' की मेजबानी द दि प्रिंट की राजनीतिक रिपोर्टिंग टीम की वरिष्ठ सदस्य नीलम पांडे साथ की तो वो पीके के जवाब को सुनकर चौंक गए।
दरअसल, उन्होंने टॉक शो 'ऑफ द कफ' में बातचीत के क्रम में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर से एक सवाल किया। यह वो सवाल है उनके मन में हमेशा रहा है। पीके से वो सवाल है, क्या आपकी कोई विचारधारा है या नहीं? ये सवाल इसलिए कि उन्होंने नरेंद्र मोदी, ममता बनर्जी, कांग्रेस-सपा ( उत्तर प्रदेश, 2017), एमके स्टालिन, वाईएस जगन मोहन रेड्डी, अमरिंदर सिंह और अन्य के साथ मिलकर काम किया है, जबकि ये लोग अलग—अलग विचारधारा से जुड़े हैं?
शेखर गुप्ता के मुताबिक इस सवाल पर पीके के जवाब ने मुझे चौंका दिया। पीके ने कहा — नहीं मैं विचारधारा-अज्ञेयवादी नहीं हूं, आप मुझे वामपंथ उन्मुख बता सकते हैं। इसके बाद उन्होंने विस्तार से बताया कि इससे उनका तात्पर्य क्या है? बतौर उदाहरण महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए अपनी बातों को मेरे सामने विस्तार से रखा। टॉक शो के बाद मैंने संयोग से किशोर का ट्विटर बायो पर नजर डाला तो वहां पर "रेवर गांधी…" शब्दों से वह अपना परिचय शुरू करते हैं।
सही मायने में कहूं तो उनका यह कहना कि मैं वाम केंद्रित हूं, जैसे दावों ने मुझे कुछ सोचने के लिए मजबूर किया। मेरे मन में ख्याल आया, क्या होगा अगर हम यही सवाल अन्य प्रमुख राजनीतिक नेताओं से पूछें? आपकी विचारधारा क्या है? जैसे राहुल और प्रियंका गांधी, ममता बनर्जी, आंध्र के जगन, तमिलनाडु के स्टालिन, तेलंगाना के केसीआर आदि। इसके पीछे मेरा मकसद यह जानना हो सकता है कि क्या उनमें से कोई प्रशांत की तरह ईमानदारी या संयोग से वही उत्तर देता है? दरअसल, भारतीय राजनीति में हर कोई किसी ने किसी स्तर पर वामपंथी विचारधारा से अभिप्रेरित है। सच तो यही है कि कोई नहीं कहेगा कि मैं दक्षिणपंथी हूंं।
इसके साथ ही हमारे मन में ये ख्याल भी आने लगा कि अगर कोई पीएम मोदी से यही सवाल करे तो उनका जवाब क्या होगा? क्या कोई इस बात की कल्पना कर सकता है कि कोई साहसी व्यक्ति पीएम मोदी से इस तरह से हिट करने वाला सवाल पूछ सकता है कि आपकी विचारधारा क्या है पीएम सर? अब चाहे आप उनके समर्थक हों या आलोचक, आपका तत्काल व स्वाभाविक जवाब दक्षिणपंथी ही होगा।
पिछले सात वर्षों में जब से मोदी-शाह भाजपा सत्ता में है, "दक्षिणपंथी" पार्टी और इसके पीछे की वैचारिक ताकतों के लिए बड़े पैमाने पर आम से खास तक इसी टर्म का इस्तेमाल करते हैं।इनके साथ रुझान रखने वालों को एक तरह से दक्षिणपंथी बोल देना प्रचलित टर्म् हो गया है। क्या ऐसा करना तथ्यों की कसौटी पर खरा उतरता है। इस पर गौर फरमाने के बाद मैं तो यही कहूंगा कि मोदी और उनकी भाजपा आज जिस लाइन पर है वो हिंदू दक्षिणपंथ की दबंग राष्ट्रीय शक्ति नहीं, हिंदू वामपंथ की सोच है।
