अभिव्यक्ति की आजादी के सन्दर्भ में पाकिस्तान से पीछे पहुंच चुका है मोदीराज में भारत !

वॉल स्ट्रीट जर्नल की पत्रकार सबरीना सिद्दीकी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अमेरिका की यात्रा के दौरान भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की बिगड़ती मानवाधिकार स्थिति के बारे में सवाल पूछने के लिए राजनीतिक नेताओं और भाजपा समर्थकों से ऑनलाइन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा, उनकी मुस्लिम और पाकिस्तानी विरासत को ऑनलाइन ट्रोल द्वारा निशाना बनाया...

Update: 2024-05-26 05:03 GMT

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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

A new global index on freedom of expression tells that India has no such freedom. वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर अभिव्यक्ति की आजादी से सम्बंधित एक इंडेक्स के अनुसार अभिव्यक्ति की आजादी या बोलने की स्वतंत्रता दुनियाभर में ख़त्म होती जा रही है और वर्ष 2023 में पहली बार दुनिया की आधी से अधिक आबादी इस मौलिक अधिकार से वंचित है। पहली बार दुनिया की 53 प्रतिशत आबादी ऐसे देशों में रह रही है जहां सत्ता ने बोलने पर पहरे लगा दिए हैं, यह बड़ी आबादी 140 करोड़ की आबादी वाले भारत के कारण है।

हाल में ही प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली की चुनावी रैली में हाथ हवा में लहराते हुए जनता को आपातकाल की याद दिला रहे थे, ठीक उसी दिन यह रिपोर्ट भी रिलीज़ की गयी थी जिसके अनुसार भारत में अभिव्यक्ति की आजादी को पूरी तरह कुचल दिया गया है और 140 करोड़ आबादी वैसा ही बोलने को बाध्य है जैसा सत्ता सुनना चाहती है, यहाँ का मीडिया स्वतंत्र नहीं है और यहाँ के चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं होते। इस इंडेक्स को एक यूनाइटेड किंगडम स्थित अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन, आर्टिकल 19, ने प्रकाशित किया है। यह संगठन हरेक वर्ष अपनी वार्षिक रिपोर्ट के साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी से सम्बंधित इंडेक्स भी प्रकाशित करता है।

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वर्ष 2022 में दुनिया की 34 प्रतिशत आबादी में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं थी, पर वर्ष 2023 में यह संख्या 53 प्रतिशत, यानी 4 अरब से अधिक, पहुँच गयी जो दुनिया के 39 देशों में रहते हैं। वर्ष 2022 में अभिव्यक्ति की आजादी के वर्गीकरण में भारत उन देशों में शामिल था, जहां यह सर्वाधिक खतरे में है पर वर्ष 2023 में भारत उन देशों के साथ खड़ा है जहां यह आजादी खतरे में नहीं, बल्कि पूरी तरह ख़त्म हो चुकी है। इस इंडेक्स में – कुल 161 देशों में भारत 123वें स्थान पर है, जबकि पाकिस्तान 108वें स्थान पर, भूटान 103वें स्थान पर और श्रीलंका 94वें स्थान पर है।

कुल 100 अंकों वाले इस इंडेक्स में 0 से 19 अंकों वाले देश ऐसे हैं, जहां अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है – दूसरी तरफ 80 से 100 अंक वाले देशों में अभिव्यक्ति पूरी तरह आजाद है। दुनिया में भारत समेत कुल 39 देशों में अभिव्यक्ति को पूरी तरह कुचल दिया गया है, जबकि 38 देशों में अभिव्यक्ति पर कोई पहरा नहीं है। वर्ष 2022 से 2023 के बीच इंडेक्स में 9 देश फिसले हैं – बुर्किना फासो, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, इक्वेडोर, इथियोपिया, भारत, माल्डोवा, मंगोलिया, सेनेगल और टोगो। दूसरी तरफ 5 देशों – फिजी, ब्राज़ील, नाइजर, श्रीलंका और थाईलैंड – ऐसे है जिनकी स्थिति इंडेक्स में सुधरी है।