ऐसा इसलिए कि वाम-दक्षिण विचारधारा से जुड़े विश्लेषक समय के साथ या तो गड्मड् हो गए या कंफ्यूज हो गए हैं। शासकीय टर्म में बात करूं तो दक्षिणपंथियों को लेकर सबसे पहले यही मन में आता है कि वो सामाजिक रूढ़िवाद से प्रभावित होंगे, धर्मोन्मुख होंगे, उग्र राष्ट्रवादी होंगे, आलोचना को नापसंद करने वाला होगा आदि धारणाएं ही सामने आती हैंं। इन तमाम पैमानों पर क्या मोदी सरकार और आज की बीजेपी दक्षिणपंथी होने की परीक्षा पास कर सकती है। इसका जवाब भी यही समझ में आता है कि भाजपा और मोदी ठीक वैसे ही हैं जैसे अमेरिका में रिपब्लिकन और ब्रिटेन कंजरवेटिव पार्टी के लोग होते हैं।
अगर, ऐसा ही है तो विवाद का विषय भी यही से शुरू हो जाता है। क्योंकि, ऐसे में हम अपने तर्क पर कैसे आएं कि मोदी-शाह-योगी भाजपा शुद्ध दक्षिणपंथ या हिंदू दक्षिणपंथ की नहीं, बल्कि हिंदू वामपंथ की ताकत है?
ऐसे में अगर हम ऐतिहासिक संदर्भ के लिए पिछले सात से अधिक वर्षों में अर्थव्यवस्था पर मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों की पड़ताल करें तो हमें अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पिछली भाजपा सरकार को भी देखना होगा। इसने सरकार को स्पष्ट रूप से व्यवसाय से बाहर निकालने के लिए एक विनिवेश मंत्रालय स्थापित करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता विकसित की। 10 साल बाद जब 2014 में जब भाजपा फिर से सत्ता में लौटी तो आपने उम्मीद की होगी कि वह उस मंत्रालय को फिर से बहाल करेगी। ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब वित्त मंत्रालय में एक विभाग है दीपम जिसमें एक पूर्ण सचिव है।
अभी तो विनिवेश की चर्चा जोरों से हो रही है, लेकिन एयर इंडिया को छोड़कर अभी तक इतना कुछ नहीं हुआ है। बहुत से अन्य निजीकरण अभी भी केवल बातें, हवा हवाई ही हैं। जैसे कि, एक सार्वजनिक क्षेत्र के दिग्गज को एक छोटे से अधिग्रहण करने के लिए, और सरकार, बहुमत शेयरधारक के रूप में, अपने घाटे को संतुलित करने के लिए नकद कर रही है। लेकिन यह सब राष्ट्रीय हित होने की बातें की जा रही है। जैसे कि जोसेफ हेलर के कैच-22 के जीनियस मिलो मिंडरबेंडर की तरह खुद के साथ व्यापार करना और लाभ कमाना। बेशक, इसमें राज्य के उत्पादों और नकदी का उपयोग करना शामिल है।
दरअसल, जहां तक निजीकरण या विनिवेश की बात है तो यह अभी हवा हवाई बातें ही हैं। जहां तक एलआईसी या ओएनजीसी में विनिवेश की बात है तो ऐसा एक और पीएसयू खरीदने के लिए ऐसा किया जा रहा है, जिसमें सरकार 'विनिवेश' करना चाहती है। यदि आप एक बाजार अर्थव्यवस्था में विश्वास करते हैं तो आपको सरकार की इस योजना से कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए। एलआईसी या ओएनजीसी ने अपने मुनाफे से लाभांश का भुगतान अपने एकमात्र, या भारी, शेयरधारक, सरकार को किया है। लेकिन जब सरकार उनसे संपत्ति खरीदने के लिए कहती है, तो ये कंपनियां जरूरी नहीं कि काम कर रही हों।
(वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता का यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में द प्रिंट में प्रकाशित।)