अभिव्यक्ति की आजादी के सन्दर्भ में सबसे आगे डेनमार्क है, इसके बाद क्रम से स्विट्ज़रलैंड, स्वीडन, बेल्जियम, एस्तोनिया, नॉर्वे, फ़िनलैंड, आयरलैंड, जर्मनी और आइसलैंड का स्थान है। इस इंडेक्स में अंतिम स्थान पर नार्थ कोरिया है, इससे पहले के देश हैं – इरीट्रिया, निकारागुआ, बेलारूस, तुर्कमेनिस्तान, चीन, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, म्यांमार और क्यूबा। इस इंडेक्स में बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में फ्रांस 22वें स्थान पर, अमेरिका 26वें, ऑस्ट्रेलिया 29वें, जापान 30वें, यूनाइटेड किंगडम 33वें, ब्राज़ील 35वें, साउथ अफ्रीका 47वें, रूस 148वें और सऊदी अरब 150वें स्थान पर है।

अभिव्यक्ति की आजादी के सन्दर्भ में सबसे बुरी स्थिति में एशिया-प्रशांत क्षेत्र है, जहां भारत समेत लगभग 76 प्रतिशत आबादी, ऐसे देशों में रहती है जहां बोलने की आजादी या तो नहीं है या फिर खतरे में है। इस क्षेत्र के 45 प्रतिशत देशों में अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 29 देशों में भी भारत का स्थान 21वां है। भारत से नीचे के देश हैं – हांगकांग, बांग्लादेश, कंबोडिया, वियतनाम, म्यांमार, अफ़ग़ानिस्तान, चीन और नार्थ कोरिया। अभिव्यक्ति की आजादी के सन्दर्भ में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शीर्ष देश हैं – न्यूज़ीलैण्ड, वानातू, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ताइवान, पापुआ न्यू गिनी, तिमोर-लेस्टे, साउथ कोरिया, नेपाल और मंगोलिया।

लेखकों, बुद्धिजीवियों और कलाकारों के अभिव्यक्ति की आवाज पर नजर रखने वाली संस्था 'पेन अमेरिका' पिछले पांच वर्षों से लिखने की आजादी इंडेक्स, यानि फ्रीडम टू राइट इंडेक्स, प्रकाशित करती है और इस इंडेक्स के हरेक संस्करण में इस सन्दर्भ में सबसे खराब देशों में भारत शामिल रहता है। इस इंडेक्स का आधार हरेक देश में अपने काम या अपने लेखन के लिए विशुद्ध राजनीतिक कारणों से गिरफ्तार किये गए लेखकों, बुद्धिजीवियों या कलाकारों की संख्या होती है। इस इंडेक्स का नया संस्करण अप्रैल 2024 में प्रकाशित किया गया है, जिसका आधार वर्ष 2023 के आंकड़े हैं, और हमारा देश इस इंडेक्स में 13वें स्थान पर है।

यह इंडेक्स सबसे खराब प्रदर्शन वाले देश से शुरू होकर सबसे अच्छे प्रदर्शन वाले देश पर ख़त्म होता है। वर्ष 2023 में दुनिया के 33 देशों में कुल 339 लेखक/बुद्धिजीवी जेल में बंद थे। यह संख्या पिछले 5 वर्षों में सर्वाधिक है, वर्ष 2019 के पहले संस्करण में यह संख्या 238 थी। यह संख्या वर्ष 2022 की तुलना में 9 प्रतिशत अधिक है। पहले स्थान पर चीन है, जहां कैद किये गए लेखकों की संख्या पहली बार 100 से भी अधिक, 107 तक पहुँच गयी है।

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दूसरे स्थान पर 49 ऐसे कैदियों के साथ इरान है और तीसरे स्थान पर 19 कैदियों के साथ सऊदी अरब है। चौथे स्थान पर विएतनाम (19), पांचवें पर इजराइल (17), छठे पर बेलारूस (16), सातवें पर रूस (16), आठवें पर तुर्किये (14), नौवें स्थान पर म्यांमार (12) और दसवें स्थान पर एरिट्रिया (7) है। ग्यारहवें स्थान पर 6 लेखकों को कैद कर इजिप्ट और क्यूबा हैं। इसके बाद 5 लेखकों को जेल में डालकर संयुक्त तौर पर भारत, उज्बेकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और मोरक्को का स्थान है।

लेखकों के लिए सबसे खतरनाक एशिया-प्रशांत क्षेत्र है, जहां 152 लेखक कैद में हैं। इसके बाद का दूसरा खतरनाक क्षेत्र मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका है, जहां 105 लेखक कैद में हैं। तीसरे स्थान पर 61 लेखकों को कैद कर यूरोप और मध्य एशिया का क्षेत्र है। इस इंडेक्स के अनुसार भले ही 33 देशों में 339 लेखकों को कैद किया गया हो, पर दुनियाभर में निष्पक्ष लेखकों पर खतरे बढ़ रहे हैं। दुनिया के 88 देशों में 923 लेखक खतरे में हैं – उन्हें धमकियां दी जा रही हैं, प्रताड़ित किया जा रहा है या फिर शहर या देश से बाहर किया जा रहा है। पिछले वर्ष 51 लेखकों की हत्या की गयी, 15 लापता हैं और 88 को देश छोड़ना पड़ा।

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित होने वाले प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के 2024 संस्करण में कुल 180 देशों में भारत 159वें स्थान पर है। यह तुर्की, पाकिस्तान और श्रीलंका से पीछे है, जो क्रमशः 158, 152 और 150वें स्थान पर हैं। आरएसएफ के विश्लेषण में उल्लेख किया गया है कि 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारत का मीडिया अनौपचारिक आपातकाल की स्थिति में आ गया है और उनकी पार्टी भाजपा और मीडिया पर हावी अरबपतियों के बीच एक शानदार गठबंधन हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है, "जो पत्रकार सरकार के आलोचक हैं, उन्हें नियमित रूप से ऑनलाइन उत्पीड़न, धमकी, धमकियों और शारीरिक हमलों के साथ-साथ आपराधिक मुकदमों और मनमानी गिरफ्तारियों का शिकार होना पड़ता है।"

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने वर्ष 2023 की वार्षिक रिपोर्ट में भारत में पत्रकारों पर संकट के सन्दर्भ में लिखा है, “डिजिटल स्पेस में मानवाधिकार रक्षकों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर प्रतिबंध लगाए गए। मार्च में अधिकारियों ने पंजाब के प्रमुख पत्रकारों, राजनीतिक नेताओं और पंजाबी प्रवासियों के ट्विटर खातों को ब्लॉक कर दिया क्योंकि अधिकारियों ने वारिस पंजाब डे संगठन के नेता अमृतपाल सिंह की तलाश के लिए एक अभियान शुरू किया था।

जून में वॉल स्ट्रीट जर्नल की पत्रकार सबरीना सिद्दीकी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अमेरिका की यात्रा के दौरान भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की बिगड़ती मानवाधिकार स्थिति के बारे में सवाल पूछने के लिए राजनीतिक नेताओं और भाजपा समर्थकों से ऑनलाइन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। उनकी मुस्लिम और पाकिस्तानी विरासत को ऑनलाइन ट्रोल द्वारा निशाना बनाया गया। 3 अक्टूबर को, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने कथित तौर पर आतंकवादी कृत्यों के लिए धन जुटाने, विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और आपराधिक साजिश के लिए यूएपीए - भारत के प्राथमिक आतंकवाद विरोधी कानून - के तहत मीडिया संगठन न्यूज़क्लिक से जुड़े कम से कम 46 पत्रकारों के घरों पर छापा मारा।

हम इतिहास के उस दौर में खड़े हैं, जहां मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के सन्दर्भ में हम पाकिस्तान, रूस, चीन, बेलारूस, तुर्की, हंगरी, इजराइल को आदर्श मान कर उनकी नक़ल कर रहे हैं और स्वघोषित विश्वगुरु का डंका पीट रहे हैं। यह दरअसल देश के पूंजीपतियों के वर्चस्व वाले मेनस्ट्रीम मीडिया की जीत है, क्योंकि यह मीडिया ऐसा ही देश और ऐसी ही निरंकुश सत्ता चाहता है जिसके तलवे चाटना ही उसे समाचार नजर आता है। यही प्रधानमंत्री मोदी का वास्तविक रामराज्य है।

सन्दर्भ:

1. The State of Freedom of Expression Around the World - https://www.globalexpressionreport.org/

2. Freedom to Write Index 2023, PEN America – pen.org/report/freedom-to-write-index-2023/

3. 2024 World Press Freedom Index – journalism under political pressure - https://rsf.org/en/2024-world-press-freedom-index-journalism-under-political-pressure

4. https://www.amnesty.org/en/documents/pol10/7200/2024/en/ 

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